मधुज्वाल : सुमित्रानंदन पंत Madhujwal Sumitranandan Pant
मधुज्वाल उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का अनुवाद
1. प्रिय बच्चन को
जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर,
गाए तुमने स्वप्न रँगे मधु के मोहक स्वर,
यौवन के कवि, काव्य काकली पट में स्वर्णिम
सुख दुख के ध्वनि वर्णों की चल धूप छाँह भर!
घुमड़ रहा था ऊपर गरज जगत संघर्षण,
उमड़ रहा था नीचे जीवन वारिधि क्रंदन;
अमृत हृदय में, गरल कंठ में, मधु अधरों में-
आए तुम, वीणा धर कर में जन मन मादन!
मधुर तिक्त जीवन का मधु कर पान निरंतर
मथ डाला हर्षोद्वेगों से मानव अंतर
तुमने भाव लहरियों पर जादू के स्वर से
स्वर्गिक स्वप्नों की रहस्य ज्वाला सुलगाकर!
तरुण लोक कवि, वृद्ध उमर के सँग चिर परिचित
पान करो फिर, प्रणय स्वप्न स्मित मधु अधरामृत,
जीवन के सतरँग बुद्बुद पर अर्ध निमीलित
प्रीति दृष्टि निज डाल साथ ही जाग्रत् विस्मृत!
2. रे जागो, बीती स्वप्न रात
रे जागो, बीती स्वप्न रात!
मदिरारुण लोचन तरुण प्रात
करती प्राची से पलक पात!
अंबर घट से, साक़ी हँसकर,
लो, ढाल रहा हाला भू पर,
चेतन हो उठा सुरा पीकर,
स्वर्णिम शाही मीनार शिखर!
3. खोलकर मदिरालय का द्वार
खोलकर मदिरालय का द्वार
प्रात ही कोई उठा पुकार
मुग्ध श्रवणों में मधु रव घोल,
जाग उन्मद मदिरा के छात्र!
ढुलक कर यौवन मधु अनमोल
शेष रह जाय नहीं मृद् मात्र
ढाल जीवन मदिरा जी खोल
लबालब भर ले उर का पात्र!
4. प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर
प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर,
मोह मथित मानस हो प्रमुदित!
स्वप्न ग्रथित मन, विस्तृत लोचन,
मर्त्य निशा हो स्वर्ग उषा स्मित!
प्रणय सुरा हो, हृदय भरा हो,
लज्जारुण मुख हो प्रतिबिंबित,
पी अधरामृत हों मृत जीवित
प्रीति सुरा भर, प्रीति सुरा नित!
5. हाय, कोमल गुलाब के गाल
हाय, कोमल गुलाब के गाल
झुलस दे ऊष्मा का अभिशाप?
प्रथम यौवन, कलियों के जाल
स्वयं कुम्हला जाएँ चुपचाप!
विजन वन कुंजों में भर प्यार
तरुण बुलबुल गाती थी गान,
आज उसके उर के उद्गार
किधर हो गए विलीन अजान!
6. मदिराधर कर पान नहीं रहता
मदिराधर कर पान
नहीं रहता फिर जग का ज्ञान!
आता जब निज ध्यान
सहज कुंठित हो उठते प्राण!
जाग्रत विस्मृत साथ
सतत जो रहता, वह अविकार!
वृद्ध उमर भी माथ
नवाता उसे सखे, साभार!
7. वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम
वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम,
पिला, खिला दे मोह म्लान मन,
अपलक लोचन, उन्मद यौवन,
फूल ज्वाल दीपित हो मधुवन!
जंगम यह जग, दुर्गम अति मग,
उर के दृग, प्रिय साक़ी, दे रँग!
मदिरारुण मुख हो दृग सन्मुख
रुक ना जाँय जब तक डगमग पग!
8. बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास
बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास,
पिलाता जा, बढ़ती जा प्यास!
सुनेगा तू ही यदि न पुकार
मिलेगा कैसे पार?
स्वप्न मादक प्याली में आज
डुबादे लोक लाज, जग काज,
हुआ जीवन से, सखे, निराश,
बाँध, निज भुज मद पाश!
9. वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण
वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण
आज जी खोल करें मधुपान!
नीलिमा का नीलम का जाम
भरा ज्योत्स्ना से फेन ललाम!
इंदु की यह सलज्ज मुसकान
रहेगी जग में चिर अम्लान,
हमारा पर न रहेगा ध्यान,
व्यर्थ फिर कल की चिंता, प्राण!
10. मदिराधर कर पान सखे
मदिराधर कर पान,
सखे, तू न धर न जुमे का ध्यान,
लाज स्मित अधरामृत कर पान!
सभी एक से तिथि, मिति, वासर,
जुमा, पीर, इतवार, शनीचर!
नीति-नियम निःसार!
धर्म का यह इज़हार,
ख़ुदा है ख़ुदा, न वह तिथि वार!
11. राह चलते चुभता जो शूल
राह चलते चुभता जो शूल
वही उसके स्वभाव अनुकूल!
कामिनी की वह कुंचिक अलक
कभी था कुटिल भृकुटि, चल पलक!
खड़े जो सुंदर सौध विशाल
सुनो उनकी ईंटों का हाल,
सचिव की उँगली थे वे गोल,
शाह के रत्न शीष अनमोल!
12. सुरालय हो मेरा संसार
सुरालय हो मेरा संसार,
सुरा-सुरभित उर के उद्गार!
सुरा ही प्रिय सहचरि सुकुमार,
सुरा, लज्जारुण मुख साकार!
उमर को नहीं स्वर्ग की चाह,
सुरा में भरा स्वर्ग का सार!
सुरालय राह स्वर्ग की राह,
सुरालय द्वार स्वर्ग का द्वार!
13. मदिराधर रस पान कर रहस
मदिराधर रस पान कर रहस
त्याग दिया जिसने जग हँस हँस,
उसको क्या फिर मसजिद मंदिर
सुरा भक्त वह मुक्त अनागस!
हृदय पात्र में प्रणय सुरा भर
जिसने सुर नर किए प्रेम वश,
पाप, पुण्य, भय, उसे न संशय,
वह मदिरालय अजर अमर यश!
14. हंस से बोली व्याकुल मीन
हंस से बोली व्याकुल मीन
करुणतर कातर स्वर में क्षीण,
‘बंधु, क्या सुन्दर हो’ प्रतिवार
लौट आए जो बहती धार!’
हंस बोला, ‘हमको कल व्याध
भून डालेगा, तब क्या साध?
सूख जाए; बह जाए धार
बने अथवा बिगड़े संसार!’
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