विद्यापति जीवन परिचय / Vidyapati jeevan parichay
विद्यापति, जिनका जन्म लगभग 1352 ईस्वी में बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी गाँव में हुआ था, एक प्रमुख मैथिली और संस्कृत कवि, संगीतकार, और दरबारी थे। उनकी मृत्यु 1448 ईस्वी में हुई। उन्हें "मैथिल कोकिल" के नाम से भी जाना जाता है, जो उनकी काव्य रचनाओं की मिठास और गेयता को दर्शाता है
जीवन और कार्य
शिक्षा और परिवार: विद्यापति का जन्म एक शैव ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने प्राचीन मिथिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और अपने समय के विभिन्न राजाओं के दरबार में काम किया। उनके गुरु का नाम पंडित हरि मिश्र था
काव्य रचनाएँ: विद्यापति की रचनाएँ मुख्यतः मैथिली, संस्कृत, और अवहट्ट में हैं। उन्होंने प्रेम गीतों, भक्ति गीतों, और शृंगारिक कविताओं की रचना की। उनके प्रसिद्ध ग्रंथों में 'पदावली', 'कीर्तिलता', और 'भूपरिक्रमण' शामिल हैं। उनके काव्य में भक्ति और शृंगार का अद्भुत मिश्रण मिलता है, जो उन्हें अन्य कवियों से अलग बनाता है234.
साहित्यिक योगदान
विद्यापति की काव्य रचनाएँ भक्ति परंपरा के साथ-साथ शृंगार परंपरा का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। वे शिव, विष्णु, दुर्गा, और गंगा की भक्ति में गीत लिखते थे, लेकिन उनके प्रेम गीत विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ न केवल मैथिली साहित्य बल्कि अन्य पूर्वी भारतीय साहित्य पर भी गहरा प्रभाव डाल चुकी हैं136.
प्रभाव और विरासत
विद्यापति का प्रभाव इतना व्यापक था कि उन्हें "बंगाली साहित्य का जनक" कहा गया है। उनके समय की भाषा प्राकृत धीरे-धीरे मैथिली और भोजपुरी के प्रारंभिक रूपों में विकसित हो रही थी। विद्यापति को "इटली में दांते और इंग्लैंड में चासर के समान" माना जाता है, जो उनकी साहित्यिक महत्ता को दर्शाता है
उनकी रचनाएँ आज भी मिथिलांचल में गाई जाती हैं और वे भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं।
विद्यापति के गीत / दोहे / अन्य रचनाएं /
Vidyapati ke geet / dohe / anya rachnaayein
जयति जय माँ अम्बिके जगदम्बिके जय चण्डिके / Jayati jay maa Ambike Vidyapati
शान्ति पद / Shanti pad Vidyapati
महेशवाणी आ नचारी (Maheshvani aur Nachari Vidyapati)
एत जप-तप हम की लागि कयलहु / Et jap-tap ham ki lagi kayalhu Vidyapati
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