राधाकृष्ण भक्त। विष्णु स्वामी संप्रदाय से संबंध। वंशीअली के शिष्य। युगल भक्ति के कोमल पदों के लिए स्मरणीय।
गुंजन मधुपन, सुनत अली री / अलबेलीअलि
गुंजन मधुपन, सुनत अली री।
उमगी मनों प्रेम की सरिता, रूप के सिंधु चली री॥
बिहँसत बदन हँसत बिगसत-सी, जनु अनुराग-कली री।
रूप अनूप लखैं ‘अलबेली' आई बारि भली री॥
ऐसैं काल बितावों निसिदिन / अलबेलीअलि
ऐसैं काल बितावों निसिदिन।
भोर साँझि लगि, साँझि भोर लौं, लाड़ लड़ाय दोऊ जन॥
छिन बिच्छेप न होइ टहल में, कीजै यह अद्भुत पन।
सब रस को रस-सार बिहार, सुबौन्यो हँस रसिक गन॥
विविध भाँति के और भजन जे, लौंन बिना ज्यों विंजन।
श्रीराधा-पद-कमल-कृपा बिनु, को पावै रस कौ कन?
श्रीवृंदावन बास रासि-रस, समय प्रबंध परमधन।
‘अलबेली' श्रीबंसीअलि बलि, यह मानों मेरे मन॥
लीनों वृंदावन बसि लाह्यो / अलबेलीअलि
लीनों वृंदावन बसि लाह्यो।
सेवा-टहल महल की निसि-दिन, यह जिय नेम निबाह्यो।
अद्भुत प्रेमबिहार चारु रस, रसिकनि बिनु किनु चाह्यो।
‘अलबेली' अलि सफल कियो सब, जिन यह रस अवगाह्यो॥
श्री बंसीअलि प्रान हमारे / अलबेलीअलि
श्री बंसीअलि प्रान हमारे।
हृदय-कमल-संपुट करि राखूँ, अँखियन के बर तारे॥
चरन सरोज सुगति मति मेरी, निरधन धन अनुसारे॥
अलबेली, अलिगन मधुकर ह्वै, पीवत रस सुखसारे॥
भोरहिं उठि अलिरूप विचारूँ / अलबेलीअलि
भोरहिं उठि अलिरूप विचारूँ।
अद्भुत नवल किशोर माधुरी, रूप अनूप निहारूँ॥
करि अस्नान उबटि अंग अंगनि, नाना भाँति सिंगारूँ।
भूषन बसन प्रसादी स्वामिनी, पुलकि-पुलकि उर धारूँ॥
सदा रहूँ ललितादिक संगौ, प्रेम-भरी अनुहारूँ।
अलबेली, श्रीबंसीअलि बलि, महल-टहल अनुसारूँ॥
श्रीबंसीअलि की बलि जाऊँ / अलबेलीअलि
श्रीबंसीअलि की बलि जाऊँ।
जाकी चरन-सरन-किरपा तें, बृन्दावन-घन पाऊँ॥
नवनागरि-अलिकुल-चूड़ामनि, रहसि-रहसि दुलराऊँ॥
अलबेली, अलि हिय कौ गहिनो, प्रेम-जराइ जराऊँ॥
बृन्दावन बसि यह सुख लीजै / अलबेलीअलि
बृन्दावन बसि यह सुख लीजै।
सात समय की टहल महल बिनु, इकछिन जान न दीजै॥
परमप्रेम-रस-रास-रसिक जे, तिनही को संग कीजै।
निविड़े निकुंज बिहार चारु अति, सुरस-सुधा दिन पीजै॥
और भजन साधन में मिथ्या, कबहूँ काल न छीजै।
दिन दुलराइ लड़ाइ पुहुन को, ‘अलबेली' अलि जीजै॥
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