सुनु रसिया अब न बजाऊ बिपिन बंसिया.
बार-बार चरणारविन्द गहि, सदा रहब बनि दसिया.
की छलहुँ कि होएब से के जाने,वृथा होएत कुल-हँसिया.
अनुभव ऐसन मदन भुजंगम , ह्रदय मोर गेल डसिया .
नंद-नन्दन तुअ सरन न त्यागब ,बरु जग होए दुर्जसिया.
विद्यापति कह सुनु बनितामनि,तोर मुख जीतल रसिआ .
धन्य-धन्य तोर भाग गोआरिनी भरि भजु ह्रदय हुलसिआ
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