श्रीभट्ट के दोहे Shribhatt ke Dohe
तनिक न धीरज धरि सकै, सुनि धुनि होत अधीन।
बंसी बंसीलाल की, बंधन कों मन-मीन॥
जनम-जनम जिनके सदा, हम चक्कर निसि-भोर।
त्रिभुवन-पोषन सुधाकर, ठाकुर जुगल-किशोर॥
मोहन दन ब्रजभूमि सब, मोहन सहज समाज।
मोहन जमुना कुंज तहँ, बिहरत श्रीब्रजराज॥
श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
स्यामा-स्याम पद पावै सोई श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
स्यामा-स्याम पद पावै सोई।
मन-बच-क्रम करि सदा नित्य जेहिं, हरिगुरु-पद-पंकज-रति होई॥
नंद-सुवन वृषभानु-सुता-पद, भजै-तजै मन आनै जोई।
‘श्रीभट्ट’ अटकि रहै स्वामीपन आन ब्रत मानैं सब छोई॥
बसौ मेरे नैननि में दोऊ चंद श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
बसौ मेरे नैननि में दोऊ चंद।
गौरबरनि वृषभानु-नंदनी, स्यामवरन नंद-नंद।
गोलक रहे लुभाय रूप में, निरखत आनंद-कंद।
जै ‘श्रीभट्ट’ प्रेम-रस बंधन, क्यों छूटै दृढ़ फंद॥
ब्रजभूमि मोहिनी मैं जानी श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
ब्रजभूमि मोहिनी मैं जानी।
मोहन कुंज, मोहन बृंदावन, मोहन जमुना-पानी॥
मोहन नारि सकल गोकुल की, बोलति अमरित बानी।
‘श्रीभट्ट’ के प्रभु मोहन नागर, मोहनि राधारानी॥
जुगलकिशोर हमारे ठाकुर श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
जुगलकिशोर हमारे ठाकुर।
सदा-सर्वदा हम जिनके हैं, जनम-जनम घर-जाय चाकर॥
चूक परैं परिहरैं न कबहूँ, सबहीं भाँति दया के आकर।
जै ‘श्रीभट्ट’ प्रगट त्रिभुवन में प्रनतनि पोषत परम-सुधाकर॥
मदनगुपाल, सरन तेरी आयो श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
मदनगुपाल, सरन तेरी आयो।
चरनकमल को सरन दीजिये, चेरौ करि राखौं घर-जायो॥
धनि-धनि माता-पिता सुत बंधु धनि, जननी जिन गोद खिलायो।
धनि-धनि चलन चलत तीरथ की, धनि गुरुजन हरिनाम सुनायो॥
जे नर बिमुख भये गोविंद सों, जनम अनेक महादुख पायो।
‘श्रीभट्ट’ के प्रभु दियौ अभय पद जम डरप्यौ जब दास कहायो॥
हिंडोरौ झूलति हैं पियप्यारी श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
हिंडोरौ झूलति हैं पियप्यारी।
श्रीरंगदेवी सुदेयी बिसाखा, झोंटा देति ललिता री॥
श्री जमुना बंसीवट के तट, सुभग भूमि हरियारी।
तैसेइ दादुर मोर करत धुनि, मन कों हरत महा री॥
धन रजनी दामिनि तै डरपैं, पिय-हिय लपटी सुकुमारी।
जै ‘श्रीभट्ट’ निरखि दंपति-छबि, देत अपनपौ वारी॥
सेव्य हमारे हैं प्रिय प्यारे श्रीभट्ट के पद Shribhatt ke Pad
सेव्य हमारे हैं पिय प्यारे वृंदाबिपिन-बिलासी।
नंद-नंदन वृषभानु-नंदिनी-चरन-अनन्य उपासी॥
मत्त प्रनय बस, सदा एकरस बिबिध निकुंज-निवासी।
‘श्रीभट्ट’ जुगुलरूप बंसीवट सवेत सब सुख रासी॥
श्रीभट्ट जीवन परिचय Shribhatt parichay
श्रीभट्ट की निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रमुख कवियों में गणना की जाती है
जीवन परिचय
माधुर्य के सच्चे उपासक श्रीभट्ट केशव कश्मीरी के शिष्य थे। ग्रन्थ "युगल शतक " का रचना काल निम्न दोहे में दिया है ;
- नयन वान पुनि राम शशि गनो अंक गति वाम।
- प्रगट भयो युगल शतक यह संवत अभिराम।
नैन 2 वान 5 राम 3 शशि 1 उलटा करने पर 1352 तेरह सौ वावन होता है। यह श्रीयुगल शतक का रचना काल है ।
साहित्य सृजन
निम्बार्क सम्प्रदाय के विद्वानों के अनुसार श्री भट्ट जी ने बहुत दोहे लिखे थे,जिनमें से कुछ ही युगल शतक के रूप में अवशिष्ट रह गये हैं।
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