भरथरी लोक-गाथा छत्तीसगढ़ी गीत लोकगीत Chhatisgarhi Bharthari Lokgatha Geet
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “राजा का जोगी वेष में आना”
घोड़ा रोवय घोड़ेसार मा, घोड़ेसार मा या, हाथी रोवय हाथीसार मा
घोड़ा रोवय घोड़ेसार मा, घोड़ेसार मा वो, हाथी रोवय हाथीसार मा
मोर रानी ये वो, महलों में रोवय
मोर रानी ये या, महलों में रोवय
येदे धरती में दिए लोटाए वो, ऐ लोटाए वो, भाई येदे जी
येदे धरती में दिए लोटाए वो, ऐ लोटाए वो, भाई येदे जी
सुन लेबे नारी ये बाते ला, मोर बाते ला या, का तो जवानी ये दिए हे
सुन लेबे नारी ये बाते ला, मोर बाते ला वो, का तो जवानी ये दिए हे
भगवाने ह वो, मोर कर्म में ना
भगवाने ह या, मोर कर्म में ना
येतो काये जोनी मोला दिए हे, येदे दिए हे, भाई येदे जी
येदे काये जोनी दिए हे, येदे दिए हे, भाई येदे जी
– गाथा –
ऐ रानी सामदेवी रइथे ते रागी (हौव)
राजा भरथरी के वियोग में (हा)
मुड पटक पटक के रोवत रिथे (रोवत थे)
अउ कलपत रिथे (हौव)
किथे हे भगवान (हा)
मोर किस्मत फूट गे (फूट गे)
अतका बात ला सुन के पारा परोस के मन आथे (हौव)
आथे त रानी सामदेवी ल पूछथे (हा)
रानी (हौव)
तोला का होगे (हौव)
ते काबर रोवत हस (हा)
तब रानी सामदेवी रहाय ते बतावत हे (का बतावत हे)
– गीत –
बोली बचन मोर रानी हा, मोर रानी हा वो, सुन बहिनी मोर बाते ल
बोली बचन मोर रानी हा, मोर रानी हा या, सुन बहिनी मोर बाते ल
मोर माँगे के या, येदे सेन्दुर नईये
मोर माथे के वो, येदे टिकली नईये
में ह जन्मों के होगेंव रांडे वो, भाई येदे जी
में ह जन्मों के होगेंव रांडे वो, भाई येदे जी
भाई रोवे गुजराते हा, गुजराते हा वो, बुलबुल रोवे रानी पिंगला के
भाई रोवे गुजराते हा, गुजराते हा या, बुलबुल रोवे रानी पिंगला के
बारा कोस के वो, फुलवारी रोवय
बारा कोस के ना, फुलवारी रोवय
उहू जुलुम होगे सुखाये वो, भाई येदे जी
उहू जुलुम होगे सुखाये वो, भाई येदे जी
– गाथा –
दोनों हाथ ला जोड़ के रानी सामदेवी किथे रागी (हौव)
बहिनी हो (हा)
मोर मांग के सेन्दुर मिटागे (हौव)
मोर माथ के टिकली मिटागे (मिटागे)
में जन्मों के रांड होगेंव (रांड होगेंव)
सब झन पूछथे, ये बात कइसे होइस रानी (हौव)
तब बताथे (हा)
जे दिन मोर राजा इहां ले गिस (हौव)
तो कहिस हावय (हा)
जब तक के में जिन्दा रहूँ (हौव)
तब तक ये तुलसी के बिरवा हराभरा रही (हा)
अउ जब तक ये तुलसी के बिरवा हराभरा रही, समझ जबे में जिन्दा रहूँ (जिन्दा रहूँ)
अउ तुलसी के बिरवा सुखा जही (हौव)
त में मर जहूं (मर जहूं)
यही तुलसी के बिरवा ला मोला निशानी देके गिस हे बहिनी हो (हौव)
आज ये तुलसी के बिरवा सुखा गे (हा)
मोर करम फुट गे (हौव)
आज इही मेर के बात इही मेर के रइगे रागी (हा)
राजा भरथरी राहय तेन बिनती करत अपन घर ला आवत हे (हा)
– गीत –
बिनती करे राजा भरथरी
राजा भरथरी या, आवत थे अपन घरे ला
येदे घरे में वो, पहुँचत हबाय ये द्वार में
येदे द्वार में या, लिली घोड़ी ला देखत हाबे ना, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
मन में सोंचे लिली घोड़ी हा
लिली घोड़ी हा वो, राजा भरथरी ला देखी के
में ह आये हव गा, राजा ऐ इंदर पठाये हे
मोला कोने बेटा देही ए गांवे काहथे, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
गुस्सा होवय लिली घोड़ी हा
लिली घोड़ी हा वो, राजा भरथरी ला देखी के
वो दे काहत ना, का ये बतावव ये तोला ना
अइसे बोलत हे वो, लिली ये घोड़ी हा आगे ना, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
– गाथा –
अब ये राजा भरथरी राहय ते, अपन दरवाजा में पहुँचथे रागी (हौव)
जब दरवाजा में पहुँचथे, तब एक लिली घोड़ी नाम के (हा)
वो घोड़ी वो दरवाजा में बइठे रिहिस (बइठे राहत हे)
वो इंदर भगवान के (हौव)
भेजे हुवे लिली घोड़ी रिथे (हा)
गुस्सा हो के लिली घोड़ी किथे राजा (हौव)
तें तो योगी होगेस (हा)
ना तोला घोड़ा चाहिए (हौव)
ना तोला हाथी चाहिए (हा)
अब तें तो योगी होगेस (हौव)
अउ इंदर भगवान भेजे हे तोर खातिर (हा)
मोला लगाम कोन दिही (हौव)
अइसे कइके राजा भरथरी के सामने में (हा)
लिली घोड़ी रहाय तेन प्राण त्याग देथे (प्राण त्याग देथे)
– गीत –
आगे चले राजा भरथरी, राजा भरथरी या, देखथ रइये किसाने ला
आगे चले राजा भरथरी, राजा भरथरी वो, देखथ रइये किसाने ला
कोनों चिन्हे नहीं, येदे योगी ला या
कोनों चिन्हे नहीं, येदे योगी ला वो
वो ह डेहरी में धुनी जमाये हे, ये जमाये हे, भाई येदे जी
वो ह डेहरी में धुनी जमाये हे, ये जमाये हे, भाई येदे जी
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “चम्पा दासी का जोगी को भिक्षा देना”
अब ये भरथरी राहय ते रागी (हौव)
किथे (हा)
एक जानवर असन ह तो मोला चिन डरिस (चिन डरिस)
मोर खातिर प्राण त्याग दिस (हौव)
चल अब ये गाँव के मन मोला चिन्थे की नई चिन्हई (हा)
ये आसपास के मन मोला चिन्थे की नई चिन्हई (हौव)
थोड़ा आगे चल के देखंव (देखंव)
जब आगे चल के देखत रइये तो किसान कोनों चिन्हई नहीं (हौव)
अब ये राजा भरथरी राहय तेन (हा)
आके अपन डेहरी में धूनी जमा के बइठ जथे (हौव)
– गीत –
सुमिरन करे गंगा माता के, गंगा माता के वो
झुकती ये मोहिनी मिसाली के
सुमिरन करे गंगा माता के, गंगा माता के वो
झुकती ये मोहिनी मिसाली के
टोपी रतन जड़ाय, हाथ ऐ खप्पर धराय
टोपी रतन जड़ाय, हाथ ऐ खप्पर धराय
येदे अंगे में भभूत लगावत थे, ये लगावत थे, भाई येदे जी
येदे अंगे में भभूत लगावत थे, ये लगावत थे, भाई येदे जी
भिक्षा देदे भोले माता वो, भोले माता के वो
योगी आए तोरे द्वारे मा
भिक्षा देदे भोले माता वो, भोले माता के वो
योगी आए तोरे द्वारे मा
चौकीदारे हा या, गारी देवय दीदी
चौकीदारे हा वो, गारी देवय दीदी
येदे योगी ला उंहा ले भगावत थे, ये भगावत थे, भाई येदे जी
येदे योगी ला उंहा ले भगावत थे, ये भगावत थे, भाई येदे जी
– गाथा –
अब ये योगी ल रागी (हौव)
कोनों चिन्हय नहीं (हा)
आके गहरी धूनी जमा के बईठ जथे (बईठ जथे)
का पूछत हस वोला (हौव)
अंग में भभूत (हा)
टोपी रतन जड़ाय (हौव)
हाथ में खप्पर धराय (हा)
अब बोलथे माता, मोला भिक्षा दे (हौव)
मईया मोला भिक्षा दे (भिक्षा दे)
भिक्षा दे किथे तो ओकर घर में एक झन चौकीदार रिथे (हौव)
त वो चौकीदार काय किथे जानथस (हा)
– गीत –
का बनिया के ये हाट ऐ, येदे हाट ऐ योगी
का महाजने दुकान ऐ गा
का बनिया के दुकान ये, येदे दुकान ऐ योगी
का महाजन के हाट ऐ गा
गढ़ छप्पन के, राजा भरथरी ये
गढ़ छप्पन के, राजा भरथरी ये
ये ह ओकर द्वारे आए गा, येदे आए गा, भाई येदे जी
ये ह ओकर द्वारे आए गा, येदे आए गा, भाई येदे जी
– गाथा –
अब वो चौकीदार राहय तेन रागी (हौव)
एकदम गुस्सा होके योगी ला काहत हे (हा)
अरे ऐला का बनिया के हाट समझत हस
महाजन के दुकान समझत हस (हा)
ये छप्पनगढ़ राजा भरथरी के दुवार ऐ (दुवार ऐ)
अउ तोर जइसे योगी तो हजार ऐ नगरी मा फिरत रिथे (हौव)
चल इहां ले चल (हा)
भाग, अइसे किके ओला धक्का मार के निकालत रिथे रागी (हौव)
योगी राहय तेन उठय नहीं (हा)
मुच मुच, मुच मुच करत बइठे रिथे (हौव)
– गीत –
बोली बचन चौकीदारे हा, चौकीदारे हा वो
सुनले रानी मोर बाते ला
बोली बचन चौकीदारे हा, चौकीदारे हा या
सुनले रानी मोर बाते ला
तोर द्वारे में वो, एक योगी आहे
तोर द्वारे में वो, एक योगी आहे
वो ह भिक्षा ये मांगत हाबय वो, भाई येदे जी
वो ह भिक्षा मांगत हाबय वो, भाई येदे जी
बोली बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी ला वो
सुनले रानी मोर बाते ला
बोली बचन चम्पा दासी ला, चम्पा दासी ला वो
सुनले दासी मोर बाते ला
एकादशी के वो, मैं उपासे रहेंव
एकादशी के वो, मैं उपासे रहेंव
येदे लाखों करेंव मैं हा दाने ला, भाई येदे जी
मैं हा लाखों करेंव येदे दाने ला, भाई येदे जी
– गाथा –
अब ये चौकीदार जाके रागी (हौव)
रानी सामदेवी ल किथे (हा)
रानी (हौव)
एकझन तोर दुवार में योगी आए हे (योगी आए हे)
वो भिक्षा माँगत बईठे हाबय (हौव)
तब रानी सामदेवी चम्पा दासी ल किथे (हा)
दासी (हौव)
में अतका उपास करेंव (हा)
अतका पूजा पाठ करेंव (हौव)
भोलानाथ के पूजा करेंव (हा)
तभो ले मोर करतब में इही लिखे हे (हौव)
मोर करम में यही लिखे हे बहिनी (हा)
जा तहीं भिक्षा देके आ (हौव)
अब ये चम्पा दासी रहाय ते रागी (हा)
सुनत रा (हौव)
– गीत –
बारा हजार ये ब्राम्हन ला, येदे ब्राम्हन ला वो
दान करे हेबे रानी हा, येदे रानी हा वो
पूजा करे भोलानाथ के, भोलानाथ के वो
बाबा योगी ये हा आए हे, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
जा पहुंचे चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
बाबा योगी के ये पासे ना, येदे पासे दीदी
दूसर द्वारे में जाबे ना, येदे काहत थे वो
चम्पा ये दासी हा आजे ना, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
बोले बचन मोर योगी ह, मोर योगी हा वो
सुनले दासी मोर बाते ला
काय डाका पड़े, तेला ये मोला बता देबे
ले बता दे बाई, भिक्षा मोला तें देवा देबे, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
– गाथा –
ये रानी सामदेवी राहय तेन रागी (हौव)
दुनों हाथ ल जोड़ के (हा)
काहत रिथे वही चम्पा दासी ला (हौव)
बहिनी (हा)
में बारा हजार ब्राम्हन ला (हौव)
अतका दान करेंव (हा)
भोलानाथ के में पूजा करेंव (पूजा करेंव)
ये बाबा योगी कहाँ ले टपक पईस (हौव)
मे एला भिक्षा कहाँ ले देवँव (हा)
जा दासी (हौव)
तहीं भिक्षा देके आजा (आजा)
चम्पा दासी राहय तेन (हा)
भिक्षा देबर निकलिस हे (हौव)
– गीत –
बोले बचन मोर दासी हा, मोर दासी हा वो
सुनले बाबा मोर बाते ला
बोले बचन मोर दासी हा, मोर दासी हा वो
सुनले बाबा मोर बाते ला
येदे भिक्षा लेबर, येदे काहय दासी
तुम भिक्षा लेवव, येदे काहय दासी
बाबा भिक्षा ल नई तो लेवय वो, येदे लेवय वो, भाई येदे जी
बाबा भिक्षा ल नई तो लेवय वो, येदे लेवय वो, भाई येदे जी
– गाथा –
जब एक बार आथे रागी (हौव)
त किथे बाबा (हा)
तुमन भिक्षा माँगे ल आए हव (हौव)
जावव तुहंर धूनी ला उठावव (हा)
अउ इंहा ले चल देवव (चल देवव)
इंहा कोई जगा नई ये तुहर भिक्षा लेके (हौव)
अतक बड़ नगरी हे (हा)
हर जगा तें माँग सकत हस (माँग सकत हस)
अइसे कि के चम्पा दासी किथे (हौव)
राजा भरथरी ओला किथे, बाई (हा)
का तोर घर में डाका पड़े हे (हौव)
ते कोई लुटेरा आगे लुटे बर (हा)
का तुंहर घर में दुःख परे हे (हौव)
तेंमे मोला भिक्षा नई देवत अस (हा)
अइसे कि के राजा भरथरी राहय ते चम्पा दासी ला बोलथे (हौव)
जाके दासी (हा)
रानी सामदेवी ल बताथे (हौव)
रानी (हा)
वो तो धूनी ले उठबे नई करत ऐ (हौव)
भिक्षा लेबे नई करत ऐ (हा)
में कइसे ओला भिक्षा दऽव (हौव)
तब रानी सामदेवी किथे रागी (हा)
ले एकबार अउ जाके देख (हौव)
फेर वो भिक्षा देबर जाथे (हा)
तब किथे बाबा (हौव)
ले भिक्षा ले ले (हा)
फिर वही बात किथे, दासी (हा)
में तोर हाथ के भिक्षा नई लऽव (नई लेवंव)
लिहंव त मैं ये घर के (हा)
जो रानी हे, में ओकर हाथ से भिक्षा लेहूं (हौव)
– गीत –
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
अईठ के जावत हाबे ना
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा या
अईठ के जावत हाबे ना
ये ह योगी नोहय, चंडाल ऐ वो
ये ह योगी नोहय, चंडाल ऐ या
ये ह भिक्षा नई तो लेवत ऐ, येदे लेवत ऐ, भाई येदे जी
येदे भिक्षा नई तो लेवत ऐ, येदे लेवत ऐ, भाई येदे जी
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “चम्पा दासी द्वारा राजा को पहचान"
अब ये चम्पा दासी राहय ते जाके रानी सामदेवी ल बताथे रागी (हौव)
अउ कइथे, रानी (हा)
में अतका कई डरेंव वो योगी ल (हौव)
वो जाबे नई करत ऐ (हा)
अउ तोर हाथ ले वो भिक्षा लुहूँ किथे (लेहूँ किथे)
हमर हाथ ले भिक्षा नई लेवत ऐ (हौव)
का पूछत हस रागी ओतका बात ल सुनके (हा)
जल-बल के खाख हो जथे (हौव)
अउ गुस्सा होके किथे (हा)
चार झन दीवान मन ला बोलथे (हौव)
वो योगी नोहय, चंडाल ऐ (हा)
जा ओला धक्का मार के निकाल दव (निकाल दव)
ओकर झोला झंटका ल नगां लव (हौव)
अउ गंगा में लेके बोहा दव (हा)
अब ओतका बात ल सुनके, चार छन दीवान राहय ते रागी (हौव)
योगी के पास में आ जथे (हा)
अपन अपन ले झोला ल नंगात रिथे (हौव)
बाबा ल धक्का मारत रिथे (हा)
लेकिन वो बाबा उंहा ले नई जावय (हौव)
– गीत –
तब तो बोले मोर रानी हा, मोर रानी हा वो
सुनले दासी मोर बाते ला
तब तो बोले मोर रानी हा, मोर रानी हा या
सुनले दासी मोर बाते ला
एकबारेच वो, अउ जाना दासी
एकबारेच वो, अउ जाना दासी
तेंहा भिक्षा ये देके, ये आना वो, येदे आवोना, भाई येदे जी
अउ भिक्षा देके आवोना, येदे आवोना, भाई येदे जी
भिक्षा ये लेके ये पहुँचत थे, येदे पहुँचय दीदी
चम्पा ये दासी ह आज ना
भिक्षा ये लेके ये पहुँचत थे, येदे पहुँचय दीदी
चम्पा ये दासी ह आज ना
लेलव बाबा तुमन, येदे भिक्षा ल ग
लेलव बाबा तुमन, येदे भिक्षा ल ग
येदे धूनी ल इंहा ले उठावव जी, ये उठावव जी, भाई येदे जी
येदे धूनी ल इंहा ले उठावव ना, ये उठावव ना, भाई येदे जी
– गाथा –
अब ये चम्पा दासी राहय तेन रानी सामदेवी के बात मान के आथे रागी (हौव)
फेर किथे (हा)
बाबा (हौव)
एले अब तो भिक्षा लेलेव (हा)
धूनी ल हटा दव (हौव)
हां भई भिक्षा नई लव (हा)
तो आसपास में तुंहर बर हम मंदिर बनवा देथन (हौव)
उंहा तुम पुजारी रहू (पुजारी रहू)
तुहाँ ल हाथी घोड़ा सबकुछ देबो (हौव)
लेकिन इंहा ले तुम धूनी ल तो हटा दो (हा)
ओतका बात ल सुनथे तो बाबा (हौव)
थोकन मुस्कुरा देथे (हा)
मुस्कुरा देथे ओकर दांत में, ओकर सोन के दांत लगे रिथे (हौव)
झलक ह दिख जथे (हा)
चम्पा दासी राहय ते चिन डारथे (हौव)
अउ चिन्हे के बाद का पूछत हस रागी (हा)
थई थई थारी ल पटक देथे (हौव)
अउ जाके बीच अंगना में (हा)
रोवन लाग जथे (हौव)
– गीत –
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
सुन ले रानी मोर बाते ल
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा या
सुन ले रानी मोर बाते ल
वो ह योगी नोहय, तोर राजा ऐ वो
वो ह योगी नोहय, तोर राजा ऐ वो
येदे कही के रोवन लागत हे, भाई येदे जी
येदे कही के रोवन लागत हे, भाई येदे जी
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
सुन ले रानी मोर बाते ल
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा या
सुन ले रानी मोर बाते ल
कोन भेषे में वो, भगवाने आथे
कोन भेषे में ना, भगवाने आथे
येदे कोन भेषे तोर राजा वो, भाई येदे जी
येदे कोन भेषे तोर राजा वो, भाई येदे जी
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “रानी का चम्पा दासी को सजा देना”
अब ये चम्पा दासी राहय ते रागी (हौव)
जा के रानी सामदेवी ल किथे (हा)
रानी (हौव)
में तोला का बतावँव (हा)
कोन भेषे में भगवाने आ जथे (हौव)
अउ कोन भेषे में राजा आ जथे (राजा आ जथे)
वो योगी नोहय तोर राजा ऐ (हौव)
ओतका बात ल सुनथे, रानी राहय तेन (हौव)
एकदम जल-बल के खाख हो जथे (हा)
जइसे नागिन फोंय करथे (हौव)
वइसे रानी उप्पर ले आके (हौव)
चप्पल उतार के (हा)
चम्पा दासी ल चार चप्पल मार देथे (हौव)
त पूछथे (हा)
ते कइसे मोला राजा ये किके केहे (हौव)
कइसे मे मोर राजा होइस तेला बता (हा)
तो किथे रानी, मोर बात ल थोकन मान (हा)
थोकन सुनले (हौव)
तब मोला मारबे (हा)
वो तोर राजा चे, योगी नोहय (हौव)
बतावय नहीं कि ओकर दांत में सोन के हीरा हे किके (हा)
बस ओतका बात ल कइय के रागी (हौव)
चम्पा दासी राहय तेन (हा)
– गीत –
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
सुन ले रानी मोर बाते ल
मोर बाते ल वो, नाने पने के में आये हौव
ऐदे आये हवव, तोरे संगे दासी बनी के, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
जतका मारना तोला मारी ले, येदे मारी ले ना
काहत हाबय ये दासी ह
येदे पीठे ल ग, देवन लागथे दासी ह
मोर सखी मन वो, सहेली रोवत हाबे गा, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
बोले बचन रानी सामदेवी, रानी सामदेवी
सुन लव दीवान मोर बाते ला, मोर बाते ल गा
चम्पा ये दासी ल लेगी के, येदे लेगी के ना
तुमन फांसी लगावव जी, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
– गाथा –
ये चम्पा दासी राहय ते रागी (हौव)
रानी (हा)
मोर पीठ ल मार ले (हौव)
लेकिन पेट ल मत मार (मत मार)
जब से तें शादी होके आय हस (हौव)
तब से तोर संग में छेरिया बन के आय हव (हा)
मोर बात ल मान जा रानी (हौव)
मोर बात ल सुन ले रानी (हा)
अइसे कइके (हौव)
ऐ चम्पा दासी राहय ते रो रो के कलपत रिथे (हा)
ओकर सखी सहेली राहय तेन (हौव)
ओमन भी रोवत रिथे (हा)
सामदेवी राहय ते काकरो बात ल नई माने रागी (हौव)
चारझन दीवान ल आदेश दे देथे (हा)
अरे ये चंडालिन ल तें काय देखत हस (हौव)
कल के दिन योगी ल कहिसे, मोर पति ये किके (हा)
वो योगी चंडाल ह मोर पति हो सकथे (हौव)
लेजा येला फांसी में चढ़ा दे (चढ़ा दौव)
अइसे कइके दीवान मन ला आदेश दे देथे (हौव)
अब ये चम्पा दासी ल राहय तेन
चारझन दीवान ह धरथे रागी (हौव)
अउ काहत रिथे (हा)
– गीत –
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
सुनी लेवव मोर बाते ल
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा ना
सुनी लेवव मोर बाते ल
मोर बाते ल ग, तुम सुनी लेवव
मोर बाते ल ग, तुम सुनी लेवव
येदे कही के रोवत हाबय वो, येदे हाबय वो, भाई येदे जी
येदे कही के रोवत हाबय वो, येदे हाबय वो, भाई येदे जी
एकादशी के उपासे हे, ये उपासे हे वो
चम्पा ये दासी ह आजे ना
एका-ऐ-दशी के उपासे हे, ये उपासे दीदी
चम्पा ये दासी ह आजे ना
कतको रोवत हे या, कतको कलपय दीदी
कतको रोवत हे वो, कतको कलपय दीदी
येदे बाते नई सुनत ऐ दासी के, येदे दासी के, भाई येदे जी
येदे बाते नई सुनत ऐ दासी के, येदे दासी के, भाई येदे जी
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “रानी से चम्पा दासी के लिए विनती”
अब ये दासी राहय ते रागी (हौव)
सबझन ल किथे (हा)
मोर बात तो तुमन सुन लौ (सुन लौ)
बहिनी हो (हा)
तुमन तो मोर बात सुनलव (हौव)
भईया हो (हा)
तुमन तो मोर बात सुनलव (हौव)
चम्पा दासी के कोई बात नई सुनय रागी (हा)
बस ओला फांसी में लेगेबर (हौव)
तैयार रिथे (हा)
एकादशी के उपास रिथे (हौव)
छै दिन के वो खाना नई खाय राहय (हा)
तब सब सखी सहेली, रानी सामदेवी ल किथे (हा)
– गीत –
बोले बचन मोर सखीमन, मोर सखीमन या
सुन ले रानी मोर बाते ल
बोले बचन मोर सखीमन, मोर सखीमन वो
सुन ले रानी मोर बाते ल
एकादशी के वो, ये उपासे हावय
एकादशी के ना , वो उपासे हावय
येदे छै दिन कुछ खाए वो, भाई येदे जी
येदे छै दिन के कुछ नई खाए वो, भाई येदे जी
लोटा ल देवत हे रानी हा, मोर रानी ह वो
आमा-ये-झरीबर भेजथे
लोटा ल देवत हे रानी हा, मोर रानी ह वो
सोना-ये-झरीबर भेजथे
चम्पा दासी दीदी, उहाँ पहुँचत थे या
चम्पा दासी दीदी, उहाँ पहुँचत थे वो
येदे रोवन लागत थे वोदे वो, भाई येदे जी
येदे रोवन लागत थे वोदे वो, भाई येदे जी
– गाथा –
चम्पा दासी के सब सखी सहेली राहय ते रागी (हौव)
जाकर के रानी सामदेवी ल किथे (हा)
दोनों हाथ में विनती करके किथे (हौव)
रानी (हा)
एकबार हमर बात रखलेव (रखलेव)
वो ह एकादशी के उपास हे (हौव)
छै सात दिन होगे कुछ खाए नईये (हा)
अउ खाली पेट में ओला फांसी मत चढ़ा (हौव)
अउ ओला गुस्सा आ जथे रागी (हा)
धरा देथे लोटा ला (हौव)
अउ सोनाझरी के (हा)
तरियाबर भेज देथे (हौव)
अब ये चम्पा दासी राहय तेन (हा)
धिरे धिरे जा थे (हौव)
रोवत रिथे (हा)
– गीत –
पहुंचन लागत थे दासी हा, मोर दासी हा वो
सोना-ये-झरीबर के तीरे में, येदे तोरे में या
गंगा ये मइया ल देखत थे, येदे देखय दीदी
बोलन लागथे दासी हा, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
गंगा-च मइया में उतरत थे, मोर उतरत थे वो
चम्पा ये दासी ह आजे ना, येदे आजे दीदी
विनती करय जल देवती के, जल देवती के वो
सुमिरन करय भोलानाथ के, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
घुटुवा ले पानी ह आवत थे, येदे आवय दीदी
माड़ी ले पानी ह आ गेहे, येदे आगे हे वो
मनेमने दासी सोचत थे, येदे सोचय दीदी
देखन लागथे भोला ला, भाई येदे जी
राजा बोलथे वो, करले अमर राजा भरथरी
येदे काहथे वो, करले अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निशान, करले अमर राजा भरथरी, भाई येदे जी
– गाथा –
अब ये चम्पा दासी राहय ते रागी (हौव)
लोटा ल धर लेथे (हा)
सोनाझरी के तीरे में पहुंच गे (हौव)
गंगा मइया में उतरथे (हा)
घुटुवा ले पानी आ जथे (हौव)
ओकर बाद माड़ी तकले (हा)
जब माड़ी तकले आथे त किथे हे भोलेनाथ (हौव)
में तोर सामने में हौव (हा)
तें मोरबर दया कर (हौव)
में तोला अंचरा मे पुजहूँ (हा)
भोलेनाथ (हौव)
अइसे किके ओकर प्रार्थना करथे (हा)
भरथरी लोकगाथा का प्रसंग “शंकर पूजा, चम्पा को शंकर दर्शन”
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी वो
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य
भोलेबाबा ल वो, शंकरजी ल ना
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य
भोलेबाबा ल वो, शंकरजी ल ना
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
बेल पान दुबी, दुधी रखेंव पूजा के थारी म
बेल पान नरियर दुबी रखेंव खलोक थारी म
बेल पान दुबी, दुधी रखेंव पूजा के थारी म
रखेंव पूजा के थारी म, रखेंव पूजा के थारी म
बिगड़ी बना दे मोरे, आयेंव तोर दवारी म
आयेंव तोर दवारी म, आयेंव तोर दवारी म
हाथ जोड़के माथ मैं नवावंव दीदी वो
शंकरबाबा ल वो, भोलेबाबा ल वो
शंकरबाबा ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
माथ म चंदन तोरे, गले में नाग लपटे हे
गला में नाग लपटे हे, गला में नाग लपटे हे
मिरगा के छाला पहिने, जटा में गंगा लटके हे
जटा में गंगा लटके हे, जटा में गंगा लटके हे
सावन सोमवारी के गोहरावंव दीदी वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
एक हाथ म जामुन धरे, दूसर म तिरछुल
दूसर म तिरछुल, बाबा दूसर म तिरछुल
अंगभरे राख चुपरे, गांजा ल पीये फुकफुक
गांजा ल पीये फुकफुक, गांजा ल पीये फुकफुक
इ गोधरे गांजा ल पीके गुस्साए हाबय वो
शंकरजी ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो
शंकरबाबा ल वो, दीदी भोलेबाबा ल वो
हाथ म फुल धरके चढ़ावंव दीदी य
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
भोलेबाबा ल वो, दीदी शंकरजी ल वो
– गाथा –
अब ये चम्पा दासी राहय ते रागी (हौव)
भगवान भोलेनाथ के पूजा करथे (हा)
भोलेनाथ राहय ते प्रसन्न हो जथे (हौव)
अउ किथे (हा)
बेटी (हा)
बेटी ते सो माँग, मे सो देबर तैयार हंव (हौव)
तब किथे बाबा (हा)
मोर ऊपर विपत आगे हे (हौव)
में का बताव बाबा (हा)
मोर बात ल रानी सामदेवी समझत नई ये (हा)
अउ बस मोला मार के (हौव)
चारझन दीवान ला आदेश देवा देहे (हा)
अउ फांसी देके ऑर्डर दे देहे (हौव)
अब मे फांसी में चढ़हूं बाबा (हौव)
तब भोलेनाथ किथे (हा)
जा बेटी (हौव)
तोला चिंता करे के बात नईये (बात नईये)
चम्पा दासी राहय तेन (हौव)
जाथे सुग्घर घर में (हा)
पीताम्बरी के साड़ी पहिन लेथे रागी (हौव)
पहिने के बाद (हा)
चारझन कहार रिथे डोला बोहईया (हौव)
जब डोला में बईठथे (हा)
तब, सब सखी सहेली रिथे (हौव)
मिलथे भेंटथे (हा)
अउ रोथे, अउ किथे बहिनी हो (हा)
जईसे में ससुराल जातहव (हौव)
वइसे मोला समझव, में जिंदगी भरके लिए फांसी में चघत हौव (हा)
अब ये चारझन कहार राहय तेन रागी (हौव)
ले जाथे (हा)
तब चम्पा दासी काय किथे जानत हस (हौव)
– गीत –
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा या
सुनले कहार मोर बाते ल
बोले बचन चम्पा दासी हा, चम्पा दासी हा वो
सुनलव कहार मोर बाते ल
सौ शर्त जगा, तोला देवथव दान
सवर पति के गा, तोला देवथव दान
येदे तरी में डोला धिर-लमाबे गा, धिर-लमाबे गा, भाई येदे जी
येदे तरी में डोला धिमाबे गा, धिमाबे गा, भाई येदे जी
धिरे-च-धिर ये जावत थे, मोर जावय दीदी
डोला ल लेगथे राते के
धिरे-च-धिर ये जावत थे, मोर जावय दीदी
डोला ल लेगथे राते के
तरिया के पारे में वो, डोला रखे हावय
तरिया के पारे में वो, डोला रखे हावय
येदे चम्पा ह डोला ले उतरत थे, येदे उतरत थे, भाई येदे जी
येदे चम्पा ह डोला ले उतरत थे, येदे उतरत थे, भाई येदे जी
भरथरी लोक-गाथा - भाग 1 / छत्तीसगढ़ी
घोड़ा रोय घोड़सार मा
घोड़सार मा ओ
हाथी रोवय हाथीसार मा
मोर रानी ये ओ, महल मा रोवय
मोर राजा रोवय दरबारे ओ, दरबारे ओ, भाई ये दे जी।
बोये मा सोना जमय नहीं
मोती मालूर डार
बारम्बार हीरा नई आवय
विकट दुःख मा ओ
मानुष चोला ए न, चल आथे दीदी
मोर जऊन समय कर बेरा ये, बाई बोलय ओ, रानी ये दे जी।
आमा लगाय अमुलिया
केकती केवड़ा लगाय
मूलिन लगाय दुधमोंगरा
पानी छींच-छींच जगाय
काचा कली मत टोरवओ, मत टोरव ओ, भाई ये दे जी।
काचा कली मत टोरिबे
दुनिया पछताय
जग में अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निसान
सुनिले भगवान
मोर कलपी-कलप रानी रोवय ओ
भाई रोवय ओ, रानी ये दे जी।
बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन नोनी ह का सहय
बालक टेर ये बबूर के
पर के पथरा ल ओ
कय दिन कइना ह का सहय
कइना तरमूर ओ, जेमा नइये दीदी
मोर लाठी के मार ल खावय ओ, बाई खाये ओ, रानी ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर कइना रोवत हे
सतखण्डा ए ओ
सात खण्ड के ओगरी
बत्तीस खण्ड के न अंधियारी मा राम
साय गुजर मा
मोर कलपी-कलप रानी रोवय
बाई रोवय ओ, रानी ये दे जी।
मोर ले छोटे अऊ छोटे के
सुन्दर गोदी मा ओ
देख तो दीदी बालक खेलत हें
मोर अभागिन के ओ
मोर गोदी मा राम
बालक नइये गिंया
मोर जइसे विधि कर रानी ओ
बाई रोवय ओ, बाई ये दे जी।
तरिया बैरी नदिया मा
संग जंवरिहा ओ
देख तो दीदी ताना मारत हें
छोटे-छोटे के ओ
सुन्दर गोदी मा राम
बालक खेलत हँय न
मोर अभागिन के गोदी मा बालक ओ
बाई नइये ओ, आनी रोवय ओ, बाई ये दे जी।
सोते बैरी सतखण्डा ये
सोरा खण्ड के ओगरी
छाहें जेखर मया बइठे हे
फुलवा रानी ओ
चल सोचथे राम
सुनिले भगवान
मोला का तो जोनी ए दे दिये ओ
भगवाने ओ, बाई ये दे जी।
कइसे विधि कर लिखा ल
नई तो काटय दाई
का दुःख ला रानी का रोवत हे
बाल ऊ मर हे
बालक नई से गिंया
ठुकरावथे राम
मोर गली-गली रानी रोवय ओ
बाई रोवय ओ, रानी ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मँ सुनिले भगवान
बैकुंठ ले चले आवत हे
बाराभंजन के
बीच अंगना मा ओ
जोगी आइके राम
मोला भिक्षा ल देदे न बेटी ओ
बाई बोलय ओ, रानी ये दे जी।
थारी मा मोहर धरिके
फुलवारानी ओ
देखतो दीदी कइसे आवत हे
भिक्षा ले ले जोगी
सुनिले भगवान
जोगी बोलत हे राम
भिक्षा लिहे नई आयेंब बेटी
तोर महिमा बुझे चले आयेंव ओ
बाई आयेंव ओ, रानी ये दे जी।
गोरा बदन करिया गय
चेहरा हर बेटी
कइसे वोहा कुम्हलाये हे
काबर रोवत हव ओ
मोला बतादे कइना
मोर जइसे विधि
जोगी बोलय ओ, बाई बोलय ओ, रानी ये दे जी।
फाट जातीस धरती हमा जातेंव
दुःख सहे नई जाय
सुनले जोगी मोर बाते ल
का तो दुःख ल राम
मय बतावॅव जोगी
संगी जंवरिहा
तरिया नदिया
ताना मारत हे राम
छोटे-छोटे के न
सुन्दर गोदी मा ओ
बालक खेलत हे न
मोर अभागिन के गोदी मं बालक ओ
जोगी नईये ओ, बाई ये दे जी।
का तो जोगी मय कमाये हॅव
बालक नइये गिंया
कतेक कठिन दुःख काटत हॅव
गोदी बालक नईये दाई आज मोरे न
कठिन उपाय ओ
करि डारेंव गिंया
मोला कईसे विधि भगवान ये ओ
बाई गढ़े ओ, बाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा में
सुनिले भगवान
जबधन बोलत हे जोगी ह
सुनिले बेटी बात
अमृत पानी ल ओ
तैंहर ले ले बेटी
सतनामे ल न
तैंहर लेइके ओ
पावन कर ले कइना
मोर बारा महिना मँ गोदी ओ
बालक होहय ओ, बाई ये दे जी।
बारा महीना मा गोदी मा
मोर बालक ओ
तैंहर खेला लेबे
जऊने समय कर बेरा मा
फुलवा रानी ओ
अमृत पानी ल झोंकत हे
जोगी आये हे न, चले आवत हे राम
मोर आजे आंगन जोगी जावय ओ
जोगी जावय ओ, बाई ये दे जी।
जग मा अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निसान
जबधन रानी ह का बोलय
सुनिले भगवान
सतनाम ल ओ
मोर लेई के न
अमृत पानी ल राम, पावन करत हे ओ
मोर कइसे आंसू बइरी चलय ओ
बाई चलय ओ, रानी ये दे जी।
रोई रोई के
रानी ये ओ, पावन करत हे
देख तो दीदी फुलवा रानी
सुनिले भगवान
एक महीना ये राम
दुई महीना ये ओ
मोर दस के छॉय ह लागे ओ
बाई लागे ओ, रानी ये दे जी।
दस के छांह ह होइगे
फुलवा रानी ओ
खेखतो दीदी बालक होवत हे
मोर कासी ले न
पंडित बलाये राम मोर नामे धरे भरथरी ओ,
भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
बारा बच्छर ऊमर जोगी हे
मोर लिखे हे ओ
देख तो दीदी मोर जोगे न
भरथरी ओ
नाम धरी के न
चले जावत हे राम
मोर पंडित ए न
मोर कइसे विधि कर जावे ओ
मोर कासी ओ, बाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
का मंगनी के ये बेटा ये
धूर खावत हे ओ
धुरे बाढ़त हे राम
मोर जइसे विधि कर लिखा ओ
बाइ बोलय ओ, रानी ये दे जी।
तीर कमंछा ल धरिके
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी कइसे घूमत हे
अलियन खेलय ओ, गलियन मा गिंया
मोर जऊने समय कर बेरा ओ
बाई बोलय ओ, बाई ये दे जी।
मनेमन मा गूनत हे
मोर रानी ये ओ
का तो जोनी मां बेटा पाये हॅव
आधा ऊमर मा
मोर बेटा ये ओ
सुनिले भगवान
भरथरी ये न
अंगना मा दीदी, चल बइठे हे ओ
भगवान ये न
मोर महिमा बुझे चले आये ओ
बाई भेजे ओ, रानी ये दे जी।
महिमा बुझे ल भेजे हे
भगवान ये ओ
देख तो दीदी भया मिरगा ल
फुदक-फुदक गिंया
मिरगा नाचय ओ
बारा भंजन के
बीच अंगना मा राम
भरथरी ये न
चल बइठे हे राम
मोर जइसे विधि कर मिरगा ओ
बाई नाचे ओ, बाई ये दे जी।
का मोहनी कर मिरगा ये
मन ला मोहत हे ओ
पागल जादू बना दिहे
का मोहनी कर मिरगा ए ओ
भगवान ये ओ
मोहनी के मिरगा भेजाए हे
भरथरी ए न
मोर मोहागे दीदी
सुनिले दाई बात
मोला तीर कमंछा ल दे दे ओ
माई दे दे ओ, रानी ये दे जी।
तीर कमंछा ल दे दे ओ
सुनिले दाई बात
मिरगा मारे चले जाहँव न
भरथरी ल राम
फुलवा रानी ओ
समझावत हे न
सुनिले बेटा बात
मोर कहना वचन जोगी मान जाबे
राजा मान जाबे, रामा ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 2 / छत्तीसगढ़ी
का तो भगवान हर महिमा
तोर बुझे ल ओ
ए दे जोगी तोला भेजे हे
झनी जाबे बेटा
मिरगा मार राम
डोंगरी-बहार मा
बघुआ भालू ओ
जिहां रहिथे लाला
मोर हरके अऊ बरजे ल माना ओ
जोगी माना ओ, बाई ये दे जी।
हरके अऊ बरजे ल नई मानय
सुनिले दाई बात
बैकुंठ के भगवाने हर
मोर छले ल ओ
ओहर भेजे दाई
मोला तीर कमंछा ल दे दे ओ
रानी दे दे ओ, रानी ये दे जी।
घोड़ घोड़सार मा जाइके
भरथरी ये ओ
देख तो दीदी घोड़ा साजत हे
बारा भंजन के
बीच अंगना मा ओ
घोरा लाइके न
सम्हरा के गिंया
घोड़ा दुलदुलिया
बारा मरद के, साज के कसे हे न
मोर चिकमिक चिकमिक दिखय ओ
बाई घोड़ा ओ, भाई ये दे जी।
घोड़ा दुलदुलिया ल लाई के
लिलि हंसा घोड़ा
अंगना मं लान खड़ा करत हे
तीर कमंछा दाई
मोला दे देबे ओ
मय हरके अऊ बरजे नई मानव ओ
नई मानव ओ, भाई ये दे जी।
साये गुजर ले उतर के, चले आवत हे ओ
तीर कमंछ ल दे वत हे
भरथरी ये राम
चल धरत हे न
तीर कमंछा ल ओ
मोर घोड़ा मा होय सवार ओ,
सवार ओ, भाई ये दे जी।
आगू-आगू मिरगा दौड़य
जैखर पीछू मा ओ
देख तो दीदी भरथरी ये
सांप सलगनी ओ
दीदी दुरंगिनी न
हरिना के उचार
कुकुर ढुरकी ये ओ
बाग-चोपी ए न
मोर मारत हे मिरगा सपेटा ओ
ये सपेटा ओ, भाई ये दे जी।
जेकर पीछू मा भरथरी
चले जावत हे ओ
देख तो दीदी कुकुर ढुरकी ये
बारापाली के न
पथरा के ओधा
जेमा जाई के न, मोर मिरगा ये न
चल पहुंचत हे राम
मोर छै कोरी छै आगर मिरगीन
चल बइठे हे ओ, भाई ये दे जी।
छै आगर छै कोरी मिरगिन मन
ये दे बइठे हें ओ
काल मिरगा पहुंचगे
सुनिले भगवान
रानी बोलत हे न
सिंघलदीप के ओ
तिलक रानी ये न
सुनिले राजा मोर बात
छुटे कारी ये ओ
मोर पछीना ए न
तोला का तो दुःख जोड़ परे ओ
मोला बता दे ओ, भाई ये दे जी
जऊने समय कर बेरा मा
मोर मिरगा ये ओ
देथे मिरगिन के जवाब ला
सुनिले मिरगिन बात
काल मिरगा ये राम, मोला आये हे ओ
एक जोगी ये न
ओ कुदावत ओ
मोर चोला ल लेबे बचाय ओ,
ये बचाये ओ, भाई ये दे जी।
जब बोलय मोर मिरगिन ह
सुनिले जोगी बात
कहना वचन ल ओ मान जाबे
छै आगर छै कोरी मिरगिन
माल छटवां निमार
मोर काला मिरगा मत मारव ओ
जोगी मारव ओ, भाई ये दे जी।
कहना वचन जोगी नई मानय
सुनिले भगवान
देख तो बेटा भरथरी ये
गऊ मारे मा ओ
हैता लगथे न
तिरिया मोर राम
पाप परथे ओ
छतरी के पिला, रनबर रेगे राम
मय हर छतरी जोनी ये दे धरेंव ओ
भाई धरेंव ओ, रानी ये दे जी।
काला मिरगा ला मारिहँव
तिरिया मारँव ओ
भारी पाप मोला पिरथे
भरथरी ये न
एके गांछ गिंया मोर मारत हे ओ
दसरैया ए राम। मोर तीने गांछ मा
मोर छाती ओ। मोर बन ओ।
ओदरत हे ओ, ओदरत हे ओ, भाई ये दे जी।
राम अऊ राम ल कहिके
मोर मिरगा ये ओ
देखतो जमीन मा गिरिगे
सुनिले भगवान
मोर रानी ये ओ
छै आगर छै कोरी
मोर गरु-गोहारे ल पारँय ओ
चल रोवय ओ, चल रोवय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
गाजे के बैरी पराई ये
जोड़ी छुटय ओ
रानी कलपत हे न
मोर भरथरी ओ
मोर घोड़ा मा राम
काला मिरगा ल न, चल लादत हे राम
मोर घरे के रद्दा पकड़य ओ, ये पकड़य ओ, भाई ये दे जी।
एक कोस रेंगय दुसर कोस
तीसर कोस ओ
गोरखपुर के गुरु का आवे
गोरखपुर के गुरु
चले आवत हे राम
भरथरी ये न
जेला देखय दीदी
मोर घोड़ ले ये दे उतरय ओ
ये उतरय ओ, भाई ये दे जी
चरन छुए के आस ये
सुनिले गुरु मोर बात
कहना वचन मोर मान जाबे
गुरु बोलत हे न
गोरखनाथ ये ओ
गोरखपुर के गुरु
सुनले भरथरी बात
तोला लगे - सरापे मिरगिन के ओ,
ये मिरगिन के ओ, भाई ये दे जी। मिरगिन के लगे सरापे ह
मोर चरण ल हो
तुमन ये दे झन छुआ
भरथरी ये ओ
जोगी ल भरे जवाब
सुनले गुरू मोर बात
कहना मानो राम
मोरमा दोष नईये
भगवान ये ओ
मोर महिमा बुझे माया मिरगा ओ
ये भेजाये ओ, भेजाये ओ, जोगी ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा म
सुनिले गुरु मोर बात
कइसे कटिही मोर पाप
जोगी भरे जवाब
गोरखपुर के न
मोर गुरु ये ओ
सुनले जोगी मोर बात
भरथरी ये न
मन तउरत है राम
धर-धर दीदी, चल रोवत हे ओ
मोर जइसे विधि कर बेरा में, गुरु बोलय ओ, भाई ये दे जी।
साते जोनी सात महिमा ये
सात बुझे ल ओ
तैंहर ये दे बन जाबे
दुनिया मा ये दे एक सत रहिही
मान जाबे जोगी, तैंहर जोगी बन जाबे
जोगी भेखे ल न
धरि लेबे लला
डोंगरी मं गिया। मोर तपसिया
करिबे ओ, जोगी बोलय ओ, भाई ये दे जी।
सिंग दरवाजा म भरथरी
चला आवथे ओ
देख तो दीदी मोरा घोड़ा मा
सिंग दरवाजा मा आइके
भरथरी ये ओ। देखतो दीदी मोर घोड़ा मा
खड़ा होवय अगिंया
फुलवारानी ओ, मोर सोंचत हे न
मोर गौरा बदन काला हो गय ओ
दाई हो गय ओ, भाई ये दे जी।
जग मा अमर राजा भरथरी
बाजे तबला निसान
का विधि के गारी देवत हे
भरथरी ये ओ। मोर घोड़ा ल न
बारामरद के। मोरे अंगना मा राम
खड़ा करिके न
मोर मिरगा ल ए दे उतारे ओ, ए उतारे ओ, भाई ये दे जी।
सुनले दाई मोर बात ल
पइंया ठेंकत हँव ओ
आर्सिवाद मोला दे देबे
कहना नई मानेंव राम
गलती करेंव दाई
क्षमा कर देबे ओ
मैंहर जोगी के रूप ल धरॅव ओ, बाई ये दे जी।
दुनिया मा एक नारी हे
मोर माता ए ओ
बाल ब्रह्मचारी ओ मय रहिहंव
भरथरी ये न। मोर भरे जवाब
फुलवारानी ओ। समझावत हे न
सुनले बेटा मोर बात
मोर एक बेटा। मोर कइसे असुभ दियना
बारे ओ, बाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा म
सुनिले भगवान
का दुःख ला गोठियावॅव मय
भरथरी ये ओ
बीच अंगना म राम
चल बइठे हे न
फुलवारानी ओ। सुनिले बेटा मोर बात
मोर कइसे के होय गुस्सा ओ, चल बोल ओ, भाई ये दे जी।
काला मिरगा ल लाये हस
सुनिले बेटा बात
का मिरगिन दिये सरापे न
हाल दिये बताय
मिरगिन न दाई
मोला गारी ये ओ
मोला दे हे सराप भर-भर ये न
दुःख ल बतावॅत ओ, बतावॅत ओ
भाई ये दे जी।
जबधन बोलत हे भरथरी
सुनिले दाई बात
का दुःख ला गोठियावव ओ
गऊ मारे मा ओ
हैता लगथे दाई
तिरिया के मय। जोड़ी छोड़ा पारेंव न
भरथरी लोक-गाथा - भाग 3 / छत्तीसगढ़ी
चल मिरगा ल राम
मय जियावॅव दाई
मोर अमरित पानी ल लावॅव ओ
जोगी लार्वव ओ, भाई ये दे जी।
घोड़ा मा मिरगा ल लादिके
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी चले जावत हे
गोरखपुर म न
चले जावय गिंया
गोरखनाथ गुरु
धुनि रमे हे न
जेकर तीर म जाय भरथरी ओ
भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
लगे हे धुनिबाबा के
गोरखनाथ के ओ
घोड़ा म मिरगा ल लादे हे
चले आवय गिंया
भरथरी ये न। मोहिनी ये दीदी
मोर मोहिनी बरोबर दिखय ओ, भरथरी ओ भाई ये दे जी।
गोरखनाथ के चेला ये
मोर चेलिन ओ
भरथरी ल कइसे देखत हे
मोहिनी ये गिंया। ये मोहावत हे ना
चेलिन बोलत हे ना
कहसन सुघ्घर हे ना
मोर कहां के लिखे भगवान ये ओ
जेहर भेजे ओ, बाई ये दे जी।
मोहिनी बरोबर मोहत हे
भरथरी ये राम
गोरखनाथ गुर के चरण मा
चले जावत हे न
सुनिले गुरु बात
मिरगा ल कहय, तय जिया देबे न
तोर पईया लागव बारंबार गा, बारंबार गा, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय गुरू गोरखनाथ
सुनिले राजा मोर बात
मिरगिन के लागे सरापे न
चरण छुए नई दॅव। सराप ये गा
पाप धो लेबे न
जेकर पाछू चरण छूबे गा, ये दे छूबे जी, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय भरथरी
सुन गुरु मोर बात
मिरगा जिया देना कहत हॅव
मिरगा ल गुरु। तय जिया दे गा
मोर मिरगिन सराप, मोला लगे हे न
ये ला मिटा देते न
मोर अइसे बोलय भरथरी ओ, भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
गोरखनाथ गुरु कहत हे
मिरगा देहँव जियाय
तब तो बोलय भरथरी ल
जोग साधे ल रे
तोला परही बेटा
बारा साल मे न। जोग साधबे बेटा
तब जाके तोर पाप ह कटय गा, बैरी कटय गा
भाई ये दे जी।
लगे हे धुनि गुरु के
गोरखनाथ के न
जेमा आवत हे राम
का तो कूदय भरथरी ये
लगे हे धूनि गोरखनाथ के
जेमा जा कूदथे भरथरी ह
जीव ल देवत हे तियाग
सुन राजा मोर बात
गुरु गोरखनाथ जेला
देखत हे न
मय तो कइसे दुख म परेव ओ, ये परेव ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी ये दे जीव ल
मोर बचावत हे राम
गुरु गोरखनाथ ये
धुनि मं जावे अमाय
भरथरी ल निकाल
गुरु मोर जावत हे
मोर मिरगा ल देवय जिआय, ये जिआय ओ, भाई ये दे जी।
आगू जनम के ये मिरगा
मोर साधू ये राम
छय आगर छय कोरी चेलिन ये
जेकर काला मिरगा
जनम लेके बेटा
सिंघलदीप म गा
राज करीस
जेला मारे तॅय बान
ये दे लागे सराप
मोर कइसे समझाय भरथरी ल, भरथरी ल ओ, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय भरथरी ह
सुन गुरु मोर बात
जोग ल साधव मॅय अभी न
गुरु बोलत हे आज
सुन राजा मोर बात
हावस कच्चा कुंवर
जोग नई साधव रे
चार दिन के सुख ल, भोग ले गा, भोग ले गा, भाई ये दे जी।
जेकर पाछू म भरथरी
चले आबे बेटा
जोग सधा देहॅव तोला मय
पाप काटिहॅव तोर
अइसे बोलत हे न
भरथरी ल बात
भरथरी ये ओ
घर आवत हे न
मोर गुरु गोरखनाथ के चरण छुवय ओ, भाई ये दे जी।
घर मं, रंगमहल मं
मोर आइके ओ
कइसे माता ला बतावत हे
सुन दाई मोर बात
काला मिरगा ये ओ
मय तो दिहेंव जिआय
गोरखनाथ गुरु
जहां धुनि रमाय
मोर काला मिरगा ल जिआये ओ, जिआये ओ, भाई ये दे जी।
आनंद मंगल होवत हे
फुलवारानी ओ, बेटा ल गोदी मँ बैठारत हे
मोर देख गिंया
आनंद मंगल मनाय
अंगना मँ हीरा
मोर राजा के न
ये दे परजा ल ओ
मेवा मिठाई बँटाय
अब जेला देखय फुलवारानी ओ, भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
बारा बरस के तोर ऊमर आय
अब आगे बेटा
तोर घर में बसा देवॅव
कय दिन के जिन्दगी, मोर बाचे बेटा
तोर सुख ल राम
देखि लेतेंव बेटा
ये दे जेखर पाछू नैना ग, सुख भोगे गा, भाई ये दे जी।
अइसे फुलवा सोचिके
सुनले महराज
का तो नाऊ ल बलावत हे
कइना खोजे बर न
लिख पाती भेजय
खोज के आवा गिंया
मोर उत्तर दिसा
नई तो पांय कहना
दक्षिण बर जाय
कइना नइ पावय न
मोर आके बात ल बोलय ओ, कइसे बानी ओ, भाई ये दे जी।
खोजत-खोजत कइना ल
पथ बीच मँ ओ
जइसे पावत हे नाऊ ह
रानी ल देवय बताय
जइसे भरथरी आय
तइसे सुन्दर कइना
देखि आयेंव दाई
सुनरानी, मोर बात
समादेई ये ओ, मोर भरथरी के कइसे नारी
बनजाही ओ, भाई ये दे जी।
सुन्दर जांवर जोड़ी ये
दुनिया मां रानी
अइसे बोलत हावय नाऊ ह
जग मँ नाम कमाय
जइसे कइना ये न
तइसे राजा हमार
सादी कर देवा ओ
रानी ल बोलत हे ओ
जेकर बानी ल सुनत हे रानी ओ
भाई रानी ओ, भाई ये दे जी।
लिख के पतरिका भेजत हे
नेवता ल भेजय
सुनले कहत हावॅव बात ल
परतापी राजा, जेकर बेटा ये न
भरथरी ह ओ
मोर आनी बानी के राजे ल नेवता जावय ओ, भाई ये दे जी।
शादी के करे तियारी
ये दे रचे बिहाव
देख तो रानी सामदेई के
घर मा लानत हे न
गवना ल कराय
मोर रंगमहल मँ गिया
हीरा साहीं दीदी
दूनों दिखत हें न
मोर फुलवा बरोबर चमके ओ, रंगमहल ओ, भाई ये दे जी।
गवना कराके भरथरी
चल लानत हे राम
रंगमहल ल सजाये हे
फौज-फटाका ओ
ये दे फोरत हे राम
संगी सहेली न
मंगल गीत सुनाय
मोर आनंद बधाई मनाय ओ, मनाय ओ, भाई ये दे जी।
एक दिन बइरी गुजरत हे
दूसर दिन ओ
तीन दिन के छइंहा मा
घर सौंपत हे न
भरथरी ल ओ
रानी सामदेई न
मोर राजा बनाय भरथरी ल, भरथरी ल ओ, भाई ये दे जी।
का तो गाजे के पराई ये
समय बीतत हे राम
जोगी के जोग बैरी दिन ये
चले आवय गिंया
मंगनी के बेटा
बारा बच्छर बर
आय रहिस दीदी
फुलवारानी ये ओ
जेला गय हे भुलाय
मोर तो सुरता लगे हे विचार ओ,
ए विचार ओ, भाई ये दे जी।
रंगमहल म जावत हे
भरथरी ये ओ
सामदेई जिहां पलंग म बइठे हे
भरथरी ये न
चले जावय दीदी
मोर पलंग के ओ
ये दे तीर म न
कइसे विधि कर हबरय ओ, ये हबरय हो, भाई ये दे जी।
पलंग मं पॉव ल रखत हे
जऊन समय म राम
गाज के देख तो पराई ये
खोन-पलंग ए ओ
टूट जावय दीदी
धरती मं मढ़ाय
जेला देखत हावय भरथरी ओ, भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
का तो जोनी मय पायेंव
का तो लागे हे पाप
का तो कारण पलंग मोर टूटगे
रानी देवव बताय
भेद नई जनँव ओ
मोला दे दे बताय
ये दे अइसे विधि भरथरी ओ
दाई पूछय ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 4 / छत्तीसगढ़ी
कलपी-कलप भरथरी ये
रानी संग में आय
देख तो भरथरी पूछत हे
सामदेई ये ओ
बानी बोलत हे राम
भेद नई जानँव
सुन जोड़ी मोर बात
सोन-पलंग कइसे टूटे गा, कइसे टूटे गा, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय भरथरी ह
कोन जानत हे ओ
भेद ल देतिस बताय
जानी लेतेंव कइना
ए दे बोलत हे न
भरथरी ह ओ
सामदेई ये न, सुन्दर बानी बताय
सुन राजा मोर बात
ये दे अइसे विधि कर बानी ओ, दाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा में
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर का बोलय
सुनिले राजा मोर बात
करले भोग-विलास
आज पहिली ये रात
मोर बारम्बार मानुष चोला ओ, नई आवे ओ, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिस हे
रानी हॉसे ह ओ
तेकर भेद बता देबे
मैं हर नई जानँव राम
छोड़ दे ओ बात
ओला तुमन सुरता झन करव ओ, झन करव ओ, भाई ये दे जी।
मोर हरके अऊ बरजे ल नई मानय
सुनिले भगवान
कइसे विधि कर का बोलय
सुनिले राजा मोर बात
रामदेई जानत हे राज
वोही देहि बताय
सोन पलंग कइसे टूटे गा, कइसे टूटे गा, भाई ये दे जी।
मन मा गऊर करके
भरथरी ये ओ
देख तो दीदी अब सोचत हे
सुनिले भगवान
का तो जोनी ये न
मैं कमायेंव ह राम
रानी संगे में हो
सुख नइये गिंया
मोर कइसे विधि राजा सोचय, भाई सोचय ओ, भाई ये दे जी।
जाई के बइरी ह बइठत हे
मोर कछेरी ये ओ
भरे कछेरी, दरबार मा
एक ओरी मोर बइठे हे
मोर चियां ये ओ
दुए ओरी पठान ए न
तीन ओर ये राम गोंड़-गिराईओ
सुन्दर लगे दरबार, दरबार ओ
भरथरी ये न,
चल बइठे दीदी
मोर कइसे विधि कर मन म भाई गुनय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
सुनिले भगवान
एक महीना, दू महीना गुजरत हे
चारे महीना ओ
लगे पाचे के छांय
दस महीना मा ना
दिल्ली सहर मा
मोर रानी के ओ
सुन्दर गोदी मा न
बालक होवय ओ, बाई होवय ओ, भाई ये दे जी।
जब बोलय मोर मानसिंग
सुन कइना मोर बात
दिल्ली सहर मां
मैं बइठे हँव
भरथरी ल ओ
छठी निमंतरन
देई देवॅव कइना
सुनिले नारी मोर बात
जब सोचत हे ना
मोर कइना ये ओ
मेंहर नई जानँव राम
तैंहर ये दे जोड़ी
मोर छठी के निमंतरन भेजय ओ, धवनिया ओ
कइसे धवनिया ल भेजत हे
मोर मानसिंग ओ
धवनिया ह रेंगना ल
कइसे रेंगत हे
सांप सलगनी राम
मीथी दुरंगिनी ओ
हरिना के दीदी
मोर निच्चट ये ना
कुकुर लुरंगी ये राम
मोर बाघे के मार बघचोपी ओ
तले आवय ओ, भाई ये दे जी।
छुटे हे कारी पसीना ओ
चले आवत हे ओ
देख तो दीदी धवनिया ह
भरे कछेरी न
मोरा राजा के ओ
भरथरी ये न
गद्दी मा बइठे हे राम
मोर धवनिया ये ओ
ओतके बेरा न, चल आई के न
मोर करे जोहार, पत्र देवत हे राम
बाची लेवॅव गिंया, मोर रानी ह ओ
चल भेजे ह न
मोर आशीष अऊ पैलगी ओ, ये दे भेजे ओ, रानी ये दे जी।
चारो मुड़ा खबर भेजत हे
मोर भरथरी ओ
कइसे छठी निमंतरन म
सबे सइना ल न
मोर लिए सजाय
एक डंका मा ओ
मोर होगे तइयार
दुसरैया ए ना
मोर होय हुसियार
मोर तीने डंका में निकलगे ओ, ये निकलगे ओ, भाई ये दे जी।
घोड़ा वाला घोड़ा मा चघे
हाथी वाला ये ओ
हाथी मा होय सवारे न
पैदल वाला ये ओ
रथ हाके गिंया
सायकिल वाला ए न
चल रेंगना हे
मोर गद्दी वाला, गद्दी चाले ओ, भाई चाले ओ, भाई ये दे जी।
बग्घी वाला बग्घी मा जावे
टांगा वाला ये ओ
देख तो दीदी टांगा खेदत हे
सबे सइना ए ना
मोर रेगे भइया
जऊने समय में ना
लुसकैंया ए ओ
मोर ढुरकी अ रेंगना ल रेगे ओ
भाई रेगे ओ, भाई ये दे जी।
आघू हाथी पानी पीयत हे
पाछू के हाथी ये ओ
ये दे दीदी चिघला चॉटय
जेकर पीछू ओ
फुतकी चॉटय हे न
चले जावय भैया
मोर सेना ए ओ
लावे लसगर ये न
फौज-फटाका ओ
मोर घटकत-बाजत जावे ओ, चल जावे ओ, भाई ये दे जी।
मेड़ों म पहुँचगे भरथरी
मोर जाई के ओ
देखतो दीदी तम्बू तानत हे
हाथी वाला हर ओ
गेरा देवे गिंया
मोर घोड़ा वाला
मोर दाना ए ओ
मोर चना के दार फिलोवय ओ,
ये फिलोवय ओ, भाई ये दे जी।
येती बर देखत हे मानसिंग
सैना हर आगे ओ भरथरी के
मोर मेड़ों म ओ
तम्बू ताने हे ना
कइसे करँव भगवान
मॅयहार कइसे के पूर्ति ल करॅव ओ
कइना गुनय ओ, भाई ये दे जी।
नई पुरा पाह्व में सेना बर
खाई-खजेना
नई तो पुरा पाहव मैं
ओढ़ना अऊ दसना
बोली बोलत हे ओ, मोर मानसिंग
सुनिले नारी मोर बात
तोरे सहारा मा भेजेंव, भाई भेजे ओ, भाई ये दे जी।
थारी मं फूल ल धरिके
रानी चलत हे ओ
देख तो दीदी मोर मंदिरे म
मोर मंदिर म ओ
रानी जाइके न
चल भजत हे राम
होगे परगट न
मानले बेटी मोर बात
पूरा करके गिंया
तोर का मनसे हे तेला मांगा ओ, मॅयहर दिहा ओ, भाई ये दे जी।
भाखा चुकोवत हे ये दे ओ
सरसती ये ओ
जऊने समय भाखा चुकोवत हे
भाखा चुकी गे ओ
मांग ले बेटी तॅय
तोला देवॅव वरदान
तोर जोगे हर पूरा होगे ओ, भाई बोले ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी आये हे सैना
मोर लेके दाई
मोर घर में कुछू तो नइ ए ना
सबै सेना के ओ
पूरती करदे दाई
पईंया लागत हॅव न
मोर लाजे ल ये दे बता दे, ये बचाबे ओ, भाई ये दे जी।
हाथी वाला बर हाथी ओ
मोरा गेर ल ओ
कइसे के बाद मँ भेजत हे
पूरती करिहँव बेटी
तैंहर जाना कइना
मोर घर म आके पलंग म ओ मोर बइठे ओ, भाई ये दे जी।
रइयत मन बर ये दे ओ
बगरी ल गिंया
बिन आगी पानी के मढ़ा देबे
मोर कलेवा ओ
सुख्खा म नी खवाय
घोड़ा वाला बर ना
मोर दाना ये राम
जब भरथरी न
मन म गुनत हे ओ
रामदेई ए ना
चल नई साजे ओ
ये दे साजे गिंया
मोर सारी के अव्बड़ होवे ओ, मोर नेम ओ, भाई ये दे जी।
बड़ अक्कल वाली ये रानी ये
देख तो भगवान
साते मँ कैसे आ बइठे हे
मनेमन मँ भरथरी हर, मोर गुनत हे ओ
बिन आगी पानी के बनावत हे
सबे सइना के न
मोर सोहाग ओ
चल बनाई के न
मोर सुन्दर कलेवा खवावय ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 5 / छत्तीसगढ़ी
बड़ अक्कल वाली ये रानी ये
देख तो भगवान
साते मँ कैसे आ बइठे हे
मनेमन मँ भरथरी हर, मोर गुनत हे ओ
बिना आगी पानी के बनावत हे
सबे सइना के न
मोर सोहाग ओ
चल बनाई के न
मोर सुन्दर कलेवा खवावय ओ, ये खवावय ओ, भाई ये दे जी।
सबे के पूर्ति ल करिके
मोर सुनिले न ओ
कइसे विधि कइना बइठे हे
भरभरी ह न
जब सोचे गिंया
ओही जनम ओ
मोर पलंग न, टूटे हे राम
रानी नई तो गिंया, मोर बताए ओ
मोर साली हर आज बतावय ओ, मँयहर पूँछव ओ
भाई ये दे जी।
आजेच्च पूछिहँव के काले ओ
कईके सोचत हे ओ
देख तो दीदी मोर मने म
भरथरी ये न
जब सोचि के राम
चल बइठत हे ओ
ओही समय म न
मोर चेरिया ल ओ
कइना भेजत हे राम
सुनिले जोगी मोर बात
तोर सारी ह
महल म बलावत हे चले जावॅव ओ, भाई ये दे जी।
गोदी म बालक ल धरावत हे
आज कइना ह ओ
देख तो दीदी मोर भरथरी ल
भरथरी ये ओ
बालक ल देखय न
सुनिले कइना मोर बात
सोने पलंग ओ
कइसे टूटिस हे ना
आज महली ये रात
तोर बहिनी हर ओ
सामदेई हर ना
नई बताइसे ओ
मोला बतादे कइना
मोर सदे के ये तो बाते ये ओ, तय बतादे ओ, भाई ये दे जी।
जब धन बोलत हे कइना ह
सुनिले जोगी मोर बात
मॅय हर नई तो बतांव न
मोर बालक हो
पहली ये गिंया
मोर गोदी म न
बालक हावे ओ
मॅय हर का करिहॅव ओ
मोर गोदी मा बालक हावय ओ, जोगी हावय ओ, भाई ये दे जी।
हरके अऊ बरजे ल नई मानय
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी रटन धरे ये
मोर रानी ये ओ
सुनले भरथरी बात
मॅयहर छोड़त हव न
आजे चोला ल ओ
हेता करके दीदी
जीभ चाबी के न
मोर चोला ल ओ
चल छोड़त हे न
मोर राजा हर देखथे कइना ओ
बाई देखय ओ, भाई ये दे जी।
दफन देई के भरथरी
अपन रऊल बर ओ
देखतो दीदी चले आवत हे
एके महिना मे न
दूसर महीना के छाय
मोर सुआ के पेट में अवतारे ओ, चल धरय ओ, भाई ये दे जी।
बीच कंगोरा म
बइठके मोर फुलवा ये ओ
टोंटी-टोंटी दीदी बाजत हे
भरथरी ये न
मोर आवाज ल
चल सुन के न
घर ले निकलत हे
सुनले सुआ रे बात
ओही जनम के
मोर सारी अव न
तय बतादो हीरा
मोर सोने पलंग कइसे टूटिस हे न
कइसे विधि कर पूँछय हो, ये दे पूँछय ओ, भाई ये दे जी।
जब बोले मोर सुआ हर
सुनले जीजा मोर बात
कुकुर के पेट म अँवतारे न
तीन महीना म राम
मॅयहर लेहव हीरा
तोला दिल की बात
बतावॅव ओ बतावॅव ओ
जोगी ये दे जी।
जब सुआ मरी जायय ओ
मोर भरथरी ओ
पैर तरी सुआ गिर जाय
भरथरी ए न
दफन करें गिया
तीन महीना ल न
चल सोचत हे न
मॅयहर कब राजे ल सुनॅव ओ
जीव सफल ओ बाई होवय ओ, रानी ये दे जी।
नई अन्न खावॅव
पानी नई तो पियय दीदी
का बइहा-भूतहा होय हे
भरथरी हर ओ
मोरे बात मन
फुदका मारे राम
चल तरिन ओ
मन सोचिके न
मोर चेहरा गया कुम्हलाय, ये कुम्हलाय ओ, भाई ये दे जी।
गोरा बदन काला होई गय
चेहरा गय कुम्हलाय
दुबरावत चले जावत हे
तीने महीना म ओ
मोर जाई के न
मोर कइना हर राम
मोर कुकुर के पेट अवतार ये ओ, चल धरे ओ, भाई ये दे जी।
कुकुर के पेट अवतार ल
चल पैरा म ओ
जोगी पैरावट म
मोर जाइके ने
धीरे-धीरे गिंया
भरथरी ये न
ओही जनम के
भोर सारी अस ओ
सोने पलंग ह
कइसे टूटिस हे न
मोला हालेल देना बताय ओ भाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जब बोलय मोर कुतनिन ह
सुनले जीजा मोर बात
मंय अवतारे ल धरे हॅव
दुई अवतारे ल धरे हॅव
सुनले जीजा मोर बात
सुरा के पेट में जनम लेहॅव
तब तोला जीजा
मॅय बता देहॅव
जब सोच के ओ
मोर कुकुर हर न
चोला छोड़त हे राम
भरथरी ये ना
दफन करिके ओ
मोर माथा ल धरके बइठे ओ, भाई आके ओ, भाई ये दे जी।
धरर-धरर आंसू चलत हे
सुनिले भगवान
का तो कलपना मोला परे हे
मन म सोचत हे न
विकट हैता गिंया
करी डारेंब ओ
मोर हाथे म चोला छुटे ओ, भाई छुटे ओ, भाई ये दे जी।
सुराके पेट म जाइके
अवतारे ओ
देख तो दीदी छै महीना मा
चल जनमथे न
चल डबरा म ओ
भूरी-भूरी दीदी
जिहां दिखत हे न
भरथरी ए ओ
खोजत जावय राम
सुनिले भगवान
सुनी लेट कइना बात
मोला कइसे आज बतावय ओ, ए बतावय ओ, भाई ये दे जी।
सोने पलंग मोर टूटिस
रानी हांसीस ओ
तेकर बात बता देना
जब बोलय मोर सुरा हर
सुनिले सुरिन मोर-बात
कहना वचन जोगी नई मानय
मोरे पिछे म
धरी ले जोगी
चोला छोड़ी के न
मैं ये दे जावत हॅव
कौंआ के पेट अवतार ओ, चल लेहॅव ओ, भाई ये दे जी।
तीन जोनी ल तो छोरी के
मोर जावत हे ओ
कौंआ के पेट मँ अवतारे न
चल जाई के न
मोर बइठे गिंया
मोर आमा के डार
मोर कांवे-कांवे ओ नारियाये ओ, भाई ये दे जी।
जब बोलय भरथरी ह
सुनले कौंआ रे बात
सुनले कोयली मोर काग
बोली से गिंया
मॅयहर लिहेंव पहिचान
मोर बइठे आमा के डारे ओ, ये दे बइठे ओ, भाई ये दे जी।
बोली से मय लिहेंव पहिचान
सुन काग मोर बात
कइसे पलंग पर टूटिसे
रानी हांसिस न
देदे साला जवाब
जब कौंआ हर ओ
चल मरत हे न
ये दे छोड़ॅव जोगी, अपन चोला ल न
मय हर गऊ के पेट अवतारे ओ, चल हेह्व ओ, भाई ये दे जी।
चोला स छोड़िके कौंआ हर
मोर गिरी गे ओ
अब दफन ये दे देवत हे
भरभरी ये न
फेर सोचत हे राम
चारे अवतारे न एकर होगे दीदी
येहर कब मोला बताहय ओ, बताहय ओ, भाई ये दे जी।
दस महीना के छॉय मा
कोठा मँ ओ
देखतो जनम लेके आवत हे
बछिया जोनी न
जल धरे हे न
सुघ्घर गइया ए ओ
मोर कइसे बछेवा हर दिखय ओ, ये दे दिखय ओ, भाई ये दे जी।
मुरली बिन गइया रोवत हे
सुनिले भगवान
बछड़ा हर रोवत हे दैहाने म
नोई दूध हर ओ
राउत बिना गिंया
चल कलपत हे ना
मोर जउने समय म ओ भरथरी चले आवय ओ, भाई ये दे जी।
सुनिले बछिया ए दे बाते ल
मोला बतादे ओ
सोने के पलंग मोर टूटे हे
ओही जनम के
मोर सारी अस ओ
बचन पियारी न
मोर हाल ल देना बताये ओ, भाई आजे ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 6 / छत्तीसगढ़ी
कोठा मँ बछिया हर आजे ओ
चोला छोड़त हे
देख तो दीदी पूंछी पटक के
नरिया के गिंया
मोर आंसू ल ओ
नीर गिरथे राम
बछिया के दीदी
जब राम-राम कहिके चोला ओ बाई छोड़य ओ, भाई ये दे जी।
जब भरथरी लेगी के
मोर फेंकत हे ओ
देख तो दीदी भांठा मा
माटी देई के ना
चले आवत हे
पांच जोनी ये ओ, धरि लिहे गिंया
मोर कइसे विधिकर बोलय ओ भाई बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जऊने समय कर बेरा मा
तीने महिना म ओ
देखतो दीदी जनम धरत हे
मोर बिलाई के
चल पेट म न
मो कोठी म अवतार लेई लेवय ओ, लेई लेवय ओ, भाई ये दे जी।
मेऊँ-मेऊँ नरियावत हे
सुनिले भगवान
काने खबर भरथरी
मोर आवाज ये ओ
जेला सुनत हे न
खोजत-खोजत गियां
चले जावत हे ओ
मोर कोठी म न
मोर गोड़ा तरी चल बइठे ओ, चल देखय ओ, भाई ये दे जी।
फाट जातीस धरती हमा जातेंव
दुख सहे नई जाय
का तो जनम जोगी धरेहॅव
दुख परिगय राम
हाल देना बताय
ओही जनम के, मोर सारी येन
वचन पियारी राम
मोर सोने पलंग कइसे टूटिस ओ, रानी हांसिस ओ, भाई ये दे जी।
सुनिले भरथरी मोर बात
छय जोनी ये ओ
आज मय हर धरि लिहेंव
सात जोनी मे न
तोला देहॅव बताय
मोर बिलाई ए ओ
गोड़ा तरी दीदी
सतपुर के न
नाम लेई के मोर चोला ल ये दे छोड़य ओ
भाई छोड़य ओ, रानी ये दे जी।
सात जोनी अवतारे मा
मॅय बताहॅव कहय
देख तो दाई मोर बोलत हे
भरथरी हर ओ
कइसे जावत हे न
मोर लहुटी आवय
रंगमहल म, रंगमहल म, भाई ये दी जी।
खोजत-खोजत राजा नई पावय दीदी
बइहा बरन भरथरी ये
मोर दिखत हे न
मोहिनी ये सुरत
मोर कइसे विधि कर
काला ओ तक होगे ओ, रानी ये दे जी।
साते अवतारी मँ जावत हे
देख तो रानी ये ओ
काखर कोख मँ जनम
मॅयहर लेहॅव गिंया
मन म सोचत हे न
ये दे खोजे बर हंसा ओ जीव जावय ओ, भाई ये दे जी।
गढ़-नरुला के राजा जेकर
रानी ये न
जावय रानी हर
सुन राजा महराज के
एके महीना ये ओ
दूसर महीना मोर
दस महीना के छइहां ओ बाई लागय ओ, भाई ये दे जी।
दसे महीना हर होवत हे
ए दे रानी ल राम
देखतो अवतारे ल लेवत हे
मोर कइना ये ओ
गढ़-नरुले मा
डंका बाजत हे राम
आनंद मंगल मनाय
मोर देवता मन
फूल बरसावय ओ, बरसावय ओ, भाई ये दे जी।
साधू सन्यासी
जय-जय कार करॅय
देख तो दीदी रंगमहल म
फौज पटक्का ये न
ये दे फुटत हे राम
आनंद मंगल ये ओ
दरबार में न
जेकर होवय हीरा
मोर कइना जनम
रानी लेवय ओ, भाई लेवय ओ, रानी ये दे जी।
एके महीना
होवत हे
मोर कटोरी म
दूधे पीयत हे कइना हर
दूसर महीना, पलंगों में खेलय
तीन महीना में राम
किलकारी देवय
मोर चार-पांच महीना ओ, गुजरे ओ, भाई ये दे जी।
साते महिना ये
आठे ये मड़ियावत हे ओ
धीरे-धीरे खेल बाढ़य
गली-अंगना म
खेलत हावय कइना
धूर-खावत हे राम, धूर बाढ़त हे ओ
मोर साल भर के होवय ओ, ये दे होवय ओ, भाई ये दे जी।
मोहिनी होय बरोबर
कइसे दिखत हे न
देखतो दीदी रुपदेई
गढ़-नरुले म न
मोर आनंद राम
मंगल करत हे ओ
मोर साल दू साल बीते ओ, ये दे बीते ओ, भाई ये दे जी।
आठ बच्छर के होवत हे
नव बच्छर के राम
बारा बच्छर के छइंहा ये
कइना होगे गिंया
भरथरी ये न
खोजत-खोजत ओ
चले आवय दीदी
मोर राजा ये न
रंगमहल मँ आइके बोले ओ, ये दे बाले ओ, भाई ये दे जी।
सुनले कइना मोर बात ल
ओही जनम के ओ
तँय तो हीरा मोर सारी अस
ए ही जनम ओ
राजकुमारी बने
छय जनम तोर पाछू धरेंव
भेद नई तो बताय
मोला भेद ल देते बताय ओ, बताई ओ, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिसे
रानी हाँसिसे ओ
जेकर भेद बता देते
सुन लेतेंव कइना
जीव हो जातिस शांत
आनंद मंगल ओ
करी लेतेंव कन्या
मोर अइसे बानी
हीरा बोलय ओ भरथरी ओ, भाई ये दे जी।
तब तो बोलत हावय कइना हर
सुनले भांटो मोर बात
ओही जनम के
तोर सारी अॅव
ए ही जनम म
राजकुमारी अव न
मय तो बने भांटो
अभी नई तों कहॅव
मोर जियत खात होई
होई जावय ग, भाई ये दे जी।
जऊने दिन मोर विहाव
होई जाहय भांटो
गवना कराके, ले जाही न
चले आबे भांटो
तोला देहॅव बताय
मोर अइसे बानी हीरा बोलय ग, ये दे बोलय गा, भाई ये दे जी।
सोने पलंग कइसे टूटिसे
रानी हाँसिसे ओ
जेकर भेद ब
अतका वचन ल सुनके
भरथरी ह ओ
लोटी आवे रंगमहल म
अपन दरबार मँ आके बोलथे राम
सुन दाई मोर बात
साते जनम ओ सारी लेइस हवथ
भेद नई तो बताय
अइसे बानी हीरा बोलय गा, ये दे बोलय गा, भाई ये दे जी।
जेकर बीच मँ सामदेई
बानी बोलत हे राम
सुनले जोड़ी मोर बात ल
घर मँ आये हों
जे दिन गउना कराय
बन किंजरत हव न
पाछू परे हव राम
अपन सारी के ओ
भेद तोला नई बताय ओ, बताय ओ, रानी ये दे जी।
तुम तो बने-बने बुलथव
घर म मय हँव ओ
कइसे कलपना ल का कहँव
भगवाने गिंया
जेला गुनत हे नाम
भरथरी के ना
मति हर जाबे न
मोर रंगमहल मं आनन्द मंगल मनावॅव ओ, भाई ये दे जी।
एतीबर रुपदेई रानी के
मंगनी होवत हे राम
देख तो दीदी दिल्ली सहर म
चले आवय हीरा
मंगनी-जंचनी होई जावय बेटा
ये दे रचे बिहाव
मोर आनन्द मंगल मनावे ओ, ये मनावे ओ, भाई ये दे जी।
गढ़ दिल्ली बरात ये
चले आवत हे राम
राजा मानसिंह धरिके
गढ़-नरुलै न रुपदेई ल राम
ए बिहा के न
आनन्द मंगल मनावॅव ओ
दाई मोर सजे बराती आगे ओ, बैरी आगे ओ, भाई ये दे जी।
काने खबर परथे
भरथरी के ओ
देखतो दीदी घोड़ा साजत हे
बारामरद के घोड़ा साजा के न
भरथरी ये राम
चले जावॅव गिंया
गढ़-नरुले म ओ
मोर जाई के बोलत हे बानी ओ, दाई बानी ओ, भाई ये दे जी।
सुनले कइना मोर बात ल
हाल दे दे बताय
बात पूछे चले आये हॅव
भरथरी के न
बोली सुनथे राम
रुपदेई ये ओ
एदे सुन्दर मधुर बानी ओ, दीदी बोलय ओ, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 7 / छत्तीसगढ़ी
सुनले भांटो मोर बाते ल
हाल देहॅव बताय
झन तो कहिबे तेंहर बात ल
भेद रखबे लुकाय
तबतो दिहँव बताय
ये दे अइसे बानी रानी बोलय ओ, भाई ये दे जी।
तीन वचन चुकोवत हे
रुपदेई ये ओ
नई तो कहय मानसिंह ल
सुनले महराज
रुपदेई ये ओ
भरथरी ल, कइसे बानी बताय
सुन राजा मोर बात
ओही जनम के
येह का लाग मोर
ये दे अइसे बानी
कहिके पूछय ओ, भाई पूछय ओ, रानी ये दे जी।
राजा मानसिंह ल देखत हे
भरथरी ह ओ
जेकर बेटा ल का देखय
मन मँ करे विचार
सुनले कहना मोर बात
ओही जनम के ओ
तोर बेटा ये बाज
ए ही जनम मँ न
तोर रचे बिहाव
ये दे अइसे बानी
भरथरी ओ हीरा बोलय ओ, भाई ये दे जी।
जइसे आज
होवत हे मोर संग बिहाव
तइसे सुनले राजा तँय
ओही जनम के
सामदेई ये न
तोर दाई ये ओ
सुन भांटो मोर बात
ये ही जनम मँ
तोर संग बिहावे ग
ये दे होगे ग, ये दे होये ग, भाई ये दे जी।
तब तो बोलय भरथरी हर
का करॅव भगवान
विधि के लिखा ह नई कटय
अइसे बानी ये राम
मनमें सोचत हे न
पाती होतिस हीरा
बांची ले ते कइना
का तो करॅव उपाय
नई तो जानेव गिंया
मोर भेदे ल आज बताये ओ
ये बताये ओ, भाई ये दे जी।
सुनले रानी मोर बात ल
पाछू-आगू ओ
भेद ल देते बताय तॅय
सुनले रानी बात
रंगमहल म
लहुटी के सारी
घर नई जावॅव ओ
बाती बोलत हे न
भरथरी ये राम
ये दे कइसे बानी ल बोलय
तोरे ये सातो के हत्या
भारी पाप मोला परे हे
पाप लेहँव मिटाय
जेखर पाछू रानी
लौटी जाहॅव ओ
ये दे अइसे बानी ल बोलय ओ, हीरा बोलय ओ, भाई ये दे जी।
सुन्दर बानी ल बोलत हे
भरथरी ये ओ
रानी ल बोलिके
चले जाय महराज
घोड़ा छोड़त हे नाम
जोग साधे के ना
मन म करे विचार
रंगमहल में राम
चले आवत हे ओ, चले आवय ओ, भाई ये दे जी।
रानी ल बोलत हे
दाई सुन मोर बात
मय तो चलेंव जोग साधे बर
राज पाठ ल ओ
छोड़ देवॅव दाई
नई तो करॅव राज
जो साधिहॅव ओ
रानी कहत हे न
मोर आंख के रे
बेटा तारा ये
मोर एके अकेला जनम बेटा धरे ग, भाई ये दे जी।
बुढ़त काल के लाठी अस
संग छोड़व न आज
कलपी-कलप दाई का रोवय
गाज के पराई ये ओ
बेटा के छुटाई ये न
रंग महल ये
दरबार ये न
मोर रोवय हीरा
भरथरी ल ओ
समझावत हे न
मोर हरके अउ, बरजे ल नई मानय भरथरी, भाई ये दे जी।
घोड़ा ल छोड़त हे रंगमहल
साज-सज्जा उतार
देख तो दीदी चले आवत हे
सामदेई ये ओ
गोड़ तरी गिरय
सुन जोड़ी मोर बात
झन जावा हीरा
नई तो मानत हे न
मोर राजमहल ले
जावय ओ, चले जावय ओ, भाई ये दे जी।
गोरखपुर के रद्दा ल
राजा धरत हे राम
जिहां बइठे गोरखनाथे
भरथरी ये राम
ये के कोस रेंगय
दूसर कोस ओ
तीन कोस ए ना
बारा कोसे के ओ
मोर अल्दा रेंगय
मोर छय महीना छय दिन बितय ओ, बितय ओ, रानी ये दे जी।
छय महीना छय दिन बीतत थे
भरथरी ओ
जाइ हबरगे गोरखपुर म
कइसे बोलत हे राम
गोरखनाथ ल न
गुरु सुन मोर बात
चले आयेंव राजा
जोग साधे ल ओ
गुरु मानी ले बात
मोला जोग के रद्दा बतादे ओ, भाई बता दे ओ, भाई ये दे जी।
गोरखनाथ के चेलिन ये
मोर बइठे हे राम
मोहनी सूरत बनाये हे
भरथरी ह न
कइना जावय मोहाय
बानी का बोलय राम
अइसन हे जोड़ी
मय हर पा जातेव न
जोग काबर साधतेंव
ये दे जोग छोड़ी चल देतेव ओ चल देतेव ओ, भाई ये दे जी।
लाख समझावत हे राजा ल
नई तो मानय दाई
जोग के लागे हे आसे न
सुनले राजा मोर बात
जोग झन साधा हो
आनन्द मंगल ये न
मोर हरके बात मान जाबे जोगी, जाबे भाई, भाई ये दे जी।
बारा बछर के ऊपर हे
सुनिले लाला बात
झन करबे जोग के साध न
गोरखपुर के दीदी
गोरखनाथ गुरु ओ
समझावत हे न
भरथरीये राम
नई तो मानय गिंया
मोर कइसे विधि जिद्दी करय ओ, भाई करय ओ, रानी ये दे जी।
माता पिता जनम दिये
गुरु दिये गियान
सुन ले बेटा मोर बाते ल
तोला गियान न
मॅयहर देथॅव तोला लाला
तॅयहर जोग के साथ झन करव ओ, झनी करव ओ, भाई ये दे जी।
कहना वचन जोगी नई मानय
भरथरी ये ओ
देख तो दीदी हरके नई मानय
बरजे ल गिंया
नई तो मानत हे ओ
भोर धुनि ये ओ
चल जलथे न
मोर कइसे विधि जोगी कूदे ओ, भाई कूदे ओ, भाई ये दे जी।
गोरखपुर के मोर गुरु ये
जल बइठे हे ओ
मॅयहर का करॅव राम
ये ह कूदिगे दाई
हरके ल गिंया नइ तो मानिचे न
मोल बालक रूपी जनम ओ, येहर धरे ओ, भाई ये दे जी।
कोठी में आगी समाइगे
बन आग लगाय
जबधन कइसे मय करॅव न
कोठी में आगी लगाय गय
बदन गय कुम्हलाय
जबधन राजा मॅय बोलव न
अमृत पानी ल ओ
गोरखनाथ ये
गुरु चल सींचत हे न
अग्नि हर गिंया
मोर सांति ये ओ
चल होगे दीदी
मोर भभूत ये दे निकाले ओ, ये निकाले ओ, भाई ये दे जी।
कइसे बइरी मय तो घर जाहॅव
कइसे रहिहॅव गुरु
जेकर भेद बता दे न
नई तो जावॅव गुरु
जोग साधिहँव न
रंग महल मँ नई तो रहॅव गुरू
मोर अइसे बानी ल बोलय गा, राजा बोलय ग, भाई ये दे जी।
ओतका बानी ल सुन के
गोरखनाथ ह ओ
देख तो दीदी भरथरी ल
मुंह खोली के राम
तीनों लोक के ओ
दरस ल देखाय
बानी बोलत हे राम
भुला जाथे बेटा
कोन-कोन जनम कोन का अवतार
न लेथे लाला
ये दे तीनो लोक के दरस ए करावय ओ, भाई ये दे जी।
तीनो लोक ल देखके
भरथरी ये ओ
गुरु गोरखनाथ के
ये दे मुंह म न
तीनों लोक ल देखय
नई तो समझय राजा
जोग नई छोंड़व न
मोर मिरगिन के
लागे सरापे ग, ये सरापे ग, भाई ये दे जी।
हरके अऊ बरजे ल नइ मानय
तब बोलय गुरु गोरखनाथ
सुनले राजा मोर बात
भरथरी ये गा
जोग साधे बेटा
कहना मानव न
मोह भया लाला
छोड़ी देबे बेटा
ये दे जकर पाछू जोगे ग, तय साधबे ग, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 8 / छत्तीसगढ़ी
जोग ल गुरु मय साधिहॅव
मया छोडिहॅव राम
अइसे ग बानी ल बोलत हे
जोग ल गुरु साधिहॅव
नई तो मया म जॉव
अइसे बानी राजा बोलत हे
गुरु बोलत हे राम
देखतो बानी ल न
चुटकी मारत हे ओ
मोर लानत हे न
गेरुआ कपड़ा
भरथरी ल ओ
दाई देवत हे न
बानी बोलत हे न
ए दे भिक्षा माँगे चले जाबे गा, चले जाबे गा, भाई ये दे जी।
रंगमहल म भीख ल
माँगी लाबे लला
चेकर पाछू धुनि देहँव
धुनि देहँव तोला
तिलक करिहॅव बेटा
नाम ले लेबे न गोरखनाथ के ओ
ये दे अइसे बानी राजा बोलय ओ, गुरु बोलय ओ, भाई ये दे जी।
गरके माला ल देवत हे
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी मोर चेला ल
मोर सर के सरताज
गुरु देवय दीदी
राजा भरय आवाज
मोर राजे अऊ पाठे ल छोड़य ओ, ये दे छोड़य ओ, भाई ये दे जी।
का तो गेरुआ रंग के
कपड़ा ल पहिर के राम
भिक्षा माँगे चले जावत हे
रानी कमंडल ओ
चिमटा ल धरे
भरथरी ये न
मोर मगन होके राम
गुरु गोरख के
नाम गावत दाई
रेंगना रेंगय ना
चले जावय हीरा
मोर आनन्द मंगल गावय ओ, बाई गावय ओ, भाई ये दे जी।
ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा ओ
भरथरी हर ओ आनंद मंगल गाई के
कइसे जावत हे
गेरुआ कपड़ा, हाथ म चिमटा धरे हे
नाचत-नाचत दीदी
रंगमहल बर आवत हे रामा ये दे जी
गांव के पनिहारिन
जेला देखत हें
गांव के जमों पनिहारिन
पानी भरे ल ओ
देखतो गये हावय कुआँ म
भरथरी ल ओ
देखत हें पनिहारिन
मुंड के गघरा मुंह म बैरी रे रहिगे
मुड़ियाये हें ओ
माड़ी के हँवला माड़ी म रहिगे
बाल्टी डारे हें ओ
रस्सी तिरैया ह तिरत हे
मोहनी अब राम देखती ये दे का मोहाये, राम ये दे जी।
जऊने समय के बेरा म
भरथरी हर ओ
भिक्षा माँगे महल मँ जावय
डंका पारत हे नाम गुरु गोरखनाथ के
बानी सुनत हे ओ
रंगमहल के रानी
चेरिया ल बलाय
सुनले भगवान मोर बात ल
भीख मांगे ल ओ
देखतो आय कोन अँगना मँ
भीख ले जा चम्पा
हीरा मोती अऊ जवाहर
मोर भेजत हे ओ
धरके चम्पा चले का आवय, रामा ये दे जी।
थारी म मोहर धरिके
चले आवत हे राम
जेला देखत हावय भरथरी
भिक्षा ले ले जोगी
अइसे बानी चम्पा का बोलय
सुनले चम्पा मोर बात
तोर हाथे भीख ओ मय तो नई लेवॅव
भिक्षा देवा दे तय रानी सो
अइसे बोलत हे बात
अतका सुनत हावय चम्पा हर
मन म सोचत हे बात
का कहँव राजा जस लागत हे, भाई ये दे जी।
मोरे राजा कस लागत हे
भरथरी कस ओ
मुहरन दीदी ओ का करय
मन म करत हे ओ
ये दे न विचार ल करिके
भरथरी ये ओ
कइसे बइरी मुसकी धरय
मुसकावत हे राम
हीरा कस दांत झलक जावय
चम्पा देखत हे ओ
मोहर ल धरके दौरत जावय
रानी मेर आके राम
सुन तो रानी
कहिके का बोलय
जोगी बनि के घर में आय हवय, भरथरी ये ओ, भाई ये दे जी।
जोगी के रुप म आय हे
सुनिले रानी मोर बात
नोहय जोगी ओ तो राजा ये
भरथरी कस ओ
अइसे दिखत हावय
सुन रानी
बानी सुन के राम
का तो बोलत हावय रानी हर
सुनिले चम्पा मोर बात
झन कहिबे झूठ लबारी ल
कुआं देहव खनाय
जेमा गड़ा देहँव न चम्पा
सामदेई ओ अइसे बानी ल हीरा का बोलय, रामा ये दे जी।
ये रामा, ये रामा, ये रामा ये, रामा ये रामा हो
बोली सुनिके
देख तो दीदी
सामदेहई ह ओ
थारी म मोहर धरे हे
चले आवय दीदी
सुन्दर बानी ल बोलत हे
सुनले जोगी मोर बात भीख माँगे तु आये, ले आय हो, रामा ये दे जी।
अतका बानी ल राजा सुनत हे
भरथरी न ओ
दे दे कइना मोला भीखे ल
माँगत हावॅव दाई
देख दाँत ओ
झलक जावय
मोहनी सही ओ
दिखत हावे भरथरी ह
सामदेई ये ओ
चिन डारय दाई
मुँह ल देखत हे राम, सुनले राजा मोर बात ल, रामा ये दे जी।
आनंद बधाई मना लेवा
सुनले राजा मोर बात
रंगमहल ल झन छोड़व
नव खण्ड ए ओ
नौ लाख नौ कोरी देवता हे
भरे दरबार ये
जिहां ल छोड़े राजा
जोगी बनेव
का तो करँव उपाय
जोगी के भेख राजा का धरेव
झनि धरव राजा
रंगमहल मँ आनन्द करव
अइसे बानी बोलत हे ओ देखतो कइना दाई सामदेई, रामा ये दे जी।
ना तो हरके बइरी मानत हे
भरथरी ये राम
बरजे बात ल दाई नई मानत
सुनले रानी मोर बात
भिक्षा माँगे ल चले आये हँव
भीख ल दे देवा वो
अइसे बानी ल रानी बोलत हे
सुनले राजा मोर बात
भीख तो मे बइरी नई देवॅव
घर के नारी अब तो
सुनले राजा मोर बात ल
बानी सुनत हे ओ
देखतो दीदी भरथरी ह
नई तो मानॅव कइना
कइसे बनी ल राजा का बोलय, रामा ये दे जी।
नई तो मानत हावय
हरके अऊ बरजे बात ल
कइना नई तो मानय
भीख नई देवय राम
लौट जोगी चले जावत हे
गोरखपुर म ओ
गोरखनाथ गुरु ल का बोलय
सुनले गुरु मोर बात
बाते ल मोर थोरकुन सुन लेवा
भिक्षा माँगेव गुरु
भिक्षा बइरी नई तो देइस हे
घर के नारी ये गा
का धन करँव उपाय ल
अइसे बोलत हे राम
बोली सुनत हावय गुरु ये
बानी का बोलय ओ
का कर डारव उपाय ल
चुटकी मारत हे राम देख तो गुरु गोरखनाथ, रामा ये दे जी।
चुटकी बइरी ल मार के
जेला सुनथे दाई ओ
का करिके उपाय ल ओ
मॅय ह कहॅव बेटा
ना ता तोला मॅय रांखव
भिक्षा ले आवा रे
तेखर पाछू चेला मानॅव
अइसे बोलत हे ना
गुरु गोरखनाथ हर
बेटा कहिके तोला जऊन देखय
मया देहय रे
भीख ले आबे न सुनले राजा भरथरी, भाई ये दे जी।
कलपी-कलप राजा रोवत हे
भरथरी ये ओ
नई तो बइरी चोला के ये उबारे ये राम
अइसे बानी ल राजा बोलत हे
मय तो रुखे ल ओ
ये दे लगाय बबूर के
आमा कहां ले होय
का धन करव उपाय ल, बइरी ये दे जी।
सुनले गुरु मोर बात ल
प्रान देहॅव मॅय
नई तो राखव मोला चेला जी
क्षतरी के बानी जनम लिहेंव
जीव ल दे देंहव
राम अइसे बानीं बोलय भरथरी ह
बाई बोलय ओ, रामा ये दे जी।
चुटकी बजावत हे गुरु
बानी बोलत हे दाई ओ
सुनले राजा भरथरी ग
चिमटा देवत हॅव आव
पाचे पिताम्बर गोदरी
टोपी रतन जटाय
जेला लगालय भरथरी
चले जाहव बेटा
राज उज्जैन शहर म
भिक्षा ले आहा ग
मांग लेबे भिक्षा सामदेई सो
बेटा कहिके तोला
जऊने समय भीख देहय न
चेला लेहँव बनाय
अइसे बोलत हावय गुरु
गोरखनाथ ये ओ, बानी ल सुनत हे राजा ह, भाई ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 9 / छत्तीसगढ़ी
धरय चिमटा भरथरी
पांच पिताम्बर ओ
का तो गोदरी ल ओढ़त हे
टोपी रतन जटाय
देखतो पहिरत हे
भरथरी रेंगना रेंगय राम
कोसे-कोसे के तो रंेगना ये
एक कोस रेंगय
दूसर कोस, दसे कोस बइरी का रेंगय
बीस कोसे ये ओ
तीस कोसे के अल्दा म
गढ़ उज्जैन राम
जिहां हबरत हे भरथरी
धुनि लेवय जमाय
का तो बइठत हे धुनि मँ
डंका देवय पिठाय
सुन लेवा रानी
गढ़ उज्जैन के ओ, सुनले रानी भीख ले आवा ओ, भाई ये दे जी।
अतका बानी न रानी सुनत हे
रंगमहल मँ राम
साते बइरी सतखंडा ये
सोला खण्ड में ओगरी
बत्तीस खंड अधियारे न
साये गुजर म ओ
जाई बइठे सामदेई
नैना देखय निकाल
का तो झरोखा ले झाँकय
धुनि लेहे रमाय
भरथरी राजा ह बइठे हे
जोगी के धरे भेख
तऊने ले देखत हे सामदेई, राजा ये दे जी।
रंगमहल ले आवत हे
थारी मोहर ये ओ
धरे हावय रानी सामदेई
आंगन म हीरा
बारापाली के साये गुजर ले ओ
नहकत चले आवय सामदेई
भरथरी मेर आय
जऊने मेर धुनि रमाय हे
बानी बोलत हे राम
सुनले राजा मोर बात ल
जोग साधे ह हो
जोग ल बइरी तु छोड़ देवा
कऊने कारण राजा पर के नारी मोर बिहाव करेव
रंग महल म ओ
काबर लाये हव तुँ राजा, भाई ये दे जी।
अतका बात ल सुनके
भरथरी ये राम
का तो बोलत हावय बाते ल
सुनले रानी मोर बाते ल
का गत होतिस बाचतेंव
करम बाँचे नई जाय
मोर करम जोगी लिखे हे
सुनले कइना मोर बात
जोग साघ लिहेंव कहत हॅव
बानी बोलत हे राम
नई तो मानत हावय रानी ये
सुन राजा मोर बात
राज-पाट ये दे तोला न
दस लाख ये ओ
हाथी ल तोला मय का देवॅव
बीस लाखे बइरी सेना
सुबह मंगा देहव ये दे अंगना म
कथरी देहव सिलाय
टोपी म रतन जड़ देवॅव
धुनि लेवॅव रमाय अंगना मँ बइठ जावा तुम जोगी, भाई ये दे जी।
झन जावा गोरखपुर म
जोगी झन बना राम
अइसे बोलत हे रानी हर
नई तो मानत हे बात
अब तो बोलय भरथरी हर
सुनले रानीमोर बात
जोगे ल न तो मय छोडॅ़व
भीख दे दे कइना
अइसे बानी ल रानी बोलत हे
सुनले राजा मोर बात
घर के नारी मय तुँहरे अॅव
जोग झन साधा ओ
रंगमहल मँ आनन्द करॅव
राज पाट तुँहार
धन दौलत के हे का कमी
हीरा मोती जवरात
छय आगर छरू कोरी सइना हे
रंगमहल मँ आज
कतका सजाये हे रंगमहल
बानी बोलत हे राम, नई तो मानय भरथरी ह, भाई ये दे जी।
का तो भरथरी समझावत हे
जोगी रुपे ल वो
आज तो कइना मँय धरेंव
राज छोड़ देहॅव ओ
ना तो चाही मोला धन-दौलत
ना तो लतका सजाव
ना तो हाथी-घोड़ा चाही वो
ना तो चाही नारी
ना तो मोला घर के तिरिया
मोला जोग चाही
अइसे बानी ल रानी ल बोलत हे
गुरु गोले हे ओ
भीख माँगे तोर अंगना म आयेंव
भीख दे दे कइना
अइसे बानी ल रानी ल का बोलय, भाई ये दे जी।
दे देबे दाई भीख ल
मुख से निकला हे राम
जेला सुनय सामदेई हर
मुर्च्छा खावत हे राम
का तो भुईयाँ मं गिरय
घर के जोड़ी ह राम
का तो भुईयाँ म बइरी गिरत हे
घर के जोड़ी ये ओ
कइसे दाई कहिसे
भेदे जानिस हे का
अइसे गुनत हावय सामदेई
भिक्षा दे दे कइना
बेटा कहिके थारी ल
झोला भंडार दे हमार
अइसे बानी ल राजा बोलत हे, रामा ये दे जी।
का तो रानी बानी बोलत हे
सुन चम्पा मोर बात
घर के राजा ल समझावव ओ
बात नई सुनत न
अइसे बानी ल कइसे कहॅव मॅय
चम्पा बोलत हे राम
सुनले रानी मोर बाते ल
भरथरी के ओ
बहिनी हावय कहिके बोलत हे
गढ़नराकुल म
आज जेला बला लेवा रानी ओ, भाई ये दे जी।
लेके जावत हे राम
का तो धवनिया ह दौड़त हे
एक कोसे रेंगय
दुई कोस बइरी
तीन कोस, दस बीसे ओ
तीस कोस के ओ अल्दा म
नराकुल सहर म ओ, जाई हबरत हे
देख तो ओ
ए धवनिया ये राम
लिखे पाती ल बाँचत हे
पहली पाती ल
बइरी का बाँचय
जेमा लिखे जोहार
तेकर पाछू लिखत हे
भइया तुँहरे ओ
मिरगिन बइरी, मिरगा मारे
मिरगिन के लागे सराप
जोग साधे हवय भरथरी
पाती बाचत हे राम
कलपी-कलप रानी
मैना ये
बइरी रोवत हे राम
काय धन करॅव उपाय ल
आज तीज तिहार
जब तो भइया लेनहार ये
नई तो आये दीदी, मिरगा के लागे सराप ये, रामा ये दे जी।
सुनले बेटा गोपीचंद रे आज
ममा तुहार
मिरगा सराप में का लगे
धुनि देहे रमाय
जोग ल साधे बइठे हे
घर के अँगना हमार
चल ना बेटा समझाये ल
भरथरी के ओ
भांचा आवय गोपीचंद
संग मा मैना ये राम
देख तो दीदी कइसे आवत हे
गढ़ उज्जैन म आज का बाधी चल रेंगत हे, राम ये दे जी।
घोड़ा ल साजत हे
गोपीचंद ये राम
बारा मरद के साज ल कसय
रेंगना रेंगत हे राम
मंजिल-मंजिल के तो रंगना
मंजिल नहकत हे चार
का तो हटरी बजारे ल
बइरी नहकत हे ओ
कदली के बइरी कछारे ल
कइसे नहकत हे राम
देखतो दीदी रथ भागत हे
लस्कर साजे हे राम
जावत हे रानी का गुनय
मैना ये दीदी
गोपीचंद जेकर संग म
चले आवत हे राम
गढ़ उज्जैन मँ आई के, रामा ये दे जी।
का तो पड़ाव ल डालत हे
गांव के मेंढ़ में ओ
कइसे विधि गोपीचंद ये
का तो पड़ावे ल डालत हे
गोपीचंद ये ओ
जेकर माता-मैना रानी ये
चले आवय दीदी
घर म पहुँचे हे के
कहय सामदेई
सुनले मोर बाते ल
भइया तुॅहार जोग साधे
समझा दे न ओ, घर के तिरिया रानी बोलत हे, रानी ये दे जी।
अतका बानी ल सुनत हे
मैना रानी ये ओ
भइया के तीरे म जावत हे
भइया सुनले न बात
काबर भइया तॅय जोगी बने
मिरगा लगे सराप
सुनले न बहिनी मैना ओ
एक बहिनी अस ओ
एक आंखी के तारा अस
सुन मोर बात
कइसे बानी तोला का कहॅव
गुरु गोरखनाथ के बात मोला लागे हे
भीख माँगे ल ओ
घर म आयेंव हॅव
भीख नई देवय ओ
तॅय तो समझा दे सामदेई ल
बेटा कहिके भीख दे देतीस बहिनी ओ, भाई दे दी जी।
अतका बानी ल सुनत हे
मैना ये राम
का तो धरती बइरी फाट जातिस
नारी न ल माता कहत हे
मोर भइया ये ओ
मिरगा के लागे सरापे ह
देख तो साधत हे जोग
घर के बात ल मोर नई मानय
गोपीचंद ल ओ
मैना रानी का बोलय
सुन बेटा मोर बात ला
जावा समझाव ग ममा ल
ये दे आज गा तुँहार
अइसे बानी ल बोलत हे
गोपीचंद ह ओ
ममा ल देय समझाये ना
सुनले ममा मोर बात
जोग ल तुम ममा छोड़ देवो
जोग साधे के हो
आज तुँहार दिन नइ तो हे
अइसे बोलत हे राम
जेला सुनत हवय भरथरी
सुनले भांचा हमार
पईयां लागव बारम्बार ग
जोग नई छोड़ॅव ना
अइसे बानी ल भरथरी ह बोलत हे राम, रामा ये दे जी।
न तो हरके ल मानत हे
न तो बरजे ल राम
न तो मॉनय भरथरी ये
गोपीचंद ये ओ
जेकर माता मैना रानी
सामदेई ल ओ
जाके दीदी समझावत हे
सुनले रानी मोर बात
भइया ल दे देवा भीखे न
छतरी के जनम नई तो छेड़ॅय बइरी जोग ल
कइसे देवत हे ओ
थारी म मोहर धरत हे
कथरी ल हीरा
पांच पिताम्बर के लावत हे
टोपी रतन जटाय
देख तो दीदी हाथी लावत हे
ये दे हाथी म ओ
हीरा मोती ल बइरी लादत हे
लस्कर ल सजाय
देख तो दीदी बइरी मोर सइना ये
कइसे साजि के ओ
कइसे दीदी चलि आवत हे ओ
भिक्षा ले लव राजा अइसे बानी ल हीरा का बोलेय, रानी ये दे जी।
भीख ल द्यरे भरथरी
रेंगना रेंगय राम
तेकर पाछू सामदेई
चले जावय दीदी
सगे म जेकर रेंगत हे
रेंगना रेगय ओ
लस्कर सजाय हावय रानी
जेकर पाछू म
चले जावत हे गढ़ उज्जैन के ओ
छय लाख छय कोरी सेना ये
चले जावत हे संग
गोरखपुर के डहर
का तो पानी ल बइरी पियत हे
पाछू के सैना ये ओ
चिखला चाटंत बइरी जावत हे
गोरखपुर मँ राम
जाके डेरा ल बइरी डारय ओ, रामा ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 10 / छत्तीसगढ़ी
भरथरी के ओ
सेना ल देखत हे गुरु
भीख ले आवय ओ
मगन हो गए गुरु
बेटा कहिके मोला
का दिये बहिनी बानी ल
मिरगिन के सराप
आज धोवय भरथरी ये
बानी बोलत हे राम गुरु के चरण म का गिरय, रामा ये दे जी।
छय आगर छय कोरी सेना ल
बइरी देखत हे राम
का तो डतरी जनम लेवय
गुरु गोरख के ओ
सेवा म बईया लगावत हे
दस लाख हाथी का तो जंगल में छोड़त हे
मोर देवत हे राम
ये दे मोहतिया ल दाने म
जतका धन ये ओ हाथी में लदाय
मोर हीरा ये ओ
का तो देवत हावय बाम्हन ल
जोगी देवत हे राम
छय आगर छय कोरी नारिन ये
जोग साधत हे ओ
गुरु गोरखनाथ के चेलिन न
मोर बनावय हीरा
रंगमहल के जतका ओ
मोर चेरिया ल ओ
चेलिन बना देवय
गुरु के चरन म राम
अइसे बानी ल हीरा बोलय राम, रामा ये दे जी।
अतका ल देखत हे गुरु ये
गोरखनाथ ये ओ
धुनि म का बइरी बइठे हे
भरथरी ल राम
धुनि के बानी बताये ल
तिलकसार म ओ
गद्दी म को तो बइठ जावय
गुरु गोरखनाथ
सुन्दर बानी ल बोलत हे
सुन राजा मोर बात
जोग रे साधत हव आज तुमन
जीत होही तुॅहार
पांच पिताम्बर गोदरी
मोती रतन जटाय
आज सऊँप देवव तोला ग
ये दे चिमटा ल ओ
दंड कमंडल ल का देवॅव
गुरु के बानी ये राम जेला सीखे बर का परय, रामा ये दे जी।
सुनले राजा मोर बात
बानी बोलय गुरु गोरख हर
बारा साल ले ग
बइरी भिक्षा ल तुम माँगव
अइसे बानी ल न
गुरु गोरखनाथ ह बोलत हे
का करँव भगवान
विधि के लिख्खा हर नई टरय
रानी सामदेई ये ओ
गुरु के चरन म गिरत हे
सुन गुरु मोर बात
कच्चा कुआँरी के ऊमर
रही जातेंव गुरु
ना तो दुःख बइरी मय पातेंव
आज होगीस बिहाव
जोग साधव
मोर जोड़ी ल
मोला दे दव बताय
कइसे विधि ल बहरी मॅय जियॅव
जिन्दगी म मोर सुख बइरी नइ तो लिखे हे, गुरु ये दे जी।
का तो बात के पराई ये
मोर छाती के ओ
देखतो दीदी पराऊल ये
कइना रोवत हे राम
देख तो दीदी सामदेई हर
परगे गुरु गोहार
देख जंगल के पैरो में
रानी रोवत हे राम
बानी बोलत मोर गुरु ल
सुनले गुरु मोर बात
गुरु गुरुआइन तुम छोड़व
जोड़ी लेहव हमार
का धन करॅव उपाय ल
नई तो सुख ये ओ
मोर करम म लिखे ना
मोला देता बताय अइसे बोलत हे बानी ल, रामा ये दे जी।
चुटकी मारय गुरु गोरखनाथ
गोरखनाथ ये ओ
रानी ल का समझावत है
सुन रानी मोर बात
पति के सेवा ओ तुम करव
जेमा होहय नाम
अइसे बोलत हावय गुरु हर
सुनले रानी मोर बात
पति के सेवा म सुख पाहा
पति रहि तुम्हार
जोग साधय भरथरी हर
जोग होहय ओ आज
जोगी के साथ बइरी तुम रहव
अतका बानी ल ओ
का तो कइना ये दे सुनत हे, भाई सुनत हे, रामा ये दे जी।
गुरु के बानी ल सुनिके
भरथरी ये राम
पईंया लागत हावय गुरु के
माथा टेकत हे ओ
गुरु गोरख के चरणों में
बानी बोलत हे न
पीत पिताम्बर के गोदरी
टोपी रतन जटाय
काने जनेऊ ये
हाथ खप्पर ये गा
जेला देवत हे गुरु ह
भरथरी ल आज भिक्षा माँगन चले जावत है, रामा ये दे जी।
का तो डहर म नदी परय
जोगीन बइठे हे दाई ओ
जोगी चले जावय रद्दा म
का तो डहर म जोगी ठाढ़े
जोगीन बइठे हे दाई ओ
का तो डहर म
नदिया आये हे राम
जेमा भरी पूरा चलत हे
का तो करॅव उपाय
कइसे बइरी नदी नहकॅव
कइसे जाहॅव देस
कौरु कमंछल के नगरी
नैना रानी जिहाँ
भारी जादू ल जानय गा
कइसे जीतॅव मॅय
राजा अइसे अ सोचत हे
जेला देखत हे न
बइठे तीर म
जोगीन न
सुनले राजा मोर बात
कहां जाइके तुम धरना धरेंव, रामा ये दे जी।
गुरु गोरखनाथ के
मोर बानी ये जोगिन ओ
जावत हॅव कामरु देश मँ
जोग साधे ल ओ
गुरु गोरखनाथ के बात ल
घर के रेगेंव कइना
बीच मँ नदी-नाला परे
कइसे होहॅव पार
मने मन म बइठे सोचत हव
ये दे बात ल राम
जेला सुनत हावय जोगीन न
का तो बानी बोलय महराज
का तो बोलत हावय जोगीन ये
सुनले राजा मोर बात
गढ़ उज्जैन मँ राजा भरथरी हावय
जेकर रानी ये गा
सामदेई जेकर नॉव ये
जेकर सुमरन ओ कर लिहा
नदी हो जाहा पार
तेकर पाछू अ बोलत हे
पाहा कारी नाग
सुमरिहा सामदेई ल
मुँह हो जाही बंद कारी नागिन के
जेकर आगू म ओ
बइठे हे नैना रानी ये
जहां परी के भेष देवता धरे
जिहां बइठे हे, रामा ये दे जी।
सुनत हे वचन राजा ये
मोर जोगी ये दाई ओ
का तो सुमिरन ल करय
सामदेई ल आज
सामदेई के सुमिरन करय
नदी के पूरा अटाय
सुक्खा पर जावय नदिया हर
भरथरी ह आज
देख तो दीदी
कइसे नाचत हे
नाच के होवत हे पार
ठउके डहर मँ बइठे रहय
मोर नागिन ये ओ
मुँह ल खोलत हे
दौड़त हे
ये दे चाबेला राम
भरथरी देख के भागत हे
सुरता आवत हे न
सुमरिन करत हे सामदेई के नामे
नागिन के खुले मुंह बंद होई जावे
भरथरी ये ओ
जेकर पाछू रेंगत हे
रेंगना रेंगय राम
कोसे-कोसे के बइरी रेंगना ये
रेंगत हावय
चार अऊ दस कोस रेंगना ये
बीस कोस ये ओ
लगे दरबार परी के गद्दी म बइठे जिहा
पहुचगे भरथरी, रामा ये दे जी।
पीत पिताम्बर गोदरी
टोपी जेमा रतन जड़ाय
काँधे जनेऊ, हाथे खप्पर
दउड़त आवत है भरथरी
परी देखय महराज
सुन ले जोगी हमार
न तो जी तुम ये दे जोग साधव
बानी बोलत हे राम
जऊने ल सुनत हे राजा ये
का करॅव भगवान
जोग बिना के बइरी नई रहॅव
जी हर जाहय हमार
अइसे बानी ल बोलत हे, रामा ये दे जी।
जाके परी के देस में
मारे जावत हे दाई ओ
देवता के पावत हे आदेश
सुनले परी ओ बात
धरके ले आवा तुम जोगी ल
कनिहा कसत हे राम
देख तो परी मन का धरॅय
आघू पाछू म ओ
झूम के तीर म चपक जावॅय
भरथरी ल राम
कइसे विधि के रे मोहत हें
ये के दे डहर म
डहरे म मोहत हे
बानी बोलत हे राम
सुन ले जोगी हमर बाते ल
सुन्दर दिखत हन ओ
ना तो जोगी तुम जोग साधव
कर लव बिहाव हमार संग म बइरी ग तुम रहव, भाई ये दे जी।
मने मन म बइरी गुनत हे
भरथरी ह ओ
का तो जोगी के मैं भेख धरेंव
कहना नई माने राम
अइसन सुघ्घर देख परी हे
मन ल मोहत हे मोर
छल कपट बइरी करत हे
जोग हो जाही मोर
आज अधूर बइरी का रईहॅव
पन म करम हे हार
अइसे विधि बोलिके भरथरी हर ओ
का तो बानी दाई बोलत हे
सुनले कइना मोर बात
ना तो बइरी मय सँग धरॅव
जोग साधिहँव ओ जोग के लागे हे आस, भाई ये दे जी।
अतका बानी ल सुनत हे
मोर परी ये ओ
जाके देवता मेर गोहार पारॅय
पहुँची जावत हे राम
सुन्दर मजा अब बइठे हे
कामरुप कुमार नैन रानी
नैना का मारय
का तो मारत हे राम
सुआ के जादू ल मारत हे
सामदेई ल न
सुमिरन करय भरथरी ये
सुमिरन पावत हे सामदेई
रूपदेई ल
दऊड़त जावय बलाये ल
सुनले बहिनी मोर बात
भांटो तुँहर परय मोर जंगल म
कमरुल-देसे में आज
लेके आवा ओ बचाये ओ, रामा ये दे जी।
सामदेई रूपदेई रानी मन
दूनो आवत हे दाई ओ
कमरु देस में जादू ल
नैना मारत हे न
नैना के बान ल का टोरय
सुवा मारत हे न
सुवा के जादू ल नई चलन देवॅय
बिलाई मारत है ना
बिलाई के जादू ल टोरत हें
मिरगा जादू ये राम
हाथी घोड़ा कर जादू ये
कुकुर बिच्छी के रे
जादू ल टोरत हें
जादू मारत हें राम
देखतो टेटका अऊ मेचका के
मच्छर माछी के न
जम्मो जादू ल बइरी टोरत हे
सामदेई अऊ रूपदेई ये ओ
जऊने ल देखत हे भरथरी, रामा ये दे जी।
कोपे मारे गुस्सा होवत हे
नैना रानी ये दाई ओ
का तो बइरी बानी का बोलय
दूसरा जादू ये
देखतो दीदी का तो छोड़त हे
जऊँहर का दिहा राख
कोप मन गुस्सा होइके जादू छोड़त हे राम
देखतो दीदी कारी चूरी चाऊँर
मोर मारत हे ना
ये दे भेड़िया बना देहॅव
नई तो बोकरा बनॉव
अइसे जादू रानी मारत हे
जादू टोर देवय राम
सामदेई रूपदेई पहुचें हे
ये दे जादू ये राम
घोड़ा के जादू ल मारत हे
जादू टोरय भगवान
का तो विधि बैरी का काटव ओ, रामा ये दे जी।
भरथरी लोक-गाथा - भाग 11 / छत्तीसगढ़ी
कतेक गैना ल गावॅव मय
तीन महीना ल ओ
तीने महीना जादू मारे हे
जादू काटत हे राम
खड़े-खड़े सामदेई ये
रूपदेई राम
जादू ल बइरी इन काटत हें
जेला देखत हे राम
काटे मँ जादू कट जाए
नैना रानी ये ना
गुस्सा होवय देखतो बाई रामा ये दे जी।
कोपे माने का बइरी गुस्सा ल
मोर होवत हे ओ
देख तो दीदी सामदेई ये
रूपदेई रानी न
गुस्सा गुस्सा मँ दाई मारत हे
जादू मंतर ओ
जादू मंतर ओ
कलबल के राख कर देवय नैना रानी ल
आज नैना रानी ओ आनंद होगे
भरथरी ये राम
चरणों मँ आके का गिरय
सुन राजा मोर बात
जइसे गुरु तुम्हार
जोगी होही तुम्हार सिद्ध न
अइसे देवय आसीस जेला लेवत हे भरथरी हर, रामा ये दे जी।
ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा ये
कमरु नगर ले
देख तो दीदी भरथरी ये
चले आवत हे राम
गुरु गोरखनाथ भेर
कौरु कमच्छल जादू टोना
बइरी का बोलय
गुरु गोरखनाथ
गोरखपुर ल बनाये हे
मोर बिलाई अवतार
गुरु गोरखनाथ घलो ला
नई तो छोड़े हे राम
जहां धुनि बबा रमे हे
गुरु गोरख के ओ
सब तो बिलाई बइरी का बोलय
म्याऊँ- म्याऊँ ओ
जम्मर चेलिन चेला नरियावय
गुरु गोरखनाथ
धुनि म का बैरी बोलत हे
म्याऊँ-म्याऊँ ये ओ
धुनि बइरी ये अधूरा ये रामा ये दे जा।
लऊठी आवय भरथरी हर
गुरु गोरख के
अंगना म जऊन मेर धुनि हे
देखत हवय राजा
जम्मो बिलाई अवतरे हें
जादू मारे हे राम
देख तो नैनामति रानी ये
गुरु गोरखनाथ
बिलाई अवतार मे लपटत हे
जोन भेर धुनि रचाय
कलपी-कलप बइरी लोटत हे
म्याऊँ-म्याऊँ कहय
जतका चेलिन अऊ चेला ये
तऊन ल देखत हे राम
अइसे बानी ल रानी का बोलय, रामा ये दे जी।
लउटी के आई के देखत हे
भरथरी ह दाई ओ
कहां मोर गुरु हे
जम्मों दिखत हे राम
देख तो बिलाई अवतारी न
गुरु गोरखनाथ
कलपी-कलप भरथरी ये
सुरता करत हे राम
नई तो मिलत आवय खोजे म
सुमिरन करत हे न
सामदेई मोर सुमिरत हे
सुनले माता मोर बात
जऊने समय तुम जादू मारेंव
तिरिया चरित
मार जादू ल देवा
गुरु गोरखनाथ जल्दी ला देवा ओ बोलत हे, रामा ये दे जी।
कारी पिऊँरी चाऊँर
रानी मारत हे दाई ओ
देखतो दीदी सामदेई ह
गुरु गोरखनाथ ल
देखतो आदमी बनावत हे
कोरु नगर के
जतका घोड़ा बइरी गदहा ये
जतका सुआ ये
कऊनार पड़की परेवा ये
कऊनो सुरा ये राम
कऊनो कुबुबर बिलाई ये
कऊनो भेड़वा ये राम
कऊनो बोकरा ये बने हे
सबला आदमी बनाय
गुरु गोरखनाथ ल तो ये
कइसे आदमी बनाय
जतका चेलिन ल
नारी ये मोर बनावत हे राम
तऊनो ल देखत हे राजा ये
भरथरी ये ओ
जइसे गुरु तइसे तुम चेला
जोग पूरा हो जाय
अइसे बानी रानी बोलत हे, रामा ये दे जी।
कंचन मिरगा मरीच के गुरु जल बरसाय
कंचन मिरगा मरीच के रामा ये दे जी
मुनि जल बरसाय, कंचन मिरगा मरीच के
जम्मे ल आदमी बनावत हे
गुरु गोरख ओ
देख तो बोलय भरथरी ल
सुन राजा मोर बात
तोरो जोग बइरी सिद्ध होवय
लौटी जावा तु राज
गढ़ उज्जैनी मँ चल देवा
माता ये तुम्हार सामदेई ले भिक्षा लावा
चले जावत हे राम
गुरु के बानी ल पावत हे
गुरु बोलत हे बात
सुनले बेटा भरथरी
भरथरी ये राम
न तो नारी मोला भीख देवय
तो जोग साधव
कइसे के जोग ल साघॅव, ये दे साघॅव, रामा ये दे जी।
बोले वचन गुरु गोरख हर
सुन ले बेटा मोर बात ल
चले जाबे बेटा
उज्जैन सहर म
धुनि तॅय रमा लेबे ग
अइसे बानी ल बइरी बोलत हे
पित पिताम्बर ओ
गोदरी ल गुरु देवय
टोपी रतन जटाय
काँधे जनेऊँ ल देवत हे
हाथे खप्पर हे राम
भरथरी धरि आवत हे
गढ़ उज्जैन म
आगी लगे खप्पर ल रखत हे
जोग साधन हे न ओ गुरु गोरखनाथ ये, भाई ये दे जी।
धुनि रमाये भरथरी ल
गांव भर के हीरा
राज दरबार देखत हे
रानी डंका पिटाय
सुनले गांव के परजा ये
जऊन राजा हमार
ना तो मैनावती रानी ये
गोपी भाँचा हमार
तुँहरों गाँव ल नेवता हे
राजा तिलोकचंद
तुँहरों गरीब घर नेवता हे
मानसिंह राजा
जम्मे नेवता ल बलावत हे
बाइस गढ़ के राजा ल नेवता भेजत हे
नेवता सुने सामदेई के
भरथरी के आज
देखतो दीदी जोग बइठे हे
धुनि रमे हे न
जिहां खप्पर ओ रखे हे
दान देवत हे न
नगर के बइरी परजा ये
जतका रैयत हे ओ
जम्मे ल बइरी दान देवय
खप्पर म डॉरय आज
न तो गुरु के खप्पर ये
नई तो भरय दीदी
का धन करँव उपाय ल, रामा ये दे जी।
तब तो बोलय सामदेई ह
का तो करँव उपाये ल
देख तो अस्नादे बनावत हे
रंगमहल म आय
सुन्दर नहावत हे सामदेई
आनंद मंगल मनाय
सोने के भारी निकालत हे
मोर देख तो दाई
जऊने म मोहर धरत हे
मोहर घरिके ओ
सोने के थरी म आवत हे
मैनावती ये ओ
सुनले भइआ मोर बाते ल
दान देवत हव झोंकव न
खप्पर तो नई भरय
का तो करँव उपाय
तब तो सामदेई आवत हे
सोने के थारी म राम
मोती जवाहरात धरि के आवत हे
सामदेई ये
सुन्दर करके स्नान
खप्पर के तीर म जावत हे
जोग पूरा तुम्हार
हो जावय ले लेवव दान ल
सुन ले बेटा हमार
अइसे कहिके डारत हे, रामा ये दे जी।
बेटा कहिके डारत हे
सामदेई ह दाई ओ
देखतो खप्पर बइरी भरि जावय
जोग हो गय तुम्हार
पूरा अब होई जावय
जुग-जुग जीबे लला
देवय आसीस सामदेई ह
गुरु गोरखनाथ
जइसे गुरु तइसे चेला अव
जग मँ नाव तुहार
अम्मर हो जाहय बोलत हे, रामा ये दे जी।
भीख ल जोगी पाइके
सामदेई के ओ
देखतो दीदी भरथरी ह
चले आवत हे जऊन मेर गुरु के धुनि रमे
जिंहा जावय दीदी
आनंद मंगल मनावत हे
गुरु भरे जवाब
मँगनी के तय तो बेटा अस
तोला देहे रहेंव
बोलत हावय गुरु गोरख हर
सुनले राजा मोर बात
न तो सामदेई के तुम बेटा
न तो फुलवा के रे
बेटा तुम अब हमार
अइसे बानी ल गुरु बोलत हे, रामा ये दे जी।
पीत पिताम्बर गोदरी
कइसे देवत हे गुरु ओ
देख तो दाई भरथरी ल
टोपी रतन जटाय
कांधे जनेऊ सोहत हे
खप्पर देवय
खप्पर रखावत हे धुनि म
गुरु गोरखनाथ
बानी बचन कई सत बोलय
गद्दी देवय सम्हाल
धुनि के तिलक ल निकालत हे
तिलक सारत हे राम
भरथरी ल गुरु गद्दी ए
चल देवत हे
गुरु के गद्दी ल पावत हे
भरथरी ह न
गोरखपुरे में बइठ जावय
गुरु गद्दी म भरथरी ओ, रामा ये दे जी।
तब तो बोलय आल्हा-ऊदल हर
दुनिया ल गुरु
भरथरी ल
तय दान दिये
जग म होगे अमर
अमर होगे राज ग
तुँहर ये दे नाम
जग म नाम कमा लेवय
हमला देवा वरदान
कुछू तो देवा अइसे बोलत हे, रामा ये दे जी।
कथा समाप्त
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