अब हम पायो पिया मनमानी।
मिट गई त्रास आस भई पूरन प्रेम प्रीत सों गत मतठानी।
जैसे मीन अंगा नीर की सब संसेत रहत आगानी।
जागो भाग सुहागन सत भयो काल कर्म की फिकर भुलानी।
जूड़ीराम सतगुरु की महिमा जिन दीना निज नाम निसानी।
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