जलवा-ए-यार है कहाँ जख्मी दिलो जिगर में है बिन्दु जी भजन

 Bhajan Jalwa-e-YaarHai Kahan Zakhmi Dilo Jigar Mein Hai Bindu Ji Bhajan

जलवा-ए-यार है कहाँ, जख्मी दिलो जिगर में है।
मस्तों की मस्त धुन में है आशिकों की नज़र में है।
मर्दों की सख्त जान में है जालिमों की फना में है।
सच्चों की सच जुबाँ में है ज़िन्दादिलों की जर में है॥
पहुँचे हुए की चाह में भटकते हुओं की राह में है।
बिछड़े हुओं की आह में है उजड़े हों के घर में है॥
मचले हुओं की मान में रूठे हुओं की शान में है।
बहके हुओं की तान में वहशी दिलों के ग्रान में है॥
हर हृदय के धाम में ज्ञानी के आत्माराम में है।
पानी के ‘बिन्दु’ श्याम में विरह के चश्म-ए-तर में है॥ 

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