सतगुरु कही महल की बानी।
मुक्त कमल को मारग झीनो खोजत पंडत ज्ञानी।
रंग महल पे चित्त चढ़ायो धुन सुन सुरत समानी।
ध्यान तखत पर ग्यान दुलीचा विहरत सारंग पानी।
दिल भरपूर अजब रंग राचो तन की कहल बुझानी।
जूड़ीराम मगन भयो मनुवा पाई भगत निसानी।
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सतगुरु कही महल की बानी।
मुक्त कमल को मारग झीनो खोजत पंडत ज्ञानी।
रंग महल पे चित्त चढ़ायो धुन सुन सुरत समानी।
ध्यान तखत पर ग्यान दुलीचा विहरत सारंग पानी।
दिल भरपूर अजब रंग राचो तन की कहल बुझानी।
जूड़ीराम मगन भयो मनुवा पाई भगत निसानी।
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