बसहु मन! मनमोहन के पाँव! बिन्दु जी भजन
Bhajan Basahu Man! Manmohan KePaav! Bindu Ji Bhajan
बसहु मन! मनमोहन के पाँव!
पग तल भूमि रेख कुञ्जन बीच कुटीर बना।
वान विराग विचार विटप में रस पसून प्रकटाव।
तिनके सिंचन हित नैनन सों विमल ‘बिन्दु’ बरताव॥
मुझ सा नमक हराम न और।
कभी नहीं उनका गुण गाता खाता जिनका कौर।
अधम अटपटा अधिक आलसी मंडल का सिरमौर॥
स्वामी की न गुलामी करता बदनामी हर तौर।
हूँ कलंक का ‘बिन्दु’ चाहता पद नख शशि में ठौर॥
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