श्री गुरु चरण पद बन्दि के, मनुवाँ मगन भेल ए।
ललना रे! खेलते-धूपते बीतल सारी रात से,
देखलाँ एक अजगूत ए॥1॥
प्रथम मास जब आयल, गरभ रहिये गेल ए।
ललना रे! दिन-दिन होरिल बाढ़ल,
जननी बढ़ाएल ए॥2॥
दूसर मास जब आयल, आनन्द छायल हे।
ललना रे! कइसे जाय छै दिन-रात से,
एको न बुझाएल ए॥3॥
तीसर मास जब आयल, होरिल जन्म भेल ए।
ललना रे! बाजे लागल आनन्द बधावन से,
हुवे लागल सोहर ए॥4॥
कोई तो जनमे एक मास, कोई तो दूसर मास ए।
ललना रे! कोई तो जनमे तीसर मास से,
अइसन अचरज भेल ए॥5॥
‘चन्दर दास’ सोहर गावल, गवी के सुनावल ए।
ललना रे! हिलि-मिलि चतुर सुजान से,
अर्थ लगावल ए॥6॥
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