गजब की बाँसुरी बजती थी वृन्दावन बसैया की बिन्दु जी भजन
Gajab Ki BansuriBajti Thi Vrindavan Basaiya Ki Bindu Ji Bhajan
गजब की बाँसुरी बजती थी वृन्दावन बसैया की,
करूँ तारीफ़ मुरली कि या मुरलीधर कन्हैया की।
जहाँ चलता था न कुछ काम तीरों से कमानों से,
विजय नटवर की होती थी वहां बंसी की तानों से।
मुरलीवाले मुरलिया बजा दे जरा,
उससे गीता का ज्ञान सिखा दे जरा।
तेरी बंसी में भरा है वेद मन्त्रों का प्रचार।
फिर वही बंसी बजाकर कर दो भारत का सुधार।
तनपै हो काली कमलिया गले में गुंजों का हार।
इस मनोहर वेश में आ जा सांवलिया एक बार॥
ब्रज कि गलियों में गोरस लुटा दे जरा।
मुरली वाले मुरलिया बजा दे जरा॥
सत्यता के हों स्वर जिसमें और उल्फ़त की हो लय।
एकता की रागिनी हो वह जो करती है विजय॥
जिसके एक लहजे में तीनों लोक का दिल हिल उठे।
तेरे भक्तों को अब जरूरत उसी मुरली की है॥
ऐसी मुरली कि तान सुना दे जरा।
मुरलीवाले मुरलिया बजा दे जरा॥
कर्म यमुना ‘बिन्दु’ हो और धर्म का आकाश हो।
चाह की हो चाँदनी साहस का चंद्र विकास हो॥
फिर से वृदावन हो भारत, प्रेम का हास-विलास हो,
मिलकर सब आपस में नाचें, इस तरह का रास हो॥
फिर से जीवन कि ज्योति जगा दे जरा॥
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