पहु मोरा बालक हम तरूणी / मैथिली लोकगीत वसन्त
पहु मोरा बालक हम तरूणी
कोन तप चुकल भेलउँ जननी
पहुँ लेल कोरा चलल बजार
हटिया के लोग पुछू के लागु तोहार
नहि मोरा देओर नहि छोट भाय
विधना लिखल छल बालमु हमार
पहिरल सखि एक दछिनक चीर
पिया के देखइत भेल दगध शरीर
बाट रे बटोहिया कि तोहि मोर भाय
हमरो बाबाजी के कहब बुझाय
बेचता गोला बरद कीनता धेनु गाय
दूध पिया कऽ पोसता जमाय
नहि मोरा गोला बरद नहि धेनु गाय
कओने जुगुत सखि पोसब जमाय
आनि दिअ मोहि प्रात खना / मैथिली लोकगीत वसन्त
आनि दिअ मोहि प्रात खना
हम नहि जीयब ओहि कंत बिना
जहिया सऽ प्रभु गेलाह विदेश
तहिया सऽ हम जोगिन भेष
चोलिया एक हरि देलनि पठाय
चारूकात हीरामोती देलनि लगाय
खेलइते-धुपइते हरि अयला अंगना
केलि कतेक होएत राति खना
रोपल दाओन फूल लोढ़ियो ने भेल / मैथिली लोकगीत वसन्त
रोपल दाओन फूल लोढ़ियो ने भेल
पिया परदेश गेल देखियो ने भेल
देखलौं मे देखलौं हाजीपुर बजार
बारी रे बंगालिन बेटी खेलय जुआसारि
मरिहौ बंगालिन बेटी तोरो जेठ भाइ
हमरो बालमु जी के राखल लोभाइ
भनहि विद्यापति गाओल वसन्त
ककरहु होइ जनु अमरुख कन्त
बिजुरी छिटकि गेल, उड़ि परि गेल / मैथिली लोकगीत वसन्त
बिजुरी छिटकि गेल, उड़ि परि गेल
हमरो बालमु दूर देश चलि गेल
मरिहऽ बंगालिन बेटी तोरो जेठ भाय
हमरो बालुम जी के राखलें लोभाय
जुनि गरिआबह जुनि दऽ सराप
अपन बालुम जी के लियऽ समुझाय
बिजुरी छिटकि गेल उड़ि परि गेल
हमरो बालमु दूर देश चलि गेल
आरे वृजबाला सुमरब गून / मैथिली लोकगीत वसन्त
आरे वृजबाला सुमरब गून
श्याम बिना भवन भेल सून
नयन ने काजर मुख नहि पान
सभ सुख लय गेल गोकुल कान्ह
रिन - रिन कए दय गेल रिन
करय नहि पाप टरय नहि रिन
सूरदास जे गाओल वसन्त
एहि जग बहुरी ने आयल कन्त
ककरा संग खेलब ऋतु वसन्त / मैथिली लोकगीत वसन्त
ककरा संग खेलब ऋतु वसन्त
निरायल फागुन दूर बसु कन्त
उड़ि-उड़ि कागा जाहु बिदेश
हमरो ललाजी के कहब उदेश
चोलिया एक पहु देल पठाय
चारु दिश हीरा-मोती लाल जड़ाय
चोलिया फाटल तारम्तार
विरह सताओल बारम्बार
सूरदास जे गाओल वसन्त
एहि जग बहुरी ने आयल कन्त
रिमझिम सखि सभ चलली नहाय / मैथिली लोकगीत वसन्त
रिमझिम सखि सभ चलली नहाय
तरु उपर चीर सभ देलनि नेराय
यमुना पैसी सखि सब रचथि शृंगार
मने-मन सखि सभ करथि विचार
तेल फुलेल कृष्ण देलथि छीटि
पाछा लागल कृष्ण मारथि पीठि
चलू हे सखि दियनु उपराग
बाट चलैत करथि बटमार
झूठ गोआरिन झूठ तोहर बोल
पलंग सूतल छथि कृष्ण अबोध
भनहि विद्यापति गाओल बसन्त
ककरहु होइ जनु अमरुख कन्त
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