पतझड़ न खिज़ां है न गर्द ओ गुबार है बिन्दु जी भजन

 Bhajan Patjhad Na Khizan HaiNa Gard O Gubar Hai Bindu Ji Bhajan

पतझड़ न खिज़ां है न गर्द ओ गुबार है,
दीवानों की ज़िन्दगी में सदा ही बहार है।
ज़िन्दादिली जहाँ है हम उस अंजुमन के है,
हम आशिक़े वतन हैं मगर ख़ुश वतन के हैं।
सोहबत पसंद भी है तो गुंचा वतन के हैं,
हम बुलबुल शैदा हैं मगर उस चमन के हैं,
जिसमें सिवाय गुल के न ख़ालिश है न ख़ार है।
दीवानों की ज़िन्दगी में सदा ही बहार है।

कोई भी अजी ज़िस्म के ख़ामोश नहीं हैं,
वस्ल-ए-जहाँ की उनको मगर होश नहीं है।
सब देखते सुनते भी हैं बेहोश नहीं है,
है नूर नशे में न नशे का ख़ुमार है।
दीवानों की ज़िन्दगी में सदा ही बहार है।

फ़ौलाद तसव्वुर की शरारत मरोड़ दी है,
फ़िक्रों की जो जंजीर बँधी है वो तोड़ दी है।
ख्वाहिशे हवा की हर चाल मोड़ दी है,
मल्लाह के हाथ ही कश्ती छोड़ दी है।
अब डूबी है सागर में या सागर के पार है,
दीवानों की ज़िन्दगी में सदा ही बहार है।

महबूब की याद में जब आते हैं आँसू,
आबादिए हस्ती को हिला जाते हैं आँसू।
सैलाब आबे इश्क़ का बढ़ा जाते हैं आँसू,
आँखों के ‘बिन्दु’ बनके बता जाते हैं आँसू।
दरिया-ए-दिल मौज है मीठी फुहार है,
दीवानों की ज़िन्दगी में सदा ही बहार है। 

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