न साथी है न मंज़िल का पता है / 'असअद' भोपाली

न साथी है न मंज़िल का पता है
मोहब्बत रास्ता ही रास्ता है

वफ़ा के नाम पर बर्बाद हो कर
वफ़ा के नाम से दिल काँपता है

मैं अब तेरे सिवा किस को पुकारूँ
मुक़द्दर सो गया ग़म जागता है

वो सब कुछ जान कर अनजान क्यूँ हैं
सुना है दिल को दिल पहचानता है

ये आँसू ढूँडता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है

श्रेणी: ग़ज़ल

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