रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो / मैथिली लोकगीत बारहमासा
रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना -2
अघहन राम के बियाह पूस कोहबर घर सजायल - 2
माघ सिरा के भरायब रघुबर यो कोहबर के अहाँ बर यो ना
रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना
फागुन फगुआ खेलायब चैत फूल लोढ़ी लायब - 2
बैशाख बेनिया डोलायब रघुबर यो कोहबर के अहाँ बर यो ना
रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना
जेठ रुख मंजराए अषाढ़ जल बरसाय -2
सावन झूला हम झुलायब रघुबर यो कोहबर के अहाँ बर यो ना
रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना
भादो राति अन्हियार आसिन असरा लगायल -2
कातिक चली जयबई अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना
रघुवर जुनि जईयऊ अयोध्या नगर यो
कोहबर के अहाँ बर यो ना
चैत मे बेली फूलल / मैथिली लोकगीत बारहमासा
चैत मे बेली फूलल, बैसाखमे दुइ फूल यो
जेठमे सन्ताप लागल, चढ़ल मास अखाढ़ यो
साओन मे मेघ झड़ी लगाओल, भादब राति अन्हार यो
आसिन मे घर देवता नोतब, कातिक पुनीत नहाएब यो
अगहनमे घर सारिल आबि गेल, पूरसमे हम जायब यो
माघमे ब्रज बाल औता, फागुन अबीर उड़ायब यो
कृष्ण अपने चललनि मधुबन गे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
कृष्ण अपने चललनि मधुबन गे, खेबै हम जहर गे ना
कृष्ण चलला अखाढ़ मास, साओन झहरय दिन राति
भादब लगै छै बड़ भयाओन गे, खेबै हम जहर गे ना
असिन आस लगअ लिऐ, कातिक किछु नहि केलिऐ
अगहन रुसि हम जेबै नइहर गे, खेबै हम जहर गे ना
पूस सीरक भरायब, माघ झाड़ि कऽ ओछायब
फागुन फागु खेलायब दिन चारि गे, खेबै हम जहर गे ना
चैत फुल फुलायल, बैसाख चिट्ठियो नहि आयल
जेठ पूरि गेलै बारह मास गे, खेबै हम जहर गे ना
भादव हे सखि जन्म लीन्हा / मैथिली लोकगीत बारहमासा
भादव हे सखि जन्म लीन्हा नगर मथुरा धाम यौ
बसथि गोकुल ब्रज में कान्हा बनि यशोदा के लाल यौ।
आशिन हे सखि कंश सुनल कृष्ण लेल अवतार यौ
जाह पूतना यशोदा आँगन कृष्ण लाहु उठाय यौ।
कातिक हे सखि भेष बदलल लेल लहरी संग यौ
विहूसि पुछल यशोदाजी सँ बालक देखब तोर यौ।
अगहन हे सखि आदर दीन्हा आशीष देल भरि मोन यौ
धन्य भाग हमर द्वार विप्र आयेल पाहून यौ।
पूस हे सखि बालक देखल आशीष देल भरि मोन यौ
लेल पूतना गोद अपन बदन विहूसि लागय यौ।
माघ हे सखि हम त जानल इहो थिका कंशक दूत यौ
कंठ दाबल उदर फारल पूतना गेल मुरझाई यौ।
फागुन हे सखि हम नहीं जानल इहो थिका पूर्ण ब्रम्ह यौ
बालक जानी हम गोदी लेलौं कृष्ण कैल जिवघात यौ।
चैत हे सखि नाग नाथल लेल पतरा हाथ यौ
चहू दीस मोहन घुमि आबथि बैसल यशोदा के कोर यौ।
बैसाख हे सखि उसम लागे आनंद गोकुल लोक यौ
देह हुनका शोभनी पीताम्बर पैर में झुनकी बाजु यौ।
जेठ हे सखि गाय चराबथि साँझ के घुरथी मुरारी यौ
संग सखा मिली कुंज वन मे मुरली टेरथी भगवान यौ।
अखार हे सखि गम गम करैत अछि चहू दिस बरिसय मेघ यौ
लौका जे लौकई बिजुरी चमकै दमकै कान कुंडल यौ।
साओन हे सखि मास बारहम कृष्ण उतरथि पार यौ
हम भेलहुँ अधीन हरी के पुरल बारह मास यौ।
फागुन पहु घर हमरो अबाद गे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
फागुन पहु घर हमरो अबाद गे, करबै हम बिहार गे ना
चैत बैसाख बीतल दुइ फूल लागल अकास
जेठमे रिमझिम पड़ै छै फुहार गे, करबै हम विहार गे ना
अषाढ़ साओन बीतल, दुइ मास बरखा बरसै दिन राति
आनन्दसँ पलंगा पर गद्दा ओछायब गे, करबै हम विहार गे ना
आसिन आशा हम लगौलियै, कातिक किछु नहि केलिऐ
अगहन खेपबै बैसिकऽ दुआरि गे, करबै हम विहार गे ना
पूस सीरक भरायब, माघमे पिया के ओढ़ायब
फागुन छोड़बै अतर गुलाल गे, करबै हम विहार गे ना
पुरि गेलै बारह मास गे, करबै हम विहार गे ना
साओन मास लागल सजनी गे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
साओन मास लागल सजनी गे, बागन - बाग हिलोर
भादव भरि गेल ताल चहुदिस, आयल नहि चितचोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
आसिन आस लगाओल सभ क्यो, औता नन्द किशोर
कातिक कन्त कला नहि मानय, करबमे ककर निहोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
अगहन आय मिले हे उधोजी, कुबजी सौतिन भेल मोर
पूस पलटि नहि आयल मोहन, वंशी सौतिन भेल मोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
माघ कियो एक पत्र सभ मीलय, गोकुल मचि गेल शोर
फागुन जोगिन हुनहुँ सँ बढ़ि कय, कते दिन रहब बिजोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
चैत हे सखि कानल मुद्रा, झरकि भसम तन मोर
मास बैसाख जटा नहि आयल, माला बनल केश मोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
जेठ कियो जग, जाग सभे मिल, आयल कठिन घनघोर
ककर नारी अखाढ़ मे बाला, मृग छाला अति कठोर
बिदेशिया मनमोहन रे की
प्रथम कातिक राजकुमार / मैथिली लोकगीत बारहमासा
प्रथम कातिक राजकुमार, माहि तेजि कन्त गेला बनवास
की नाचहु अहिला चराबहु गाय, कि बिनु पिय कातिक
मोहि ने सोहाय, की हम मरि जइहें
दोसर मास अगहन चढ़ि गेल, नैहर सँ घुरि सासुर गेल
सिनुर टिकुली काजर रेख, घुरमि-घुरमि कन्त
धनी मुह निरेख, कि हम मरि जइहें
पूसहि मास पूसोत्तर भेल, कि झिलमिल केचुआ
तनातनि हिय कांपय, गेरुआ कांपय, सेज कि पिया बिनु
कांपय धनिक करेज, कि हम मरि जइहें
माघहि मास शिव व्रत तोहार, कि कतहु ने भेटल
पिया जी हमार, कि हम मरि जइहें
फागुन मास फागुनी बयार, तरुबन पत्र सभे झड़ि जाइ
जौं हम जनितहुँ फागुन निर्जन, पिया सँ मिलितौं भरि
पोखि, कि हम मरि जइहें
चैतहि मास वन बुलय अहेर, सभे पठाओल पिया सनेस
कि हमरो समदिया कहब बुझाय, कि आब ई विरह दुख
सहलो ने जाय, कि हम मरि जइहें
बैसाखहि मास लगन दुइ चारि, संयुक्त लगन बियाहितौं
नारि, कि हम मरि जइहें
जेठहि मास बरिसाइत भेल, लए सखि गागर बड़ तर गेल
पूजहु गौरी देहु असीस, जीबहु हे कन्त लाख बरीस
कि हम मरि जइहें
अखाढ़हि मास अखाढ़ी रोप, कि नव खरही सब काटय लोक
चिड़ै चुनमुनी सब खोता लगायल, कि हमरो कन्त रहल
घर छोड़ि कि हम मरि जइहें
साओन बेली फुले कचनार, कि देखि देखि नैन बहे जलधार
कि हम मरि जइहें
भादव मास राति अन्हार, लौका जे लौकय हहरय मेघ
कि बिनु पिया हहरय धनिक करेज, कि हम मरि जइहें
आसिन मास पूरल बरमास, कि हम मरि जइहें
चानन रगडू सोहागिन हे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
चानन रगडू सोहागिन हे, गले फूलक हार
सिन्दुर सऽ मांग भरा दय हो, शुभ मास अषाढ़
तइयो ने आय राजा भरथरी, रानी सुन मोर बात
दय दऽ भीख जोगी के, जोगी छोडू मोरा द्वार
मृग मारन राजा जइहें, आहो वनमे शिकार
साओन के दुख दाओन हे, दुख सहलो ने जाय
ईहो दुख परियहु कुबजी के, मोर कन्त राखल लोभाय
आसिन आस लगाओल हो, आसो ने पूरल हमार
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
कार्तिक के पूर्णिमा, सभ सखि गंगा नहाए
सभ सखि पहिरे पीताम्बर, शुभे गुदरी पुरान
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
अगहन अग्र सोहाओन हो, पहीरि सब रंग चीर
चीड़ब फारब अंचरबा, फाटल कोमल शरीर
पूसहिं तूस भरत जी संग हो, हम करब प्रणाम
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
माघहिं केँ श्रीपंचमी हो, शिव व्रत तोहार
घूमि फिरि आबे मंदिरबा हो, शिव व्रत तोहार
फागुन फगुआ खेलायब हो, घोरब अतर गुलाब
तइयो ने आए राजा भरथरी ...
चैतहि अमुआ मजरी गेल हो, महु गेल पतझार
बीछि-बीछि हार बनाएब हो, भेजब राजाजी के पास
बैसाखहि गरमी लगतु हैं, चहुदिस खिड़की करायब
पिया बिनु निन्द ने लागय, रानी सुनू मोर बात
जेठहि भेंट भरथ जी सऽ हो, पूरी गेल बारहमास
चानन रगडू़ सोहागिन हे, गले फूलक हार
सरस मास फागुन थिक सखि रे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
सरस मास फागुन थिक सखि रे, नहि रे शरद नहि घाम
ककरा संग हम होरी खेलब, बिनु रे मोहन एहि ठाम
विकल बिनु माधव रे मन मोर
बेली चमेली चम्पा फूल सखि रे, चैत कली चुनि लेल
हार शृंगार सभ किछु तेजल, मोहन मधुपुर गेल
विकल बिनु माधव रे मन मोर
यमुना तीर कदम जुड़ी छाहरि, मुरली टेरय मुरारी
रगड़ि चानन रौद बैसाखक, लय दौड़ल एक नारी
विकल बिनु माधव रे मन मोर
जेठमास जल-क्रीड़ा सखि रे, हरिजीसँ रचब भजारी
वसन उतारि ऊपर कय धय देल, रहबमे हरिसँ उघारी
विकल बिनु माधव रे मन मोर
अधिक विरह तन उपजल सखि रे, आयल मास आषाढ़
मनमोहन रितु ओतहि गमाओल, करबमे कओन उपाय
विकल बिनु माधव रे मन मोर
साओन सर्द सोहाओन सखि रे, खिल खिल हँसय किसान
चहुँदिसि मेघा बरिसि नेराबे, आजहु ने अयला हरिकन्त
विकल बिनु माधव रे मन मोर
भादव भलो ने होइहें कृष्णाजी के, जे कयल एतेक सिनेह
भादवक राति हम एसगरि खेपब, केहन दारुण दुख देल
विकल बिनु माधव रे मन मोर
आसिनमे सपन एक देखल, सेहो देखि किछु नहि भेल
जेहो किछु कृष्ण कहि जे गेला, मोहन मधुपुर गेल
विकल बिनु माधव रे मन मोर
कातिक कमल नरयन मोहन बिनु, कऽ लो ने पड़य दिन-राति
हहरत हिया भीजत मोर आँचर कुहुकि बिताबी दिन-राति
विकल बिनु माधव रे मन मोर
अगहन मे एक छल मनोरथ, औता मदन गोपाल
विकट पंथ पहु अबइत ने देखल, हमहुँ बैसल हिया हारि
विकल बिनु माधव रे मन मोर
पूसक जाड़ ठाढ़ भेल सखि रे, थर-थर काँपय करेज
एक पिया बिनु जाड़ो ने जायत, करब मे कओन उपाय
विकल बिनु माधव रे मन मोर
बारहम मास माघ थिक सखि रे, पुरि गेल बारहो मास
गाबथि से बैकुण्ठ पाबथि सखि रे, सूनथि से कैलास
विकल बिनु माधव रे मन मोर
मिथिलापुरी शोर भयो हे जनक प्रश्न ठामे / मैथिली लोकगीत बारहमासा
मिथिलापुरी शोर भयो हे जनक प्रश्न ठामे
चैतहि मास सिया रूप अनूप, देखि जनक मनहि मन चूप
कि आब सिया भेली बारी बयस, सब गुण बर भेटत कोन देश
पूरत अभिलाष
बैशाखहि मास ऋषि सुदिन बनाओल, नग्र हकारि चाप चढ़ाओल
इहो प्रश्न भारी वचन प्रमाण, जे इहो धनुषा तोड़त बलवान
सिया लए जइहें
जेठहि पत्र फिरहिं सभ देश, सुनि हर्षित भेल सकल नरेश
कि राम ओ लक्षमण वशिष्ठ मुनि संग, हाथ धनुष शर कोमल अंग
जनकपुर आयल
पावस मास अषाढ़, सुनि प्रश्न कठिन क्रोध मन भार
कि एक एक मुनि सौ सौ बेर चाप गहथि, कि सभ बेधल शरीर
कि हारि सभ बैसथि
सावन नृपति जनक अकुलाय, हारि बैसल भूप मान धराय
कि आब सिया बैसल रहल कुमारि, किछु ने भेल जग के हकारि
धनुष नहि टूटल
भादव नृपति कहथि कल जोड़ि-
जे इहो धनुष तोड़त बलवान, तिनि संग सीता देब बियाहि
कि लाज बड़ भारी
आसिन लछुमन कुदथि मैदान, चुटकी सँ तोड़ब कि धनुष पुरान
कि क्रोध कीन्ह भारी
कातिक धनुष तोड़ल भगवान, अनहद सुद्ध भेल घमसान
कि झहरय गगन सँ बरसय फूल, राम सिया दूनू समतूल
कि बाजि गेल डंका
अगहन राजा सोचल बरियात, कि रथपर लाल ध्वजा फहराय
कि दशरथ समधि समान, जनक मंडप पर सोचथि भगवान
बियाहि जानकी फूलहिं हाथी चललि रनिवास
करू आरती करपूरहि आस, कि मंगल गाओल
वशिष्ठ संग भेल जनक के भाग्य, कि राम आयल
माघहि मास देखि जनक कयलनि विदाइ
अपरम्पार हरख भेल, कि विस्मृति भेल जन्म
पूरल सब आस
फागुन गौना कयल रघुनाथ, कि जानकी कयलनि देस अनाथ
मिथिलापुरी केर पूरल आस, कि बाबूलाल गाओल इहो बरमास
की मिसान उड़ि गेल
मास हे सखि सरस अगहन / मैथिली लोकगीत बारहमासा
मास हे सखि सरस अगहन भूजल चूड़ा संग यो
तरल चेचड़ा माछ कुरमुर लागय मोन भरि संग यो
पूस हे सखि अन्न नवका संग मांगुर झोर यो
कबइ कुरमुर दाँत दबइत करय जनजन शोर यो
माघ बदरी जाड़ थरथर काँपय तन बड़ जोर यो
सुख बोआरी खंड लखि कए मन विनोद विभोर यो
मास फागुन मदक मातल बहय पछबा बसात यो
बढ़ल स्वादक माछ टेंगड़ा रान्हल सानल भात यो
चैत हे सखि रोग सभदिस रूप नाना देखि यो
तरल भुन्ना पलइ रान्हल खाइत बड़ सुख लेखि यो
मास हे सखि आबि पहुँचल गरम बड़ बइसाख यो
गेल मन रुचि माछ गामर खंड सभ दिन चाख यो
जेठ हे सखि हे हेठ बरखा मुंड भाकुर पात यो
पड़तु बिसरतु आबि ससरतु कर नवका भात यो
मेघ सखि बरसत अखाढ़ जत रसालक डारि यो
तोड़ि काँचे आम आमिल देल सौरा पाल यो
मास हे सखि आओल साओन भरल अंडा घेंट यो
तरल दही माछ मारा खाथि भरि पेट यो
माछ इचना भेटल कहुना खाय भरलहुँ कोठि यो
मास आसिन देवपूजा शंख घंटा नाद यो
रान्हि रहुआ माछ बइसब पूर्ण भेल परसाद यो
मास कातिक बारि मरूआ बऽड़ तरल-अपूर्व यो
पूरल बारहमास हरिनाथ गाओल सगर्व यो
पूस गोइठा डाहि तापब
माघ्ज्ञ खेसारिक साग यो
फागुन हुनका छिमरि माकरि
चैत खेसारीक दालि यो
बैशाख टिकुला सोहि राखब
जेठ खेरहिक भात यो
अखाढ़ गाड़ा गाड़ि खायब
साओन कटहर कोब यो
भादव हुनको आंठी पखुआ
आसिन मरुआक रोटि यो
कातिक दुख-सुख संगहि खेपब
अगहन दुनू सांझ भात यो
आसिन मास गे कनियाँ / मैथिली लोकगीत बारहमासा
आसिन मास गे कनियाँ, निसि अन्धी राति
निशिए सपन गे कनियां, बदन तोहार
झुठे तो बजइ छऽ हो कुमर, झुठे तोहर सपन
जे तोरा कहलक हो कुमर, लड़िका छल नदान
कातिक मास गे कनियां, कन्त भेलौ उरन्त
स्वामी तोहर डूबि जे मरलौ, कंकरपुर के धार
हमरो के स्वामी जे मरितै, फुटितै गजमोती
जल थल नदिया हो कुमर, बहितै सिनुरक धार
अगहन मास गे कनियां, शोभउ ने गुदरी-पुरान
पहिरूमे पहिरू गे कनियां, लहंगा हे पटोर
एते दिन पहिरलौं हो कुमर, लहंगा हे पटोर
आब हमरा शोभइ हो कुमर, गुदरी हे पुरान
पूसहिं मास हे कनियां, जाड़क दिन
हमरो के कनियां रहितै, सीरक दितौं भराइ
पूसहि मास हो कुमर, जाड़क दिन
हमरो के स्वामी रहितय, अचरा दितौं ओढ़ाइ
माघहि मास गे कनियां, ओस लागल कपार
हमरो के कनियां रहितै, औखद दितै लगाइ
माघ मास हो कुमर, जाड़क दिन
हमरो के स्वामी रहितै, हाथसँ दितौं दबाइ
फागुन मास गे कनियां, होली के दिन
हमरो के कनियां रहितय, धोरितौं रंग-अबीर
फागुन मास हो कुमर, होली के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, खेलितौं रंग-अबीर
चैतहि मास गे कनियां, फूलय बंगटेस
फूल फूलिय गेल गे कनियां, बदन तोहार
एते दिन कहलऽ तहूँ, छलऽ अज्ञान
आब किछु बजबऽ हो कुमर, पिता के पढ़बऽ गारि
बैसाख मास गे कनियां, गरमी के दिन
हमरो के कनियां रहितय, बेनियां दितै डोलाय
बैशाख मास हो कुमर, गरमी के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, अंचरा दितौं घुमाय
जेठ मास गे कनियां, अन्हड़ गे बिहारि
स्वामी तोहर डूबि मरलौ, कंकरपुर के धार
झूठ तोँ बजै छऽ हो कुमर, झूठ तोहर बात
हमरो के स्वामी मरितै, फुटितै गज मोतीहार
जल थल नदिया हो कुमर, बहितै सिनुरक धार
अखाढ़हि मास गे कनियां, बंगला रचि छरायब
हमरो के कनियां रहितय, कहितौं सबरंग बात
अखाढ़ मास हो कुमर, खिड़की रचि कटायब
हमरो के स्वामी रहितय, करितौं सबरंग प्यार
साओन मास गे कनियां, झूला के दिन
हमरो के कनियां जे रहितै, झूला लितौं लगाय
साओन मास हो कुमर, झुला के दिन
हमरो के स्वामी रहितय, झूला दितौं झुलाय
भादव मास गे कनियाँ, निसि अन्धी राति
आसिन मास गे कनियां, पूरलौ बारहमास
तइयो नै चिन्हले गे कनियां, स्वामी अपन
कोने रंग भइया हो, कोने रंग बहीन
कोने रंग परदेशिया हो कुमर, चिन्हलौं ने अपन
गोरे रंग भइया हो कनियां, गोरे रंग बहीन
श्यामल रंग परदेशिया कनियां, चिन्हले ने अपन
अगहन मास लागू नीक पंचमी के दिन / मैथिली लोकगीत बारहमासा
अगहन मास लागू नीक पंचमी के दिन
होइ छनि राम के विवाह जनकपुरमे
पूस मास संक्रान्ति पाहुन केओ नहि आयत
ई सभ लौकिक के व्यवहार कुलरीतियामे
माघ जरकाल ठंढ़ा लागय असाध्य
रामचन्द्र कोना अहाँ जेबै भोरहरियामे
फागुन मास रसदार कहाँ जेबै यो यार
रंग खेलि लीअ जनक नगरिया मे
चैत मास खरमास जड़ि सभ लेल पतझार
रामचन्द्र कोना अहाँ जयबै पतझरिया मे
चढ़ल मास बइसाख उषम बहय बसात
रामचन्द्र कोना अहाँ जयबइ सीता संगियामे
जेठ तपे दिनराति लुक खसय असाध्य
रामचन्द्र अहाँ कोना जयबै दुपहरिया मे
आयल मास अषाढ़ बुन्द बरिसे असाध्य
रामचन्द्र कोना अहाँ जयबै बरसतिया मे
आयल सावन के बहार झूला झूलू यो सरकार
झूला झूलि लिअ रिखि फुलवरियामे
भादव राति अन्हार चारू दिस भरि गेल धार
कोना उतरब पार जलधरियामे
आयल आसिन मास हथिया झटके असाध्य
रामचन्द्र कोना अहाँ जयबै खरखरियामे
कहथिन सखिया हुलास, कातिक पूरल बारहमास
करियनु राम केँ तइयार सुन्न घरियामे
प्रथम मास अखाढ़ हे सखि / मैथिली लोकगीत बारहमासा
प्रथम मास अखाढ़ हे सखि श्याम गेला मोहि तेजि यो
कोन विधि हम मास खेपब हरत दुख मोर कोन यो
साओन हे सखि सर्वसोहाओन, दोसर राति अन्हार यो
लौका जे लौके रामा बिजुरी जे चमकै जंगलमे बाजै मोर यो
भादव जल थल नदी उमड़ि गेल चहुदिस श्यामल मेघ यो
एक लोक जब गेल मधुपुर ओतहि भए गेल भोर यो
आसिन हे सखि आश लगाओल आशो ने पुरल हमार यो
एहि प्रीत कारण सेतु बान्हल सिया उद्देश्य श्रीराम यो
कातिक हे सखि छल मनोरथ जायब हरिजी के पास यो
राति सुख दुख संग गमाओल लेसब दीप अकास यो
अगहन हे सखि सारिल लुबधल भांति-भांति केर धान यो
हंस क्रीड़ा करत सरोवर भौंरा लोटय एहिठाम यो
पूस हे सखि जाड़काला बरिसहु हेमगृह जाय यो
तुरत घूर जराय तापल पिया बिनु जाड़ ने सोहाय यो
माघ कामिनी बान्ह यामिनी यौबन भेल जीवकाल यो
बाँचि पतिया फाटु छतिया माधव कोन बिलमाय यो
फागुन हे सखि खेलत होरी उड़त अबीर गुलाल यो
खेलत होली, बोलत बोली सेहो सुनि दगध शरीर यो
चैत हे सखि समय चंचल लोचन चहुँदिस घाव यो
गरजे घन बड़जोर अहाँ दीअ ने पहु घर आनि यो
विषम मास बैसाख हे सखि पिया बिनु निन्द ने होत यो
पिया पिया कए रटय पपीहा कखन होयत प्रात यो
जेठ हरिजी सँ भेंट भए गेल पूरल बारहोमास यो
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