छैंया-छैंया गुलज़ार Chhainya Chhainya Gulzar Sangrah
'छैंया-छैंया' के बैक कवर से
रोज़गार के सौदों में जब भाव-ताव करता हूँ
गानों की कीमत मांगता हूँ -
सब नज्में आँख चुराती हैं
और करवट लेकर शेर मेरे
मूंह ढांप लिया करते हैं सब
वो शर्मिंदा होते हैं मुझसे
मैं उनसे लजाता हूँ
बिकनेवाली चीज़ नहीं पर
सोना भी तुलता है तोले-माशों में
और हीरे भी 'कैरट' से तोले जाते हैं
मैं तो उन लम्हों की कीमत मांग रहा था
जो मैं अपनी उम्र उधेड़ के,साँसें तोड़ के देता हूँ
नज्में क्यों नाराज़ होती हैं ?
बूढ़े पहाड़ों पर
1. मुझको इतने से काम पे रख लो
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी सीने पे झूलता लॉकेट
उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से
सीधा करता रहूँ उसको
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी आवेज़ा उलझे बालों में
मुस्कुराके बस इतना सा कह दो
आह चुभता है ये अलग कर दो
मुझको इतने से काम पे रख लो....
जब ग़रारे में पाँव फँस जाए
या दुपट्टा किवाड़ में अटके
एक नज़र देख लो तो काफ़ी है
मुझको इतने से काम पे रख लो...
2. तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है ये हयात
तेरी आँखों से ही खुलते हैं, सवेरों के उफूक़
तेरी आँखों से बन्द होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी
तेरी आँखें...
पलकें खुलती हैं तो, यूँ गूँज के उठती है नज़र
जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा
और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई हो
तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें...
3. कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवज़ें
पूर्णमासी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
भीगी-भीगी उदास आवाज़ें
नाम लेकर पुकारती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में...
पूर्णमासी की रात जंगल में
चाँद जब झील में उतरता है
गुनगुनाती हुई हवा जानम
पत्ते-पत्ते के कान में जाकर
नाम ले ले के पूछती है तुम्हें
पूर्णमासी की रात जंगल में
तुमको ये चाँदनी आवाज़ें
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
4. इन बूढ़े पहाड़ों पर, कुछ भी तो नहीं बदला
इन बूढ़े पहाड़ों पर, कुछ भी तो नहीं बदला
सदियों से गिरी बर्फ़ें
और उनपे बरसती हैं
हर साल नई बर्फ़ें
इन बूढ़े पहाड़ों पर....
घर लगते हैं क़ब्रों से
ख़ामोश सफ़ेदी में
कुतबे से दरख़्तों के
ना आब था ना दानें
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गईं जानें
संवाद: कुछ वक़्त नहीं गुज़रा नानी ने बताया था
सरसब्ज़ ढलानों पर बस्ती गड़रियों की
और भेड़ों की रेवड़ थे
गाना:
ऊँचे कोहसारों के
गिरते हुए दामन में
जंगल हैं चनारों के
सब लाल से रहते हैं
जब धूप चमकती है
कुछ और दहकते हैं
हर साल चनारों में
इक आग के लगने से
मरते हैं हज़ारों में!
इन बूढ़े पहाड़ों पर...
संवाद: चुपचाप अँधेरे में अक्सर उस जंगल में
इक भेड़िया आता था
ले जाता था रेवड़ से
इक भेड़ उठा कर वो
और सुबह को जंगल में
बस खाल पड़ी मिलती।
गाना: हर साल उमड़ता है
दरिया पे बारिश में
इक दौरा-सा पड़ता है
सब तोड़ के गिराता है
संगलाख़ चट्टानों से
जा सर टकराता है
तारीख़ का कहना है
रहना चट्टानों को
दरियाओं को बहना है
अब की तुग़यानी में
कुछ डूब गए गाँव
कुछ बह गए पानी में
चढ़ती रही कुर्बानें
अलग़ोज़ा की वादी में
भेड़ों की गई जानें
संवाद: फिर सारे गड़रियों ने
उस भेड़िए को ढूँढ़ा
और मार के लौट आए
उस रात इक जश्न हुआ
अब सुबह को जंगल में
दो और मिली खालें
गाना: नानी की अगर माने
तो भेड़िया ज़िन्दा है
जाएँगी अभी जानें
इन बूढ़े पहाड़ों पर कुछ भी तो नहीं बदला...
5. न जाने क्या था, जो कहना था
न जाने क्या था, जो कहना था
आज मिल के तुझे
तुझे मिला था मगर, जाने क्या कहा मैंने
वो एक बात जो सोची थी तुझसे कह दूँगा
तुझे मिला तो लगा, वो भी कह चुका हूँ कभी
जाने क्या, ना जाने क्या था
जो कहना था आज मिल के तुझे
कुछ ऐसी बातें जो तुझसे कही नहीं हैं मगर
कुछ ऐसा लगता है तुझसे कभी कही होंगी
तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं हूँ तेरी क़सम
तेरे ख़यालों में कुछ भूल-भूल जाता हूँ
जाने क्या, ना जाने क्या था जो कहना था
आज मिल के तुझे जाने क्या...
6. यार जुलाहे
यार जुलाहे, यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा कोई
यार जुलाहे, यार जुलाहे...
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया तो
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ, गिरह बुनतर की
देख नहीं सकता है कोई
यार जुलाहे, यार जुलाहे...
मैंने तो इक बार बुना था
एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नज़र आती हैं मेरे यार जुलाहे
यार जुलाहे, यार जुलाहे
7. कल की रात गिरी थी शबनम
कल की रात गिरी थी शबनम
हौले-हौले कलियों के बन्द होंठों पर
बरसी थी शबनम
कल की रात...
फूलों के रुख़सारों से रुख़सार मिलाकर
नीली रात की चुनरी के साये में शबनम
परियों के अफ़सानों के पर खोल रही थी
कल की रात गिरी थी शबनम
दिल की मद्धम-मद्धम हलचल में
दो रूहें तैर रही थीं
जैसे अपने नाज़ुक पंखों पर
आकाश को तोल रही हों
कल की रात गिरी थी शबनम
कल की रात बड़ी उजली थी
कल की रात तेरे संग गुज़री
कल की रात गिरी थी शबनम…
8. बैरागी बादल
बैरागी बादल बैरागी बादल
बैरागी बादल आए
आये रे बादल आए...
आते हैं जैसे आर्य आए
गर्जाते घोड़े, रथ दौड़ाते
बिजली के बरछे चमकाते
आए रे बादल आए...
बैरागी बादल, बैरागी, बैरागी बादल आए...
बंजारों जैसे ख़ेमे उठाए
पानी की मश्कें कांधों पे लाए
बोरीयां-भर दाने बरसाए
आए रे आए...
बैरागी बादल, बैरागी, बैरागी बादल आए...
9. ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो
ख़्वाब टूटे न कोई...
देखो आहिस्ता चलो
और भी आहिस्ता ज़रा
काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो...
देखना सोच सँभलकर ज़रा पाँव रखना
जोर से बज न उठे, पैरों की आवाज़ कहीं
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो
जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा..
वादा
10. दिल का रसिया और कहाँ होगा
दिल का रसिया और कहाँ होगा
इश्क की आग का धुआँ जहाँ होगा
पीड़ा पाले ग़म सहलाए
कैसे-कैसे जी बहलाए
बावरा है, भला मना कहाँ होगा...
रुखे-सूखे तिनके रखना
फूंकना और चिनगारियाँ चखना
भोगी है, जोगी ये, चैन कहाँ होगा...
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