रघुकुल प्रगटे हैं रघुबीर ।
देस देस से टीको आयो रतन कनक मनि हीर ।
घर घर मंगल होत बधाई भै पुरवासिन भीर ।
आनंद मगन होइ सब डोलत कछु ना सौध शरीर ।
मागध ब।दी सबै लुटावैं गौ गयंद हय चीर ।
देत असीस सूर चिर जीवौ रामचन्द्र रणधीर ।
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