दुष्यंत कुमार (1933–1975) हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, शायर और लेखक थे। वे आधुनिक हिंदी ग़ज़ल के प्रणेता माने जाते हैं और अपनी रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों को बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविता में आम जनता की आवाज़ सुनाई देती है, जो अपने समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का सटीक वर्णन करती है।
दुष्यंत कुमार की रचनाएँ
दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध ग़ज़लें/कविताएँ
- आग जलती रहे कविता
- आज कविता
- आवाज़ों के घेरे कविता
- अनुकूल वातावरण कविता
- दृष्टान्त कविता कविता
- कौन-सा पथ कविता
- साँसों की परिधि कविता
- सूखे फूल : उदास चिराग़ कविता
- एक मन:स्थिति कविता
- झील और तट के वृक्ष
- निर्जन सृष्टि कविता
- ओ मेरे प्यार के अजेय बोध
- अच्छा-बुरा कविता
- गीत का जन्म कविता
- विवेकहीन
- एक आशीर्वाद
- भविष्य की वन्दना कविता
- राह खोजेंगे कविता
- सूना घऱ
- गांधीजी के जन्मदिन पर कविता
- दो मुक्तक कविता
- प्रयाग की शाम कविता
- असमर्थता कविता
- आत्मकथा
- विवश चेतना कविता
- छत पर : एक अनुभूति कविता
- शीत-प्रतिक्रिया कविता
- कल कविता
- इसलिए कविता
- फिर कविता
- प्यार : एक दशा कविता
- एक साद्धर्म्य कविता
- गली से राजपथ पर
- एक मित्र के नाम कविता
- आभार-प्रदर्शन कविता
- उपरान्त वार्ता कविता
- योग-संयोग
- यात्रानुभूति
- उपक्रम
- एक सफ़र पर
- परवर्ती-प्रभाव
- शगुन-शंका
- सुबह : समाचार-पत्र के समय
- आत्मालाप
- वसंत आ गया
- ईश्वर को सूली
- चिंता
- देश
- जनता
- मौसम
- तुलना
- युद्ध और युद्ध-विराम के बीच
- सवाल
- एक चुनाव-परिणाम
- गाते-गाते
- प्रतीति
- गीत-कौन यहाँ आया था
- वर्षा
- विदा के बाद : प्रतीक्षा
- एक जन्म दिन पर
- एक और प्रसंग
- साँझ : एक विदा-दृश्य
- सृष्टि की आयोजना
- एक समझौता
- होंठों के नीचे फिर
- गीत-अब तो पथ यही है
- मेरे स्वप्न
- तुझे कैसे भूल जाऊँ
- होली की ठिठोली-ग़ज़ल 1
- होली की ठिठोली-ग़ज़ल 2
- ग़ज़ल-याद आता है कि मैं हूँ शंकरन या मंकरन
- फिर कर लेने दो प्यार प्रिये

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