लखो निज नामे धाम अखंड।
यह पद सरस और न कोई तन मन खोज देख ब्रह्मेड।
नहि पाताल सुर्ग नहिं दीसत नहिं छूजा पूजा अखंड।
है गत अलख ताप त्रय मोचन व्यापै नहीं काल को डंड।
जूड़ीराम काम भयो पूरन ज्ञान अमर यह परम प्रचंड।
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