भारी मर्म शर्म न टूटै।
शर्म साद गुरु के सनमुख कर ओंगन आठ पहर दिन लूटै।
चौहट हाट घाट वन भूलों लागी जिकर फिकर नहिं छूटै।
स्वारथ सदा समारथ मन के माया मोह गुस्ट नहीं फूटै।
दुरलभ देह गमाय भजन बिन जूड़ी चेत कालजम कूटै।
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