अफ़सोस मूढ़ मन तू मुद्दत से सो रहा है बिन्दु जी भजन
Afsos Moodh Man TuMuddat Se So Raha Hai Bindu Ji Bhajan
अफ़सोस मूढ़ मन तू मुद्दत से सो रहा है,
सोचा न यह कि घर में अँधेरा हो रहा है।
चौरासी लाख मंज़िल तय करके मुश्किलों से,
जिस घर को तूने ढूँढा उस घर को खो रहा है।
घट में है ज्ञान गंगा उसमे न मार गोता,
तृष्णा के गंदे जल में इस तन को धो रहा है।
अनमोल स्वांस तेरी पापों में जा रही है,
रत्नों को छोड़ कंकर और काँच ढो रहा है।
संसार सिन्धु से तू क्या ख़ाक पर होगा,
विषयों के ‘बिन्दु’ में जब कस्ती डुबो रहा है।
Comments
Post a Comment