कखन हरब दुख मोर, हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल, दुखहि जिवन गेल, सपनहु नहि सुख मोर।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि, भैरव धरु करुआर।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति करब अन्त मोहि पार।
यहाँ पढ़ें – विद्यापति का साहित्य / जीवन परिचय एवं अन्य रचनाएं
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कखन हरब दुख मोर, हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल, दुखहि जिवन गेल, सपनहु नहि सुख मोर।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि, भैरव धरु करुआर।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति करब अन्त मोहि पार।
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