ऐसो जीव जाल पचिहारो।
रच-रच रहो गही न मारग काम क्रोध काया मतवारो।
नाहक भार मरो माया की वन-वन फिरो भार नहिं डारो।
नहिं जानत कब काल झपाटे जैसे बाज लवा को मारो।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें, फिर-फिर जगत जाल में डारो।
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