Aho Shankar Bhole Bhagwan Bindu JiBhajan
अहो! शंकर भोले भगवान।
अतुल करुणाकर कृपानिधान॥
हो जिस भाँति बाह्य अंतर में भगवान व्याप्त समान।
उसी भाँति पूजन का भी है सूक्ष्म स्थल समान॥
त्रिदल त्रिकोण विल्वपत्रों से मिलता है यह ज्ञान।
क्यों न करें सत रज तम मिश्रित यह तन तुम्हें प्रदान॥
तुम चतुर देते हैं तुमको मादक फल अभिमान।
उत्तम हो यदि दे दे मन का मादक फल अभिमान॥
अम्बोदक सम मान रहे हो जब जन का जल दान।
क्या न करो! फिर प्रेम ‘बिन्दु’ गंगा में सुखद स्नान॥
No comments:
Post a Comment