Bhajan Jai-Jai Bindu Aur BrajnandanBindu Ji Bhajan
जय-जय बिन्दु और ब्रजनंदन।
दोऊ वनवासी वन विरहत दोऊ जन अभिनंदन।
दोऊ प्रकट होत अति आतुर दीन दुःख औ क्रन्दन।
द्रवत हृदय दोउन के देखे फँसे दोऊ दृग फंदन।
दोऊ सोहाग सोहागिन के विर्हागिन के हित चन्दन।
रसिक जनन के दोऊ रज निधि मानिन मान निकन्दन।
दोऊ जब मिल जात परस्पर कटत जगत के फंदन।
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