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Showing posts from December, 2024

मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं Popular Poems of Manglesh Dabral

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mangesh dabral hindi poet author परिचय  मंगलेश डबराल एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और लेखक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी सामयिक और सामाजिक कविता के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 1948 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था। डबराल की कविताओं में गहरी सामाजिक चेतना, आम आदमी की समस्याओं और लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रगाढ़ समझ मिलती है। उनकी कविताओं का विषय मुख्यत: संघर्ष, असमानता, और सामाजिक न्याय था। Parichay Manglesh Dabral Kavita Rachna Pita Ki Tasveer Manglesh Dabral Kavita Prem Kartii Strii Manglesh Dabral Kavita Sone Se Pehle Manglesh Dabral Kavita Ashashwat Manglesh Dabral Kavita Pahaad Par Laatnen Manglesh Dabral Kavita Shahar Phir Se Manglesh Dabral Kavita Saat Din Ka Safar Manglesh Dabral Kavita Maa Ka Namaskar Manglesh Dabral Kavita In Sardiyon Mein Manglesh Dabral Kavita Tasveer Manglesh Dabral Kavita Ishwar Manglesh Dabral Kavita Naye Yug Mein Shatru Manglesh Dabral Kavita Sangatkaar Manglesh Dabral Kavita Bachon Ke Liye Chitthi Manglesh Dabral Kavita Sangatkaar Manglesh Dabral Ka...

Azhar Inayati Ghazal / अज़हर इनायती की ग़ज़लें

 ग़ज़लें अज़हर इनायती की  हम ने जो क़सीदों को अज़हर इनायती ग़ज़ल हम ने जो क़सीदों को मुनासिब नहीं समझा शह ने भी हमें अपना मुसाहिब नहीं समझा. काँटे भी कुछ इस रुत में तरह-दार नहीं थे कुछ हम ने उलझना भी मुनासिब नहीं समझा. ख़ुद क़ातिल-ए-अक़दार-ए-शराफ़त है ज़माना इल्ज़ाम है मैं हिफ़्ज़-ए-मरातिब नहीं समझा. हम-असरों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर' याँ 'ज़ौक़' ने ग़ालिब' को भी ग़ालिब नहीं समझा. हर एक रात को महताब अज़हर इनायती ग़ज़ल हर एक रात को महताब देखने के लिए मैं जागता हूँ तेरा ख़्वाब देखने के लिए. न जाने शहर में किस किस से झूट बोलूँगा मैं घर के फूलों को शादाब देखने के लिए. इसी लिए मैं किसी और का न हो जाऊँ मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए. किसी नज़र में तो रह जाए आख़िरी मंज़र कोई तो हो मुझे ग़र्क़ाब देखने के लिए. अजीब सा है बहाना मगर तुम आ जाना हमारे गाँव का सैलाब देखने के लिए. पड़ोसियों ने ग़लत रंग दे दिया 'अज़हर' वो छत पे आया था महताब देखने के लिए. इस बार उन से मिल के अज़हर इनायती ग़ज़ल इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए उन की सहेलियों के भी आँचल भिगो गए. चौराहों...

Akbar Hyderabadi Ghazal / अकबर हैदराबादी की ग़ज़लें

ग़ज़लें अकबर हैदराबादी की  आँख में आँसू का अकबर हैदराबादी ग़ज़ल आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है यूँ धुआँ देने लगा है जिस्म ओ जाँ का अलाओ जैसे रग रग में रवाँ इक आतिश-ए-सय्याल है फैलते जाते हैं दाम-ए-नारसी के दाएरे तेरे मेरे दरमियाँ किन हादसों का जाल है घिर गई है दो ज़मानों की कशाकश में हयात इक तरफ ज़ंजीर-ए-माज़ी एक जानिब हाल है हिज्र की राहों से 'अकबर' मंज़िल-ए-दीदार तक यूँ है जैसे दरमियाँ इक रौशनी का साल है. बदन से रिश्ता-ए-जाँ अकबर हैदराबादी ग़ज़ल बदन से रिश्ता-ए-जाँ मोतबर न था मेरा मैं जिस में रहता था शायद वो घर न था मेरा क़रीब ही से वो गुज़रा मगर ख़बर न हुई दिल इस तरह तो कभी बे-ख़बर न था मेरा मैं मिस्ल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना जिस चमन में रहा वहाँ के गुल न थे मेरे समर न था मेरा न रौशनी न हरारत ही दे सका मुझ को पराई आग में कोई शरर न था मेरा ज़मीन को रू-कश-ए-अफ़लाक कर दिया जिस ने हुनर था किस का अगर वो हुनर न था मेरा कुछ और था मेरी तश्कील ओ इर्तिक़ा का सबब मदार सिर्फ़ हवाओं पे गर न था मेरा जो धूप दे गया मुझ को वो मेरा सूरज था जो छाँव दे न सका व...