भूलो वन मन मुरक मिलायो।
हरदम हेर-फेर मन यहि विधि शब्द लखा गुरु मोह जगायो।
जगी समाधि सुरत भई सूधी पूरन बृम परम पद पायो।
छूटो भरम सकल भय नासी सत्तनाम गुरु पटो लिखायो।
निस दिन करत विहार नाम को जूड़ीराम आनंद उर छायो।
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