सखी सुक सेज पिया ढिग आई।
काम अगन तन तपत रात दिन ज्ञान लहर उर अगन बुझाई।
प्रीत पुनीत पीव रंग राची आनंद मंगल चरन समाई।
चित-नित हर्ष हेर छर खानी दिल आनंद शबद धुनि छाई।
उपजत अंग रंग रस भीजत बाधौ जुग-जुग गयो हिराई।
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