न तो रूप है न तो रंग है बिन्दु जी भजन
Bhajan Na To Roop Hai Na To Rang HaiBindu Ji Bhajan
न तो रूप है न तो रंग है,
न तो गुणों की कोई खान है।
फिर श्याम कैसे शरण में लें,
इसी सोच फिक्र में जान है।
नफ़रत है जिनसे उन्हें सदा,
उन्हीं अवगुणों में मैं हूँ बँधा।
कलि कुटिलता है कपट भी है,
हठ भी और अभिमान भी है।
तन मन वचन से विचार से,
लगी लौ है इस संसार से।
पर स्वप्न में भी तो भूलकर,
उनका कुछ भी न ध्यान है।
सुख-शान्ति की तो तलाश है,
साधन न एक भी पास है।
न तो योग है न तप कर्म है,
न तो धर्म पुण्य दान है।
कुछ आसरा है तो यही,
क्यों करोगे मुझ पे कृपा नहीं।
इक दीनता का हूँ ‘बिन्दु’ मैं,
वो दयालुता के निधान हैं।
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