खेलवना
आजु सुमगल दायक, सब बिधि लायक हे / अंगिका लोकगीत
इस गीत में पुत्र की प्राप्ति की उत्पत्ति के बाद घर में आनंद बधावे बजने, शुभ संवाद सुनकर इनाम पाने वालों का राजा के पास आने, बच्चे को आशीर्वाद देते हुए उसका गुणगान करने तथा मंगल-कामना करते उनके अपने-अपने घर जाने का उल्लेख है।
आजु सुमंगल दायक, सब बिधि लायक हे।
ललना रे, जनमल होरिला, आनंद उर छायल हे॥1॥
दुअरे बाजै बधावा, एँगना गाबै सोहर हे।
ललना रे, राजा दसरथ के मन भेल हुलास, नौबत झरै<ref>नैबत झहर रहा है; नौबत बज रहा है</ref> हे॥2॥
होरिला के सुनि के जलम, उछाह माँगै हे।
ललना रे, माँगै इनाम, से लय घ्ज्ञर जैबै हे॥3॥
बसतर भूसन सब पायल, मन हुलसायल हे।
ललना रे, होरिला कय दय आसीस, हरसि गुन गाबल हे॥4॥
राजा राम के जलम भेलै, हिलिमिलि सखि गाबत हे।
ललना रे, जुग जुग जियहो सिरीराम अँगने खूब खेलहु हे॥5॥
ओरी ओरी फूल फुलाय गेलै, अरे दैयाँ, से फूल लोढ़ब कैसे / अंगिका लोकगीत
भाई की फुलवारी में फूल खिल गये हैं। बहन फूल तोड़ने के लिए बधावे की माँग करती है। भाई उसकी मुँहमाँगी चीजें पुरस्कार में देता है। बहन अपने भाई और भाभी के लिए शुभकामना प्रकट करती है और कहती हैकि भाभी, तुम ‘दूधे नहाओ, पूतों फलो’ और फिर बच्चा पैदा करो, जिससे मैं दुबारा बधावा माँगने आऊँ। जब तक गंगा यमुना की धारा बहती रहे, तब तक मेरे भैया और भाभी जीवित रहें।
इस गीत में फुलवारी में फूल खिलने के ब्याज से पुत्रोत्पत्ति का वर्णन हुआ है।
ओरी ओरी फूल फुलाय गेलै, अरे दैयाँ, से फूल लोढ़ब कैसेॅ
सेहो फूल लोढ़ब बाँस के चँगेरिया, अरे दैयाँ बाबा सेॅ लेबऽ बधैया, भैया सेॅ लेबऽ बधैया॥1॥
माँगऽ माँगऽ आगे बहिनी, कौने फल है माँगब, अरे दैयाँ, सेहो फल आनि तुलायब।
अगिला हर हरबाहा लेभौं, पछिला हर बरदवा, अरे दैयाँ, पछिला हर के बरदवा॥2॥
घर नीपन केर नौड़ी लेभौं, गोड़ जातन केर नौकर, अरे दैयाँ।
भात खाएन केर थारी लेभौं, पानी पियन के झारी अरे दैया।
दूध पियन के कटोरा लेभौं, औरो लेभौं गिलास, अरे दैयाँ॥3॥
एतना संपति बहिनों तोहरा क देलिहौं, हमरा क असीसो न देल, अरे दैयाँ।
एतना संपति लय चललि ननद दाइ, हमरा क असीसो देल, अरे दैयाँ॥4॥
दूध लहैंहे हे भौजो पुतर बियैहें हे, फिरि माँगबौ बधैया, अरे दैयाँ।
जबे लागि हे भौजो गंगा जमुना बहे, तबे लगी भैया भौजी जीअ, अरे दैयाँ॥5॥
आबह हे सासु आबह, तू पँजरा लागि आबि बैठह हे / अंगिका लोकगीत
प्रसव-वेदना आरंभ होने पर जच्चा अपनी सास से सेवा शुश्रूषा के लिए बगल में आकर बैठने का आग्रह करती है। दर्द से व्याकुल होकर वह अदरक, गुड़ आदि सामग्री को भी खाने से अपनी अनिच्छा प्रकट करती है; लेकिन पुत्रोत्पत्ति के बाद वही अपनी सास से सहेलियों को बुलाकर सोहर गवाने का आग्रह करती है। पति के पलंग पर जाने और अदरक, गुड़ आदि चीजों के खाने का भी संकल्प करती है।
यह स्वाभाविक भी है; क्योंकि माता अपने रक्त-मांस से बने पुत्र को देख अपने सारे कष्ट भूल जाती है।
आबह हे सासु आबह, तू पँजरा लागि आबि बैठह हे।
हम दरदे बेयाकुल भेलें, हम मरलें, मरलें हे सासु मरलें।
हम आद गुड़ नय खैबै, पिया पलँग नय जैबै, हे सासु मरलें॥1॥
जाहो हे सासु जाहो दस लोग बोलाय के आनऽहो हे।
मंगल सोहर सब गाबहऽ, होरिला क गोद खेलाबहऽ, हम बचलों, बचलों हे सासु बचलों।
हम पिया पलँग पर जैबै, हम आद गुड़ सासु खैबै, हम बचलों॥2॥
उठले रे दरदिया जियरा बाउर मोरी हे ननदी / अंगिका लोकगीत
प्रसव-वेदना उठने पर जच्चा बेचैन हो जाती है। वह अपनी प्यारी ननद से सँभालने तथा सास और पति को जगा देने का अनुरोध करती है। साथ ही, वह बच्चे के शुभ लग्न, ग्रहदशा आदि की जानकारी प्राप्त करना भी चाहती है, जिसके लिए पंडित बुलवाने को कहती है।
उठले रे दरदिया जियरा बाउर मोरी हे ननदी।
बाउर मोरी हे ननदी, सँम्हारऽ मोरी हे ननदी॥1॥
उठलै रे दरदिया जियरा बाउर मोरी हे ननदी।
बाम रे दहिनमा चिलका, छलमल करै हे ननदी॥2॥
आधी रात अगली, पहर राती हे पिछली।
होयथें भिनसरबा होरिला जनम लेलकै हे ननदी॥3॥
सासु के केबाड़ में धक्का मारि दिअन हे ननदी।
पिया के पलँगिया से उठाय दिअन हे ननदी।
पंडित बोलाय दिनमा गुनाय लऽ हे ननदी॥4॥
पीपर-पिलाई
सोठिया हम सँजोगल, मन छेलऽ धिया होती हे / अंगिका लोकगीत
सास पतोहू से सोंठ-पीपल पीने का अनुरोध करती है और यह भी कह देती है कि इसके पीने से बच्चे के लिए दूध होगा; लेकिन वह यह कहकर पीना अस्वीकार कर देती है कि सोंठ-पीपल पीने से ओठ फूल जायेंगे, कंठ जलने लगेगा और सोने से मढ़े हुए मेरे दाँत खराब हो जायेंगे। उसकी गोतिनी और पति भी उससे पीने का अनुरोध करते हैं। वह सबको एक ही तर्क देती है और पीना अस्वीकार कर देती है।
सोंठिया हम सँजोगल, मन छेलऽ धिया होती हे।
ललना रे, जनमलै रूपनारायन, सभे मन हरखित हे॥1॥
मचिया बैठलि तोहें सासुजी, पुतहू सेॅ अरज करै हे।
ललना रे, पीलऽ पुतहू सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथों हे॥2॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै, कंठ बेदिल भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥3॥
भनसा पैसली तोहें गोतनी, कि गोतनी सेॅ अरज करै हे।
ललना रे, पीलऽ गोतनी सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथों हे॥4॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै, कंठ बेदिल भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥5॥
पोथिया पढ़ैतेॅ तोहें परभुजी, कि धानि से अरज करै हे।
ललना रे, पिअहो धानि सोंठिया पिपरिया, बबुआ ल दूध होइथौं हे॥6॥
सोंठिया पिअइते ओठ फूजलै, कंठ बेदिल भेलै हे।
ललना रे, सोबरन मेढ़ल सभे दाँत, बलैया पीअब पीपरि हे॥7॥
पिपरिया हम नय खैबै, कडु़ लागै / अंगिका लोकगीत
जच्चा से पीपर पीने का आग्रह उसकी सास और देवर द्वारा किया जाता है तथा पीपर के गुण का भी बखान किया जाता है। लेकिन, जच्चा कड़वापन के कारण नजाकत के साथ उसे पीने को तैयार नहीं है। उसके नखरे देाकर उसकी ननद से नहीं रहा जाता। वह हाथ-मुँह चमकाती हुई अपनी प्यारी भाभी पर करारा मजाक कर देती है-‘वाह, पीपर तो कड़वा लगता है, लेकिन भैया की अंकशायिनी बनना अच्छा लगता है,’ ऐसे हास-परिहास के आनंदमय वातावरण में नहीं पीने के हठ पर जच्चा कब तक दृढ़ रह सकती है?
पिपरिया हम नय खैबै, कडु़ लागै।
भनसा करैतेॅ सासु समुझाबथिन, तनि पुतहु खाय लऽ, गुन करथौं हे॥1॥
पूजा करैतेॅ देवर समुझाबथिन, तनि भौजो खाय लऽ, गुन करथौं हे।
देहरि बैठलि ननदो ओठ चमकाबथिन, भैया पलँग भौजो नीक लागै हे॥2॥
छठी पूजन
छठम दिन छठियार, साठि अराधल रे / अंगिका लोकगीत
छठियार में आँख आँजने के लिए जच्चा द्वारा ननद को आमंत्रित करने और उसके द्वारा आँख आँजने की विधि संपन्न करने और भाई से पुरस्कार प्राप्त कर बच्चे के फूलने-फलने का आशीर्वाद देने का उल्लेख इस गीत में हुआ है, जिससे उसे उपनयन, विवाह आदि के समय बार-बार आने का सौभाग्य प्राप्त हो।
छठम दिन छठियार, साठि अराधल रे।
ललना, साठि अराधि घर आनल, ननदो बुलाबल रे॥1॥
आबहु ननदो गोसाउनि, नगर सोहाउनि रे।
ललना, बैठहु आए पलँग चढ़ि, भतीजा अगोरै रे॥2॥
अगोरि पगोरि ननदो बैठलि, आँखि नहं आँजै रे।
ललना, लेबै में जड़ी के कँगनमा, तबै हम आँजबै रे॥3॥
घर पिछुअरबा में सोनरबा, तोहिं मोरा हित बसु रे।
ललना, गढ़ि दे जड़ी के कँगनमा, बहिनी परबोधबै रे॥4॥
पहिरि ओहरि बहिनी बैठल, दिय लागलि आसिस रे।
ललना, सोने फूल फूलै होरिलबा, बहुरि हम आयब रे॥5॥
आँख अँजाई
काजर के कजरौटी, कजर हमे सेदल रे / अंगिका लोकगीत
भाभी के पुत्र होने पर ननद द्वारा काजल सेॅकने और आँख-अँजाई की विधि संपन्न करने के लिए भाभी के हाथ का कंगन माँगने तथा घर के परिवार के समझाने पर भी जच्चा द्वारा कंगन नहीं देने पर भाई द्वारा बहन को इस प्रकार आश्वस्त करने का उल्लेख है कि जाने दो, मैं फिर से दूसरा विवाह कर लूँगा और तब तुम्हें कंगन दिलवा दूँगा।’
पुत्रोत्पत्ति के बाद सौरगृह में आँख-अँजाई की विधि संपन्न की जाती है। आँजन सेॅकने के लिए ननद को इनाम देने की परिपाटी है।
काजर के कजरौटी, कजर हमें सेदल रे।
ललना रे, रँगबौ में बबुआ के आँखि, कँगन हमें लेबौ रे॥1॥
घड़ी रात गाँगहि पैसी लहायब, हरिबंस सूनब हे।
ललना, जनमत देवनारायन, सभके मन पूरल रे॥2॥
पलँग सूतल तोहिं अम्माँ, कि तोहिं मोर अम्माँ रे।
ललना रे, रँगलें में बबुआ के आँखि, कि कंगन मोर चाहियो रे॥3॥
भनसा पैसली तोहिं पुतहू, कि तोहिं मोर पुतहू रे।
ललना रे, देइ देहो हाथ के कँगनमाँ, कि ननदी तोर रूसल रे॥4॥
होरिला पूत हम तेजब, ननद, बन हमें सेबब रे।
ललना, पहिले बनिज के कँगनमाँ, कँगनमाँ नहीं देबौ रे॥5॥
सभाँ बैठल तोहिं मोर बाबा, कि तोहिं मोर बाबा रे।
ललना, रँगलें में बबुआ के आँखि, कँगन हम लेबौं रे॥6॥
भनसा पैसलि तोहिं पुतहू, कि तोहिं मोर पुतहू रे।
ललना रे, द देभैन हाथ के कँगनमा, कि ननदी तोरा रूसल रे॥7॥
होरिला पूत हमें तेजब, ननद, बन हमें सेवब रे।
ललना, पहिले बनिज के कँगनमाँ, कँगन नहीं देबौ रे॥8॥
जुअबा खेलैते तोहिं मोर भैया, कि तोहिं मोर भैया रे।
ललना, तोरो धनि कहलक कँगनमाँ, कँगन नहीं देल्हन रे॥9॥
पलँगा सूतल तोहिं धानी, कि तोहिं मोर रानी रे।
ललना, द देभैन हाथ के कँगनमाँ, बहिनी मोर रूसलि रे॥10॥
होरिला पूत हमें तेजब, ननद, बन हमें सेवब रे।
ललना, पहिले बनिज के कँगनमाँ, सेहो कैसे देभैन रे॥11॥
चुप रहु चुप रहु बहिनी, कि तोहिं मोरा हितबन रे।
ललना रे, करबै जनकपुर बिआह, कँगन पहिरायब रे॥12॥
बधैया
भैया घर जबे बेटा भेलै, बहिनी बधैया माँगे ऐली आहो लाल / अंगिका लोकगीत
भाई के घर में पुत्र उत्पन्न होने पर बहन बधैया माँगने पहुँचती है। उसे मुँहमाँगी चीजें बधावे में मिलती हैं। बधावे की चीजों को लेकर वह अपनी भाभी और बच्चे को आशीर्वाद देती हुई जाती है।
इस गीत में ननद-भाभी तथा भाई-बहन के उत्कट प्रेम का वर्णन है।
भैया घर जबे बेटा भेलै, बहिनी बधैया माँगे ऐली आहो लाल॥1॥
माँगऽ माँगऽ आहे बहिनो, जेहो कुछु माँगब हे।
जेहे कुछ हिरदा में समाय, सेहो कुछ माँगऽ हे।
जेहे कुछु हिरदा में समायत, सेहो कुछु देबै आहो लाल॥2॥
अगिला हर के बैला माँगू, पिछला हर हरबहबा माँगू हे।
भात खाये के थारी माँगू, पानी पिअन के झारी, आहो लाल॥3॥
लै दै जब चलली ननदो हे, दै लेहो बबुआ के आसिक आहो लाल॥4॥
जैसेॅ जैसेॅ फुलत, माली फुलबरिया हे।
वैसेॅ फूलत मोर भौजो, कि आहो लाल॥5॥
आमा रे महुअबा केर दुइ रे बीरिछिया, तही तरे सुगवा सुगिया बोलै हे / अंगिका लोकगीत
भतीजा होने की खबर पाकर बहन मायके को चलती है। गाँव के नजदीक पहुँचने पर भाई को उसके आने की खबर मिलती है। भाई बधावे में इनाम देने के भय से कहने लगता है कि मेरी बैरिन बहन आ रही है। दरवाजे पर बहन के पहुँचते ही उसकी भाभी अपनी सास से दरवाजा बंद कर देने का आग्रह करती है और स्वयं ज्वर आने का बहाना करके रजाई ओढ़ लेती है। सास-बहू आपस में विमर्श करती हैं। सास सलाह देती है कि अपनी झुलनी उसे दे दो; क्योंकि झुलनी बहुत कम दाम की है। अंत में, बहू बिगड़कर अपनी झुलनी फेंक देती है और ननद को भला-बुरा कहने लगती है।
इस गीत में ननद और उसके पति के सुग्गा और सुग्गी का प्रतीक माना गया है।
आमा रे महुअबा केर दुइ रे बीरिछिया, तही तरे सुगवा सुगिया बोलै हे।
सुगवा के बोलिया सुगिया सुनलनि जे, सुगनी के नयना सेॅ लोर ढरै हे॥1॥
कहाँ केर प्रेम चिरैया, कहाँ केने जाय छै हे।
कवन बाबू क भेलै नंदलाल, बधैया माँगे जायब हे॥2॥
अजोधेआ केर प्रेम चिरैया छीकै, जनकपुर कैने जाय छै हे।
रामेचंदर क होरिला जनम लेल, बधैया माँगे जायब हे॥3॥
जबे डाँड़ी आबलनि, गाँव गौढ़ा बीचे हे।
आहे, सबसे भैया अरज करै, बहिनियाँ बैरिन आयल हे॥4॥
जबे डाँड़ी आबलनि, दुअरिया बीचे हे।
आहे, लगबऽ सासु झुनकी केबरिया, जरबा मोरा लागल हे, रेजैया मोर ओढ़ाय देहो हे॥5॥
सासु पुतहुआ मिलि, एकै मति कैलन हे।
आहे, थोड़कहि राम के झुलनियाँ, झुलनियाँ तोहें दइ देहो हे॥6॥
घर से झुलनियाँ बाहर कय फेंकलनि, झमकि फेंकलनि हे।
आहे, लहो सतभतरो झुलनियाँ, सौतिनियाँ बैरिन आयल हे॥7॥
सुभ लगन जी सुभ लगना जी, नद क पोता भए, सुभ लगना जी / अंगिका लोकगीत
इस गीत में नंदजी को शुभ-लग्न में पोता पैदा होने और खुशी में बच्चे के माता-पिता द्वारा अन्न-धन लुटाने का उल्लेख हुआ है।
सुभ लगन जी सुभ लगना जी, नंद क पोता भए, सुभ लगना जी॥1॥
कौने लुटाबै पाट पाटंबर, कौने लुटाबै हथकँगना जी।
बाबू नंद क पोता भए सुभ लगना जी॥2॥
बाबा लुटाबै पाट पाटंबर, अम्मा लुटाबै हथकँगना जी।
बाबू नंद क पोता भए, सुभ लगना जी॥3॥
केकरा क जनमल राम, किनका भरथ लाल हे / अंगिका लोकगीत
केकरा क जनमल राम, किनका भरथ लाल हे।
ललना रे, किनका लछुमन सतरुहन, घर घर बधैया बाजै हे॥1॥
कोसिला क जनमल राम, कंकई क भरथ लाल हे।
ललना रे, सुमितरा क लछुमन सतरुहन, कि घर घर बधैया बाजै हे॥2॥
केओ लुटाबे अन धन सोनमा, त केओ रथ पलकिया न हे।
ललना रे, केओ लुटाबै हथकँगना, कि किनका घर बधैया बाजै हे॥3॥
कोसिला लुटाबे अन धन सोनमा, कंकइ रथ पलकिया न हे।
ललना रे, सुमितरा लुटाबै हथकँगना, दसरथ घर बधैया बाजै हे॥4॥
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