जो मन-तन विश्राम न पावे।
काम क्रोध तिसना मद मातो माया सौं लौ ल्यावै।
कर तप खंड-खंड स्वारथ के स्वांग बनाई जगत रिझावै।
दुख-सुख हान-लाभ नहिं जाके कर्म पैरना नाच नचावै।
जूड़ीराम शब्द बिन चीन्हें एक ठौर नहिं बास बसावै।
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