ऐसो निज नाम नजर नहिं आया।
निकटई है तो निहार न देखत लेखत-लेखत जनम गमायो।
फर्क है बीज नीचमत डालत बिन गुरु संध चीन नहिं पायो।
व्याप रहे सब ठौर एक सो बिन विवेक जुग-जुग डहकायो।
जूड़ीराम जैसई को तैसो ने कहुं गयो बहुरि नहिं आयो।
हिंदी कवि पर कविता, कहानी, ग़ज़ल - शायरी, गीत -लोकगीत, दोहे, भजन, हास्य - व्यंग्य और कुछ अन्य रचनाएं साहित्य के भंडार से
ऐसो निज नाम नजर नहिं आया।
निकटई है तो निहार न देखत लेखत-लेखत जनम गमायो।
फर्क है बीज नीचमत डालत बिन गुरु संध चीन नहिं पायो।
व्याप रहे सब ठौर एक सो बिन विवेक जुग-जुग डहकायो।
जूड़ीराम जैसई को तैसो ने कहुं गयो बहुरि नहिं आयो।
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