तिनका बयारि के बस स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
तिनका बयारि के बस।
ज्यौं भावै त्यौं उडाइ लै जाइ आपने रस॥
ब्रह्मलोक सिवलोक और लोक अस।
कह 'हरिदास बिचारि देख्यो, बिना बिहारी नहीं जस॥
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
जौं लौं जीवै तौं लौं हरि भजु, और बात सब बादि।
दिवस चारि को हला भला, तू कहा लेइगो लादि॥
मायामद, गुनमद, जोबनमद, भूल्यो नगर बिबादि।
कहि 'हरिदास लोभ चरपट भयो, काहे की लागै फिरादि॥
गहौ मन सब रस को रस सार स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
गहौ मन सब रस को रस सार।
लोक वेद कुल करमै तजिये, भजिये नित्य बिहार॥
गृह, कामिनि, कंचन धन त्यागौ, सुमिरौ स्याम उदार।
कहि 'हरिदास रीति संतन की, गादी को अधिकार॥
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
ज्यौंहिं ज्यौंहिं तुम रखत हौं,त्योंहीं त्योंहीं रहियत हौं,हे हरि!
और अपरचै पाय धरौं सुतौं कहौं कौन के पैंड भरि.
जदपि हौं अपनों भायो कियो चाहौं,कैसे करि सकौं जो तुम राखौ पकरि.
कहै हरिदास पिंजरा के जानवर लौं तरफराय रह्यौ उडिबे को कितोऊ करि.
श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय दीन द्वार आयो।
कृपा भरि नैन कोर देखिये जु मेरी ओर जनम जनम सोधि सोधि चरन कमल पायो॥१॥
कीरति चहुँ दिसि प्रकास दूर करत विरह ताप संगम गुन गान करत आनंद भरि गाऊँ।
विनती यह यह मान लीजे अपनो हरिदास कीजे चरन कमल बास दीजे बलि बलि बलि जाऊँ॥२॥
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे।
सदा बसो मन यह जीवन धन सबहिन सों जु कहत हों टेरे॥१॥
मधुर बचन अरु नयन मधुर जुग मधुर भ्रोंह अलकन की पांत।
मधुर माल अरु तिलक मधुर अति मधुर नासिका कहीय न जात॥२॥
अधर मधुर रस रूप मधुर छबि मधुर मधुर दोऊ ललित कपोल।
श्रवन मधुर कुंडल की झलकन मधुर मकर दोऊ करत कलोल॥३॥
मधुर कटक्ष कृपा रस पूरन मधुर मनोहर बचन विलास।
मधुर उगार देत दासन कों मधुर बिराजत मुख मृदु हास॥४॥
मधुर कंठ आभूषन भूषित मधुर उरस्थल रूप समाज।
अति विलास जानु अवलंबित मधुर बाहु परिरंभन काज॥५॥
मधुर उदर कटि मधुर जानु जुग मधुर चरन गति सब सुख रास।
मधुर चरन की रेनु निरंतर जनम जनम मांगत ‘हरिदास’॥६॥
प्रगट व्है मारग रीत बताई स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
प्रगट व्है मारग रीत बताई।
परमानंद स्वरूप कृपानिधि श्री वल्लभ सुखदाई॥१॥
करि सिंगार गिरिधरनलाल कों जब कर बेनु गहाई।
लै दर्पन सन्मुख ठाडे है निरखि निरखि मुसिकाई॥२॥
विविध भांति सामग्री हरि कों करि मनुहार लिवाई।
जल अचवाय सुगंध सहित मुख बीरी पान खवाई॥३॥
करि आरती अनौसर पट दै बैठे निज गृह आई।
भोजन कर विश्राम छिनक ले निज मंडली बुलाई॥४॥
करत कृपा निज दैवी जीव पर श्री मुख बचन सुनाई।
बेनु गीत पुनि युगल गीत की रस बरखा बरखाई॥५॥
सेवा रीति प्रीति व्रजजन की जनहित जग प्रगटाई।
‘दास’ सरन ‘हरि’ वागधीस की चरन रेनु निधि पाई॥६॥
डोल झूले श्याम श्याम सहेली स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
डोल झूले श्याम श्याम सहेली।
राजत नवकुंज वृंदावन विहरत गर्व गहेली॥१॥
कबहुंक प्रीतम रचक झुलावत कबहु नवल प्रिय हेली।
हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सुंदर देखे द्रुमवेली॥२॥
गहौ मन सब रसको रस सार स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
गहौ मन सब रसको रस सार।
लोक बेद कुल करमै तजिये, भजिये नित्य बिहार॥
गृह कामिनि कंचन धन त्यागौ, सुमिरौ स्याम उदार।
कहि हरिदास रीति संतनकी, गादीको अधिकार॥
प्रेम समुद्र रुप रस गहिरे स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
प्रेमसमुद्र रुपरस गहिरे, कैसे लागै घाट।
बेकार्यो दै जानि कहावत जानि पनोकी कहा परी बाट॥
काहूको सर परै न सूधो, मारत गाल गली गली हाट।
कहि हरिदास बिरारिहि जानौ, तकौ न औघट घाट॥
हरि को ऐसोइ सब खेल स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
हरिको ऐसोइ सब खेल।
मृग-तृस्ना जग ब्याप रही हैं, कहूँ बिजोरो न बेल॥
धनमद जोबनमद और राजमद, ज्यों पंछिनमें डेल।
कह हरिदास यहै जिय जानौ, तीरथ को सो मेल॥
हरि के नाम को आलस क्यों करत है रे स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
हरिके नामको आलस क्यों करत है रे काल फिरत सर साँधैं।
हीरा बहुत जवाहर संचे, कहा भयो हस्ती दर बाँधैं॥
बेर कुबेर कछू नहिं जानत, चढ़ो फिरत है काँधैं।
कहि हरिदास कछू न चलत जब, आवत अंत की आँधैं॥
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
काहू को बस नाहिं तुम्हारी कृपा तें, सब होय बिहारी बिहारिनि।
और मिथ्या प्रपंच काहेको भाषियै, सो तो है हारनि॥१॥
जाहि तुमसों हित ताहि तुम हित करौ, सब सुख कारनि।
श्रीहरिदासके स्वामी स्यामा कुंजबिहारी, प्राननिके आधारनि॥२॥
हित तौ कीजै कमलनैन सों स्वामी हरिदास के पद Haridas Ke Pad
हित तौ कीजै कमलनैनसों,
जा हित आगे और हित लागो फीको।
कै हित कीजै साधुसँगतिसों,
जावै कलमष जी को॥१॥
हरिको हित ऐसो जैसो रंग-मजीठ,
संसारहित कसूंभि दिन दुतीको।
कहि हरिदासहित कीजै बिहारी सों
और न निबाहु जानि जी को॥२॥
स्वामी हरिदास परिचय Swami Haridas Parichay
स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि[ शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान एवम् चतुष् ध्रुपदशैली के रचयिता हैं। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। ‘केलिमाल’ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है।
स्वामी हरिदास का जन्म 1478 में हुआ था। इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। राजपुर ग्राम , वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) इनका जन्म स्थान माना जाता है।इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है।
ये महात्मा वृन्दावन में सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे।
Swami Haridas Ke Pad
- thinakaa bayaari ke bas svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- jaum laum jivai thaum laum hari bhaju svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- gahau man sab ras ko ras saar svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- jyaumhim jyaumhim thum rakhath haum svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- shhri vallabh krripaa niDhaan athi uDaar karunaamay svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- shhri vallabh maDhuraakrrithi mere svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- pragaT vhai maarag rith bathaaee svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- dol jhhoole shhyaam shhyaam saheli svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- gahau man sab rasako ras saar svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- prem samuDr rup ras gahire svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- hari ko aisoi sab khel svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- hari ke naam ko aalas kyom karath hai re svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- kaahoo ko bas naahim thumhaari krripaa them svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- hith thau kijai kamalanain som svaami hariDaas ke paD Haridas Ke Pad
- svaami hariDaas parichay Swami Haridas Parichay

No comments:
Post a Comment