बरस एकादशी करिये / मालवी
बरस एकादशी करिये
नणदळ न्हावा ने जईये
राधा, रूकमणी और सतभामा
ललता से कहिये
कुवजा से कहिये
बाईजी न्हावा ने जईये
गंगा, जमना और सरसती
तिरवेनी में न्हइये
भवसागर तिरिये
बाईजी न्हावा ने जईये
न्हाई धोई सुमिरण करस्यां
गऊ सेवा करिहें
गऊ पूजा करिये
नणदल न्हावा ने जईये
सांवलिया नी संग जो रेस्यां
सोयलड़ो चईये
बाईजी न्हावा ने जईये
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
हरि चरणा रहिये
प्रभु चरणा रहिये
बाईजी न्हावाने जईये
एक माय का पाँची ही पूतां / मालवी
एक माय का पाँची ही पूतां
पांची का मता जुदा-जुदा
पेलो पंडित के, में कासीजी जाऊँ
गंगा में न्हाऊँ, बिस्वनाथ भेंटूं
जेका धरम से में उद्धरूँ
दूसरो पंडित के में उज्जण जाऊँ
अवंती में न्हाऊँ, महाकाल भेंटूं
जेका धरम से में उद्धरूँ
तीसरो के में बाग लगाऊँ
तुलसा परणाऊँ, बामण जिमाऊँ
जेका धरम से में उद्धरूँ
चौथे पंडित के में बेण परणाऊँ
भाणेज परणाऊँ, जात जिमाऊँ
जेका धरम से में उद्धरूँ
पांचवों पंडित कईये नी जाणे
पेट भरी ने धंदो करूँ
हर-हर जिवड़ा तू रयो रे उदासी
रयो रे लुभासी
बरत न कियो रे एकादशी
बरत एकादशी, धरम दुवादसी
तीरथ बड़ो रे बनारसी
एकादशी ना डाड़े जीमे छें थूली
अंतकाल प्रभु मारग भूली
एकादशी ना डाड़े जीमे छे खिचड़ी
अंतकाल प्रभु मेले बिछड़ी
एकादशी ना डाड़े पोड़े-ढोले
अंतकाल प्रभु अवगत डोले
व्दासी ना डाड़े जीमे छे भाजी
अंतकाल प्रभु नइ्र छे राजी
व्दासी ना डाड़े जीमे छे कांसे
अंतकाल प्रभु मेले सांसे
व्दासी ना प्रभु डाड़े जीमे छे चोखा
अंतकाल प्रभु मारग सीधा
घी बिना धरम ना होय हो पंडित जी
पत्र बिना कुल ना उद्धरे
घृत बिना होम ना होय हो पंडित जी
तिल बिन ग्यारी न होय
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
हरि चरणा चित लागी
बरत करो रे नर एकादशी को / मालवी
बरत करो रे नर एकादशी को
रामजी का नाम बिन गती कसी
सूरज सामे झूटो न्हाके
जल में कुल्ला वे करसी
इन करणी से हुवा कागला
करां-करां करता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
पणघट ऊपर ऐड़ी निरखे
पर निन्दिया तो वे करसी
इन करणी से हुवा डेंडका
टर्रा-टर्रा वे करसी
बरत करो रे नर एकादशी
डेली बैठी पाग संवारे
पर घर चुगली वे करसी
इन करनी का हुवा कूतरा
घरे-घरे भूकता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
पांच जणा मिल हतई करन्ता
पांची चुगली वे एकरसी
इन करणी का हुवा हीजड़ा
घरे-घरे नचता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
ग्यारस का दल माथो न्हावे
बारस का दन तिल वे खासी
इन करणी का हुवा गधकड़ा
गली-गली रेंकता फिरसी
बरत करो रे नर एकादशी
अन्न को दान, वस्तर को दान
कन्या दान वे करसी
इन करणी से हुवा कुंवर जी
पाल की पड़न्ता वे फिरसी
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर
हरि के चरनां चित वे धरसी
भजन कर निरना एकादसी करना / मालवी
भजन कर निरना एकादसी करना
राजा ब्रह्म आगे साक्षी भरना
पेली निरजला, दूसरी सिरजला
दोनोई एकादसी करना
भाव भक्ति से जो कोई साधे
बैतरनी में तिरना
भजन कर निरना एकादसी करना
दसमी के दिन एकटंक जीमणा
ग्यारस निरनै करना
बारस के दिन भोजन करना
जमराज से नहीं डरना
भजन कर...
एकादशी को अटल पुण्य है
अनमाय जीव नहीं रखना
भावभक्ति से जो कोई साधे
भवसागर से तिरना
भजन कर...
जनम सुधारण जग में मेला
भूल आलस नहीं रखना
कहे कबीर सुनो भई साधो
बैकुंठा को चलना

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