हे अविनासी दुलहा, कब ले जैहौ अपनी ओर॥टेक॥
यहि रे नगरिया में, मन नहिं लागै हे।
अँखियाँ से बहि गेलै लोर॥
यहि रे नगरिया में, गोतिनि बैरिनियाँ हे।
निसदिन लड़ै बरजोर॥
यहि रे नगरिया में, सासु-ननदिया हे।
निसदिन करै झकझोर॥
यहि रे नगरिया में, काम आरु क्रोध तृष्णा हे।
निसदिन सतवै छै मोर।
यहि रे नगरिया में, लोभ मोह अहंकार हे।
कबहुँ न चैन दैदै मोर॥
जबतक आप दाया नहिं करिहौं हे।
तबतक सुख नहिं मोर॥
‘रामदास’ की अरजी विनतिया हे।
ले चलो अपनी ओर॥
सतगुरु शिष्य को सुधारै हो रामा रामेश्वरदास भजन / Satguru Shishya Ko Sudhaarai Rameshwardas Bhajan
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