समझो न यह कि आँखें आँसू बहा रही हैं बिन्दु जी भजन
Samjho Na Yah Ki AankheinAansoo Beha Rahi Hain Bindu Ji Bhajan
समझो न यह कि आँखें आँसू बहा रही हैं।
घनश्याम पर न जाने क्या-क्या चढ़ा रही हैं॥
नख चंद्रपै चरणों के कतरे जो टपकते हैं।
अनमोल मोतियों कि माला पिन्हा रही हैं॥
नंदलाल के हांथों में पहुँची जो अश्क माला।
ख़ुद लाल बन के लालों को भी लजा रही है॥
चश्मे गहर झड़ी पर मुस्का पड़े जो मोहन।
हीरे कि नासा मणियाँ बनती सी जा रही हैं॥
सर्वांग देखकर जो दृग ‘बिन्दु’ ढल पड़े हैं।
नौकाएं प्रेम कि दो नीलम लुटा रही हैं॥
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