बादरु गरजइ बिजुरी / कन्नौजी लोकगीत लिखित
बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ
बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया,
काहू सौतिन नइँ भरमाये
ननदी फेरि तुम्हारे भइया।।
दादुर मोर पपीहा बोलइँ
भेदु हमारे जिय को खोलइँ
बरसा नाहिं, हमारे आँसुन
सइ उफनाने ताल-तलइया।
काहू सौतिन...।।
सबके छानी-छप्पर द्वारे
छाय रहे उनके घरवारे,
बिन साजन को छाजन छावइ
कौन हमारी धरइ मड़इया ।
काहू सौतिन...।।
सावन सूखि गई सब काया
देखु भक्त कलियुग की माया,
घर की खीर, खुरखुरी लागइ
बाहर की भावइ गुड़-लइया।
काहू सौतिन...।।
देखि-देखि के नैन हमारे
भँवरा आवइँ साँझ–सकारे,
लछिमन रेखा खिंची अवधि की
भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया ।
काहू सौतिन...।।
माना तुम नर हउ हम नारी
बजइ न एक हाथ सइ तारी,
चारि दिना के बाद यहाँ सइ
उड़ि जायेगी सोन चिरइया।
काहू सौतिन...।।
नाचइ नदिया बीच हिलोर / कन्नौजी लोकगीत लिखित
नाचइ नदिया बीच हिलोर
वनमां नचइ बसंती मोर
लागै सोरहों बसंत को
सिंगारु गोरिया।
सूधे परैं न पाँव
हिया मां हरिनी भरै कुलाँचैं
बयस बावरी मुँहु बिदुराबै
को गीता कौ बाँचै
चिड़िया चाहै पंख पसार
उड़िबो दूरि गगन के पार
श्रेणी: लोकगीत
अन्य लोकगीत प्रादेशिक गीत
बम भोला चले कैलास बुंदियाँ परं लगी / कन्नौजी लोकगीत लिखित
बम भोला चले कैलास बुंदियाँ परन लगीं
शिवशंकर चले कैलास बुंदियाँ परन लगीं
गौरा ने बोइ दई हरी हरी मेंहदी
बम भोला ने बोइ दई भाँग
बुंदियाँ परन लगीं
गौरा ने पीसि लई हरी हरी मेंहदी
शिवशंकर ने घोटि लई भाँग
बुंदियाँ परन लगीं
गौरा की रचि गई हरी हरी मेंहदी
बम भोला कों चढ़ि गई भाँग
बुंदियाँ परन लगीं
सरवन पँवारा / कन्नौजी लोकगीत लिखित
कात–बास दोइ अँधा बसइँ
अमर लोक नाराँइन बसे
अँधी कहति अँधते बात
हम तुम चलें राम के पास
कहा राम हरि तेरो लियो
एकुँ न बालक हमकू दियो
बालकु देउ भलो सो जाँनि
मात–पितन की राखै काँनि।
एक माँस के अच्छर तीनि
दुसरे माँस लइउड़े सरीर
तिसरे माँस के सरबन पूत्र
डेहरी लाँघइ फरकइ दुआरु
देखउ बालकु जूकिन कार
जू बालकु अन्धी को होई
जू बालकु सूरा का होइ
लइलेउ अन्धी अपनो लालु
लइलेउ सूरा अपनो लालु्
जू जो जिअइ तउ हउ बड़ भागि
दिन–दिन अन्धी सेवन लागि
दिन–दिन सूरा के भओ उजियार
No comments:
Post a Comment