जो कोई भक्ति किया चहे भाई।
करि बैराग भसम करि गोला, सो तन मनहिं चढ़ाई।
ओढ़ के बैठ अधिनता चादर, तज अभिमान बड़ाई।
प्रेम प्रतीत धरै इक तागा, सो रहै सुरत लगाई।
गगन मंडल बिच अभरन झलकत, क्यों न सुरत मनलाई।
सेस सहस मुख निसु दिन बरनत, बेद कोटि गुन गाई।
सिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक, ढूंढत थाह न पाई।
नानक नाम कबीर मता है, सो मोहि प्रगट जनाई।
धु्रव प्रहलाद यही रस मातें, सिव रहै ताड़ी लाई।
गुरू की सेवा साध की संगत, निसुदिन बढ़त सवाई।
दूलनदास नाम भज बंदे, ठाढ़ काल पछिताई।
अजहूँ मिलो मेरे प्रान पियारे धरनीदास भजन Ajahun Milo Mere Pran Piyare Dharnidas Bhajan
आदि अनादि मेरा सांई धरनीदास भजन / Aadi Anadi Mera Sain Dharnidas Bhajan
आदि अंत मेरा है राम धरनीदास भजन /Aadi Ant Mera Hai Ram Dharnidas Bhajan
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