करमा / बैगा
मोर लालू गोदी मा बिराजय,
आँगन गली-खोर खेलय रे। टेक
आठ महना मोर लालू पेट भीतर खेलय।
नौ कहना माँ मोर लालू गोदी माँ बिराजय॥
आँगन गली खोर खेलय रे।
चार महना मा मोर लालू छतिक भारे स लगय ।
नौ महना मा मोर लालू बैठकी सीखय॥
आँगन गली खोर खेलय रे।
एक बैगा महिला के विवाह के बाद बहुत दिनों तक कोई बा- बच्चा नहीं हुआ। उसने मान-मनौती की, तब भी उसकी गोद खाली ही रही। अंत में वह एक बैगा गुनिया के पास गई। गुनिया वेदाई की। उसे खाने के लिये जंगल की जड़ी-बूटी दी। तब उसे नौ महीने में प्रौढ़ावस्था में पुत्र प्राप्त हुआ। उसने उसका नाम ‘लालू’ रखा।
बैगा माँ नवजात शिशु से खेल रही है। कभी वह बच्चे को दोनों हाथों में लेती हैं और कभी छाती से लगाती हैं और कभी गोद में लेती है। ऐसा करके खुशी और प्यार से बच्चे को नचाती है और गीत गाती है।
मेरा लालू बेटा गोद में आ गया है। जब वह बड़ा हो जाएगा तो आँगन और गली में खेलने जाएगा। आठ महीने लालू मेरे पेट में रहा, वहाँ हाथ पैर चलाये। अब नौ महीने बाद मेरा लालू मेरी गोद में आ गया है। अब आठ महीने तक मेरा गोलू पेट के बल चलेगा। और नौ महीने में तो वह बैठने लगेगा। इसी गीत को बच्चे के जन्म के तीन माह बाद ‘बरहों’ के समय बैगा महिलाएं सामूहिक रूप से भी गाती हैं और मिलकर दारू पीती हैं।
नावा जीवन / बैगा
खेलत कूदन हँवय आवय हो,
हाथे धरे गोटी गुलेल॥
नावा जीवन आवै हंसा,
नावा नाम धरावै।
नोंहिंक नाम कमावै।
करत्थे खुलेल॥
हाथे धरे गोटी गुलेल॥
मुठी बाँध के आये हंसा,
धरती माँ पधारे ।
अच्छा-अच्छा काम करबी।
अच्छा नाम कमाबी।
हाथे धरे गोटी गुलेल॥
शब्दार्थ – हँवय =हुआ, गोटी गुलेल=पत्थर और गुलेल, करत्थे-करते हैं, खुलेल=उल्लेख, नोहिंक=जो नहीं, हंसा= जीव, बालक, मुठी बाँध के=निश्चय करके, करबी=करेगा, कमाबी=कमायेगा, छाका=महलोन पत्ते का दोना।
यह बच्चे के जन्म का छठी गीत है। बैगा जनजाति बच्चे के जन्म के छठवें दिन ‘छट्टी’ मनाते हैं। उस दिन बैगा सुइन दाई आती है। आसपास की महिलाओं को घर वाले आमंत्रित करते हैं। इस समय परम्परा अनुसार खुशी से दारू बाँटी जाती हैं। जो पाँच बोतल दारू होती है, जिसे नेग की दारू कहते हैं। सभी महिलाएं जिस सथान पर बच्चा जन्म लेता है, उस स्थान को गोबर से लीप कर पवित्र बनाती हैं। उस पर जलता मिट्टी का दिया रखती हैं दारू डालकर पिलाती हैं। तब यह गीत गया जाता है।
यह जो नया जीव (हंसा) जन्म लिया है। माँ के पेट में नौ महीने खेलते-कूदते इस धरती पर आया है। हमें खुशी है। यह जब बड़ा होगा, तब हाथ में पत्थर और गुलेल रखकर जंगल में जायेगा और वहाँ चिड़िया का शिकार कर हमें खिलायेगा। इस धरती पर मुट्ठी बांधकर यानि निश्चय करके आया है तो अच्छा काम करेगा और अच्छा नाम कमायेगा। महियाएँ यह गीत गाती जाती हैं और खुशी से दारू पीती जाती हैं।
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