शायरी के तारा मसीह और अमरोहा के भुट्टो
बशीर बद्र Bashir Badra ke Kisse Latife
अमरोहा में मुशायरा बहुत सुकून से चल रहा था। शायर भी मुतमइन और सुनने वाले भी ख़ुश कि बीच मजमे से एक बहुत मा’क़ूल शख़्सियत वाले साहब उठे और खड़े हो कर आदिल लखनवी की तरफ़ इशारा करके बोले,
“डाक्टर साहब, वो शायर जिनकी सूरत तारा मसीह (जिस जल्लाद ने वज़ीर-ए-आज़म पाकिस्तान ज़ुल्फ़क़ार अली भुट्टो को फांसी दी थी) के हू-ब-हू है, उन्हें पढ़वा दीजिए।”
बशीर बद्र ने अपनी मख़सूस मुस्कुराहट के साथ आदिल लखनवी को दावत-ए-सुख़न देते हुए कहा,
“मैं शायरी के तारा मसीह से दरख़्वास्त करता हूँ कि तशरीफ़ लाएं और अमरोहा के ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो का काम तमाम कर दें।”
आज़मगढ़ के सामईन, बेकल, वसीम और बशीर की परेशानी
बशीर बद्र Bashir Badra ke Kisse Latife
आज़मगढ़ के एक क़स्बा में सामईन का ये मूड हो गया कि पुरानी ग़ज़ल और पुराना कलाम नहीं सुनेंगे। बेकल उत्साही और वसीम बरेलवी जितनी ग़ज़लें उन्हें याद थीं सब का पहला मिसरा सुनाने लगे और मजमे से आवाज़ आती रही कि सुनी हुई है। आख़िरकार उन लोगों ने मोहलत मांगी कि जा-ए-क़ियाम से अपनी-अपनी बयाज़ें ले आएं। बशीर बद्र भी सरासीमा कि कौन सी ग़ज़ल पढ़ें। उनके पास एक और शायर बैठे थे। वो बशीर बद्र को एक मिसरा सुनाते और पूछते कि ये ग़ज़ल पढ़ लूं फिर वो ख़ुद ही कहते, ये ग़ज़ल मैं वहाँ पढ़ चुका हूँ। देखिए ये ग़ज़ल पढ़ लूं। फिर वो कहते कि ये मैं फ़ुलां क़स्बे में पढ़ चुका हूँ। आख़िर बशीर बद्र ने तंग आकर कहा,
“भाई तुम सब ख़ुशनसीब शायर हो। तुम्हारा कोई शे’र किसी को याद ही नहीं रह सकता। न यक़ीन आए तो तुम वही ग़ज़ल पढ़के देख लो जो गुज़श्ता बरस यहाँ पढ़ चुके हो।”
ऐबदार की क़ुर्बानी
बशीर बद्र Bashir Badra ke Kisse Latife
झरिया (धनबाद) बिहार में जनाब कँवर महिन्द्र सिंह बेदी की निज़ामत में मुशायरा हो रहा था। मरहूम नाज़िर ख़य्यामी ने अपने मज़ाहिया कलाम और उससे भी बेहतर गुफ़्तगू से मुशायरा लूट लिया। उसके बाद कँवर साहब ख़ुद खड़े हुए और फ़रमाया,
“हज़रात नाज़िर ने अपने फ़न से दिलों पर फ़तह पाई है। आप सब ज़िंदगी की परेशानियों को भूल कर क़हक़हों की दुनिया में खो गए हैं। ऐसे में किसी संजीदा शायर को बुलाना उसे क़ुर्बान करना होगा। इसलिए मैं ख़ुद पढ़ता हूँ और अपने आपको क़ुर्बानी के लिए पेश करता हूँ।”
इस पर बशीर बद्र कँवर साहब से बेजा मुदाख़िलत की माफ़ी चाहते हुए बोले कि “में एक शरई मसला याद दिलाने के लिए हाज़िर हुआ हूँ। वो ये कि इस्लाम में ऐबदार की क़ुर्बानी मम्नू’अ है।”
अन्य किस्से संबंधित पोस्ट
- Kunwar Mahendra Singh Bedi ke Kisse Latife कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर के क़िस्से
- Shaukat Thanvi ke Kisse Latife शौकत थानवी के क़िस्से
- Josh Malihabadi ke Kisse Llatiife जोश मलीहाबादी के क़िस्से
- Jigar Moradabadi Ke Kisse Latiife जिगर मुरादाबादी के क़िस्से
- Akbar Allahabadi Ke Kisse Latife अकबर इलाहाबादी के क़िस्से
- Firaq Gorakhpuri Ke Kisse Latife फ़िराक़ गोरखपुरी के क़िस्से
- Daag Dehalvi ke kisse latife दाग़ देहलवी के क़िस्से
- Asrarul Haq Majaz ke kisse latife असरार-उल-हक़ मजाज़
- Mirza Ghalib Latiife Kisse मिर्ज़ा ग़ालिब के क़िस्से
No comments:
Post a Comment