प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
एक त साबन बीत गेल
दोसर भादब बीत गेल
तेसर बीतल जाइछै आसिन सन के मास यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
कार्तिक चिठ्ठिया लीखाएब
अगहन पीया के मंगायब
पुस कुसलों ने बुझलऊँ परदेशिया यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
माघ सीरक भरायब
फागून फगुआ खेलाएब
चैत चीतयो ने रहतई थीर यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
बैसाख साड़ी हम रंगायब
जेठ पहीर पीया घर जायब
अखाढ़ बेनिया डोलाएब उमरेस में
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
असाढ़ पुरि गेल बारह मास यौ
धरबै जोगनीक भेष यौ ना…..
यहाँ पढ़ें – विद्यापति का साहित्य / जीवन परिचय एवं अन्य रचनाएं
No comments:
Post a Comment