बहै तिरबेनी के धार, सखि! देहिया में॥टेक॥
बायाँ बहै जमुना धार, दायाँ बहै गंगा धार।
बीच सरोसति धार, सखि! देहिया में॥1॥
डारो पलक किवार, देखो दशम दुआर।
यहीं तिरबेनी धार, सखि! देहिया में॥2॥
यहीं रेाजे तों नहाबो, सब पाप धोय बहाबो।
होथौं विमल विचार, सखि! देहिया में॥3॥
गुरु सेबो ‘लाल दास’, तब पैभे भेद खास।
जैभे संगम किनार, सखि! देहिया में॥4॥
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