naarad se suk vyaas raTai pachi haare ta.uu puni paar n paavai।.
taahi ahiir kii chhohariya chhachhiya bhari chhaachh pai naach nachaavai||.
Explanation व्याख्या
रसखान कहते हैं कि जिस कृष्ण के गुणों का शेषनाग, गणेश, शिव, सूर्य, इंद्र निरंतर स्मरण करते हैं। वेद जिसके स्वरूप का निश्चित ज्ञान प्राप्त न करके उसे अनादि, अनंत, अखंड अछेद्य आदि विशेषणों से युक्त करते हैं। नारद, शुकदेव और व्यास जैसे प्रकांड पंडित भी अपनी पूरी कोशिश करके जिसके स्वरूप का पता न लगा सके और हार मानकर बैठ गए, उन्हीं कृष्ण को अहीर की लड़कियाँ छाछिया-भर छाछ के लिए नाच नचाती हैं।
अली पगे रँगे जे रँग सावरे रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
अली पगे रँगे जे रँग सावरे मो पै न आवत लालची नैना।.
धावत है उतही जित मोहन रोके एकै नहिं घूँघट रोना॥.
काननि कौ कल नाहि परै सखी प्रेम सो भीजे सुनै बिन बैना।.
रसखानि भई मधु की मखियाँ अब नेह को बँधन क्यों हूँ छुटै ना॥.
alii page ra.nge je ra.ng saavare mo pai n aavat laalachii naina।.
dhaavat hai uthii jit mohan roke ekai nahi.n ghuu.nghaT ronaa||.
kaanani kau kal naahi parai sakhii prem so bhiije sunai bin baina।.
raskhaani bha.ii madhu kii makhiyaa.n ab neh ko ba.ndhan kyo.n huu.n chhuTai naa||.
alii page ra.nge je ra.ng saavare mo pai n aavat laalachii naina।.
dhaavat hai uthii jit mohan roke ekai nahi.n ghuu.nghaT ronaa||.
kaanani kau kal naahi parai sakhii prem so bhiije sunai bin baina।.
raskhaani bha.ii madhu kii makhiyaa.n ab neh ko ba.ndhan kyo.n huu.n chhuTai naa||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से अपने प्रेम का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! मेरे ये लालची नेत्र कृष्ण के प्रेम में इस प्रकार बंदी हो गए है कि अब ये मेरे वश में नहीं रहे। ये जिस ओर भी कृष्ण को देखते हैं, उसी ओर दौड़ने लगते हैं और घूँघट के घर में भी नहीं रुकते, अर्थात् चाहे जितना आवरण इनके ऊपर डाला जाए, ये उस आवरण को भेद कर भी कृष्ण की ओर दौड़ते हैं। हे सखि! प्रेम से भीगे हुए नयनों को सुने बिना इन कानों को चैन नहीं मिलता, अर्थात् ये कान प्रिय की मधुर बातों को सुनने के लिए सदैव आकुल रहते हैं। रसखान कहते हैं कि मेरी ये आँखें शहद की मक्खियाँ बन गई हैं, अब प्रेम का बंधन किस प्रकार छूट सकता है? कहने का भाव यह है कि जिस प्रकार शहद की मक्खियाँ अपने ही बनाए हुए शहद के छाते में बंदी हो जाती है, उसी प्रकार मेरे नेत्र अपने द्वारा ही उत्पन्न किए गए प्रेम में बंदी बन गए हैं।
काह कहूँ सजनी सँग की रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
काह कहूँ सजनी सँग की रजनी नित बीतै मुकुंद को हेरी।.
आवन रोज कहैं मनभावन आवन की न कबौं करी फेरी॥.
सौतिन भाग बढ्यौ ब्रज में जिन लूटत हैं निसि रंग घनेरी।.
मो रसखानि लिखी बिधना मन मारिकै आपु बनी हौं अहेरी।।.
Explanation व्याख्या
सवैये (एन.सी. ई.आर.टी)
रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
Explanation व्याख्या
मानुष हौं तो वही रसखानि रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।.
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरा चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।.
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।.
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन॥.
maanush hau.n to vahii raskhaani basau braj gokul gaa.nv ke gvaaran।.
jo pasu hau.n to kaha basu mera charau.n nit na.nd kii dhenu ma.njhaaran।.
paahan hau.n to vahii giri ko jo dharyau kar chhatr pura.ndar kaaran।.
jo khag hau.n tau basero karau.n mili kaali.ndii-kuula-kada.mb kii Daaran||.
maanush hau.n to vahii raskhaani basau braj gokul gaa.nv ke gvaaran।.
jo pasu hau.n to kaha basu mera charau.n nit na.nd kii dhenu ma.njhaaran।.
paahan hau.n to vahii giri ko jo dharyau kar chhatr pura.ndar kaaran।.
jo khag hau.n tau basero karau.n mili kaali.ndii-kuula-kada.mb kii Daaran||.
Explanation व्याख्या
रसखान कहते हैं कि यदि मुझे आगामी जन्म में मनुष्य-योनि मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ जिसे ब्रज और गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। आगामी जन्म पर मेरा कोई वश नहीं है, ईश्वर जैसी योनि चाहेगा, दे देगा, इसलिए यदि मुझे पशु-योनि मिले तो मेरा जन्म ब्रज या गोकुल में ही हो, ताकि मुझे नित्य नंद की गायों के मध्य विचरण करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। यदि मुझे पत्थर-योनि मिले तो मैं उसी पर्वत का एक भाग बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का गर्व नष्ट करने के लिए अपने हाथ पर छाते की भाँति उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी-योनि मिले, तो मैं ब्रज में ही जन्म पाऊँ ताकि मैं यमुना के तट पर खड़े हुए कदम्ब वृक्ष की डालियों में निवास कर सकूँ।
अंगनि अंग मिलाय दोऊ रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
अंगनि अंग मिलाय दोऊ रसखानि रहे लपटे तरु छाँहीं।.
संग निसंग अनंग को रंग सुरंग सनी पिय दै गल बाँहीं॥.
बैन ज्यों मैन सु ऐन सनेह कों लूटि रहे रति अंतर जाहीं।.
नीबी गहै कुच कंचन कुंभ कहै बनिता पिय नाहीं जू ना नाहीं॥.
kal kaanani ku.nDal mora-pakha ur pai banmaal biraajati hai।.
murlii kar me.n adhra muskaani-tara.ng maha chhavi chhaajati hai||.
raskhaani lakhe tan piit paTa sat daamini-sii duti laajati hai।.
vahi baa.nsurii kii dhuni kaan pare kulkaani hiyo taji bhaajati hai||.
kal kaanani ku.nDal mora-pakha ur pai banmaal biraajati hai।.
murlii kar me.n adhra muskaani-tara.ng maha chhavi chhaajati hai||.
raskhaani lakhe tan piit paTa sat daamini-sii duti laajati hai।.
vahi baa.nsurii kii dhuni kaan pare kulkaani hiyo taji bhaajati hai||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की शोभा तथा उनकी बाँसुरी के प्रभाव का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि। कृष्ण के कानों में सुंदर कुंडल, सिर पर मोर-पंखों का मुकट और हृदय पर वैजयंती माला सुशोभित है। उनके हाथ में वंशी और होंठोंं पर मुस्कान की लहरें अत्यंत शोभा प्राप्त कर रही है। रसखान कवि कहते हैं कि उनके तन पर सुशोभित पीले वस्त्र को देखकर सैंकड़ों बिजलियों की शोभा लज्जित होती है। उसी बाँसुरी की ध्वनि कानों में पड़ने पर ब्रज-वनिताएँ अपने हृदय से वंश की मर्यादा छोड़ कर उसी ओर भागती है।
सेस गनेस महेस दिनेस रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।.
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुबेद बतावैं।.
नारद से सुक व्यास रहैं पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।.
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥.
ब्रह्मा मैं ढूँढ्यो पुरानन गानन रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
ब्रह्मा मैं ढूँढ्यो पुरानन गानन वेद रिचा सुनि चौगुने चायन।.
देख्यो सुन्यो कबहूँ न कितूँ वह कैसे सरूप औ कैसे सुभायन॥.
टेरत हेरत हारि पर्यो रसखानि बतायो न लोग लुगायन।.
देखौ दुरो वह कुंजकुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन॥.
धूरि भरे अति सोभित श्यामजू रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
धूरि भरे अति सोभित श्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।.
खेलत खात फिरै अंगना पग पैजनी बाजति पीरी कछोटी।.
वा छवि को रसखानि बिलोकत वारत काम कला निधि कोटी।.
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी॥.
dhuuri bhare ati sobhit shyaamajuu taisii banii sir su.ndar choTii।.
va chhavi ko raskhaani bilokat vaarat kaam kala nidhi koTii।.
kaag ke bhaag baड़.e sajnii hari-haath so.n lai gayau maakhan-roTii||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करती हुई कहती है कि धूल से सने हुए शरीर वाले श्री कृष्ण अत्यंत शोभायमान थे। ऐसी ही शोभा से युक्त उनके सिर की सुंदर चोटी बनी हुई थी। वे खेलते हुए और माखन-रोटी खाते हुए अपने आँगन में घूम रहे थे। उनके पैरों की पैंजनी बज रही थी। वे पीली लंगोटी पहने हुए थे। उनकी उस समय की शोभा को देखकर कामदेव भी अपनी करोड़ों सुंदरताओं को उस पर न्यौछावर कर रहा था। हे सखि! उस कौवे का बहुत बड़ा सौभाग्य है जो कृष्ण के हाथ से माखन-रोटी झपटकर उड़ गया।
बंसी बजावत आनि कढ़ो रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
बंसी बजावत आनि कढ़ो सो गली में अली कछू टोना सों डारैं।.
e raskhaani jabai in nainan te braj ke ban baag taड़.aag nihaarau।.
koTik ye kaldhaut ke dhaam kariil kii ku.njan uupar vaarau||.
Explanation व्याख्या
द्वारिका में रह कर कृष्ण को ब्रज की याद आ रही है। वे व्यथित होकर रुक्मणी से कह रहे हैं कि उस लाठी और कामरी के लिए मैं तीनो लोक का राज्य एक दम छोड़ देने को तैयार हूँ, नंद की गाय चराने के लिए अणिमा आदि आठों सिद्धियों के तथा पद्म आदि नवों निधियों के सुख का त्याग करने को उद्यत हूँ। जब से मैंने अपनी इन आँखों से ब्रज के बन और तालाबों को देखा है अर्थात् मुझे उनकी याद आई है, तब से मैं उसके लिए इतना आतुर हो गया हूँ कि मैं वैभव के प्रतीक इन करोड़ों सोने-चाँदी के महलों को ब्रज के करील कुंजों के ऊपर न्यौछावर करता हूँ।
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माल गरें पहिरौंगी।.
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥.
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।.
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥.
मोर−पखा सिर ऊपर राखिहौ रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माला गरे पहिरौंगी।.
ओढि पितंबर लै लकुटी वन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥.
भाव तो वोहि मेरो रसखानि सो तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।.
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥.
mora-pakha sir uupar raakhihau.n gu.nj kii maala gare pahirau.ngii।.
oDhi pita.mbar lai lakuTii van godhan gvaarani sa.ng phirau.ngii||.
bhaav to vohi mero raskhaani so tere kahe sab svaa.ng karau.ngii।.
ya murlii murliidhar kii adhraan dharii adhra n dharau.ngii||.
mora-pakha sir uupar raakhihau.n gu.nj kii maala gare pahirau.ngii।.
oDhi pita.mbar lai lakuTii van godhan gvaarani sa.ng phirau.ngii||.
bhaav to vohi mero raskhaani so tere kahe sab svaa.ng karau.ngii।.
ya murlii murliidhar kii adhraan dharii adhra n dharau.ngii||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! मैं मोर-मुकुट को अपने सिर के ऊपर पहनूँगी, गुंजों की माला गले में धारण करूँगी। पीला वस्त्र ओढ़कर और हाथ में लाठी लेकर तथा ग्वालिन बनकर जंगल-जंगल गायों के पीछे फिरूँगी। कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने से सारा स्वाँग भर लूँगी, किंतु कृष्ण की मुरली को, जो वे ओठों पर रक्खे रहते हैं, नीचे नहीं धरूँगी।
कान्ह भए बस बाँसुरी के रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
कान्ह भए बस बाँसुरी के अब कौन सखी हमकों चहिहै।.
निस द्यौस रहै सँग साथ लगी यह सौतिन तापन क्यों सहिहै॥.
जिन मोहि लियो मनमोहन को रसखानि सदा हमकों दहिहै।.
मिलि आओ सबै सखी भाग चलैं अब तो ब्रज मैं बँसुरी रहिहै॥.
या लकुटी अरु कामरिया पर रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।.
आठहुँ सिद्धि नवो निधि को सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥.
रसखानि कबौं इन आँखिन सों ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।.
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥.
धूर भरे अति शोभित स्याम रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
धूर भरे अति शोभित स्याम जू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।.
खेलत खात फिरें अँगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछोटी॥.
वा छवि को रसखानि बिलोकत बारत काम–कला निज कोटी।.
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी॥.
ब्रह्म मै ढूँढ्यौ पुरानन गानन रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
देख्यौ सुन्यौ कबहूँ न कितूँ वह कैसे सरूप औ कैसे सुभायन।.
टेरत हेतर हारि पर्यौ रसखानि बतायौ न लोग लुगायन।.
देखौ दुरौ वह कुंज-कुटीर मै बैठौ पलोटत राधिका पायन॥.
brahm mai Dhuu.nDhyau puraanan gaanan veda-richa suni chaugune chaayan।.
dekhyau sunyau kabhuu.n n kituu.n vah kaise saruup au kaise subhaayan।.
Terat hetar haari paryau raskhaani bataayau n log lugaayan।.
dekhau durau vah ku.nj-kuTiir mai baiThau paloTat raadhika paayan||.
brahm mai Dhuu.nDhyau puraanan gaanan veda-richa suni chaugune chaayan।.
dekhyau sunyau kabhuu.n n kituu.n vah kaise saruup au kaise subhaayan।.
Terat hetar haari paryau raskhaani bataayau n log lugaayan।.
dekhau durau vah ku.nj-kuTiir mai baiThau paloTat raadhika paayan||.
Explanation व्याख्या
रसखान कहते हैं कि मैंने ब्रह्म को पुराणों के गीतों में ढूँढ़ा, वेद-ऋचाओं को चौगुने चाव से इसीलिए सुना कि शायद उन्हीं से ब्रह्म का पता चल जाए। मेरे सारे प्रयत्न निष्फल हुए। मैंने उसे न तो कहीं सुना और न कहीं देखा। मैं यह भी नहीं जान पाया कि उसका स्वरूप और स्वभाव कैसा है। उसे पुकारते हुए, उसकी खोज करते हुए मैं थक गया और किसी भी पुरुष या स्त्री ने उनका पता नहीं बताया। अंत में वह मुझे कुंज-कुटीर में छिपकर बैठे हुए राधा के पैरों को दबाता हुआ दिखाई दिया।
बागन काहे को जाओ पिया रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
छातिन मैं रस के निबुआ अरु घूँघट खोलि कै दाख चखाऊँ।.
टाँगन के रस के चसके रति फूलनि की रसखानि लूटाऊँ॥.
baagan kaahe ko jaa.o piya, baiThii hii baagh lagaay dikhaa.uu.n।.
eड़.ii anaar sii mauri rahii, bahiyaa.n do.e cha.npe kii Daar navaa.uu.n||.
chhaatin mai.n ras ke nibu.a aru ghuu.nghaT kholi kai daakh chakhaa.uu.n।.
Taa.ngan ke ras ke chaske rati phuulani kii raskhaani luuTaa.uu.n||.
baagan kaahe ko jaa.o piya, baiThii hii baagh lagaay dikhaa.uu.n।.
eड़.ii anaar sii mauri rahii, bahiyaa.n do.e cha.npe kii Daar navaa.uu.n||.
chhaatin mai.n ras ke nibu.a aru ghuu.nghaT kholi kai daakh chakhaa.uu.n।.
Taa.ngan ke ras ke chaske rati phuulani kii raskhaani luuTaa.uu.n||.
Explanation व्याख्या
कोई नायिका नायक से कह रही है कि हे प्रियतम! तुम बाग़ में क्यों जाते हो? मैं घर बैठे ही तुम्हें बाग़ लगाकर दिखा सकती हूँ। मेरी एड़ियाँ अनार की भाँति फूल रही हैं, मानो ये ही अनार हैं। दोनो बाँहें ही मानो चंपे की डालें हैं। छाती मे उभरे हुए स्तन ही मानो रस भरे नींबू हैं। मैं घूँघट खोलकर तुम्हें द्राक्षा चखा सकती हूँ, अर्थात् मेरे अधरों के चुंबन में द्राक्षा का आनंद भरा हुआ है। रसखान कहते हैं कि छुहारों का रस तुम्हें चखा सकती हूँ और प्रेम की कलियाँ तुम पर लुटा सकती हूँ।
कान्ह भए बस बाँसुरी के रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
कान्ह भए बस बाँसुरी के अब कौन सखि! हमको चहिहै।.
निसद्यौस रहे संग साथ लगी यह सौतिन तापन क्यौं सहिहै॥.
जिन मोहि लियौ मन मोहन को रसखानि सदा हमको दहिहै।.
मिलि आऔ सबै सखि! भागि चलैं अब तौ ब्रज में बंसुरी रहि है॥.
kaanh bha.e bas baa.nsurii ke ab kaun sakhi! hamko chahihai।.
jin mohi liyau man mohan ko raskhaani sada hamko dahihai।.
mili aa.au sabai sakhi! bhaagi chalai.n ab tau braj me.n ba.nsurii rahi hai||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की बाँसुरी के प्रति सौतिया-डाह प्रकट करती हुई कहती है कि हे सखि! कृष्ण तो अब बाँसुरी के वश में हो गए हैं, अतः अब हमें कौन प्यार करेगा? अर्थात् कृष्ण तो केवल अपनी बाँसुरी को ही प्रेम करते हैं, अतः यह सौतिया दु:ख हमसे नहीं सहा जाता। इस बाँसुरी ने दूसरों का मन मोहने वाले कृष्ण का भी मन मोह लिया है, इसीलिए यह हमें सदैव दु:ख देती रहती है। इस दु:ख से छूटने का तो केवल यही उपाय है कि सारी सखियाँ इकट्ठी होकर ब्रज से भाग चलें, क्योंकि अब तो ब्रज में यह बाँसुरी ही रहेगी।
प्रान वही जु रहै रिझि वा पर रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
प्रान वही जु रहै रिझि वा पर रूप वही जिहि वाहि रिझायौ।.
और कहाँ लौ कहौं रसखानि री भाव वही जु वही मन भायौ॥.
praan vahii ju rahai rijhi va par ruup vahii jihi vaahi rijhaayau।.
siis vahii jin ve parse pad a.nk vahii jin va parsaayau||.
duudh vahii ju duhaayau rii vaahii dahii su sahii ju vahii Dharkaayau।.
aur kahaa.n lau kahau.n raskhaani rii bhaav vahii ju vahii man bhaayau||.
praan vahii ju rahai rijhi va par ruup vahii jihi vaahi rijhaayau।.
siis vahii jin ve parse pad a.nk vahii jin va parsaayau||.
duudh vahii ju duhaayau rii vaahii dahii su sahii ju vahii Dharkaayau।.
aur kahaa.n lau kahau.n raskhaani rii bhaav vahii ju vahii man bhaayau||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि वे ही प्राण हैं जो कृष्ण पर रीझ जाए, वही रूप है जो कृष्ण को रिझा ले। वही सिर है जो कृष्ण के चरणों का स्पर्श करे, हृदय वही है जिसने कृष्ण का स्पर्श किया गया हो। वही दूध है जो कृष्ण ने दुहा है, वही दही है जो उसने बिखेरी है। रसखान कहते हैं कि और कहाँ तक कहूँ, भाव भी वही है जो कृष्ण को अच्छा लगता है। कहने का अभिप्राय यह है कि इंद्रियो की और भावों की सार्थकता तभी है जब वे कृष्ण को या तो अपनी ओर आकृष्ट कर सकें, अथवा उसकी ओर आकृष्ट हो जाए।
मेरो सुभाव चितैवे को माइ री रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
मेरो सुभाव चितैवे को माइ री लाल निहारि कै बंसी बजाई।.
वा दिन ते मोहि लागी ठगौरी सी लोग कहै कोई बावरी आई॥.
यों रसखानि घिर्यो सिगरो ब्रज जानत वे कि मेरो जियराई।.
जौ कोउ चाहै भलौ अपनो तौ सनेह न काहू सो कीजियौ माई॥.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! मेरा स्वभाव देखने के लिए, मुझे देखकर, कृष्ण ने अपनी बंसी बजाई। उसी दिन से मुझ पर जादू-सा चल गया है। लोग मुझे देखकर कहते है कि कोई पगली आ गई है, अर्थात् लोग मुझे पगली समझते है। रसखान कहते हैं कि इस प्रकार सारे ब्रज के निवासी मुझे घेर लेते है। मेरे मन की या तो कृष्ण जानते है या मैं स्वयं जानती हूँ। यदि इस जगत् में कोई अपना भला चाहता है तो उसे कभी भी किसी से प्रेम नहीं करना चाहिए।
काननि दै अँगुरी रहिवो रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहे न जैहे न जैहे॥.
kaanani dai a.ngurii rahivo jabhii murlii dhuni ma.nd bajai hai।.
mohanii taanani so raskhaani aTa chaDhi godhan gaihai tau gaihe||.
Teri kahau sigre braj logani kaalhi ko.uu su kitau samujhe hai।.
maa.i rii va mukh kii muskaani samhaarii n jaihe n jaihe n jaihe||.
kaanani dai a.ngurii rahivo jabhii murlii dhuni ma.nd bajai hai।.
mohanii taanani so raskhaani aTa chaDhi godhan gaihai tau gaihe||.
Teri kahau sigre braj logani kaalhi ko.uu su kitau samujhe hai।.
maa.i rii va mukh kii muskaani samhaarii n jaihe n jaihe n jaihe||.
Explanation व्याख्या
एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि जब कृष्ण की मंद-मंद मुरली बजती है, तब चाहे कोई मेरे कानों में अँगुरी दे दे, अर्थात् मुझे वह तान न सुनने दे, चाहे कृष्ण अटारी पर चढ़कर मोहने वाली तानों के साथ गौचारण के गीत गाए; मैं सारे ब्रज के लोगों से पुकार-पुकार कर इस बात को कहती हूँ कि कल चाहे कोई कितना ही समझाए, परंतु हे सखि! मुझसे कृष्ण के मुख की मुस्कान सँभाली नहीं जाती, अर्थात् मैं कृष्ण के प्रेम में बहुत ही व्याकुल और उन्मत्त हो गई हूँ।
शंकर से सुर जाहि भजैं रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
शंकर से सुर जाहि भजैं चतुरानन ध्यान में धर्म बढ़ावै।.
नेक हिये में जो आवतही महाजड़ मूढ़ रसखान कहावैं।.
जा पर सुंदर देवबधू नहिं बारत प्रान अबार लगावैं।.
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥.
प्रेम मरोरि उठै तब ही रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
प्रेम मरोरि उठै तब ही मन पाग मरोरनि मे उरझावै।.
रूसे से ह्वै दृग मोसो रहै लखि मोहन मूरति मो पै न आवै॥.
बोले बिना नहि चैन परै रसखानि सुने कल श्रीनन पावै।.
भौह परोरिबो री रूसिबो झुकिवो पिय सो सजनी सिखरावै॥.
prem marori uThai tab hii man paag marorani me urjhaavai।.
ruuse se hvai drig moso rahai lakhi mohan muurati mo pai n aavai||.
bole bina nahi chain parai raskhaani sune kal shriinan paavai।.
bhauh paroribo rii ruusibo jhukivo piy so sajnii sikhraavai||.
prem marori uThai tab hii man paag marorani me urjhaavai।.
ruuse se hvai drig moso rahai lakhi mohan muurati mo pai n aavai||.
bole bina nahi chain parai raskhaani sune kal shriinan paavai।.
bhauh paroribo rii ruusibo jhukivo piy so sajnii sikhraavai||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! जब भी वह अपनी पगड़ी के घुमावों में मेरे मन को उलझाता है, तभी मेरा प्रेम सजग उठता है। मेरे नेत्र मुझसे रूठे हुए से रहते हैं और वे कृष्ण को देख कर मेरे वश में नहीं रहते। कृष्ण की बातें सुने बिना मुझे चैन नहीं पड़ता, तथा उसकी बातें सुनने पर कानों को आनंद प्राप्त होता है। यह सुन कर उसकी सखी ने प्रियतम से भौंह मोड़ने की, वक्र दृष्टि से देखने की, रूठने की तथा फिर मान जाने की शिक्षा दी।
फागुन लाग्यौ जब ते तब ते रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
फागुन लाग्यौ जब ते तब ते ब्रजमंडल धूम मच्यौ है।.
नारि नवेली बचै नहिं एक विसेख यहै सवै प्रेम अच्यौ है।.
साँझ सकारे वही रसखानि सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है।.
को सजनी निलजी न भई अब कौन भटू जिहिं मान बच्यौ है॥.
phaagun laagyau jab te tab te brajma.nDal dhuum machyau hai।.
naari navelii bachai nahi.n ek visekh yahai savai prem achyau hai।.
saa.njh sakaare vahii raskhaani sura.ng gulaal lai khel rachyau hai।.
ko sajnii niljii n bha.ii ab kaun bhaTuu jihi.n maan bachyau hai||.
phaagun laagyau jab te tab te brajma.nDal dhuum machyau hai।.
naari navelii bachai nahi.n ek visekh yahai savai prem achyau hai।.
saa.njh sakaare vahii raskhaani sura.ng gulaal lai khel rachyau hai।.
ko sajnii niljii n bha.ii ab kaun bhaTuu jihi.n maan bachyau hai||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! जबसे फागुन का महीना लगा है, तब से सारे ब्रज-मंडल से धूम मची हुई है। कोई भी युवती इस धूमधाम से नहीं बची है और सभी ने एक विशेष प्रकार का प्रेम पी लिया है। प्रातः और सांय आनंद-सागर कृष्ण लाल गुलाल लेकर फाग का खेल खेलते रहते हैं। हे सजनी! इस फागुन के महीने में कौन ऐसी ब्रजबाला है जो निर्लज्ज नहीं बन गई है तथा जिसका मान बचा रह गया है?
यह देखि धतूरे के पात चवात रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
यह देखि धतूरे के पात चवात औ गात सो धूलि लगावत है।.
चहुँ ओर जटा अटकै लटके फनि सो कफनी फहरावत हैं॥.
रसखानि जेई चितवै चित दै तिनके दुखदुंद भजावत हैं।.
गज खाल कमालकी माल विसाल सो गाल वजावत आवत है॥.
yah dekhi dhatuure ke paat chavaat au gaat so dhuuli lagaavat hai।.
chahu.n or jaTa aTkai laTke phani so kaphnii phahraavat hai.n||.
raskhaani je.ii chitvai chit dai tinke dukhdu.nd bhajaavat hai.n।.
gaj khaal kamaalakii maal visaal so gaal vajaavat aavat hai||.
yah dekhi dhatuure ke paat chavaat au gaat so dhuuli lagaavat hai।.
chahu.n or jaTa aTkai laTke phani so kaphnii phahraavat hai.n||.
raskhaani je.ii chitvai chit dai tinke dukhdu.nd bhajaavat hai.n।.
gaj khaal kamaalakii maal visaal so gaal vajaavat aavat hai||.
Explanation व्याख्या
रसखान शिव की स्तुति करते हुए कहते हैं कि यह देखो शिव धतूरे के पत्ते चबाते हैं तथा शरीर में धूलि लगाते हैं। उनकी जटाएँ चारों और बिखर कर लटक रही हैं। उनके गले में पड़ा हुआ सर्प साधु-वस्त्र के समान दिखाई दे रहा है। रसखान कहते हैं कि जो मन लगाकर शिव की इस मूर्ति को देखते हैं, शिव उनके दु:खों को नष्ट करते हैं। वे गज की खाल ओढ़े, कपालों की माला पहने हुए गाल बजाते हुए आते हैं।
खेलतु फाग लख्यी पिय प्यारी रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
खेलतु फाग लख्यी पिय प्यारी को ता सुख की उपमा किहिं दीजै।.
देखत ही बनि आवै भलै रसखान कहा है जो वारि न कीजै॥.
ज्यौं ज्यौं छबीली कहै पिचकारी लै एक लई यह दूसरी लीजै।.
त्यौं त्यौं छबीलो छकै छवि छाक सो हेरै हँसे न टरै खरौ भीजै॥.
khelatu phaag lakhyii piy pyaarii ko ta sukh kii upma kihi.n diijai।.
dekhat hii bani aavai bhalai raskhaan kaha hai jo vaari n kiijai||.
jyau.n jyau.n chhabiilii kahai pichkaarii lai ek la.ii yah duusarii liijai।.
tyau.n tyau.n chhabiilo chhakai chhavi chhaak so herai ha.nse n Tarai kharau bhiijai||.
khelatu phaag lakhyii piy pyaarii ko ta sukh kii upma kihi.n diijai।.
dekhat hii bani aavai bhalai raskhaan kaha hai jo vaari n kiijai||.
jyau.n jyau.n chhabiilii kahai pichkaarii lai ek la.ii yah duusarii liijai।.
tyau.n tyau.n chhabiilo chhakai chhavi chhaak so herai ha.nse n Tarai kharau bhiijai||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखी से फाग-लीला का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! मैंने कृष्ण और उनकी प्यारी राधा को फाग खेलते हुए देखा। उस समय की जो शोभा थी, उसकी किस प्रकार उपमा दी जा सकती है। उस समय की शोभा तो देखते ही बनती है और कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो उस शोभा पर न्यौछावर न की जा सके। ज्यों-ज्यों वह सुंदरी राधा चुनौती देकर एक के बाद दूसरी पिचकारी कृष्ण के ऊपर चलाती है, त्यों-त्यों वे रूप के नशे में मस्त होते जाते हैं। राधा की पिचकारी को देखकर वे हँसते तो हैं, पर वे वहाँ से भागे नहीं और खड़े-खड़े भीगते रहे।
अँखियाँ अँखियाँ सों सकाय रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
रसखानि के प्रान सुधा भरियो अधरान पै त्यों अधरा धरिबो।.
इतने सब मैन के मोहनी जंत्र पै मंत्र बसीकर सी करिबो॥.
बाँकी बिलोकनि रंग भरी रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
बाँकी बिलोकनि रंग भरी रसखानि खरी मुसकानि सुहाई।.
बोलत बैन अमीनिधि चैन महारस ऐन सुने सुखदाई।.
सजनी बन में पुर बीथिन में पिय गोहन लागो फिरै मोरि माई।.
बाँसुरी टेर सुनाइ अली अपनाइ लई ब्रजराज कन्हाई॥.
श्री सुख यौ न बखान सकै रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
श्री सुख यौ न बखान सकै वृषभान सुता जू को रूप उजारो।.
हे रसखान तू ज्ञान संभार तरैनि निहार जु रीझन हारो।.
चारु सिंदूर को लाल रसाल लसै ब्रज बाल को भाल टिकारो।.
गोद में मानौ विराजत है घनस्याम के सारे को सारे को सारो॥.
shrii sukh yau n bakhaan sakai vrishabhaan suta juu ko ruup ujaaro।.
he raskhaan tuu j~na.aan sa.mbhaar taraini nihaar ju riijhan haaro।.
chaaru si.nduur ko laal rasaal lasai braj baal ko bhaal Tikaaro।.
god me.n maanau viraajat hai ghanasyaam ke saare ko saare ko saaro||.
shrii sukh yau n bakhaan sakai vrishabhaan suta juu ko ruup ujaaro।.
he raskhaan tuu j~na.aan sa.mbhaar taraini nihaar ju riijhan haaro।.
chaaru si.nduur ko laal rasaal lasai braj baal ko bhaal Tikaaro।.
god me.n maanau viraajat hai ghanasyaam ke saare ko saare ko saaro||.
Explanation व्याख्या
कोई गोपी अपनी सखि से राधा के सौंदर्य का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! राधा के मुख की शोभा का कौन वर्णन कर सकता है। उसका सौंदर्य प्रकाशित करने वाला है। रसखान कहते हैं कि हे मनुष्य! तू अपना ज्ञान संभाल और यदि तू राधा के रूप का कुछ बोध करना चाहता है तो नक्षत्रों की ओर देख, अर्थात् जिस प्रकार नक्षत्रों की प्रभा अनुपम है, उसी प्रकार राधा का रूप भी अद्वितीय है। उस ब्रजबाला के मस्तक पर लगा हुआ सिंदूर का टीका अत्यंत सुंदर एवं सरस है। वह टीका ऐसा प्रतीत होता है मानो चंद्रमा की गोद में मंगल सुशोभित हो।
आयो हुतो नियरें रसखानि रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
आयो हुतो नियरें रसखानि कहा कहूँ तू न गई वह ठैया।.
या ब्रज में सिगरी बनिता सब बारति प्राननि लेत बलैया।.
कोऊ न काहू की कानि करै कछु चेटक सो जु कर्यो जदुरैया।.
गाइगो तान जमाइगो नेह रिझाइगो प्रान चराइगो गैया॥.
मोहन के मन भाइ गयौ रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya Arth
मोहन के मन भाइ गयौ इक भाइ सो ग्वालिनै गोधन गायौ।.
ताको लग्यौ चट, चौहट सो दुरि औचक गात सो गात छुवायौ॥.
mohan ke man bhaa.i gayau ik bhaa.i so gvaalinai godhan gaayau।.
taako lagyau chaT, chauhaT so duri auchak gaat so gaat chhuvaayau||.
raskhaani lahii ini chaaturta chupchaap rahii jab lo ghar aayau।.
nain nachaa.ii chitai muskaa.i su oT hvai jaa.i a.nguuTha dikhaayau||.
mohan ke man bhaa.i gayau ik bhaa.i so gvaalinai godhan gaayau।.
taako lagyau chaT, chauhaT so duri auchak gaat so gaat chhuvaayau||.
raskhaani lahii ini chaaturta chupchaap rahii jab lo ghar aayau।.
nain nachaa.ii chitai muskaa.i su oT hvai jaa.i a.nguuTha dikhaayau||.
Explanation व्याख्या
जब ग्वालिन ने मधुर स्वर से गोचारण का गीत गाया तो वह कृष्ण को बहुत अच्छा लगा और साथ ही गाने वाली गोपी के प्रति आकृष्ट हो गए। ग्वालिन ने अचानक लज्जा के कारण अपना शरीर अपने शरीर से छिपा लिया, अर्थात् वह लज्जा के कारण सिमट गई। रसखान कहते हैं कि उसने इतनी चतुरता से कार्य किया कि जब तक उसका घर नहीं आया तब तक तो वह चुपचाप रही और जब उसका घर आ गया तो आँखे नचाकर, मुस्कुराकर और ओट में होकर कृष्ण को अँगूठा दिखाकर अपने घर में घुस गई।
गावैं गुनी गनिका गंधर्ब औ रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
गावैं गुनी गनिका गंधर्ब औ सारद सेस सबै गुन गावत।.
नाम अनंत गनंत गनेस ज्यौं ब्रह्मा त्रिलोचन पार न पावत।.
जोगी जती तपसी अरु सिद्ध निरंतर जाहि समाधि लगावत।.
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावत॥.
सोहत हैं चँदवा सिर मौर रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
सोहत हैं चँदवा सिर मौर के जैसियै सुंदर पाग कसी है।.
भाल लिख्यो बिधि हेत को बंधन खोलि सकै अस को हितकारी॥.
सुंदर स्याम सिरोमनि मोहन रसखान के सवैया Raskhan ke Savaiya
सुंदर स्याम सिरोमनि मोहन जोहन मैं चित चोरत है।.
बाँके बिलोकनि की अवलोकनि नोकनि कै दृग जोरत है।.
रसखानि महावर रूप सलोने को मारग तैं मन मोरत है।.
ग्रहकाज समाज सबै कुल लाज लला ब्रजराज को तोरत है॥.
रसखान परिचय
रसखान
रसखान (जन्म:1548 ई) कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। [1]उनका जन्म पिहानी, भारत में हुआ था। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे विट्ठलनाथ के शिष्य थे एवं वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे। रसखान को 'रस की खान' कहा गया है। इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं|
No comments:
Post a Comment