माधव जाय केबाड़ छोड़ाओल / मैथिली लोकगीत तिरहुत
माधव जाय केबाड़ छोड़ाओल
जाहि मन्दिर बसु राधा
चीर उघारि अधर मुख हेरल
चान उगल छथि आधा
खीर कपूर पान हम बासल
आर सांठल पकवाने
सगरि रैनि हम बैसि गमाओल
खंडित भेल मोर माने
मथुरा नगर अंटकि हम रहलहुँ
किए ने पठाओल दूती
संग दुइ चारि पथिकसँ मिललहुँ
आलस रहलहुँ सूती
यौवन जोर कला गुन आगरि
से नागरि हम नाही
जाहि हित बन्धु संग रैनि गमाओल
पलटि जाह पुनि ताही
कमल नयन कमलापति चुम्बत
कुम्भकर्ण सन दापे
हरिक चरण धय गाओल विद्यापति
राधा कृष्ण विलापे
सुनू-सुनू कामिनी मालती रे
से आयल पासे
बाम दिशा पहु बैसत रे
पयबह अबकासे
पिउ-पिउ भाखथु पपिहरा रे,
चकइ करू आसा
नवल फुलायलि फुल लतिका रे
खाली भुज पासा
से छन आबि तुलायल रे
करू सकल सिंगारे
आब कहायब कामिनी रे
मोर देइ दुलारे
आजु साजि अलि आओत रे
करू कुमर बखाने
मान टुटत तुअ मातलि रे
नीरस मुख चाने
दुलहिन पढु अय अनुपम पाठ / मैथिली लोकगीत तिरहुत
दुलहिन पढु अय अनुपम पाठ
तेजु कुमारिक साँकरि बाट
रतिपति रति गुरु आयल द्वार
मनक मनोरथ होयत उधार
मुख बरु झाँपब हृदय उघार
नवल लती सहु तरुवर भार
मन्द हँसब मन्दहि अभिसार
गाँथब दुहु जन प्रीतिक हार
खंजनि मीन मरत सहि लाज
चर्चा होयत करनि समाज
सिंह सुतल चुप साँझहि गेह
सकुचल लाजे केदलि देह
पुनिम होयत नहि-नहि पिक भाष
पंकजकेँ जिउ होयत माख
जखन चलब अहँ जन उजियार
एकटक लागत आँखि पथार
तानल कुसुमक शर रह हाथ
मनसिज खसता उनटल माथ
कुमर कहथि अय होउ ने ओट
कथि लय करब हमर मन छोट
कमल नयन मन मोहन रे / मैथिली लोकगीत तिरहुत
कमल नयन मन मोहन रे
बसु यमुना तीरे
बसिया बजाय मन हरलक रे
चित रहय ने थीर
खन मोहन वृन्दावन रे
खन बसिया बजाय
सन सन रहय अहीं संग रे
बंशीवट धारे
जौं हम जनितौं एहन सन रे
तेजि जयता गोपाले
अपन भरम हम तेजितहुँ रे
सेवितहुँ नन्दलाले
जाय ने क्यो यमुना तट रे
छथि निकट गोपाले
बाँ पकड़ि झिकझोरलनि रे
संग लए ब्रजबाले
जौं जदुपति नहि आओत रे
दह यमुना के तीरे
हमहुँ मरब हरि-हरि कय रे
छुटि जायत पीरे
आहे सखि आहे सखि लय जनु जाइ / मैथिली लोकगीत तिरहुत
आहे सखि आहे सखि लय जनु जाइ
हम अतिबालक सखि हे अधिक डेराइ
हँसैत खेलाबथि सखि हे लए कोरे बोलाय
पहुक पलंग सखि हे देलनि बैसाय
गोट-गोट सखि सब गेल बहराय
बज्र केबार सखि सब देलनि लगाय
ओही अवसरमे सखि हे जागि गेला कन्त
चीर उतारि सखि हे जीव भेल अन्त
नहि नहि कहैत सखि हे पयर तोर लागू
कांच कमल सखि हे भमरा झिकझोरू
भनहि विद्यापति ई त जुगक रीति
जेहने विरह छल तेहन प्रीति
कि कहू सखिया हे मनक क्लेश / मैथिली लोकगीत तिरहुत
कि कहू सखिया हे मनक क्लेश
हमरो मनोरथ क्षणमे हरि लेल
हमरो हृदय केर केओ दुख नहि जाने
केवल ईश्वर पर आस लगेने
हमरो हृदयमे छल बड़ बात
से मोरा ईश्वर केलनि निराश
जौं मोरा प्रियतम रहितथि पासे
मन के मनोरथ पूरैत आसे
हमरो प्रीतम कठोर भए बैसल
मन नहि होअय विवेक
भनहि विद्यापति सुनू सखिया
घूरि आओत प्रीतम तोर
जखन चलल बर सुन्दर रे / मैथिली लोकगीत तिरहुत
जखन चलल बर सुन्दर रे
मन हर्षित भेल
पाछू सँ चन्द्रबदनि धनि रे
आँगुर धए लेल
केयो सखि छत्र छांह देल रे
केयो बेनिया डोलाय
केओ सखि सिन्दूर आर देल रे
केयो मंगल गाबय
पिया पहिरन पीअर धनी लाल रे
जोड़े गेठबन्हन
गोर लागय चलली देव रे
जहाँ आदिभवानी
उठू-उठू सुन्दरि जाइ छी विदेश / मैथिली लोकगीत तिरहुत
उठू-उठू सुन्दरि जाइ छी विदेश
सपनहुँ रूप नहि भेटत उदेश
से सुनि सुन्दरि उठली चेहाय
पहुक वचन सुनि बैसली झमाय
उठइत उठली, बैसली मान मारि
विरहक मातलि, खसली हिया हारि
कहथि रमापति सुनू ब्रज नारि
धैरज धय रहु, भेटत मुरारि
मोहि तेजि पिया गेला विदेश / मैथिली लोकगीत तिरहुत
मोहि तेजि पिया गेला विदेश
कोन परि खेपब वारि बयेस
नैन सरोवर काजर नीर
ढ़रकि खसल पहु धनिक शरीर
सेज भेल परिमल फुल लेल बासे
कोन देश पिया पड़ल उपासे
कहथि उमापति सुनू ब्रजनारि
धैरज धय रहु, भेटत मुरारि
कतय रहल मोर माधब / मैथिली लोकगीत तिरहुत
कतय रहल मोर माधब
हुनि बिनु कत दुखं साधब रे
हरि-हरि करू ब्रजनागरि
चिकुर फुजल लट झारल रे
सिरसँ खसल कारी नाग
चिहुँकि उठय नव कामिनि रे
फुलल कमल, उर जागल
ताहि पर यौवन भारी रे
बुद्धिलाल कवि गाओल
रसिक पुरुष रस बूझल रे
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