नगर भ्रमिये गुरु करै उपदेशवा किंकर जी भजन / Bhajan Nagar Bhramiye Guru Karai Updeshwa Kinkar Ji Bhajan

 

नगर भ्रमिये गुरु करै उपदेशवा, सेहो मन सुतल निचित।
उठू उठू आहो मन गुरु के भजन करु, करु सत्संग से प्रीति॥
सत्संगति बिनु भव नहिं तरिहो, कहत सकल श्रुति नीति।
काम क्रोध अरु लोभ अंहकार, तिनसे रहहु भय भीति॥
डरत जो रहहि गुरुपद गहहि, सेहो भव लेतहु जीति।
दृष्टिपथ शब्द पथ अंतर अंत धसु, तब मिलिहैं सत चीत॥
चोरी जारी नशा हिंसा मिथ्या से बचल रहु, तब होबहु निचित।
कहै अछि ‘किंकर’ सुन रे मनुवाँ, गावहु गुरु के गीत॥

Laal Kavi ki Rachnaen pad

नगर भ्रमिये गुरु करै उपदेशवा किंकर जी भजन / पद/ मिश्रित रचना आपको कैसी लगी ?

Comments

Popular Posts

Ahmed Faraz Ghazal / अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल /Allama Iqbal Ghazal

Ameer Minai Ghazal / अमीर मीनाई ग़ज़लें

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

Ye Naina Ye Kajal / ये नैना, ये काजल, ये ज़ुल्फ़ें, ये आँचल

Akbar Allahabadi Ghazal / अकबर इलाहाबादी ग़ज़लें

Sant Surdas ji Bhajan lyrics संत श्री सूरदास जी के भजन लिरिक्स

Adil Mansuri Ghazal / आदिल मंसूरी ग़ज़लें

बुन्देली गारी गीत लोकगीत लिरिक्स Bundeli Gali Geet Lokgeet Lyrics

Mira Bai Ke Pad Arth Vyakhya मीराबाई के पद अर्थ सहित