रामचर्चा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद
Ramcharcha (Novel) : Munshi Premchand
रामचर्चा अध्याय 1
जन्म
प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और सीता को सिंहासन पर बैठे देखा होगा और इनके सिंहासन के सामने कुछ फासले पर कागज और बांसों का बड़ा पुतला देखा होगा। इस पुतले के दस सिर और बीस हाथ देखे होंगे। वह रावण का पुतला है। हजारों बरस हुए, राजा रामचन्द्र ने लंका में जाकर रावण को मारा था। उसी कौमी फतह की यादगार में विजयदशमी का मेला होता है और हर साल रावण का पुतला जलाया जाता है। आज हम तुम्हें उन्हीं राजा रामचन्द्र की जिंदगी के दिलचस्प हालात सुनाते हैं।
गंगा की उन सहायक नदियों में, जो उत्तर से आकर मिलती हैं, एक सरजू नदी भी है। इसी नदी पर अयोध्या का मशहूर कस्बा आबाद है। हिन्दू लोग आज भी वहां तीर्थ करने जाते हैं। आजकल तो अयोध्या एक छोटासा कस्बा है; मगर कई हजार साल हुए, वह हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा शहर था। वह सूर्यवंशी खानदान के नामीगिरामी राजाओं की राजधानी थी। हरिश्चन्द्र जैसे दानी, रघु जैसे ग़रीब परवर, भगीरथ जैसे वीर राजा इसी सूर्यवंश में हुए। राजा दशरथ, इसी परसिद्ध वंश के राजा थे। रामचन्द्र राजा दशरथ के बेटे थे।
उस जमाने में अयोध्या नगरी विद्या और कला की केन्द्र थी। दूरदूर के व्यापारी रोजगार करने आते थे। और वहां की बनी हुई चीजें खरीदकर ले जाते थे। शहर में विशाल सड़कें थीं। सड़कों पर हमेशा छिड़काव होता था। दोनों ओर आलीशान महल खड़े थे। हर किस्म की सवारियां सड़कों पर दौड़ा करती थीं। अदालतें, मदरसे, औषधालय सब मौजूद थे। यहां तक कि नाटकघर भी बने हुए थे, जहां शहर के लोग तमाशा देखने जाते थे। इससे मालूम होता है कि पुराने जमाने में भी इस देश में नाटकों का रिवाज था। शहर के आसपास बड़ेबड़े बाग थे। इन बागों में किसी को फल तोड़ने की मुमानियत न थी। शहर की हिफाजत के लिए मजबूत चहारदीवारी बनी हुई थी। अंदर एक किला भी था। किले के चारों ओर गहरी खाई खोदी गयी थी, जिसमें हमेशा पानी लबालब भरा रहता था। किले के बुर्जों पर तोपें लगी रहती थीं। शिक्षा इतनी परचलित थी कि कोई जाहिल आदमी ूंढ़ने से भी न मिलता था। लोग बड़े अतिथि का सत्कार करने वाले, ईमानदार, शांतिपरेमी, विद्याभ्यासी, धर्म के पाबन्द और दिल के साफ थे। अदालतों में आजकल की तरह झूठे मुकदमे दायर नहीं किये जाते थे। हर घर में गायें पाली जाती थीं। घीदूध की इफरात थी। खेतों में अनाज इतना पैदा होता था कि कोई भूखा न रहने पाता था। किसान खुशहाल थे। उनसे लगान बहुत कम लिया जाता था। डाके और चोरी की वारदातें सुनाई भी न देती थीं। और ताऊन, हैजा वगैरा बीमारियों का नाम तक न था। वह सब राजा दशरथ की बरकत थी।
एक रोज राजा दशरथ शिकार खेलने गये और घोड़ा दौड़ाते हुए एक नदी के किनारे जा पहुंचे। नदी दरख्तों की आड़ में थी। वहीं जंगल में अन्धक मुनि नामक एक अन्धा रहता था। उसकी स्त्री भी अंधी थी। उस वक्त उनका नौजवान बेटा श्रवण नदी में पानी भरने गया हुआ था। उसके कलशे के पानी में डूबने की आवाज सुनकर राजा ने समझा कि कोई जंगली हाथी नहा रहा है। तुरत शब्दवेधी बाण चला दिया। तीर नौजवान के सीने में लगा। तीर का लगना था कि वह जोर से चिल्लाकर गिर पड़ा। राजा घबराकर वहां गये तो देखा कि एक नौजवान पड़ा तड़प रहा है। उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। बेहद अफसोस हुआ। नौजवान ने उनको लज्जित और दुःखित देखकर समझाया—अब रंज करने से क्या फायदा! मेरी मौत शायद इसी तरह लिखी थी। मेरे मांबाप दोनों अंधे हैं। उनकी कुटी वह सामने नजर आ रही है। मेरी लाश उनके पास पहुंचा देना। यह कहकर वह मर गया।
राजा ने नौजवान की लाश को कन्धे पर रखा और अंधे के पास जाकर यह दुःखद समाचार सुनाया। बेचारे दोनों बुड्ढे, तिस पर दोनों आंखों के अंधे, और यही इकलौता बेटा उनकी जिंदगी का सहारा था—इसके मरने का समाचार सुनकर फूटकर रोने लगे। जब आंसू जरा थमे तो उन्हें राजा पर गुस्सा आया। उनको खूब जी भरकर कोसा और यह शाप देकर कि जिस तरह बेटे के शोक में हमारी जान निकल रही है उसी तरह तुम भी बेटे ही के शोक में मरोगे, दोनों मर गये। राजा दशरथ भी रोधोकर यहां से विदा हुए।
राजा दशरथ के अब तक कोई संतान न थी। संतान ही के लिए उन्होंने तीन शादियां की थीं। बड़ी रानी का नाम कौशल्या था, मंझली रानी का सुमित्रा और छोटी रानी का कैकेयी। तीनों रानियां भी संतान के लिए तरसती रहती थीं। अंधे का शाप राजा के लिये वरदान हो गया। चाहे बेटे के शोक में मरना ही पड़े, बेटे का मुंह तो देखेंगे। ताज और तख्त का वारिस तो पैदा होगा। इस ख्याल से राजा को बड़ी तसकीन हुई। इसके कुछ ही दिन बाद अपने गुरु वशिष्ठ के मशविरे से राजा ने एक यज्ञ किया। इसमें बहुत से ऋषिमुनि जमा हुए और सबने राजा को आशीवार्द दिया। यज्ञ के पूरे होते ही तीनों ही रानियां गर्भवती हुईं और नियत समय के बाद तीनों रानियों के चार राजकुमार पैदा हुए। कौशल्या से रामचन्द्र हुए, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेयी से भरत। सारे राज में मंगलगीत गाये जाने लगे। परजा ने खूब उत्सव मनाया। राजा ने इतना सोनाचांदी दान किया कि राज में कोई निर्धन न रह गया। उनकी दिली कामना पूर्ण हुई। कहां एक बेटे का मुंह देखने को तरसते थे, कहां चारचार बेटे हो गये। घर गुलजार हो गया। ज्योतिहीन आंखें रोशन हो गयीं।
चारों लड़कों का लालनपालन होने लगा। जब वह जरा सयाने हुए तो गुरु वशिष्ठ ने उन्हें शिक्षा देना शुरू किया। चारों लड़के बहुत ही जहीन थे, थोड़े ही दिनों में वेदशास्त्र सब खत्म कर लिये और रणविद्या में भी खूब होशियार हो गये। धनुविद्या में, भाला चलाने में, कुश्ती में, किसी फन में इनका समान न था। मगर उनमें घमण्ड नाम को भी न था। चारों बुजुर्गों का अदब करते थे। छोटों को भी वह सख्तसुस्त न कहते। उनमें आपस में बड़ी गहरी मुहब्बत थी। एक दूसरे के लिए जान देते थे। चारों ही सुन्दर, स्वस्थ और सुशील थे। उन्हें देखकर सबके मुंह से आशीवार्द निकलता था। सब कहते थे, यह लड़के खानदान का नाम रोशन करेंगे। यों तो चारों में एकसी मुहब्बत थी, मगर लक्ष्मण को रामचन्द्र से, शत्रुघ्न को भरत से खास परेम था। राजा दशरथ मारे खुशी के फूले न समाते थे।
ताड़का और मारीच का वध
एक दिन राजा दशरथ दरबार में बैठे हुए मन्त्रियों से कुछ बातचीत कर रहे थे कि ऋषि विश्वामित्र पधारे। विश्वामित्र उस समय के बहुत बड़े तपस्वी थे। वह क्षत्रिय होकर भी केवल अपनी आराधना के बल से बरह्मर्षि के पद पर पहुंच गये थे। सभी ऋषि उनके सामने आदर से सिर झुकाते थे। मगर ज्ञानी होने पर भी वह किसी हद तक क्रोधी थे। किसी ने उनकी मजीर के खिलाफ काम किया और उन्होंने शाप दिया। इससे सभी राजेमहाराजे उनसे डरते थे; क्योंकि उनके शाप को कोई रद्द न कर सकता था। लड़ाई की विद्या में भी वह अद्वितीय थे। राजा दशरथ ने सिंहासन से उतर कर उनका स्वागत किया और उन्हें अपने सिंहासन पर बिठाकर बोले—आज इस गरीब के घर को अपने चरणों से पवित्र करके आपने मुझ पर बड़ा एहसान किया। मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताइये; वह सर आंखों पर बजा लाऊं।
विश्वामित्र ने आशीवार्द देकर कहा—महाराज! हम तपस्वियों को राजदरबार की याद उसी समय आती है, जब हमें कोई तकलीफ होती है, या जब हमारे ऊपर कोई अत्याचार करता है। मैं आजकल एक यज्ञ कर रहा हूं; किन्तु राक्षस लोग उसे अपवित्र करने की कोशिश करते हैं। वह यज्ञ की वेदी पर रक्त और हिड्डयां फेंकते हैं। मारीच और सुबाहु दो बड़े ही विद्रोही राक्षस हैं। यह सारा फिसाद उन्हीं लोगों का है। मुझमें अपनी तपस्या का इतना बल है कि चाहूं तो एक शाप देकर उनकी सारी सेना को जलाकर राख कर दूं; पर यज्ञ करते समय क्रोध को रोकना पड़ता है। इसलिए मैं आपके पास फरियाद लेकर आया हूं। आप राजकुमार रामचन्द्र और लक्ष्मण को मेरे साथ भेज दीजिये, जिससे वह मेरे यज्ञ की रक्षा करें और उन राक्षसों को शिथिल कर दें। दस दिन में हमारा यज्ञ पूरा हो जायगा। राम के सिवा और किसी से यह काम न होगा।
राजा दशरथ बड़ी मुश्किल में पड़ गये। राम का वियोग उन्हें एक क्षण के लिये सह्य न था। यह भय भी हुआ कि लड़के अभी अनुभवी नहीं हैं, डरावने राक्षसों से भला क्या मुकाबला कर सकेंगे। डरते हुए बोले—हे पवित्र ऋषि! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है; किन्तु इन अल्पवयस्क लड़कों को राक्षसों के मुकाबले में भेजते मुझे भय होता है। उन्हें अभी तक युद्धक्षेत्र का अनुभव नहीं है। मैं स्वयं अपनी सारी सेना लेकर आपके यज्ञ की रक्षा करने चलूंगा। लड़कों को साथ भेजने के लिए मुझे विवश न कीजिये।
विश्वामित्र हंसकर बोले—महाराज! आप इन लड़कों को अभी नहीं जानते। इनमें शेरों कीसी हिम्मत और ताकत है। मुझे पूरा विश्वास है कि ये राक्षसों को मार डालेंगे। इनकी तरफ से आप निडर रहिये। इनका बाल भी बांका न होगा।
राजा दशरथ फिर कुछ आपत्ति करना चाहते थे; मगर गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राजी हो गये। और दोनों राजकुमारों को बुलाकर ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने का आदेश दिया। रामचन्द्र और लक्ष्मण यह आज्ञा पाकर दिल में बहुत खुश हुये। अपनी वीरता को दिखाने का ऐसा अच्छा अवसर इन्हें पहले न मिला था। दोनों ने युद्ध में जाने के कपड़े पहने, हथियार सजाये और अपनी माताओं से आशीवार्द लेने के बाद राजा दशरथ के चरणों पर गिरकर खुशीखुशी बिदा हुए। विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को एक ऐसा मन्त्र बताया कि जिसको पॄने से थकावट पास नहीं आती। नयेनये बहुत अद्भुत हथियारों का उपयोग करना सिखाया, जिनके मुकाबले में कोई ठहर न सकता था।
कई दिन के बाद तीनों आदमी गंगा को पार करके घने जंगल में जा पहुंचे। विश्वामित्र ने कहा—बेटा! इस जंगल में ताड़का नाम की दानवी रहती है। वह इस रास्ते से गुजरने वाले आदमी को पकड़कर खा डालती है। पहले यहां एक अच्छा नगर बसा हुआ था; पर इस दावनी ने सारे आदमियों को खा डाला। अब वही बसा हुआ नगर घना जंगल है। कोई आदमी भूलकर भी इधर नहीं आता। हम लोगों की आहट पाकर वह दानवी आती होगी। तुम तुरन्त उसे तीर से मार डालना।
विश्वामित्र अभी यह वाकया बयान कर ही रहे थे कि हवा में जोर की सनसनाहट हुई और ताड़का मुंह खोले दौड़ती हुई आती दिखायी दी। उसकी सूरत इतनी डरावनी और डील इतना बड़ा था कि कोई कम साहसी आदमी होता तो मारे डर के गिर पड़ता। उसने इन तीनों आदमियों के सामने आकर गरजना और पत्थर फेंकना शुरू किया। विश्वामित्र ने रामचन्द्र को तीर चलाने का इशारा किया। रामचन्द्र एक औरत पर हथियार चलाना नियम के विरुद्ध समझते थे। ताड़का दानवी थी तो क्या, थी तो औरत। मगर ऋषि का संकेत पाकर उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी। ऐसा तीर चलाया कि वह ताड़का की छाती में चुभ गया। ताड़का जोर से चीखकर गिर पड़ी और एक क्षण में तड़पतड़पकर मर गयी।
तीनों आदमी फिर आगे चले और कई दिनों बाद विश्वामित्र के आश्रम में पहुंच गये। था तो यह भी जंगल; पर इसमें अधिकतर ऋषि लोग रहा करते थे। शेर, नीलगाय, हिरन निडर घूमा करते थे। इस तपोभूमि के परभाव से शिकार खेलने वाले भी शिकार की तरफ परवृत्त न होते थे।
दूसरे दिन से विश्वामित्र ने यज्ञ करना शुरू किया। राम और लक्ष्मण कमर में तलवार लटकाये, धनुष और बाण हाथ में लिये जंगल के चारों ओर गश्त लगाने लगे। न खानेपीने की फिक्र थी, न सोनेलेटने की। रातदिन बिना सोये और बिना खाये पहरा देते थे। इस परकार पांच दिन कुशल से बीत गये। मगर छठे दिन क्या देखते हैं कि मारीच और सुबाहु राक्षसों की सेना लिये यज्ञ को अपवित्र करने चले आ रहे हैं। दोनों भाई तुरन्त संभल गये। ज्योंही मारीच सामने आया, रामचन्द्र ने ऐसा तीर मारा कि वह बड़ी दूर जाकर गिर पड़ा। सुबाहु बाकी था। उसे भी एक अग्निबाण में ठंडा कर दिया। फिर तो राक्षसी सेना के पैर उखड़ गये। दोनों भाइयों ने दूर तक उनका पीछा किया और कितनों ही को मार डाला। इस परकार यज्ञ सुन्दर रीति से पूरा हो गया। किसी परकार की रुकावट न हुई। विश्वामित्र ने दोनों भाइयों की खूब परशंसा की।
विवाह
राम और लक्ष्मण अभी विश्वामित्र के आश्रम में ही थे कि मिथिला के राजा जनक ने विश्वामित्र को अपनी लड़की सीता के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए नवेद भेजा। उस समय में परायः विवाह स्वयंवर की रीति से होते थे, लड़की का पिता एक उत्सव करता था, जिसमें दूरदूर से आकर लोग सम्मिलित होते थे। उत्सव में साहस या युद्ध के कौशल की परीक्षा होती थी। जो युवक इस परीक्षा में सफल होता था, उसी के गले में कन्या जयमाला डाल देती थी। उसी से उसका विवाह हो जाता था। विश्वामित्र की हार्दिक इच्छा थी कि सीता का विवाह राम से हो जाय। वह यह भी जानते थे कि राम परीक्षा में अवश्य सफल होंगे। इसलिए जब वह मिथिला जाने लगे, तो राम और लक्ष्मण को भी साथ लेते गये। राजा दशरथ से आज्ञा लेने के लिए अयोध्या जाने और वहां से मिथिला आने के लिए काफी वक्त न था। मिथिला वहां से करीब ही थी। इसलिए विश्वामित्र ने सीधे वहां जाने का निश्चय किया।
आजकल जिस परान्त को हम बिहार कहते हैं, वही उस जमाने में मिथिला कहलाता था। मिथिला के राजा जनक बड़े विद्वान और ज्ञानी पुरुष थे, बड़ेबड़े ऋषिमुनि उनसे ज्ञान की शिक्षा लेने आते थे। कई साल पहिले मिथिला में बड़ा भारी अकाल पड़ा था। उस वक्त ऋषियों ने मिलकर फैसला किया कि यह काल यज्ञ ही से दूर हो सकता है। इस यज्ञ को पूरा करने की एक शर्त यह भी थी कि राजा जनक खुद हल चलायें। राजा जनक को अपनी परजा अपने पराण से भी अधिक पिरय थी। इसके सिर से इस संकट को दूर करने के लिए उन्होंने इस यज्ञ को शुरू कर दिया। जब वह हलबैल लेकर खेत में पहुंचे और हल चलाने लगे तो क्या देखते हैं कि फल की नोक से जो जमीन खुद गयी है उसमें एक चांदसी लड़की पड़ी हुई है। राजा के कोई सन्तान न थी; तुरन्त इस लड़की को गोद में उठा लिया और घर लाये। उसका नाम सीता रखा, क्योंकि वह फल की नोक से निकली थी। फल को संस्कृत में सित कहते हैं। इस ईश्वरीय देन को राजा जनक ने बड़े लाड़ और प्यार से पाला। और अच्छेअच्छे विद्वानों से शिक्षा दिलवायी। इसी सीता के विवाह पर यह स्वयंवर रचा गया था।
रामलक्ष्मण और विश्वामित्र सोन, गंगा इत्यादि नदियों को पार करते हुए चौथे दिन मिथिला पहुंचे। सारे शहर के लोग इन राजकुमारों की सुन्दरता और डीलडौल देखकर उन पर मोहित हो गये। सबके मुंह से यही आवाज निकलती थी कि सीता के योग्य कोई है तो यही राजकुमार है; जैसी सुन्दर वह है वैसे ही खूबसूरत रामचन्द्र हैं। मगर देखना चाहिये, इनसे शिव का धनुष उठता है या नहीं।
राजा जनक को विश्वामित्र के आने की खबर हुई तो उन्होंने उनका बड़ा आदर सत्कार किया। जब उन्हें मालूम हुआ कि वह दोनों नौजवान राजा दशरथ के बेटे हैं, तब उनके दिल में भी यही ख्वाहिश हुई कि काश सीता का ब्याह राम से हो जाता; मगर स्वयंवर की शर्त से लाचार थे।
विश्वामित्र ने राजा से पूछा—महाराज, आपने स्वयंवर के लिए कौनसी परीक्षा चुनी है?
जनक ने उत्तर दिया—भगवन्! क्या कहूं, कुछ कहा नहीं जाता। सैकड़ों बरस गुजर गये, एक बार शिवजी ने मेरे किसी पूर्वज को अपना धनुष दिया था। वह धनुष तब से मेरे घर में रखा हुआ था। एक दिन मैंने सीता से अपनी पूजा की कोठरी को लीप डालने के लिए कहा—उसी कोठरी में वह पुराना धनुष रखा हुआ था। सैकड़ों बरस से कोई उसे उठा न सका था। सीता ने जाकर देखा तो उसके आसपास बहुत कूड़ा जमा हो गया था। उसने धनुष को उठकर एक ओर रख दिया। मैं पूजा करने गया तो धनुष को हटा हुआ देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जब मालूम हुआ कि सीता ने उसे उठाकर जमीन साफ की है, तब मैंने शर्त की कि ऐसी वीर कन्या का विवाह उसी वर से करुंगा, जो धनुष को च़ाकर तोड़ देगा। अब देखूं, लड़की के भाग्य में क्या है।
दूसरे दिन स्वयंवर की तैयारियां शुरू हुईं। मैदान में एक बड़ा शामियाना ताना गया। सैकड़ों सूरमा जो अपने बल के घमंड में दूरदूर से आये हुए थे, आआकर बैठे। शहर के लाखों स्त्रीपुरुष एकत्रित हुए। शिवजी के धनुष को बहुतसे आदमी उठाकर सभा में लाये। जब सब लोग आ गये तो राजा जनक ने खड़े होकर कहा—ऐ भारतवर्ष के वीरो! यह शिवजी का धनुष आप लोगों के सामने रखा है। जो इसे तोड़ देगा, उसी के गले में सीता जयमाल डालेगी।
यह सुनते ही सूरमाओं और वीरों ने धनुष के पास जाजाकर जोर लगाना शुरू किया। सभी राजकुमार सीता से विवाह करने का स्वप्न देख रहे थे। कमर कसकसकर घमंड से ऐंठतेअकड़ते धनुष के पास जाते, और जब वह तिल भर भी न हिलता तो अपमान से गर्दन झुकाये अपनासा मुंह लिये लौट आते थे। सारी सभा में एक भी ऐसा योद्घा न निकला जो धनुष को उठा सकता, तोड़ने का तो जिक्र ही क्या।
राजा जनक ने यह दशा देखी तो उन्हें बड़ा भय हुआ। सभा में खड़े होकर निराशासूचक स्वर में बोले—शायद यह वीरभूमि अब वीरों से खाली हो गयी। जभी तो इतने आदमियों में एक भी ऐसा न निकला जो इस धनुष को तोड़ सकता। यदि मैं ऐसा जानता तो स्वयंवर के लिए यह शर्त न रखता। ऐसा परतीत होता है कि सीता अविवाहित रहेगी। यही इसके भाग्य में है तो मैं क्या कर सकता हूं। आप लोग अब शौक से जा सकते हैं। इस हौसले और ताकत पर आप लोगों को यहां आने की जरूरत ही क्या थी?
लक्ष्मण बड़े जोशीले युवक थे। जनक की यह बातें सुनकर उनसे सहन न हो सका! जोश से बोला—महाराज! ऐसा अपनी जबान से न कहिये। जब तक राजा रघु का वंश कायम है, यह देश वीरों से खाली नहीं हो सकता। मैं डींग नहीं मारता। सच कहता हूं कि अगर खाली भाई साहब की आज्ञा पाऊं तो एकदम मैं इस धनुष के पुरजेपुरजे कर दूं। मेरे भाई साहब चाहें तो इसे एक हाथ से तोड़ सकते हैं। इसकी हकीकत ही क्या है। लक्ष्मण की यह जोशपूर्ण बातें सुनकर सारे सूरमा दंग रह गये। रामचन्द्र छोटे भाई की तबियत से परिचित थे। उनका हाथ पकड़कर खींच लिया और बोले—भाई, यह समय इस तरह की बातें करने का नहीं है। जब तक तुम्हारे बड़े मौजू़द हैं, तुम्हें जबान खोलना, उचित नहीं।
लक्ष्मण बैठ गये तो विश्वामित्र ने रामचन्द्र से कहा—बेटा, अब तुम जाकर इस धनुष को तोड़ो, जिसमें राजा जनक को तस्कीन हो। रामचन्द्र सीता को पहले ही दिन एक बाग में देख चुके थे। दोनों भाई बाग में सैर करने गये थे और सीता देवी की पूजा करने आयी थीं। वहीं दोनों की आंखें मिली थीं। उसी वक्त से रामचन्द्र को सीता से परेम हो गया था। वह इसी समय की परतीक्षा में थे। विश्वामित्र की आज्ञा पाते ही उन्होंने परणाम किया और धुनष की ओर चले। सूरमाओं ने अपना अपमान कम करने के विचार से उन पर आवाजे़ं कसना शुरू किया। एक ने कहा, जरा संभले हुए जाइयेगा, ऐसा न हो, अपने ही जोर में गिर पड़िये। दूसरा बोला—इस पुराने धनुष पर दया कीजिये, कहीं पुरजेपुरजे न कर दीजियेगा। तीसरा बोला—जरा धीरेधीरे कदम रखिये, जमीन हिल रही है। किन्तु रामचन्द्र ने इस तीनों की तरफ तनिक भी ध्यान न दिया। धनुष को इस तरह उठा लिया जैसे कोई फूल हो और इतनी जोर से च़ाया कि बीच से उसके दो टुकड़े हो गये। इसके टूटने से ऐसी आवाज हुई कि लोग चौंक पड़े। धनुष ज्योंही टूटकर गिरा, वह सफलता की परसन्नता से उछलकर दौड़े। राजा जनक सभा के बाहर चिन्तापूर्ण दृष्टि से यह दृश्य देख रहे थे। रामचन्द्र को गले लगा लिया और सीताजी ने आकर उसके गले में जयमाल डाल दी। नगर वालों ने परसन्न होकर जयजयकार करना शुरू किया। मंगलगान होने लगा, बन्दूकें छूटने लगीं। और सूरमा लोग एकएक करके चुपकेचुपके सरकने लगे। शहर के छोटेबड़े धनीनिर्धन, सब खुशी से फूले न समाते थे। सभी ने मुंहमांगी मुराद पायी। सलाह हुई कि राजा दशरथ को शुभ समाचार की सूचना देनी चाहिये। कई ऊंट के सवार तुरन्त कौशल की ओर रवाना किये गये। विश्वामित्र राजकुमारों के साथ राजभवन में जाना ही चाहते थे कि मंडप के बाहर शोर और गुल सुनायी देने लगा। ऐसा मालूम होता था कि बादल गरज रहा है। लोग घबड़ाघबड़ाकर इधरउधर देखने लगे कि यह क्या आफत आने वाली है। एक क्षण के बाद भेद खुला कि परशुराम ऋषि क्रोध से गरजते चले आ रहे हैं। देवों कासा कद, अंगारेसी लाललाल आंखें, क्रोध से चेहरा लाल, हाथ में तीरकमान, कंधे पर फरसा—यह आपका रूप था। मालूम होता था, सबको कच्चा ही खा जायंगे। आते ही गरजकर बोले—किसने मेरे गुरु शिवजी का धनुष तोड़ा है, निकल आये मेरे सामने, जरा मैं भी देखूं वह कितना वीर है?
रामचन्द्र ने बहुत नमरता से कहा—महाराज! आपके किसी भक्त ने ही तोड़ा होगा और क्या। परशुराम ने फरसे को घुमाकर कहा—कदापि नहीं, यह मेरे भक्त का काम नहीं। यह किसी शत्रु का काम है। अवश्य मेरे किसी वैरी ने यह काम किया है। मैं भी उसका सिर तन से अलग कर दूंगा। किसी तरह क्षमा नहीं कर सकता। मेरे गुरु का धनुष और उसे कोई क्षत्रिय तोड़ डाले? मैं क्षत्रियों का शत्रु हूं। जानीदुश्मन! मैंने एकदो बार नहीं, इक्कीस बार क्षत्रियों के रक्त की नदी बहायी है। अपने बाप के खून का बदला लेने के लिये मैंने जहां क्षत्रियों को पाया है, चुनचुनकर मारा है। अब फिर मेरे हाथों क्षत्रियों पर वही आफत आने वाली है। जिसने यह धनुष तोड़ा हो, मेरे सामने निकल आवे।
दिलेर और मनचले लक्ष्मण यह ललकार सुनकर भला कब सहन कर सकते थे। सामने आकर बोले—आप एक सड़ेसे धनुष के टूटने पर इतना आपे से क्यों बाहर हो रहे हैं? लड़कपन में ऐसे कितने धनुष खेलखेलकर तोड़ डाले, तब तो आपको तनिक भी क्रोध न आया। आज इस पुराने, बेदम धनुष के टूट जाने से आप क्यों इतना कुपित हो रहे हैं? क्या आप समझते हैं कि इन गीदड़ भभकियों से कोई डर जायगा?
जैसे घी पड़ जाने से आग और भी तेज हो जाती है, उसी तरह लक्ष्मण के ये शब्द सुनकर परशुराम और भी भयावने हो गये। फरसे को हाथ में लेकर बोले—तू कौन है जो मेरे साथ इस धृष्टता से व्यवहार करता है? तुझे क्या अपनी जान जरा भी प्यारी नहीं है, जो इस तरह मेरे सामने जबान चलाता है? क्या यह धनुष भी वैसा ही था, जैसे तुमने लड़कपन में तोड़े थे? यह शिवजी का धनुष था।
लक्ष्मण बोले—किसी का धनुष हो, मगर था बिल्कुल सड़ा हुआ। छूते ही टूट गया। जोर लगाने की जरूरत ही न पड़ी। इस जरासी बात के लिए व्यर्थ आप इतना बिगड़ रहे हैं। परशुराम और भी झल्लाकर बोले—अरे मूर्ख, क्या तू मुझे नहीं पहचानता? मैं तुझे लड़का समझकर अभी तरह दिये जाता हूं, और तू अपनी धृष्टता नहीं छोड़ता। मेरा क्रोध बुरा है। ऐसा न हो, मैं एक बार में तेरा काम तमाम कर दूं।
लक्ष्मण—मेरा काम तो तमाम हो चुका! हां, मुझे डर है कि कहीं आपका क्रोध आपको हानि न पहुंचाये। आप जैसे ऋषियों को कभी क्रोध न करना चाहिये।
परशुराम ने फरसा संभालते हुए दांत पीसते हुए कहा—क्या कहूं, तेरी उमर तुझे बचा रही है, वरना अब तक तेरा सिर तन से जुदा कर देता।
लक्ष्मण—कहीं इस भरोसे मत रहियेगा। आप फूंककर पहाड़ नहीं उड़ा सकते। आप बराह्मण हैं इसलिए आपके ऊपर दया आती है। शायद अभी तक आपका किसी क्षत्रिय से पाला नहीं पड़ा। जभी आप इतना बफार रहे हैं।
रामचन्द्र ने देखा कि बात ब़ती जा रही है, तो लक्ष्मण का हाथ पकड़कर बिठा दिया और परशुराम से हाथ जोड़कर बोले—महाराज! लक्ष्मण की बातों का आप बुरा न मानें। यह ऐसा ही धृष्ट है। यह अभी तक आपको नहीं जानता, वरना यों आपके मुंह न लगता। इसे क्षमा कीजिये, छोटों का कुसूर बड़े माफ किया करते हैं। आपका अपराधी मैं हूं, मुझे जो दण्ड चाहें, दें। आपके सामने सिर झुका हुआ है।
रामचन्द्र की यह आदरपूर्ण बातचीत सुनकर परशुराम कुछ नर्म पड़े कि एकाएक लक्ष्मण को हंसते देखकर फिर उनके बदन में आग लग गयी। बोले—राम! तुम्हारा यह भाई अति धृष्ट है। विनय और शील तो इसे छू तक नहीं गया। जो कुछ मुंह में आता है, बक डालता है। रंग इसका गोरा है। पर दिल इसका काला है। ऐसा अशिष्ट लड़का मैंने नहीं देखा।
अभी तक तो लक्ष्मण, परशुराम को केवल छेड़ रहे थे, किन्तु ये बातें सुनकर उन्हें क्रोध आ गया। बोले—सुनिये महाराज! छोटों का काम बड़ों का आदर करने का है, किन्तु इसकी भी सीमा होती है। आप अब इस सीमा से ब़े जा रहे हैं। आखिर आप क्यों इतना अपरसन्न हो रहे हैं? आपके बिगड़ने से तो धनुष जुड़ न जायगा। हां, जगहंसाई अवश्य होगी। अगर यह धनुष आपको ऐसा ही पिरय है, तो किसी कारीगर से जुड़वा दिया जायगा। इसके अतिरिक्त और हम क्या कर सकते हैं। आपका क्रोध बिलकुल व्यर्थ है।
मारे क्रोध के परशुराम की आंखें बीरबहूटी की तरह लाल हो गयीं। वह थरथर कांपने लगे। उनके नथने फड़कने लगे। रामचन्द्र ने उनकी यह दशा देखकर लक्ष्मण को वहां से चले जाने का इशारा किया और अत्यन्त विनीत भाव से बोले—महाराज! बड़ों को छोटे, कमसमझ आदमियों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिये। इसके बकने से क्या होता है। हम सब आपके सेवक हैं। धनुष मैंने तोड़ा है। इसका दोषी मैं हूं। इसका जो दण्ड आप उचित समझें मुझे दें। आप इसका जो दण्ड मांगें, मैं देने को तैयार हूं।
परशुराम ने नर्म होकर कहा—तावान मैं तुमसे क्या लूंगा। मुझे यही भय है कि इस धनुष के टूट जाने से क्षत्रियों को फिर घमण्ड होगा और मुझे फिर उनका अभिमान तोड़ना पड़ेगा। यह शिव का धनुष नहीं टूटा है, बराह्मणों के तेज और बल को धक्का लगा है।
रामचन्द्र ने हंसकर कहा—ऋषिराज! क्षत्रिय ऐसे नीच नहीं हैं कि इस जरासे धनुष के टूट जाने से उन्हें घमण्ड हो जाय। अगर आप मेरी वीरता की विशेषता देखना चाहते हैं तो इससे भी बड़ी परीक्षा लेकर देखिए।
परशुराम—तैयार है?
राम—जी हां, तैयार हूं।
परशुराम ने अपना तीर और कमान रामचन्द्र के समीप फेंककर कहा—अच्छा, इस धनुष पर परत्यंचा च़ा। देखूं तो कितना वीर है।
रामचन्द्र ने धनुष उठा लिया और बड़ी आसानी से परत्यंचा च़ाकर बोले—कहिए, अब क्या करुं? तोड़ दूं इस धनुष को?
परशुराम का सारा क्रोध शान्त हो गया। उन्होंने ब़कर रामचन्द्र को हृदय से लगा लिया और उन्हें आशीवार्द देते हुए अपना धनुषबाण लेकर बिदा हो गये। राजा जनक की जान सूख रही थी कि न जाने क्या विपदा आने वाली है। परशुराम के चले जाने से जान में जान आयी। फिर मंगलगान होने लगे।
राजा दशरथ रामचन्द्र और लक्ष्मण का समाचार न पाने से बहुत चिन्तित हो रहे थे। यह शुभसमाचार मिला तो बड़े परसन्न हुए। अयोध्या में भी उत्सव होने लगा। दूसरे दिन धूमधाम से बारात सजा कर वह मिथिला चले।
राजा जनक ने बारात का खूब सेवासत्कार किया और शास्त्रविधि से सीता जी का विवाह रामचन्द्र से कर दिया। उनकी एक दूसरी लड़की थी जिसका नाम उर्मिला था। उसकी शादी लक्ष्मण से हो गयी। राजा जनक के भाई के भी दो लड़कियां थीं। वे दोनों भरत और शत्रुघ्न से ब्याही गयीं। कई दिन के बाद बारात बिदा हुई। राजा जनक ने अनगिनती सोनेचांदी के बर्तन, हीरेजवाहर, जड़ाऊ झूलों से सजे हुए हाथी, नागौरी बैलों से जुते हुए रथ, अरब जाति के घोड़े दहेज में दिये।
रामचर्चा अध्याय 2
वनवास
राजा दशरथ कई साल तक बड़ी तनदेही से राज करते रहे, किन्तु बुढ़ापे के कारण उनमें अब पहलेसा जोश न था, इसलिए उन्होंने रामचन्द्र जी से राज्य के कामों में मदद लेना शुरू किया। इसमें एक गुप्त युक्ति यह भी थी कि रामचन्द्र को शासन का अनुभव हो जाय। यों केवल नाम के लिए, वह स्वयं राजा थे, किन्तु अधिकतर काम रामजी के हाथों से ही होते थे। राम के सुन्दर परबन्ध की सारे राज्य में परशंसा होने लगी। जब राजा दशरथ को विश्वास हो गया कि राम अब शासक के धर्मों से भली परकार अवगत हो गये हैं और उन पर योग्यता से आचरण भी कर सकते हैं तो एक दिन उन्होंने अपने दरबार के परमुख व्यक्तियों को तथा नगर के परतिष्ठित पुरुषों को बुलाकर कहा—मुझे आप लोगों की सेवा करते एक समय बीत गया। मैंने सदा न्याय के साथ राज करने की कोशिश की। अब मैं चाहता हूं कि राज्य रामचन्द्र के सिपुर्द कर दूं और अपने जीवन के अन्तिम दिन किसी एकान्त स्थान में बैठकर परमात्मा की याद में बिताऊं।
यह परस्ताव सुनकर लोग बहुत परसन्न हुए और बोले—महाराज! आपकी शरण में हम जिस सुख और चैन से रहे उनकी याद हमारे दिलों से कभी न मिटेगी। जी तो यही चाहता है कि आपका हाथ हमारे सिर पर हमेशा रहे। लेकिन अब आपकी यही इच्छा है कि आप परमात्मा की याद में जिन्दगी बसर करें तो हम लोग इस शुभ काम में बाधक न होंगे। आप खुशी से ईश्वर की उपासना करें। हम जिस तरह आपको अपना मालिक और संरक्षक समझते थे, उसी तरह रामचन्द्र को समझेंगे।
इसी बीच में गुरु वशिष्ठ जी भी आ गये। उन्हें भी यह परस्ताव पसन्द आया। राजा ने कहा—जब आप लोग राम को चाहते हैं तो फिर अच्छी साइत देखकर उनका राजतिलक कर देना चाहिये। जितनी ही जल्दी मुझे अवकाश मिल जाय उतना ही अच्छा। सब लोगों ने इसे बड़ी खुशी से स्वीकार किया। तिलक की साइत निश्चित हो गयी। नगर में ज्योंही लोगों को ज्ञात हुआ कि रामचन्द्र का तिलक होने वाला है, उत्सव मनाने की तैयरियां होने लगीं। जिस दिन तिलक होने वाला था, उसके एक दिन पहले से शहर की सजावट होने लगी। घरों के दरवाजों पर बन्दनवारें लटकाई जाने लगीं, बाजारों में झण्डियां लहराने लगीं, सड़कों पर छिड़काव होने लगा, बाजे बजने लगे।
रानी कैकेयी की एक दासी मन्थरा थी। वह अति कुरूप, कुबड़ी औरत थी। कैकेयी के साथ मायके से आयी थी, इसलिए कैकेयी उसे बहुत चाहती थी। वह किसी काम से रनिवास के बाहर निकली तो यह धूमधाम देखकर एक आदमी से इसका कारण पूछा। उसने कहा—तुझे इतनी खबर भी नहीं! अयोध्या ही मैं रहती है या कहीं बाहर से पकड़कर आयी है? कल श्रीरामचन्द्र का तिलक होने वाला है। यह सब उसकी तैयारियां हैं।
यह समाचार सुनते ही मन्थरा को जैसे कम्प आ गया। मारे डाह के जल उठी। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि कैकेयी के राजकुमार भरत गद्दी पर बैठें और कैकेयी राजमाता हों, तब मैं जो चाहूंगी, करुंगी फिर तो मेरा ही राज होगा और रानियों की दासियों पर धाक जमाऊंगी। सिर से पैर तक गहनों से लदी हुई निकलूंगी तो लोग मुझे देखकर कहेंगे, वह मन्थरा देवी जाती हैं। फिर मुझे किसी ने कुबड़ी कहा तो मजा चखा दूंगी। इसी तरह के मनसूबे उसने दिल में बांध रखे थे। इस खबर ने उसके सारे मनसूबे धूल में मिला दिये। जिस काम के लिये जाती थी उसे बिल्कुल भूल गयी। बदहवास दौड़ी हुई महल में गयी और कैकेयी से बोली—महारानी जी! आपने कुछ और सुना? कल राम का तिलक होने वाला है।
तीनों रानियों में बड़ा परेम था। उनमें नाम को भी सौतियाडाह न था। जिस तरह कौशल्या भरत को राम की ही तरह प्यार करती थीं, उसी तरह कैकेयी भी राम को प्यार करती थीं। रामचन्द्र सबसे बड़े थे इसलिए यह मानी हुई बात थी कि वही राजा होंगे। मन्थरा से यह खबर सुनकर कैकेयी बोली—मैं यह खबर पहले ही सुन चुकी हूं, लेकिन तूने सबसे पहले मुझसे कहा, इसलिए यह सोने का हार तुझे इनाम देती हूं। यह ले।
मन्थरा ने सिर पर हाथ मारकर कहा—महारानी! यह इनाम में शौक से लेती अगर राम की जगह राजकुमार भरत के तिलक की खबर सुनती। यह इनाम देने की बात नहीं है, रोने की बात है। आप अपना भलाबुरा कुछ नहीं समझतीं।
कैकेयी—चुप रह डाइन! तुझे ऐसी बातें मुंह से निकालते लाज भी नहीं आती? रामचन्द्र मुझे भरत से भी प्यारे हैं। तू देखती नहीं कि वह मेरा कितना आदर करते हैं? बिना मुझे सलाह लिये कोई काम नहीं करते! फिर यह सबसे बड़े हैं। गद्दी पर अधिकार भी तो उन्हीं का है! फिर जो ऐसी बात मुंह से निकाली, तो जबान खिंचवा लूंगी।
मन्थरा—हां, जबान क्यों न खिंचवा लोगी! जब बुरे दिन आते हैं, तो आदमी की बुद्धि पर इसी परकार पर्दा पड़ जाता है। तुम जैसी भोलीभाली, नेक हो, वैसा ही सबको समझती हो। राम को बेटाबेटा कहते यहां तुम्हारी जबान सूखती है, वहां रानी कौशल्या चुपकेचुपके तुम्हारी जड़ खोद रही हैं। चार दिन में वही रानी होंगी। तुम्हारी कोई बात भी न पूछेगा। बस, महाराज के पूजा के बर्तन धोया करना। मेरा काम तुम्हें समझाना था, समझा दिया। तुम्हारा नमक खाती हूं, उसका हक अदा कर दिया। मेरे लिये जैसे राम, वैसे भरत। मैं दासी से रानी तो होने की नहीं। हां, तुम्हारे विरुद्ध कोई बात होते देखती हूं तो रहा नहीं जाता। मेरे मुंह में आग लगे कहां से कहां मैंने यह जिक्र छेड़ दिया कि सबेरेसबेरे डाइन, चुड़ैल बनना पड़ा। तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।
इन बातों ने आखिर कैकेयी पर असर किया। समझी, ठीक ही तो है, रामचन्द्र राजा होकर भरत को निकाल दें या मरवा ही डालें तो कौन उनका हाथ पकड़ेगा। मैं भी दूध की मक्खी की तरह निकाल दी जाऊंगी। बहुत होगा रोटी, कपड़ा मिल जायगा। राज्य पाकर सभी की मति बदल जाती है। राम को भी अभिमान हो जाय तो क्या आश्चर्य है। जभी कौशल्या मेरी इतनी खातिर करती हैं। यह सब मुझे तबाह करने की चालें हैं। यह सोचकर उसने मन्थरा से कहा—मन्थरा, देख, मेरी बातों को बुरा न मान। मैं क्या जानती थी कि मुझे और भरत को तबाह करने के लिए कौशल रचा जा रहा है। मैं तो सीधीसादी स्त्री हूं, छक्कापंजा क्या जानूं। अब तूने यह बात सुनायी तो मुझे सचाई मालूम हो रही है; मगर अब तो तिलक की साइत निश्चित हो चुकी। कल सबेरे तिलक हो जायगा। अब हो ही क्या सकता है।
मन्थरा—होने को तो बहुत कुछ हो सकता है। बस जरा स्त्रीहठ से काम लेना पड़ेगा। मैं सारी तरकीबें बतला दूंगी। जरा इन लोगों की चालाकी देखो कि तिलक की साइत उस समय ठीक की, जब राजकुमार भरत ननिहाल में हैं। सोचो, अगर दिल साफ होता तो दसपांच दिन और न ठहर जाते! भरत के आ जाने पर तिलक होता तो क्या बिगड़ जाता। मगर वहां तो दिलों में मैल भरा हुआ है। उनकी अनुपस्थिति में चुपके से तिलक कर देना चाहते हैं।
कैकेयी—हां, यह बात भी तुझे खूब सूझी। शायद इसीलिए भरत को पहले यहां से खिसका दिया है, पहले से ही यह बात सधीबदी थी। खेद है, मुझे मिट्टी में मिलाने के लिए ऐसेऐसे षड्यंत्र रचे जाते रहे और मैं बेखबर बैठी रही। बतला, अब मैं क्या करुं? मेरी तो बुद्धि कुछ काम नहीं करती।
मन्थरा ने अपना कूबड़ हिलाकर कहा—वारी जाऊं महारानी! आप भी क्या बातें करती हैं। आपको ईश्वर ने ऐसा रूप दिया है और महाराज को आपसे ऐसा परेम है कि रात भर में आप न जाने क्याक्या कर सकती हैं। आप तो सारी बातें भूल जाती हैं। ऐसी भुलक्कड़ न होतीं तो बैरियों को ऐसे षड्यंत्र करने का मौका ही क्यों मिलता। अब तक तो भरत का कभी तिलक हो गया होता। तुम्हीं ने एक बार मुझसे कहा था कि महाराज ने तुम्हें दो वरदान देने का वचन दिया है। क्या वह बात भूल गयीं?
कैकेयी—हां, भूल तो गयी थी, पर अब याद आ गया। एक बार महाराज लड़ाई के मैदान से घायल होकर आये थे और मैंने मरहमपट्टी करके रात भर में उन्हें अच्छा कर दिया था। उसी समय उन्होंने मुझे दो वरदान दिये थे। मैंने कहा था, मुझे आपकी दया से किस बात की कमी है। जब आवश्यकता होगी, मांग लूंगी।
मन्थरा—बस, फिर तो सारी बात बनीबनायी है। आज तुम कोपभवन में जाकर बैठ जाओ। आभूषण इत्यादि सब उतार फेंको। केवल एक मैलीकुचैली साड़ी पहन लेना, और सिर के बाल खोलकर ज़मीन पर पड़ रहना। महाराज तुम्हारी यह दशा देखते ही घबरा जायेंगे। बस उसी समय दोनों वचन की याद दिलाकर कहना कि अब उन्हें पूरा कीजिये—एक यह कि राम के बदले भरत का तिलक हो, दूसरे यह कि राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया जाय। महाराज वचन के पक्के हैं, अवश्य ही मान जायंगे। फिर आनन्द से राज्य करना।
दिन तो उत्सव की तैयारियों में गुजरा। रात को जब राजा दशरथ कैकेयी के महल में पहुंचे तो चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ, न कहीं गाना, न बजाना, न राग, न रंग। घबराकर एक दासी से पूछा—यह अंधेरा क्यों छाया हुआ है, चारों तरफ उदासी क्यों फैली हुई है? तू जानती है, महारानी कैकेयी कहां हैं? उनकी तबियत तो अच्छी है?
दासी ने कहा—महारानी जी ने गानेबजाने का निषेध कर दिया है। वह इस समय कोपभवन में हैं।
महाराजा का माथा ठनका। यह रंग में क्या भंग हुआ। अवश्य कोई न कोई विपत्ति आने वाली है। उनका दिल धड़कने लगा। घबराये हुए कोपभवन में गये तो देखा, कैकेयी भूमि पर पड़ी सिसकियां भर रही हैं।
राजा दशरथ कैकेयी को बहुत प्यार करते थे। उनकी यह दशा देखते ही उनके हाथों के तोते उड़ गये। भूमि पर बैठकर बोले—महारानी! कुशल तो है? तुम्हारी तबियत कैसी है? शीघर बतलाओ, वरना मैं पागल हो जाऊंगा। क्या बात हुई है? तुम्हें किसी ने कुछ ताना दिया है? कोई बात तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध हुई है? जिसने तुमसे यह धृष्टता की हो, उसको इसी समय दण्ड दूंगा।
कैकेयी ने आंसू पोंछते हुए कहा—मुझे कुछ नहीं हुआ। बहुत भली परकार हूं। खाने को रोटियां, पहनने को कपड़े, रहने को मकान मिल ही गया है, अब और किस बात की कमी हो सकती है? आप भी परेम करते ही हैं। जाइये, उत्सव मनाइये। मुझे पड़ी रहने दीजिए। जिसका भाग्य ही बुरा है, उसे आप क्या करेंगे।
राजा ने कैकेयी को भूमि से उठाने की चेष्टा करते हुए कहा—महारानी, ऐसी बातें न करो। मुझे दुःख होता है। तुम्हें ज्ञात है, मैं तुमसे कितना परेम करता हूं। मैंने कभी तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया। तुम्हें जो शिकायत हो, साफसाफ कह दो। मैं परतिज्ञा करता हूं कि इसी समय उसे पूरा करुंगा।
कैकेयी ने त्योरियां बदलकर कहा—आप जितना मुझसे कहते हैं, उसका एक हिस्सा भी करते, तो मेरी हालत आज ऐसी खराब न होती। अब मुझे मालूम हुआ है कि आपका यह परेम केवल बातों का है। आप बातों से पेट भरना खूब जानते हैं। दुनिया आपको वचन का पक्का कहती है। आपके वंश में लोग वचन के पीछे जान देते चले आये हैं; मगर मुझसे तो आपने जितने वादे किये, उनमें एक भी पूरा न किया। अब और किस मुंह से मांगूंगी।
राजा—मुझे यह सुनकर अत्यन्त आश्चर्य हो रहा है। जहां तक मुझे याद है, मैंने तुम्हारे साथ जितने वादे किये, वे सब पूरे किये। वह कौनसा वादा है, जिसे मैंने नहीं पूरा किया? इसी समय पूरा करुंगा। बस तनिकसी बात के लिए तुम्हें कोपभवन में बैठने की क्या जरूरत थी?
कैकेयी भूमि से उठकर बैठी और बोली—याद कीजिये, एक बार आपने मुझे दो वरदान दिये थे—जिस दिन आप लड़ाई में घायल होकर लौटे थे।
राजा—हां, याद आ गया। ठीक है। मैंने दो वरदान दिये थे। मगर तुमने ही तो कहा था कि जब मुझे जरूरत होगी, मैं लूंगी।
कैकेयी—हां, मैंने ही कहा था। अब वह समय आ गया है। आप उन्हें पूरा करने को तैयार हैं?
राजा—मन और पराण से। यदि तुम जान भी मांगो तो निकालकर दे दूंगा।
कैकेयी ने जमीन की तरफ ताकते हुए कहा—तो सुनिये। मेरा पहला वरदान यह है कि राम के बदले भरत का तिलक हो, दूसरा यह कि राम को चौदह वर्ष के लिए वनवास दिया जाय।
ओह निष्ठुर कैकेयी! तूने यह क्या किया? तुझे अपने वृद्ध पति पर तनिक भी दया न आयी? क्या तुझे ज्ञात नहीं कि रामचन्द्र ही उनके जीवनाधार हैं! राजा के चेहरे का रंग पीला पड़ गया। मालूम हुआ, सांप ने काट लिया। ठंडी सांस भरकर बोले—कैकेयी क्या तुम्हारे मुंह से विष की बूंदें टपक रही हैं? क्या तुम्हारे हृदय में राम की ओर से इतना मालिन्य है? राम का आज संसार में कोई बुरा चाहने वाला नहीं। वह सबकी आंखों का तारा है। तुम्हारा वह जितना आदर करता है, उतना अपनी शायद मां का नहीं करता। तुमने आज तक उसकी शिकायत न की, बल्कि हमेशा उसके शीलविनय की तारीफ किया करती थी! आज यह कायापलट क्यों हो गया? अवश्य किसी शत्रु ने तुम्हारे कान भरे हैं और राम की बुराइयां की हैं।
कैकेयी ने तिनककर कहा—कान तुम्हारे भरे हैं, मेरे कान नहीं भरे गये हैं। अपना लाभ और हानि जानवर तक समझते हैं। क्या मैं जानवरों से भी गयीबीती हूं? निश्चय देख रही हूं कि मेरा बाग उजाड़ किया जा रहा है। क्या उसकी रक्षा न करुं? अपनी गर्दन पर तलवार चल जाने दूं? आपको अब तक मैं निर्मलहृदय समझती थी। मगर अब मालूम हुआ कि आप भी केवल बातों से परेम के हरेभरे बाग दिखाकर मुझे नष्ट करना चाहते हैं। कौशल्या रानी ने आपको खूब मन्त्र पॄाया है। उस नागिन के काटे की दवा नहीं। अब मैं दिखा दूंगी कि कैकेयी भी राजा की लड़की है, किसी शूद्र, चमार की नहीं कि इन चालों को न समझे।
राजा—कैकेयी, मैं कभी झूठ नहीं बोला, मैं तुमसे सच कहता हूं कि मैंने राम के तिलक का निश्चय स्वयं किया। कौशल्या ने इस विषय में मुझसे एक शब्द भी नहीं कहा। तुम्हारा उन पर सन्देह करना अन्याय है। राम ने भी भरत के विरुद्ध एक शब्द नहीं कहा। मेरे लिए राम और भरत दोनों बराबर हैं। किन्तु अधिकार तो बड़े लड़के का ही है। यदि मैं भरत का तिलक करना भी चाहूं, तो तुम समझती हो, भरत उसे स्वीकार करेंगे? कदापि नहीं। भरत के लिए यह असम्भव है कि वह राम का अधिकार छीनकर परसन्न हों। राम और भरत एक पराण दो शरीर हैं। तुमने इतने दिनों के बाद वरदान भी मांगे तो ऐसे, जो इस घर को नष्ट कर देंगे—शायद इस राज्य का अंत ही कर दें। खेद!
कैकेयी ने उंगली नचाकर कहा—अच्छा! तो क्या आपने समझा था कि मैं आपसे खेलने के लिए गुड़िया मांगूंगी? क्या किसी मजदूर की लड़की हूं? अब इन चिकनीचुपड़ी बातों में आप मुझे न फंसा सकेंगे। आपको और इस घर के आदमियों को खूब देख चुकी। आंखें खुल गयीं। यदि आपको वचन के सच्चे बनने का दावा है तो मेरे दोनों वरदान पूरे कीजिये। अन्यथा फिर रघुवंशी होने का घमण्ड न कीजियेगा। यह कलंक सदैव के लिए अपने माथे पर लगा लीजिए कि रघुकुल के राजा दशरथ ने वादे किये थे, पर जब उन्हें पूरा करने का समय आया तो साफ निकल गये।
राजा ने तिलमिलाकर कहा—कैकेयी, क्यों जले पर नमक छिड़कती हो! मैं अपने वचन से कभी न फिरुंगा, चाहे इसमें मेरा जीवन, मेरे वंश और मेरे राज्य का अन्त ही क्यों न हो जाय। शायद बरह्मा ने राम के भाग्य में वनवास ही लिखा हो। शायद इसी बहाने से इस वंश का नाश लिखा हो। किन्तु इसका अपयश सदा के लिए तुम्हारे नाम के साथ लगा रहेगा। मैं तो शायद यह चोट खाकर जीवित न रहूंगा। मगर मेरी यह बात गिरह बांध लो कि राम को वनवास देकर तुम भरत के राज्य का सुख न देख सकोगी।
कैकेयी ने झल्लाकर कहा—यह आप भरत को शाप क्यों देते हैं? भरत राजा होंगे। आपको उन्हें राज्य देना पड़ेगा। वह राजा हो जायं यही मेरी अभिलाषा है। मैं सुख देखने के लिए जीवित रहूंगी या नहीं, इसका हाल ईश्वर जाने।
राजा—यह तो मैं बड़ी परसन्नता से करने को तैयार हूं मेरे लिए राम और भरत में कोई अन्तर नहीं। मैं इसी समय भरत को बुलाने के लिए आदमी भेज सकता हूं। ज्योंही वह आ जायंगे, उनका तिलक हो जायगा। किन्तु राम को वनवास देते हुए मेरे हृदय के टुकड़े हुए जाते हैं। हाय! मेरा प्यारा राजकुमार चौदह वर्ष तक जंगलों में कैसे रहेगा? जो सदा फूलों के सेज पर सोया, वह पत्थर की चट्टानों पर घासपात का बिछौना बिछाकर कैसे सोयेगा? कैकेयी ईश्वर के लिए मुझ पर दया करो, इस वंश पर दया करो। अपना दूसरा वरदान पूरा करने के लिए मुझे विवश न करो।
कैकेयी ने राजा की ओर देखकर आंखें नचायीं और बोलीं—साफसाफ क्यों नहीं कहते कि मैं अपने वचन पूरे न करुंगा। क्या मैं इतना भी नहीं समझती कि राम के रहते बेचारा भरत कभी आराम से न बैठने पायेगा। राम अपनी मीठीमीठी बातों से परजा का हृदय वश में करके राज्य में क्रान्ति करा देंगे। भरत का जीवित रहना कठिन हो जायगा। मेरे दोनों वरदान आपको पूरे करने पड़ेंगे। अब आपके धोखे में न आऊंगी।
राजा समझ गये कि कैकेयी को समझाना अब बेकार है। मैं जितना ही समझाऊंगा, उतना ही यह झल्लायेगी। सिर थामकर सोचने लगे कि क्या जवाब दूं। मालूम होता है, आंखों में अंधेरा छा गया है। कोई हृदय को चीरे डालता है। हाय! जीवन की सारी अभिलाषाएं धूल में मिली जा रही हैं। ईश्वर! यदि तुम्हें यही करना था तो बेटे दिये ही क्यों। बला से नि:संतान रहता। युवा बेटे का दुःख तो न देखना पड़ता। यह तीनतीन विवाह करने का फल है! बुढ़ापे में विवाह करने का यह फल! उससे अधिक मूर्ख दुनिया में कोई नहीं जो बुढ़ापे में विवाह करता है। वह जानबूझकर विष का प्याला पीता है। हाय! सुबह होते ही राम मुझसे अलग हो जायंगे। मेरा प्यारा हृदय का टुकड़ा जंगल की राह लेगा। भगवान्! इसके पहले कि इसके वनवास की आज्ञा मेरे मुंह से निकले, तुम मुझे इस दुनिया से उठा लेना। इसके पहले मैं उसे साधुओं के भेष में वन की ओर जाते देखूं, तुम मेरी आंखों को निस्तेज कर देना। हाय! ईश्वर करता राम इतना आज्ञाकारी न होता। क्या ही अच्छा होता कि वह मेरी आज्ञा मानना अस्वीकार कर देता। कैकेयी राजा को चिंता में डूबे हुए देखकर बोली—आप सोच क्या रहे हैं? बोलिये, मेरी बातें स्वीकार करते हैं या नहीं?
राजा ने आंसुओं से भरी हुई आंखों से कैकेयी को देखकर कहा—रानी! यह पूछने की बात नहीं। अपने वचन से न फिरुंगा। तुम्हारी दोनों बातें स्वीकार हैं। तुम इतनी सुन्दर होकर हृदय से इतनी कलुषपूर्ण हो, इसका मुझे अनुमान, विचार तक न था। मैं न जानता था कि तुम मेरे दोनों वरदानों का यह परयोग करोगी। खैर, तुम्हारा राज्य तुमको सुखी करे। प्यारे राम! मुझे क्षमा करना। तुम्हारा पिता जिसने तुम्हें गोद में खिलाया, आज एक स्त्री के छल में पड़कर तुम्हारी गर्दन पर तलवार चला रहा है। किन्तु बेटा! देखना, रघुकुल के नाम पर कलंक न लगने पाये….
यह कहतेकहते राजा मूर्छित हो गये। कैकेयी दिल में परसन्न हो रही थी, कल से अयोध्या में मेरे नाम का डंका बजेगा। वह सबेरे किसी दूत को कश्मीर भेजकर भरत को बुलाने का निश्चय कर रही थी। अहा! वह घड़ी कितनी शुभ होगी, जब भरत अयोध्या के राजा होंगे! राजा थोड़ीथोड़ी देर के बाद करवट बदलते और कराहते थे। हाय राम! हाय राम! इसके अतिरिक्त उनके मुंह से कोई शब्द न निकलता था।
इस परकार सारी रात बीत गयी। सुबह को शहर के धनी मानी, विद्वान्, ऋषिमुनि और दरबार के सभासद तिलक का अनुष्ठान करने के लिए उपस्थित हुए। हवनकुण्ड में आग जलाई गयी। आचार्य लोग वेदमन्त्रों का पाठ करने लगे। भिक्षुओं का एक दल दान के रुपये लेने के लिये फाटक पर एकत्रित हो गया। लोगों की आंखें राजमहल के द्वार की ओर लगी हुई हैं। राजा साहब आज क्यों इतना विलम्ब कर रहे हैं। हर आदमी अपने पास बैठे आदमी से यही परश्न कर रहा है। शायद राजसी पोशाक पहन रहे हों। किन्तु नहीं, वह तो बहुत तड़के उठा करते हैं। अन्दर से कोई समाचार भी नहीं आता। रामचन्द्र स्नानपूजा से निवृत्ति होकर बैठे हैं। कौशल्या की परसन्नता का अनुमान कौन कर सकता है? परासाद में मंगलगीत गाये जा रहे हैं। द्वार पर नौबत बज रही है, पर दशरथ का पता नहीं।
अन्त में गुरु वशिष्ठ ने साइत टलते देखकर मन्त्री सुमन्त्र को महल में भेजा कि जाकर महाराज को बुला लाओ।
सुमन्त्र अन्दर गये तो क्या देखते हैं कि महाराज भूमि पर पड़े कराह रहे हैं। और कैकेयी द्वार पर खड़ी है। सुमन्त्र ने रानी कैकेयी को परणाम किया और बोले—महाराज की नींद अभी नहीं टूटी? बाहर गुरु वशिष्ठ जी बैठे हुए हैं। तिलक का मुहूर्त्त टला जाता है आप तनिक उन्हें जगा दें।
कैकेयी बोली—महाराज को परसन्नता के मारे आज रात भर नींद नहीं आयी। इस समय तनिक आंख लग गयी है। अभी जगा दूंगी तो उनका सिर भारी हो जायेगा। तुम तनिक जाकर रामचन्द्र को अन्दर भेज दो। महाराज उनसे कुछ कहना चाहते हैं।
सुमन्त्र ने यह दृश्य देखकर ताड़ लिया कि अवश्य कोई षड्यंत्र उठ खड़ा हुआ है। जाकर रामचन्द्र जी से यह सन्देश कहा। रामचन्द्र जी तुरन्त अन्दर आकर राजा दशरथ के सामने खड़े हो गये और परणाम करके बोले—पिताजी मैं उपस्थित हूं, मुझे क्यों स्मरण किया है?
दशरथ ने एक बार विवश निगाहों से रामचन्द्र को देखा और ठंडी सांस भर कर सिर झुका लिया। उनकी आंखों से आंसू जारी हो गये। रामचन्द्र को सन्देह हुआ कि सम्भवतः आज महाराज मुझसे अपरसन्न हैं। बोले—माता जी! पिता जी ने मेरी बातों का कुछ भी उत्तर न दिया, शायद वह मुझसे नाराज हैं।
कैकेयी बोली—नहीं बेटा, वह तुमसे नाराज नहीं हैं। तुमसे वह इतना परेम करते हैं, तुमसे क्यों नाराज होने लगे। वह तुमसे कुछ कहना चाहते हैं। किन्तु इस भय से कि शायद तुम्हें बुरा मालूम हो, या तुम उनकी आज्ञा न मानो, कहते हुए झिझकते हैं। इसलिये अब मुझी को कहना पड़ेगा। बात यह है, महाराज ने मुझे दो वचन दिये थे। आज वह उन वचनों को पूरा करना चाहते हैं। यदि तुम उन्हें पूरा करने को तैयार हो, तो मैं कहूं।
राम ने निडर भाव से कहा—माता जी, मेरे लिये पिता की आज्ञा मानना कर्तव्य है। संसार में ऐसा कोई बल नहीं जो मुझे यह कर्तव्यपालन करने से रोक सके। आप तनिक भी विलम्ब न करें। मैं सर आंखों पर उनकी आज्ञा का पालन करुंगा। मेरे लिये इससे अधिक और क्या सौभाग्य की बात होगी।
कैकेयी—हां, सुपुत्र बेटों का धर्म तो यही है। महाराज ने अब तुम्हारी जगह भरत का तिलक करने का निर्णय किया है और तुम्हें चौदह बरस के लिये वनवास दिया है। महाराज ये बातें अपने मुंह से न कह सकेंगे, मगर वह जो कुछ चाहते हैं, वह मैंने तुमसे कह दिया। अब मानना तुम्हारे अधिकार में है। यह तुमने न माना, तो दुनिया में राजा पर यह अभियोग लगेगा कि उन्होंने अपने वचन को पूरा न किया और तुम्हारे सिर यह कि पिता की आज्ञा न मानी।
रामचन्द्र यह आज्ञा सुनकर थोड़ी देर के लिये सहम उठे। क्या समझते थे क्या हुआ। सारी परिस्थिति उनकी समझ में आ गयी। यदि वह चाहते तो इस आज्ञा की चिन्ता न करते। सारी अयोध्या उनके नाम पर मरती थी। किन्तु सुशील बेटे पिता की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा समझते हैं।
राम ने उसी समय निश्चय कर लिया कि मुझ पर चाहे जो कुछ बीते, पिता की आज्ञा मानना निश्चित है। बोले—माता जी, मेरी ओर से आप तनिक भी चिन्ता न करें। मैं आज ही अयोध्या से चला जाऊंगा। आप किसी दूत को भेजकर भरत को बुला भेजिये। मुझे उनके राजतिलक होने का लेशमात्र भी खेद नहीं है। मैं अभी माता कौशल्या से पूछ कर और सीता जी को आश्वासन देकर जंगल की राह लूंगा।
यह कहकर रामचन्द्र जी ने राजा के चरणों पर सिर झुकाया, माता कैकेयी को परणाम किया और कमरे से बाहर निकले। राजा दशरथ के मुंह से दुःख या खेद का एक शब्द भी न निकला। वाणी उनके अधिकार में न थी। ऐसा मालूम हो रहा था, कि नसों की राह जान निकली जा रही है। जी में आता था कि राम के पैर पकड़कर रोक लूं। अपने ऊपर क्रोध आ रहा था। कैकेयी के ऊपर क्रोध आ रहा था। ईश्वर से परार्थना कर रहे थे कि मुझे मृत्यु आ जाय, इसी समय इस जीवन का अन्त हो जाय। छाती फटी जाती थी। आह! मेरा प्यारा बेटा इस तरह चला जा रहा है और मैं जबान से ाढ़स का एक वाक्य भी नहीं निकाल सकता। कौन पिता इतना निर्दयी होगा? यह सोचतेसोचते राजा को मूर्छा आ गयी।
रामचन्द्र यहां से कौशल्या के पास पहुंचे। वे उस समय निर्धनों को अन्न और वस्त्र देने का परबन्ध कर रही थीं। राम को देखते ही बोलीं—क्या हुआ बेटा राजा बाहर गये कि नहीं? अब तो देर हो रही है।
रामचन्द्र ने आवाज को संभालकर कहा—माता जी, मामला कुछ और हो गया। महाराज ने अब भरत को राज देने का निर्णय किया है और मुझे चौदह बरस के बनवास की आज्ञा दी है। मैं आपसे आज्ञा लेने आया हूं, आज ही अयोध्या से चला जाऊंगा।
रानी कौशल्या को मूर्च्छासी आ गयी। रामचन्द्र की ओर निस्तेज आंखों से देखती रह गयीं, जैसे कोई मिट्टी की मूर्ति हों।
लक्ष्मण भी वहीं खड़े थे। यह बात सुनते ही उनके त्योरियों पर बल पड़ गये। आंखों से चिनगारियां निकलने लगीं। बोले—यह नहीं हो सकता। कदापि नहीं हो सकता। भरत कभी लक्ष्मण के जीते जी अयोध्या के राजा नहीं हो सकते। आप क्षत्रिय हैं। क्षत्रिय का धर्म है, अपने अधिकार के लिये युद्ध करना। सारी अयोध्या, सारा कोशल आपकी ओर है। सेना आपका संकेत पाते ही आपकी ओर हो जायेगी। भरत अकेले कर ही क्या सकते हैं। यह सब रानी कैकेयी का षड्यंत्र है।
रामचन्द्र ने लक्ष्मण की ओर परेमपूर्ण नेत्रों से देखकर कहा—भैया, कैसी बातें करते हो! रघुकुल में जन्म लेकर पिता की आज्ञा न मानूं, तो संसार को क्या मुंह दिखाऊंगा। भाग्य में जो लिखा है; वह पूरा होकर रहेगा। उसे कौन टाल सकता है?
लक्ष्मण—भाई साहब! भाग्य की आड़ वे लोग लेते हैं जिनमें पराक्रम और साहस नहीं होता। आप क्यों भाग्य की आड़ लें? आप की भौहों के एक संकेत पर सारी अयोध्या में तूफान आ जायगा। भाग्य साहस का दास है, उसका राजा नहीं! यदि आप मुझे आज्ञा दें तो मैं इस धनुष और बाण के बल से भाग्य को आपके चरणों में गिरा दूं। फिर आपसे महाराज ने अपनी जिह्वा से तो कुछ कहा नहीं। क्या यह सम्भव नहीं कि रानी कैकेयी ने अपनी ओर से यह षड्यंत्र किया हो?
रानी कौशल्या ने आंसू पोंछते हुए कहा—बेटा! मुझे इस बात की तो सच्ची खुशी है कि तुम अपने योग्यतम पिता की आज्ञा मानने के लिये अपने जीवन की बलि देने को तैयार हो, किन्तु मुझे तो ऐसा परतीत होता है कि लक्ष्मण का विचार ठीक है। कैकेयी ने अपनी ओर से यह छल रचा है।
रामचन्द्र ने आदर के साथ कहा—माता जी, पिताजी वहीं मौजूद थे। यदि रानी कैकेयी ने उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई बात कही होती, तो क्या वह कुछ आपत्ति न करते? नहीं माता जी, धर्म से मुंह मोड़ने के लिये हीले ूंढ़ना मैं धर्म के विरुद्ध समझता हूं। कैकेयी ने जो कुछ कहा है, पिताजी की स्वीकृति से कहा है। मैं उनकी आज्ञा को किसी परकार नहीं टाल सकता। आप मुझे अब जाने की अनुमति दें। यदि जीवित रहा तो फिर आपके चरणों की धूलि लूंगा।
कौशल्या ने रामचन्द्र का हाथ पकड़ लिया और बोली—बेटा! आखिर मेरा भी तो तुम्हारे ऊपर कुछ अधिकार है! यदि राजा ने तुम्हें वन जाने की आज्ञा दी है, तो मैं तुम्हें इस आज्ञा को मानने से रोकती हूं। यदि तुम मेरा कहना न मानोगे, तो मैं अन्नजल त्याग दूंगी और तुम्हारे ऊपर माता की हत्या का पाप लगेगा।
रामचन्द्र ने एक ठंडी सांस खींचकर कहा—माताजी, मुझे कर्तव्य के सीधे रास्ते से न हटाइये, अन्यथा जहां मुझ पर धर्म को तोड़ने का पाप लगेगा, वहां आप भी इस पाप से न बच सकेंगी। मैं वन और पर्वत चाहे जहां रहूं, मेरी आत्मा सदा आपके चरणों के पास उपस्थित रहेगी। आपका परेम बहुत रुलायेगा, आपकी परेममयी मूर्ति देखने के लिए आंखें बहुत रोयेंगी, पर वनवास में यह कष्ट न होते हो भाग्य मुझे वहां ले ही क्यों जाता। कोई लाख कहे; पर मैं इस विचार को दूर नहीं कर सकता कि भाग्य ही मुझे यह खेल खिला रहा है। अन्यथा क्या कैकेयीसी देवी मुझे वनवास देतीं!
लक्ष्मण बोले—कैकेयी को आप देवी कहें; मैं नहीं कह सकता!
रामचन्द्र ने लक्ष्मण की ओर परसन्नता के भाव से देखकर कहा—लक्ष्मण, मैं जानता हूं कि तुम्हें मेरे वनवास से बहुत दुःख हो रहा है; किन्तु मैं तुम्हारे मुंह से माता कैकेयी के विषय में कोई अनादर की बात नहीं सुन सकता। कैकेयी हमारी माता हैं। तुम्हें उनका सम्मान करना चाहिए। मैं इसलिए वनवास नहीं ले रहा हूं कि यह कैकेयी की इच्छा है, किन्तु इसलिए कि यदि मैं न जाऊं, तो महाराज का वचन झूठा होता है। दोचार दिन में भरत आ जायेंगे, जैसा मुझसे परेम करते हो, वैसे ही उनसे परेम करना। अपने वचन या कर्म से यह कदापि न दिखाना कि तुम उनके अहित की इच्छा रखते हो, बारबार मेरी चचार भी न करना, अन्यथा शायद भरत को बुरा लगे।
लक्ष्मण ने क्रोध से लाल होकर कहा—भैया, बारबार भरत का नाम न लीजिए। उनके नाम ही से मेरे शरीर में आग लग जाती है। किसी परकार क्रोध को रोकना चाहता हूं, किन्तु अधिकार को यों मिटते देखकर हृदय वश से बाहर हो जाता है। भरत का राज्य पर कोई अधिकार नहीं। राज्य आपका है और मेरे जीतेजी कोई आपसे उसे नहीं छीन सकता। क्षत्रिय अपने अधिकार के लिये लड़ कर मर जाता है। मैं रक्त की नदी बहा दूंगा।
लक्ष्मण का क्रोध ब़ते देखकर राम ने कहा—लक्ष्मण, होश में आओ। यह क्रोध और युद्ध का समय नहीं है। यह महाराज दशरथ के वचन निभाने की बात है। मैं इस कर्तव्य को किसी भी दशा में नहीं तोड़ सकता। मेरा वन जाना निश्चित है। कर्तव्य के मुकाबले में शारीरिक सुख का कोई मूल्य का नहीं।
लक्ष्मण को जब ज्ञात हो गया कि रामचन्द्र ने जो निश्चित किया है उससे टल नहीं सकते तो बोले—अगर आपका यही निर्णय है तो मुझे भी साथ लेते चलिये। आपके बिना मैं यहां एक दिन भी नहीं रह सकता। जब आप वन में घूमेंगे तो मैं इस महल में क्योंकर रह सकूंगा। आपके बिना यह राज्य मुझे श्मशानसा लगेगा। जब से मैंने होश संभाला, कभी आपके चरणों से विलग नहीं हुआ। अब भी उनसे लिपटा रहूंगा।
रामचन्द्र ने लक्ष्मण को परेमपूर्ण नेत्रों से देखा। छोटे भाई को मुझसे कितना परेम है! मेरे लिए जीवन के सारे सुख और आनन्द पर लात मारने के लिए तैयार है। बोले—नहीं लक्ष्मण, इस विचार को त्याग दो। भला सोचो तो, जब तुम भी मेरे साथ चले जाओगे, तो माता सुमित्रा और कौशल्या किसका मुंह देखकर रहेंगी? कौन उनके दुःख के बोझ को हल्का करेगा? भरत के राजा होने पर रानी कैकेयी सफेद और काले की मालिक होंगी। सम्भव है वह हमारी माताओं को किसी परकार का कष्ट दें। उस समय कौन उनकी सहायता करेगा? नहीं, तुम्हारा मेरे साथ चलना उचित नहीं।
लक्ष्मण—नहीं भाई साहब! मैं आपके बिना किसी परकार नहीं रह सकता। भरत की ओर से इस परकार का भय नहीं हो सकता। वह इतना डरपोक और नीच नहीं हो सकता। रघु के वंश में ऐसा मनुष्य पैदा ही नहीं हो सकता। आपका साथ मैं किसी तरह नहीं छोड़ सकता।
रामचन्द्र ने बहुत समझाया, किन्तु जब लक्ष्मण किसी तरह न माने तो उन्होंने कहा—अच्छा, यदि तुम नहीं मानते तो मैं तुम्हारे साथ अत्याचार नहीं कर सकता। किन्तु पहले जाकर सुमित्रा से पूछ आओ।
लक्ष्मण ने सुमित्रा से बन जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने उसे हृदय से लगाकर कहा—शौक से बन जाओ बेटा! मैं तुम्हें खुशी से आज्ञा देती हूं। दुःख में भाई ही भाई के काम आता है। राम से तुम्हें जितना परेम है, उसकी मांग यही है कि तुम इस कठिन समय में उनका साथ दो। मैं सदा तुम्हें आशीवार्द देती रहूंगी।
इसी समय में सीता जी को भी रामचन्द्र के वनवास का समाचार मिला। वह अच्छेअच्छे आभूषणों से सज्जित होकर राजतिलक के लिए तैयार थीं। एकाएक यह दुःखद समाचार मिला और मालूम हुआ कि राम अकेले जाना चाहते हैं, तो दौड़ी हुई आकर उनके चरणों पर गिर पड़ी और बोलीं—स्वामी, आप बन जाते हैं तो मैं यहां अकेले कैसे रहूंगी। मुझे भी साथ चलने की अनुमति दीजिये। आपके बिना मुझे यह महल फाड़ खायेगा, फूलों की सेज कांटों की तरह गड़ेगी। आपके साथ जंगल भी मेरे लिए बाग है, आपके बिना बाग भी जंगल है।
कौशल्या ने सीता को गले से लगाकर कहा—बेटी ! तुम भी चली जाओगी, तो मैं किसका मुंह देखकर जिऊंगी। फिर तो घर ही सूना हो जायगा। सोचती थी कि तुम्हीं को देखकर मन में सन्टोष करुंगी। किन्तु अब तुम भी वन जाने को परस्तुत हो। ईश्वर! अब कौनसा दुःख दिखाना चाहते हो? क्यों इस अभागिन को नहीं उठा लेते?
रामचन्द्र को यह विचार भी न हुआ कि सीताजी उनके साथ चलने को तैयार होंगी। समझाते हुए बोले—सीता, इस विचार का त्याग कर दो। जंगल में बड़ीबड़ी कठिनाइयां हैं पगपग पर जन्तुओं का भय, जंगल के डरावने आदमियों से वास्ता, रास्ता कांटों और कंकड़ों से भरा हुआ—भला तुम्हारा कोमल शरीर यह कठिनाइयां कैसे झेल सकेगा? पत्थर की चट्टानों पर तुम कैसे सोओगी? पहाड़ों का पानी ऐसा खराब होता है कि तरहतरह की बीमारियां पैदा हो जाती हैं। तुम इन तकलीफों को कैसे बर्दाश्त कर सकोगी?
सीता आंखों में आंसू भरकर बोलीं—स्वामी! जब आप मेरे साथ होंगे तो मुझे किसी बात का भय न होगा। वह खुशी सारी तकलीफों को मिटा देगी। यह कैसे हो सकता है कि आप जंगलों में तरहतरह की कठिनाइयां झेलें और मैं राजमहल में आराम से सोऊं। स्त्री का धर्म अपने पति का साथ देना है, वह दुःख और सुख हर दशा में उसकी संगिनी रहती है। यही उसका सबसे बड़ा कर्तव्य है। यदि आप सैर और मनबहलाव के लिए जाते होते, तो मैं आपके साथ जाने के लिए अधिक आगरह न करती। किन्तु यह जानकर कि आपको हर तरह का कष्ट होगा, मैं किसी तरह नहीं रुक सकती। मैं आपके रास्ते से कांटे चुनूंगी, आपके लिए घास और पत्तों की सेज बनाऊंगी, आप सोयेंगे, तो आपको पंखा झलूंगी। इससे ब़कर किसी स्त्री को और क्या सुख हो सकता है?
रामचन्द्र निरुत्तर हो गये। उसी समय तीनों आदमियों ने राजसी पोशाकें उतार दीं और भिक्षुकों कासा सादा कपड़ा पहनकर कौशल्या से आकर बोले—माताजी! अब हमको चलने की अनुमति दीजिये।
कौशल्या फूटफूटकर रोने लगीं—बेटा, किस मुंह से जाने को कहूं ! मन को किसी परकार संष्तोा नहीं होता। धर्म का परश्न है, रोक भी नहीं सकती। जाओ ! मेरा आशीवार्द सदा तुम्हारे साथ रहेगा। जिस तरह पीठ दिखाते हो, उसी तरह मुंह भी दिखाना। यह कहतेकहते कौशल्या रानी दुःख से मूर्छा खाकर गिर पड़ीं। यहां से तीनों आदमी सुमित्रा के पास गये और उनके चरणों पर सिर झुकाकर रानी कैकेयी के कोपभवन में महाराज दशरथ से विदा होने गये। राजा मृतक शरीर के समान निष्पराण और नि:स्पंद पड़े थे। तीनों आदमियों ने बारीबारी से उनके चरणों पर सिर झुकाया। तब राम बोले—महाराज ! मैं तो अकेला ही जाना चाहता था, किन्तु लक्ष्मण और जानकी किसी परकार मेरा साथ नहीं छोड़ते, इसलिए इन्हें भी लिये जाता हूं। हमें आशीवार्द दीजिये।
यह कहकर जब तीनों आदमी वहां से चले तो राजा दशरथ ने जोर से रोकर कहा—हाय राम! तुम कहां चले? उन पर एक पागलपन कीसी दशा आ गयी। भले और बुरे का विचार न रहा। दौड़े कि राम को पकड़कर रोक लें, किन्तु मूर्च्छा खाकर गिर पड़े। रात ही भर में उनकी दशा ऐसी खराब हो गयी थी कि मानो बरसों के रोगी हैं।
अयोध्या में यह खबर मशहूर हो गयी थी। लाखों आदमी राजभवन के दरवाजों पर एकत्रित हो गये थे। जब ये तीनों आदमी भिक्षुकों के वेश में रनिवास से निकले तो सारी परजा फूटफूटकर रोने लगी। सब हाथ जोड़जोड़कर कहते थे, महाराज! आप न जायं। हम चलकर महारानी कैकेयी के चरणों पर सिर झुकायेंगे, महाराज से परार्थना करेंगे। आप न जायं। हाय ! अब कौन हमारे साथ हमदर्दी करेगा, हम किससे अपना दुःख कहेंगे, कौन हमारी सुनेगा, हम तो कहीं के न रहे।
रामचन्द्र ने सबको समझाकर कहा—दुःख में धैर्य के सिवा और कोई चारा नहीं। यही आपसे मेरी विनती है। मैं सदा आप लोगों को याद करता रहूंगा।
राजा ने समुन्त्र को पहले ही से बुलाकर कह दिया था कि जिस परकार हो सके, राम, सीता और लक्ष्मण को वापस लाना।
सुमन्त्र रथ तैयार किये खड़ा था। रामचन्द्र ने पहले सीता जी को रथ पर बैठाया, फिर दोनों भाई बैठे और सुमन्त्र को रथ चलाने का आदेश दिया। हजारों आदमी रथ के पीछे दौड़े और बहुत समझाने पर भी रथ का पीछा न छोड़ा। आखिर शाम को जब लोग तमसा नदी के किनारे पहुंचे, तो राम ने उन्हें दिलासा देकर विदा किया।
इधर अयोध्या में कुहराम मचा हुआ था। मालूम होता था, सारा शहर उजाड़ हो गया है। जहां कल सारा शहर दीपकों से जगमगा रहा था, वहां आज अंधेरा छाया हुआ था। सुबह जहां मंगलगीत हो रहे थे, वहां इस समय हर घर से रोने की आवाजें आती थीं। दुकानें बन्द थीं। जहां दो आदमी मिल जाते, यही चचार होने लगती। बेटा हो तो ऐसा हो ! पिता की आज्ञा पाते ही राजपाट पर लात मार दी। संसार में ऐसा कौन होगा। बड़ेबड़े राजा एक बालिश्त जमीन के लिए लड़तेमरते हैं। भाई, भी तो ऐसा हो। सबसे अधिक परशंसा सीताजी की हो रही थी। पुरुषों के लिए जंगल की कठिनाइयां सहना कोई असाधारण बात नहीं, स्त्री के लिए असाधारण बात थी। सती स्त्रियां ऐसी होती हैं। जिसने कभी पृथ्वी पर पांव नहीं रखा, वह जंगल में चलने के लिए तैयार हो गयी। सच है, कुसमय में ही स्त्री और मित्र की परख होती है।
उधर रनिवास शोकगृह बना हुआ था। किसी को तनबदन की सुध न थी।
राजा दशरथ की मृत्यु
तमसा नदी को पार करके पहर रात जातेजाते रामचन्द्र गंगा के किनारे जा पहुंचे। वहां भील सरदार गुह का राज्य था। रामचन्द्र के आने का समाचार पाते ही उसने आकर परणाम किया। रामचन्द्र ने उसकी नीच जाति की तनिक भी चिन्ता न करके उसे हृदय से लगा लिया और कुशलक्षेम पूछा। गुह सरदार बाग़बाग़ हो गया—कौशल के राजकुमार ने उसे हृदय से लगा लिया! इतना बडा सम्मान उसके वंश में और किसी को न मिला था। हाथ जोड़कर बोला—आप इस निर्धन की कुटिया को अपने चरणों से पवित्र कीजिये। इस घर के भी भाग्य जागें। जब मैं आपका सेवक यहां उपस्थित हूं तो आप यहां क्यों कष्ट उठायेंगे।
रामचन्द्र ने गुह का निमन्त्रण स्वीकार न किया। जिसे वनवास की आज्ञा मिली हो, वह नगर में किस परकार रहता। वहीं एक पेड़ के नीचे रात बितायी। दूसरे दिन परातःकाल रामचन्द्र ने सुमन्त्र से कहा—अब तुम लौट जाओ, हम लोग यहां से पैदल जायंगे। माताजी से कह देना कि हम लोग कुशल से हैं, घबराने की कोई बात नहीं।
सुमन्त्र ने रोकर कहा—महाराज दशरथ ने तो मुझे आप लोगों को वापस लाने का आदेश दिया था। खाली रथ देखकर उनकी क्या दशा होगी! राम ने सुमन्त्र को समझा बुझाकर विदा किया। सुमन्त्र रोते हुए अयोध्या लौटे। किन्तु जब वह नगर के निकट पहुंचे तो दिन बहुत शेष था। उन्हें भय हुआ कि यदि इसी समय अयोध्या चला जाऊंगा तो नगर के लोग हजारों परश्न पूछपूछकर परेशान कर देंगे। इसलिये वह नगर के बाहर रुके रहे। जब संध्या हुई तो अयोध्या में परविष्ट हुए।
इधर राजा दशरथ इस परतीक्षा में बैठे थे कि शायद सुमन्त्र राम को लौटा लाये। आशा का इतना सहारा शेष था। कैकेयी से रुष्ट होकर वह कौशल्या के महल में चले गये थे और बारबार पूछ रहे थे कि सुमन्त्र अभी लौटा या नहीं। दीपक जल गये, अभी सुमन्त्र नहीं आया। महाराज की विकलता ब़ने लगी। आखिर सुमन्त्र राजमहल में परविष्ट हुए। दशरथ उन्हें देखकर दौड़े और द्वार पर आकर पूछा—राम कहां हैं ? क्या उन्हें वापस नहीं लाये? सुमन्त्र कुछ बोल न सके, पर उनका चेहरा देखकर महाराज की अन्तिम आशा का तार टूट गया। वह वहीं मूर्छा खाकर गिर पड़े और हाय राम! हाय राम! कहते हुए संसार से विदा हो गये। मरने से पहले उन्हें उस अन्धे तपस्वी की याद आयी जिसके बेटे को आज से बहुत दिन पहले उन्होंने मार डाला था। वह जिस परकार बेटे के लिये तड़प तड़पकर मर गया, उसी परकार महाराज दशरथ भी लड़कों के वियोग में तड़पकर परलोक सिधारे। उनके शाप ने आज परभाव दिखाया।
रनिवास में शोक छा गया। कौशल्या महाराज के मृत शरीर को गोद में लेकर विलाप करने लगीं। उसी समय कैकेयी भी आ गयी। कौशल्या उसे देखते ही क्रोध से बोलीं—अब तो तुम्हारा कलेजा ठंडा हुआ! अब खुशियां मनाओ। अयोध्या के राज का सुख लूटो। यही चाहती थीं न? लो, कामनाएं फलीभूत हुई। अब कोई तुम्हारे राज में हस्तक्षेप करने वाला नहीं रहा। मैं भी कुछ घड़ियों की मेहमान हूं; लड़का और बहू पहले ही चले गये। अब स्वामी ने भी साथ छोड़ दिया। जीवन में मेरे लिए क्या रखा है। पति के साथ सती हो जाऊंगी।
कैकेयी चित्रलिखित-सी खड़ी रही। दासियों ने कौशिल्या की गोद से महाराज का मृत शरीर अलग किया और कौशल्या को दूसरी जगह ले जाकर आश्वासन देने लगीं। दरबार के धनीमानियों को ज्योंही खबर लगी, सबके-सब घबराये हुये आये और रानियों को धैर्य बंधाने लगे। इसके उपरान्त महाराज के मृत शरीर को तेल में डुबाया गया जिसमें सड़ न जाय और भरत को बुलाने के लिए एक विश्वासी दूत परेषित किया गया। उनके अतिरिक्त अब क्रियाकर्म और कौन करता?
भरत की वापसी
जिस दिन महाराज दशरथ की मृत्यु हुई उसी दिन रात को भरत ने कई डरावने स्वप्न देखे। उन्हें बड़ी चिन्ता हुई कि ऐसे बुरे स्वप्न क्यों दिखायी दे रहे हैं। न जाने लोग अयोध्या में कुशल से हैं या नहीं। नाना की अनुमति मांगी, पर उन्होंने दोचार दिन और रहने के लिए आगरह किया—आखिर जल्दी क्या है। काश्मीर की खूब सैर कर लो, तब जाना। अयोध्या में यह हृदय को हरने वाले पराकृतिक सौन्दर्य कहां मिलेंगे। विवश होकर भरत को रुकना पड़ा। इसके तीसरे दिन दूत पहुंचा। उसे भली परकार चेता दिया गया था कि भरत से अयोध्या की दशा का वर्णन न करना, इसलिए जब भरत ने दूत से पूछा—क्यों भाई, अयोध्या में सब कुशल है न? तो उसने कोई खास जवाब न देकर व्यंग्य से कहा—आप जिनकी कुशल पूछते हैं, वे कुशल से हैं। दूत भी हृदय से भरत से असन्तुष्ट था।
भरत जी को क्या खबर कि दूत इस एक वाक्य में क्या कह गया। उन्होंने नाना और मामा से आज्ञा ली और उसी दिन शत्रुघ्न के साथ अयोध्या के लिये परस्थान किया। रथ के घोड़े हवा से बातें करने वाले थे। तीसरे ही दिन वह अयोध्या में परविष्ट हुए। किन्तु यह नगर पर उदासी क्यों छायी हुई है ? नगर श्रीहीन सा क्यों हो रहा है ? गलियों में धूल क्यों उड़ रही है? बाजार क्यों बन्द हैं ? रास्ते में जो भरत को देखता था, बिना इनसे कुछ बातचीत किये, बिना कुशलक्षेम पूछे या परणाम किये कतरा कर निकल जाता था। उनके आगे ब़ आने पर लोग कानाफूसी करने लगते थे। भरत की समझ में कुछ न आता था कि भेद क्या है। कोई उनकी ओर आकृष्ट भी न होता था कि उससे कुछ पूछें। राजमहल तक पहुंचना उनके लिए कठिन हो गया। राजमहल पहुंचे तो उसकी दशा और भी हीन थी। मालूम होता था कि उसकी जान निकल गयी है, केवल मृत शरीर शेष है। खिन्नता विराज रही थी। कई दिन से दरवाजे पर झाडू तक न दी गयी थी। दोचार सन्तरी खड़े जम्हाइयां ले रहे थे। वह भी भरत को देखकर एक कोने में दुबक गये, जैसे उनकी सूरत भी नहीं देखना चाहते।
द्वार पर पहुंचते ही भरत और शत्रुघ्न ने रथ से कूदकर अंदर परवेश किया। महाराज अपने कमरे में न थे। भरत ने समझा, अवश्य कैकेयी माता के परासाद में होंगे। वह परायः कैकेयी ही के परासाद में रहते थे। लपके हुए माता के पास गये। महाराज का वहां भी पता न था। कैकेयी विधवाओं के से वस्त्र पहने खड़ी थी। भरत को देखते ही वह फूली न समायी। आकर भरत को गले से लगा लिया और बोली—जीते रहो बेटा। रास्तें में कोई कष्ट तो नहीं हुआ ?
भरत ने माता की ओर आश्चर्य से देखकर कहा—जी नहीं, बड़े आराम से आया। महाराज कहां हैं? तनिक उन्हें परणाम तो कर लूं ?
कैकेयी ने ठंडी आह खींचकर कहा—बेटा, उनकी बात क्या पूछते हो। उन्हें परलोक सिधारे तो आज एक सप्ताह हो गया। क्या तुमसे अभी तक किसी ने नहीं कहा?
भरत के सिर पर जैसे शोक का पहाड़ टूट पड़ा। सिर में चक्करसा आने लगा। वह खड़े न रह सके। भूमि पर बैठकर रोने लगे। जब तनिक जी संभला तो बोले—उन्हें क्या हुआ था माता जी? क्या बीमारी थी? हाय! मुझ अभागे को उनके अन्तिम दर्शन भी पराप्त न हुए।
कैकेयी ने सिर झुकाकर कहा—बीमारी तो कुछ नहीं थी बेटा। राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास के शोक से उनकी मृत्यु हुई। राम पर तो वह जान देते थे।
भरत की रहीसही जान भी नहों में समा गयी। सिर पीटकर बोले—भाई रामचन्द्र ने ऐसा कौनसा पाप किया था माता जी, कि उनको वनवास का दण्ड दिया गया? क्या उन्होंने किसी बराह्मण की हत्या की थी या किसी परस्त्री पर बुरी दृष्टि डाली थी? धर्म के अवतार रामचन्द्र को देशनिकाला क्यों हुआ ?
कैकेयी ने सारी कथा खूब विस्तार से वर्णन की और मन्थरा को खूब सराहा। जो कुछ हुआ, उसी की सहायता से हुआ। यदि उसकी सहायता न होती तो मेरे किये कुछ न हो सकता और रामचन्द्र का राजतिलक हो जाता। फिर तुम और मैं कहीं के न रहते। दासों की भांति जीवन व्यतीत करना पड़ता। इसी ने मुझे राजा के दिये हुए दो वरदानों की याद दिलायी और मैंने दोनों वरदान पूरे कराये। पहला था रामचन्द्र का वनवास—वह पूरा हो गया। अकेले राम ही नहीं गये, लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ गये। दूसरा वरदान शेष है। वह कल पूरा हो जायगा। तुम्हें सिंहासन मिलेगा।
कैकेयी ने दिल में समझा था कि उसकी कार्यपटुता का वर्णन सुनकर भरत उसके बहुत कृतज्ञ होंगे, पर बात कुछ और ही हुई। भरत की त्योंरियों पर बल पड़ गये और आंखें क्रोध से लाल हो गयीं। कैकेयी की ओर घृणापूर्ण नेत्रों से देखकर बोले—माता! तुमने मुझे संसार में कहीं मुंह दिखाने के योग्य न रखा। तुमने जो काम मेरी भलाई के लिए किया वह मेरे नाम पर सदा के लिए काला धब्बा लगा देगा। दुनिया यही कहेगी कि इस मामले में भरत का अवश्य षड्यंत्र होगा। अब मेरी समझ में आया कि क्यों अयोधया के लोग मुझे देखकर मुंह फेर लेते थे, यहां तक कि द्वारपालों ने भी मेरी ओर ध्यान देना उचित न समझा। क्या तुमने मुझे इतना नीच समझ लिया कि मैं रामचन्द्र का अधिकार छीनकर परसन्नता से राज करुंगा ? रघुकुल में ऐसा कभी नहीं हुआ। इस वंश का सदा से यही सिद्घान्त रहा है कि बड़ा लड़का गद्दी पर बैठे। क्या यह बात तुम्हें ज्ञात न थी ? हाय! तुमने रामचन्द्र जैसे देवतातुल्य पुरुष को वनवास दिया, जिसके जूतों का बन्धन खोलने योग्य भी मैं नहीं। माता मुझे तुम्हारा आदर करना चाहिये, किन्तु जब तुम्हारे कार्यों को देखता हूं तो अपने आप कड़े शब्द मुंह से निकल आते हैं। तुमने इस वंश का मटियामेट कर दिया। हरिश्चन्द्र और मान्धाता के वंश की परतिष्ठा धूल में मिला दी। तुम्हीं ने मेरे सत्यवादी पिता की जान ली। तुम हत्यारिनी हो। यह राजपाट तुम्हें शुभ हो। भरत इसकी ओर आंख उठाकर भी न देखेगा।
यह कहते हुए भरत रानी कौशल्या के पास गये और उनके चरणों पर सिर रख दिया। कौशल्या को क्या मालूम था कि उसी समय भरत कैकेयी को कितना भलाबुरा कह आये हैं। बोली—तुम आ गये, बेटा ! लो, तुम्हारी माता की आशाएं पूर्ण हुईं। तुमउन्हें लेकर आनन्द से राज्य करो, मुझे राम के पास पहुंचा दो। मैं अब यहां रहकर क्या करुंगी ?
ये शब्द भरत के सीने में तीर के समान लगे। आह ! माता कौशल्या भी मेरी ओर से असन्तुष्ट हैं ! रोते हुए बोले—माताजी, मैं आपसे सच कहता हूं कि यहां जो कुछ हुआ है उसका मुझे लेशमात्र भी ज्ञान न था। माता कैकेयी ने जो कुछ किया, उसका फल उनके आगे आयेगा। मैं उन्हें क्या कहूं। किन्तु मैं इसका विश्वास दिलाता हूं कि मैं राज्य न करुंगा। राज्य रामचन्द्र का है और वही इसके स्वामी हैं। मैं उनका सेवक हूं। क्रियाकर्म से निवृत्त होते ही जाकर रामचन्द्र को मना लाऊंगा। मुझे आशा है कि वे मेरी विनती मान जायेंगे। मैंने पूर्व जन्म में न जाने ऐसा कौनसा पाप किया था कि यह कलंक मेरे माथे पर लगा। मुझसे अधिक भाग्यहीन संसार में और कौन होगा जिसके कारण पिता जी की मृत्यु हुई, रामचन्द्र वन गये और सारे देश में जगहंसाई हुई।
देवी कौशल्या के हृदय से सारा मालिन्य दूर हो गया। उन्होंने भरत को हृदय से लगा लिया और रोने लगीं।
मन्थरा उस समय किसी काम से बाहर गयी हुई थी। उसे ज्योंही ज्ञात हुआ कि भरत आये हैं, उसने सिर से पांव तक गहने पहने, एक रेशमी साड़ी धारण की और छमछम करती कूबड़ हिलाती अपनी आदर्श सेवाओं का पुरस्कार लेने के लिए आकर भरत के सामने खड़ी हो गयी। भरत ने तो उसे देखकर मुंह फेर लिया, किन्तु शत्रुघ्न अपने क्रोध को रोक न सके। उन्होंने लपक कर मन्थरा के बाल पकड़ लिये और कई लात और घूंसे जमाये। मन्थरा हाय ! हाय ! करने लगी और महारानी कैकेयी की दुहाई देने लगी। अन्त में भरत ने उसे शत्रुघ्न के हाथ से छुड़ाया और वहां से भगा दिया।
जब भरत महाराजा दशरथ के क्रियाकर्म से निवृत्त हुए तो गुरु वशिष्ठ, नगर के धनीमानी, दरबार के सभासदों ने उन्हें गद्दी पर बिठाना चाहा, भरत किसी तरह तैयार न हुए। बोले—आप लोग ऐसा काम करने के लिए मुझे विवश न करें जो मेरा लोक और परलोक दोनों मिट्टी में मिला देगा। भाई रामचन्द्र के रहते यह असम्भव है कि मैं राज्य का विचार भी मन में लाऊं। मैं उन्हें जाकर मना लाऊंगा और यदि वह न आयेंगे तो मैं भी घर से निकल जाऊंगा। यही मेरा अन्तिम निर्णय है।
लोगों के दिल भरत की ओर से साफ हो गये। सब उनकी नेकनीयती की परशंसा करने लगे। यह बड़े बाप का सपूत बेटा है। भाई हो तो ऐसा हो। क्यों न हो, ऐसे नेक और धमार्त्मा लोग न होते तो संसार कैसे स्थिर रहता !
दूसरे दिन भरत अपनी तीनों माताओं को लेकर राम को मनाने चले। गुरु वशिष्ठ और नगर के विशिष्ठ जन उनके साथसाथ चले।
चित्रकूट
राम, लक्ष्मण और सीता गंगा नदी पार करके चले जा रहे थे। अनजान रास्ता, दोनों ओर जंगल, बस्ती का कहीं पता नहीं। इस परकार वे परयाग पहुंचे। परयाग में भरद्वाज मुनि का आश्रम था। तीनों आदमियों ने त्रिवेणी स्नान करके भरद्वाज के आश्रम में विश्राम किया और रात को उनके उपदेश सुनकर परातः उनके परामर्श से चित्रकूट के लिए परस्थान किया। कुछ दूर चलने के बाद यमुना नदी मिली। उस समय वह भाग बहुत आबाद न था। यमुना को पार करने के लिए कोई नाव न मिल सकी। अब क्या हो? अन्त में लक्ष्मण को एक उपाय सूझा। उन्होंने इधरउधर से लकड़ी की टहनियां जमा कीं और उन्हें छाल के रेशों से बांधकर एक तख्तासा बना लिया। इस तख्ते पर हरीहरी पत्तियां बिछा दीं और उसे पानी में डाल दिया। इस पर तीनों आदमी बैठ गये। लक्ष्मण ने इस तख्ते को खेकर दम के दम में यमुना नदी पार कर ली।
नदी के उस पार पहाड़ी जमीन थी। पहाड़ियां हरीहरी झाड़ियों से लहरा रही थीं। पेड़ों पर मोर, तोते इत्यादि पक्षी चहक रहे थे। हिरनों के झुण्ड घाटियों में चरते दिखायी देते थे। हवा इतनी स्वच्छ और स्वास्थ्यकारक थी कि आत्मा को ताजगी मिल रही थी। इस हृदयगराही दृश्य का आनन्द उठाते तीनों आदमी चित्रकूट जा पहुंचे। वाल्मीकि ऋषि का आश्रम वहीं एक पहाड़ी पर था। तीनों आदमियों ने पहले उसका दर्शन उचित समझकर उनके आश्रम की ओर परस्थान किया। वाल्मीकि ने उन्हें देखा तो बड़े तपाक से गले लगा लिया और रास्ते का कुशलसमाचार पूछा। उन्होंने योग के बल से उनके चित्रकूट आने का कारण जान लिया था। बतलाने की आवश्यकता न पड़ी। बोले—आप लोग खूब आये। आपको देखकर बड़ी परसन्नता हुई। आप लोगों पर जो कुछ बीता है, वह मुझे मालूम है। जीवन सुख और दुःख के मेल का ही नाम है। मनुष्य को चाहिये कि धैर्य से काम ले।
राम ने कहा—आशीवार्द दीजिये कि हमारे वनवास के दिन कुशल से बीतें।
वाल्मीकि ने उत्तर दिया—राजकुमार, मेरे एकएक रोम से तुम्हारे लिए आशीवार्द निकल रहा है। तुमने जिस त्याग से काम लिया है, उसका उदाहरण इतिहास में कहीं नहीं मिलता। धन्य है वह माता, जिसने तुम जैसा सपूत पैदा किया। चित्रकूट तुम्हारे लिये बहुत उत्तम स्थान है। हमारी कुटी में पयार्प्त स्थान हैं। हम सब आराम से रहेंगे।
रामचन्द्र को भी चित्रकूट बहुत पसन्द आया। वहीं रहने का निश्चय किया। किन्तु यह उचित न समझा कि ऋषि वाल्मीकि के छोटेसे आश्रम में रहें। इनके रहने से ऋषि को अवश्य कष्ट होगा, चाहे वह संकोच के कारण मुंह से कुछ न कहें। अलग एक कुटी बनाने का विचार हुआ। लक्ष्मण को आज्ञा मिलने की देर थी। जंगल से लकड़ी काट लाये और शाम तक एक सुन्दर आरामदेह कुटी तैयार कर दी। इसमें खिड़कियां भी थीं, ताक भी थे, सोने के अलग-अलग कमरे भी थे। राम ने यह कुटी देखी तो बहुत परसन्न हुए। गृहपरवेश की रीति के अनुसार देवताओं की पूजा की और कुटी में रहने लगे।
हिंदी कवि पर कविता, कहानी, ग़ज़ल - शायरी, गीत -लोकगीत, दोहे, भजन, हास्य - व्यंग्य और कुछ अन्य रचनाएं साहित्य के भंडार से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured post
हिंदी भजन लिरिक्स | भजन-संग्रह | Bhajan Lyrics in Hindi
लोकप्रिय हिंदी भजन लिरिक्स विभिन्न कलाकारों , भक्त कवियों और संतों द्वारा गाए और रचाए गए भजन गीत भक्ति गीत का लिखित संग्रह क्लिक कर पढ़ें एवं...
-
खोय देत हो जीवन बिना काम के भजन करो कछु राम के / बुन्देली लोकगीत खोय देत हो जीवन बिना काम के, भजन करो कछु राम के। जी बिन देह जरा न रुकती, ...
-
हे री मैं तो प्रेम दिवानी मीरा के पद अर्थ meera ke pad arth Mira Pad हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरा दरद न जाने कोय।. सूली ऊपर सेज हमारी, ...
-
mangesh dabral hindi poet author परिचय मंगलेश डबराल एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और लेखक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी सामयिक और सामाजिक कविता के...
Labels
Aakhari Kalaam
Aalam Sheikh Kavita
Aansu
Aao Aao Yashoda Ke Laal
Aao Rama Bhog Lagao Shyama
Aaradhya Shri Ram lyrics
Aarti Geet
Aawazon Ke Ghere
Ab Kripa Karo Shri Ram Nath Dukh Taaro
acharya ramchandra shukla
Achyutashtakam lyrics
Ada Jafri
ada Zafri
Adam Gondvi
Adeem Hashmi Ghazal
Adil Mansuri Ghazal
ae maalik tere bande
Agam Singh Giri
Agyatvaas Katha
Ahmad Mushtaq Ghazal
Ahmed Faraz Ghazal
Ahmed Nadeem Qasami Ghazal
ai ishq hamein barbaad na kar
Aisi Bhole Ki Re Chadhi Hai Baraat
Aitbar Sajid Ghazal
Ajneya ke quote
Akbar Allahabadi
Akbar Allahabadi Ghazal
Akbar Allahabadi Ke Kisse
Akbar-Birbal
Akharavat
Akhilesh Tiwari Ghazal
Akhtar Shirani Ghazal
AKHTAR SHIRANI NAZM
AKHTARUL IMAN NAZM
Akshay Upadhyay ki Kavita
Albeli Ali ke Pad
Ali Sardar Jafri Ghazal
Allama Iqbal Ghazal
Alok Dhanwa Kavita
amarkant poet stories
Ambika Datt Vyas
Ameer Minai Ghazal
ameer minai ghazals
Amir Khusrow Dohe- Kavita-geet-paheliya
Ana Qasmi Ghazal
Anamika
Anamika Suryakant Tripathi "Nirala" kavita
Anand Bakshi
Andher Nagri Chaupat Raja
Angika Bhakti Geet
Angika Bujoval Geet
Angika Fekda
Angika Koshi Geet
Angika Lokgatha
Angika Lori Geet- Lokgeet
Angika Manon Geet
Angika Ritu Geet
Angika Sohar Geet
Anjana Bhatt
Ankhiyan Hari Darshan Ki Pyasi
Ankita Jain
Anmol Vachan Sangrah Hindi
Anoop Jalota
Ansar Kambari Ghazal
Arjundas Kediya
Arun Kamal Kavita
ashaar
Ashok Anjum Ghazal
Ashok Anjum ghazals
Ashok Chakradhar
Ashtak
ashtakam
Asrar Ul Haq Majaz Ghazal
Asrarul Haq Majaz
Asrarul Haq Majaz ke kisse
atal bihari vajpayi
Ath Shri Krishnashtakam lyrics
Ath Shri Shiv Ashtakam lyrics
Atha Shri Ganeshashtakam lyrics
athaniyan kahani
Atima
Awadhi lokgeet
Ayodhya Singh Upadhyay Harioudh Kavita
Aziz Azad
Aziz Bano Darab Wafa
Aziz Lakhnavi
Aziz Warsi
Baal Ali
Baal Geet
Baal Mahabharat Katha
baal sahitya
baalgeet
baanke bihari ji ashtak
baas kahani
baba kavne nagariya
bachchon ke gaane
Bada Natkhat Hai Re
Badhawa Geet
Bagheli Lokgeet
Bahadur Shah Zafar Ghazal
Baiga Geet
Baiga Lokgeet
Bairisal
Bakhna
Banarasi Das ke Chhappay.
Banarasi Das ke Kavitt
Banarasi Das ke Pad
Banarasi Das ke Sawaiya
Bangla Geet
Bangla Lokgeet
Barahmasa Geet
Barahmasi Geet
Bari Aatik Geet
Barve Ramayan Ji
Bashar Nawaz Ghazal
Bashir Badra
Bashir Badra ke Kisse
Batgamni Geet
Beet Gaye Din lyrics
Bekal Utsahi
Bekal Utsahi Ghazals
Betal Pachchisi
Bhadawari lokgeet
Bhagavad Gita
Bhagavad Gita Chapter
Bhagavad Gita Hindi
Bhagwan Meri Naiya lyrics
Bhagwati Charan Verma
Bhagwwat Rasik
Bhaj Man Mere Ram Naam
bhajan
bhajan lyrics
bhajan lyrics in hindi
bhajan sangrah
bhajan-pad-mishrit
Bhakt Rupkala
Bhakt Surdas Ji
bhaktikaal kavi
bhakto ke dohe
Bhanubhakta Acharya
Bharat Bhushan Agrawal
Bharat Bhushan Agrawal kavita
Bharat Durdasha
Bharatendu Harishchandra
Bharatendu Harishchandra Ghazal
Bharatendu Harishchandra Kavita
Bheel Geet
Bheru Bhairav Geet
Bhil Lokgeet
Bhojpuri Geet
bhojpuri rakhi geet
Bhole Nath ke Bhajan
Bhupati Kavi ke Dohe
Bhupi Sherchan
Bihari
bimalda kahani
bindu je ke bhajan
bindu ji maharaj rachna
Bindu Ji Rachna
Biography
Birha Geet
Biyah se Diragaman Geet
Brij Narayan Chakbast
Budhesar Biyah Geet
Budhjan
Bulla Sahab
bulle shah
Bundeli Banna Geet
Bundeli Dadre Geet
Bundeli Faag Geet
Bundeli Gali Geet
Bundeli Sohar Geet
Bundeli Varsha Geet
Chacha Hit Vrindavandas
Chalisa Likhi hui
Chalisa Lyrics
chalisa lyrics hindi
chalisa sangrah
Chalo Re Sakhiyan lyrics
Chanakya
Chand Bardai's Doha
Chand Bardai's Pad
Chand Bardai's Raso Kavya
Chandrakant Devtale Kavita
Chandrakant Devtale poem
Chandrakanta Upanyas
Chaturbhuj Das ke Pad
Chaturbhujdas
Chaturthi Geet
Chaumasa Geet
Cheegat Geet
Chetavar Geet
Chhainya Chhainya
Chhamasa Geet
Chhatisgarh Lokgeet
Chheehal Panch Saheli Geet
Chhitswami ke Pad. छीतस्वामी के पद
Chhitswami Pad
Chhotelal Das Ji Ke Bhajan
Children Stories
Chitradhar
Chitswami ke pad
Chuhar Chori Pakaria Geet
couplet
Daag Dehalvi
Daag Dehalvi ke kisse
Dadu Dayal
Dadu Dayal Bhajan
dadu ke bhajan
Dahkan Geet
Damad Geet
Dariya Bihar Wale
das paise aur dadi
Data Ram Diye Hi Jata
daya kar daan
Dayabai
Dayaram
Deendayal Giri
deshbhakti kavita
Devadas
Devendra Kumar Bangali
Devi Geet
Devi Jagdamba Geet
Devi-Devataak Geet
Devkinandan Khatri Novel
Devsen
Dhanna Bhagat
Dharmvir Bharti
Dharmvir Bharti kavita
Dharmvir Bharti poetry
Dharnidas Bhajan Sangrah
Dhol Nagada
Dhruvdas ke Dohe
Dhruvdas ke Pad
Dhruvdas ke Savaiyya
dhuan kahani
Dinbandhu Deenanath
dingal kavi
Diva Ni Divete
Doha
doha of vidhyapati
Dohawali
Dohe
dohe gurujan ke
Dohe Of Bulleh Shah
Dohe Sant Guru Ravidas
Droupadi Swyamvar Katha
Dukhiyaon Ke Dukhh Door
Dukhiyaon Ke Dukhh Door Kare
Dularelal Bhargav
Dulha Ram Siya Dulhi Ri
Dushyant Kumar
Dushyant Kumar Kavita
ek hajar naam
Ek Kanth Vishpayi
Ekadashi Geet
Ekadashi Story Hindi
Ekadashi Vrat Katha
ekadsahi vrat katha
Faag Geet
faag languriya bhadawari
Faagu Geet
Fahmida Riaz Nazm
Fairy Tales India
famous poetry akbar allahabadi
Firak Gorakhpuri
Firaq Gorakhpuri Ghazal
Firaq Gorakhpuri Ke Kisse
folk lore
Folk Song Lyrics
folk song lyrics rajasthani
Folk Stories
Folk Tales
Fulwari Darshan Geet
funny poetry
Gadadar Bhatt ke Pad
Gadhwali Geet
gadhwali kavya
Gaiye Ganpati Jag Vandan lyrics
Ganpati Bappa Ki Jai Bolo
Ganpati Ganesh
garhwali kavya rachnaen
Garibdas
Gaurik Geet
Gavri Bai
Gawribai
Gazal
Geet
Geet Lyrics
geeta rabari top ten
Ghajal
Ghazal
Ghazal aur SHayari
Ghazal of amir minayi
ghazal of poet akbar allahabadi
ghazal writer
Ghazals
Ghazals of Akbar Hyderabadi
Ghazals of Akhilesh Tiwari
Ghazals of Azhar Inayati
Ghazals of Bashar Nawaz
Ghazals of Fahmida Riaz
Ghazals of Hasrat Mohani
Ghazals of Mohammad Rafi Sauda
Ghazals of Shaad Azimabadi
Ghazals of Shahryar Ghazal
Ghazals of Shakeel Azmi
Ghazals of Shakeel Badayuni Ghazal शकील बदायूनी की ग़ज़लें
Ghazals of Waseem Barelvi
Ghazl
Ghzal
Giridharan
gitawali
God Kavita Poem Poetry
Gond Lokgeet
Gopal Bhand
Gopal Das Neeraj
Gopal Sharan Singh
Gopal Singh Nepali
Gopi Geet Hindi
goswami tulsidas ji
Govind Swami ke Pad
Gramya
Gujarati Lokgeet
Gujrati Lokgeet
Gulzar
Gulzar Ghazal
Gulzar Ghazals
Gulzar introduction
gulzar ki kahaniyan
Gulzar Sangrah
Gunjan
Guru Aagya Mein Nish Din Rahiye
Guru Amardas
Guru Angad Dev
Guru Angad Dev Ji Salok
Guru Nanak
guru nanak dev
Guru Nanak Dev Ji
Guru Nanak Ke Sabad
Guru Tegh Bahadur
Gwalari Geet
Gyanendrapati Kavita
Habib Jalib
Habib Jalib Nazm
ham honge kaamyab
hamko man ki shakti
Hanuman Bahuk
har desh mein tu
Har Saans Mein Har Bol Mein lyrics
Hari Bhajan Bina Sukh Shanti Nahi
Hari Tum Haro Jan Ki Bheer
Haridas Ke Pad
Harihar Prasad
hariodh
Hariom Panwar
Hariram Vyas ke Pad
Harishankar Parsai Ke Vyangya
Harivyas Dev
Hariyanvi Lokgeet
hariyanvi village songs
haryanvi folk song
Hasya Vyang Sangrah
Hasya Vyangya Urdu ke
He Govind Rakho Sharan lyrics
he prabho aanand
He Re Kanhiya lyrics
He Rom Rom Mein Basne Wale Ram lyrics
He Rom Rom Mein lyrics
he shaarde ma
Hemchandra
Himachal Ke Lokgeet
hindi chalisa lyrics
hindi dohe
hindi font ghazal
hindi kahani
hindi kahani for kids
hindi kahani premchand
hindi kahaniya
hindi kavita
hindi kids children story
Hindi Lyrics
Hindi Nibandh
hindi poetry freedom
hindi poetry of nirmala putul
hindi prathna
Hindi quote
hindi satire
hindi stories
hindi story
hindi story by gulzar
Hindi story for kids
hindi vyangya
Hit Harivansh ke Pad
Humein Nand Nandan Mol Liyo
i Kavita
Important Days
incorrect words in hindi
Indeevar
Indraprasth Katha
Insha Allah Khan Insha Ghazals in Hindi
introduction
Isuri
itni shakti hamein
Jaamun ka Ped Story
Jaan Kavi
Jaant Geet
Jab Se Lagan Lagi Prabhu Teri
Jai Jai Giribar Raj Kisori
Jai Ram Ramaramanam Shamanam lyrics
Jai Shankar Prasad Hindi Stories
Jai Shankar Prasad Hindi Story
Jaishankar Prasad
Jalte Hue Van Ka Vasant
Jamal kavi
Jan Nisar Akhtar
Janaki Mangal
Janm Sanskarak Geet
japur ji sahib
Jasuram
Jaswant Singh
Jat Jatin Geet
Jaun Elia
Jaun Eliya
Jeevan Singh
Jhamdas
Jharna
Jharni Geet
Jhummari Geet
Jigar Moradabadi
Jigar Moradabadi Ghazal
Jigar Moradabadi Ke Kisse
jogira geet
John Eliyaa
Joindu
Joodiram
Josh Malihabadi
Josh Malihabadi ke Kisse
Judiram Bhajan
Kaafi Of Bulleh Shah
Kabeer
kabeer bhajan
kabir bhajan
Kabir Bhajan Sangrah Lyrics
Kabir ke Bhajan
Kabir Ke Dohe
kafiya
Kahani
kahaniyan
Kaifi Azmi
Kailash Gautam
kajli lokgeet
Kajli lokgeet khari boli
Kajri Geet
Kaka Hathrasi
Kala Aur Boodha Chand
Kamayani
Kanan-Kusum
Kanauji Lokgeet
Kanhiya Kanhiya Tujhe Aana Padega
Karikanha Biyah Geet
Karuna Bhari Pukar Sun
kashmiri lok katha
Kaushalya Rani Apne Lala Ko Dulrave
Kavi Daulat
Kavi Pradeep Lyrics
kaviraja bankidas
Kavit
Kavita
Kavita Sangrah
kavita sangrah
आवाज़ों के घेरे दुष्यन्त
kavitaa
Kavitt
kaviyon ke dohe
Kavya Natak
Kedarnath Agrawa
Kedarnath Singh
Keshavdas ke Savaiya
khadi boli wedding geet
Khadi Ke Phool
Khari Boli Lok Geet
Khelauna Geet
Khuman Bandijan
Khumar Barabankvi Ghazal
Kishan Saroj
kiski kahani
Kisse
Kobar Geet
Korku Geet
Korku Lokgeet
Kripanivas
Kriparam
Kriparam Khidiya sauratha
Krishn Bihari Noor
Krishna Bhajan Lyrics
Krishna Chander
krishna gitawali
Krishnadas ke Pad
kshatriya naai aur bhikhari ki kahani
Kuch bhi ban bas kayar mat ban
Kuchh Aur Nazmein
Kumauni Lokgeet
Kunkada Geet
Kunwar Mahendra Singh Bedi ke Kisse
Kunwar Narayan
Kusma Haran Geet
Kusumagraj
Kutban ke Kadvak
l Kavita
Laakh ka Ghar Katha
Laal Kavi ki Rachnaen
Laalju Priyaju Naamavali
Lachika Rani
Lagni Geet
Lalil Kishori Bhajan
Lalitkishori
Lalitmohini Dev
Lalnath
latife
Latife बशीर बद्र के क़िस्से
Latiife
Laxmi Prasad Devkota
Lehar
Lekhnath Paudyal
Llatiife
Lok katha
Lok-Katha Chhattisgarh
Lok-Katha Manipuri
Lok-Katha Uttarakhand
Lokgeet
Lokgeet Lyrics
Lokpriya krishna bhajan lyrics
Lyrics
Lyrics from movie
lyrics of kids song
lyrics of krishna bhajan popular
Ma Tara Ashirvad
maa shaarde
Madanashtak Rahim
Madhujwal
Madhurashtakam lyrics
magahi geet
magahi lokgeet
maghi geet
Mahadevi Verma
Mahakavi poet kalidas
mahakavya
Mahalakshmiashtakam
Mahapatra Narhari Bandijan
Mahuak Geet
Maithili Lokgeeet
Maithili lokgeet
Majaj Lakhnavi Ghazal
Makhan Chor
Makhanlal Chaturved
Malaar Geet
Malik Muhammad Jayasi
Malukdas
Malukdas Pad
malvi ganesh geet
malvi lokgeet
Malvi Lokgeet lyrics in Hindi
Man Tadpat Hari Darshan Ko Aaj lyrics
manavta ke mandir
MangalGaan
Manikdeh Salhes Darshan Geet
Manjhan ke Kadvak
mansarovar story collection
Manu Hariya
Marathi Lokgeet
Matiram
Mayawi Sarovar Katha
meer taqi meer ghazal
meer taqi meer ghazals
Meerabai Ke Bhajan Lyrics
Meghdoot Mahakavi Kalidasa
Meri Tan Heriye
milti hai zindagi mein mohabbat
mir taqi mir ghazal
Mira Bai Ke Pad
Mira ke Bhajan
MiraBai pad explanation
Mirza Ghalib
MIRZA GHALIB Ghazal
Mirza Ghalib Latiife
Misc Poetry
Misc. Poetry Gulzar
Mishrit Geet
Mitadas
Mohan
Momin Khan Momin
moral story for kid
Motiram Biyah Geet
Motivational Story
mrigavati
Mubarak ke Dohe
Muktak
Mukund Madhav Govind
Mulla Nasruddin
Muna Madan
Mundan Geet
Munj
munshi premchand
Munshi Premchand kahani
Munshi Premchand ke Upanyas
munshi premchand ki kahani
munshi premchand ki kahanni
Munshi Premchand Quote
Muztar Khairabadi Ghazal
na tha kuchh to KHuda tha
Nabhadas
Nachyo Bahut Gopal
Nagar-Shobha Rahim
Nagaridas
Nakta Geet
nanakdev ji
Nand Kishore lyrics
Nanddas ji ka Pad
Nanddas Ji ki Rachna
Nandoi Geet
Naqsh Layalpuri
narendra sharma
Narottamdas Ji Granth
Nasir Kazmi Ghazal
Nasir Kazmi Ghazal Ghazals नासिर काज़मी ग़ज़लें
navgeet
Nawaz Deobandi
Nawaz Deobandi Ghazal
Naye Subhashit
Nazeer Banarasi
Nazm
Nazmein
Nazms
Nazms Of Fahmida Riaz
Nepali Kavi
Nida Fazli
nimadi geet
Nimari geet
Nipat Niranjan
Nirgun Geet
Nirmala Putul Kavita निर्मला पुतुल की कविताएँ
Nirmala Putul poem
Noon Meem Rashid Ghazal
Novel
Obaidullah Aleem Ghazal
old Wedding Song
Paat Bhari Sahari
Pabani Geet
Pad
pad Vyakhya
Padawali Raidas
Padmakar
Padmavat
Padmavati
Pallav
Panchtantra Hindi Kahani
Pandav Dhritrashtra Katha
Panwari Lokgeet
Parba Pokhri Yagya Geet
Parichay
Parichhan Geet
Parmanand das
Parmanand das ke Pad
Parsat Pad Pavan
Parvati mangal
Parveen Shakir Ghazal
Parwati Mangal
Paryayvachi Shabd
patriotic poe
patriotic poem
patriotism hindi poem
Pavas Geet
Pawan Karan Kavita
Pawan Karan pem
Pawari Lok geet
Pawari Lokgeet
Phanishwar Nath Renu
Phooli Bai
Pirzada Qasim Ghazal Ghazals
poem
Poem for Kids
Poems
poet
poetry
poetry Pawan Karan
popular ghazals
Popular Poems of Manglesh Dabral
Prabal Prem Ke Paale
Prabhu Ko Bisar lyrics
Prabhu Tero Naam
prasidh bhajan
prayer in hindi
Premchand Stories
Premlata
Prithviraj Raso
Puchhta kyon shesh kitni raat
Puhkar bhaktikaal kavi
Puhkar ke Dohe
Pukhraj
Punjabi folk song
Punjabi Lokgeet
Qateel Shifai
Qita
Quote
quote in hindi
Quote of Acharya Ramchandra Shukla
Quote of Antonio Gramsci
Quote of Bhuvaneshvar
Quote of Chanakya
Quote of Dharmveer Bharti
Quote of Dhumil धूमिल के कोट्स उद्धरण
Quote of Doodhnath Singh
Quote of Elfriede Jelinek
Quote of Gabriel Garcia Marquez
Quote of Gajanan Madhav Muktibodh
Quote of Ganganath Jha
Quote of George Orwell
Quote of Gorakh Pandey
Quote of Gyanranjan
Quote of Harishankar Parsai
Quote of Hindi Poet Agyeya
Quote of Jaishankar Prasad
Quote of Jean Cocteau
Quote of Kedarnath Singh
Quote of Krishn Baldev Vaid
Quote of Kunwar Narayan
Quote of Mahatma Gandhi
Quote of Malyaj
Quote of Manglesh Dabral
Quote of Manohar Shyam Joshi
Quote of Mark Twain
Quote of Mohan Rakesh
Quote of Mridula Garg
Quote of Namvar Singh
Quote of Naveen Sagar
Quote of Nirmal Verma
Quote of Peter Handke
Quote of Phanishwarnath Renu
Quote of Premchand
Quote of Rabindranath Tagore
Quote of Raghuvir Sahay
Quote of Rajkamal Choudhary
Quote of Ranier Maria Rilke
Quote of Trilochan
Quote of Yun Fusse
quotes
Raag Halur Geet
Raas Geet
Raat Pashmine Ki
Radha Krishna Bhajan
Radha Raas Bihari
Raghubar Tumko Meri Laaj
Raghurajsingh
Rahim ki Rachnaen
Raidas
Raja Mehdi Ali Khan Lyrics
Rajasthani Geet
Rajasthani Lokgeet Lyrics
Rajasthani lyrics
Rajasthani song lyrics in hindi
Rajesh Joshi
Rajinder Manchanda Bani
Ram Bin Tan Ko
Ram Birajo Hriday Bhavan Mein
Ram Bolo Ram
Ram Do Nij Charno Mein Sthaan
Ram Kare So Hoy Re Manwa
ram ki shakti pooja suryakant tripathi nirala
Ram Prasad Bismil
Ram Ram Kahe Na Bole
Ram Sahay Das
Ram Sumir Ram Sumir lyrics
Ramagya Prashna
Ramanath Awasthi Geet
Ramashankar Yadav VIdrohi
Ramavtar Tyagi Kavita
Ramcharandas
Ramcharitmanas
Ramcharitmanas Tulsidas
Ramdarsh Mishra
Ramdarsh Mishra Kavita
Ramdev Ji ke Geet
Ramdhari Singh Dinkar
Ramdhari Singh Kavyateerth
Ramhi Ram Bas Ramhi
Ramkumar Verma
Ramrasrangmani
Rasik Ali
Raskhan Biography
Raskhan ke Dohe
Raskhan ke Savaiya
Raskhan Poems
Rasleen
Rasnidhi
Raso Kavya
Ratnawali
ravi par kahani
Ravidas ji ke Shabad
Ravindra Jain
Ravindra Jain Hindi Geet
Ray Deviprasad Poorn
Ritu aa Parvak Geet
Rom Rom Mein Rama Hua Hai lyrics
RONA SER MA
Roopsaras
Ropani Geet
Roti Geet
Rukmani Sammari Geet
Saanjh Geet
Sabad
Sagar Siddiqui
sahastra naam
sahastra namawali
Sahir Ludhianvi Ghazal
sahir ludhiyanvi
Sahjobai
Sain Bhagat
Sakhin Madhya Siya Sohati
Salhes Geet
salok
salok nanakdevji ke
Sama Chakeba Geet
Samdaun Geet
Sammari Geet
Sankata Mochana Hanumanashtaka
Sanskrit lok geet
Sanskrit Shlok
Sant Babalal
Sant Kavi Vrind
sant keshavdas
Sant Laldas ke Shabd aur Dohe
Sant Parshuram
Sant Peepa
Sant Pipa
Sant Ravidas
Sant Ravidas ke Pad
Sant Saligram
Sant Shivdayal Singh
Sant Shivnarayan
sant surdas bhajan
Sant Tukaram
Sant Tukaram ke Pad
Santhali Lokgeet
santo ke dohe
Saqi Faruqi
saravati prathna
Sarv Shaktimate Paramatmane
satire
Satyanarayan Kaviratn
Savaiya
Savaiyya
Saveya
Sawan Geet
Sawan lokgeet khari boli
school prayers
Senapati ke Kavitt
Shaad Azimabadi Ghazal
Shaan
Shabad
Shabad Of Bulleh Shah
Shabd
Shabd Raidas Ji
Shad Azimabadi Ghazal
Shaharyar Ghazal
Shahryar Ghazal
Shail Chaturvedi
Shail Chaturvedi Kavita
Shailendra
Shakuni Pravesh Katha
shalok
Shambhunath Singh
Sharan Mein Aaye Hain lyrics
Shariq Kaifi
Shaukat Thanvi
Shaukat Thanvi ke Kisse
Shayari
shayari of ameer minai
Sheikh Chilli
Sher
Sher Shayari on Various Topics
Shiv Ashtakam lyrics
Shiv Bhajan Lyrics
Shiv Sampati
Shivji Ka Byah lyrics
shlok
Shree Nandkumarashtakam lyrics
Shri Dinabandhvashtakam lyrics
Shri Ganesh Vandana
Shri Gaurishashtakam lyrics
Shri Govindashtakam lyrics
Shri Hanuman Chalisa
Shri Hari Sharanashtakam
Shri Hathi ki Rachnaen
Shri Hit Chaurasi
Shri Hit dhruvdas ji
Shri Kalikashtakam
Shri Kamalapatyashtakam
Shri Krishna Bal-Madhuri
Shri Krishna Gitavali
Shri Krishna Krupa Kataksh
Shri Krishna Saral
Shri Lingashtakam lyrics
Shri Narayanashtakam lyrics
Shri Radha Chalisa
Shri Radha krupakataksh
Shri Rama Ashtakam lyrics
Shri Ramachandra Ashtakam lyrics
Shri Ramaprema Ashtakam
Shri Rudrashtakam lyrics
Shri satleela
Shri Shiva Ramashtakastotram lyrics
Shri Surya Mandala Ashtakam
Shri Vishvanath Ashtakam lyrics
Shribhatt ke Pad
Shridhar Pathak
Shrikant Verma
Shringar-Soratha Rahim
Shubh Din Pratham Ganesh Manao
Shyam Teri Bansi Pukare Radha Naam lyrics
Shyambihari Shrivastava
Sinhasan Battisi
Sohar Geet
Somprabh Suri
Songs Lyrics radha krishna
stories in hindi
Story
story in hindi
Story panchtantra hindi
Stotra/Shloka
Subhadra Kumari Chauhan
Subramanyam Bharti Kavita
Sudama Charit
sudama chrit kavita
Sudama Panday Dhumil
Sudarshan Fakir Ghazals
Sudhakar Dwivedi
Sujan Raskhan Rachna
Sukh-Varan Prabhu
sukt sangrah
suktam
Sumiran Salhes Geet
Sumitranandan Pant
Sundardas
Sundardas ke Savaiyya
Sur Ki Gati Main lyrics
Sur Sukhsagar
Surdas
surdas bhajan
surdas bhajan lyrics
Surya Ka Swagat
Suryakant Tripathi Nirala
Suryamal Mishran
Swarna Kiran
Swarndhuli
taqseem kahani
Tenali ram ki kahaniyan
Tenali rama
Tenali Raman
Tirhut Geet
Tora Man Darpan Kahlaye lyrics
Triveni
Tu Pyar Ka Sagar Hai lyrics
tukhari barah maah
Tulsidas
tulsidas ji
tulsidas ji ramcharitmanas
Tum Meri Rakho Laaj Hari
Tum Utho Siya Singar Karo
tumhi ho mata pita
Tyagi ki kavita
Udasi Geet
Udayraj Jati
Uncategorized
unchi edi wali mam
Upanyas
Upnayan Geet
Urdu Shabdawali
Uttra
Vairagya Sandipani
Vaivahik Lokgeet Rajasthani
Var ke khayaba kaal Geet
Vasant Geet
Vidayi Geet
Vidhyapati ki rachnaen
Vidur Niti Hindi
Vidyapati ke dohe
Vidyapati ke geet
Vikram
Vikramorvasiyam Play Kalidasa
Vikrat ka Bhram Katha
vinay pachasa baanke bihari ji
Vinod Kumar Shukl Kavita
Vishnu Vaman Shirwadkar
Vivah Geet
vivah lokgeet khari boli
Vividh Geet
Viyogi Hari
Vrat Kathaen
vyangya
vyangya kavita
Wali Dakni Ghazal
Wali Dakni Ki Ghazal aur SHayari
ya kundendutusharhardhavala
Yaar Julahe
Yaari Sahab
Yagana Changezi
Yash Malviya Kavita
Yash Malviya poem
Yash Malviya poetry
Yashomati Maiya Se Bole Nandlala lyrics
Yog Geet
Yudhishtar Vedna Katha
Yugaant
Yuglaananysharan
Yugpath
Yugvani
Zafar Iqbal Ghazal
अ से ज्ञ तक विलोम शब्द हिंदी संग्रह
अकबर इलाहाबादी
अकबर इलाहाबादी के क़िस्से
अकबर इलाहाबादी ग़ज़ल
अकबर हैदराबादी
अकबर हैदराबादी की ग़ज़लें
अकबर-बीरबल
अंकिता जैन
अक्षय उपाध्याय की कविताएँ
अखरावट
अंखियाँ हरि दरसन की प्यासी
अखिलेश तिवारी
अख़्तर शीरानी ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी नज्म
अख़्तर-उल-ईमान नज़्म
अगमसिँह गिरी
अंगिका ऋतु गीत
अंगिका कोशी गीत
अंगिका फेकड़ा गीत
अंगिका बुझौवल गीत
अंगिका भक्ति गीत
अंगिका मनौन गीत
अंगिका लोकगाथा
अंगिका लोकगीत
अंगिका लोरियाँ
अंगिका सोहर गीत
अच्युताष्टकम्
अंजना भट्ट
अज़हर इनायती की ग़ज़लें
अज़ीज़ आज़ाद
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
अज़ीज़ लखन
अज़ीज़ लखनवी ग़ज़लें
अज़ीज़ लखनवी शेर
अज़ीज़ वारसी
अज्ञातवास
अज्ञेय
अज्ञेय के उद्धरण
अटल बिहारी वाजपेयी
अतिमा
अंतोनियो ग्राम्शी के कोट्स
अथ श्री कृष्णाष्टकम्
अथ श्री गणेशाष्टकम्
अथ श्री शिवाष्टकम्
अदम गोंडवी
अदा ज़ाफ़री
अदीम हाशमी गजल
अदीम हाशमी ग़ज़लें
अंधेर नगरी चौपट्ट राजा
अनमोल वचन
अना क़ासमी की गजलें
अनामिका
अनूप जलोटा
अब कृपा करो श्री राम नाथ दुख टारो
अंबिकादत्त व्यास
अमीर खुसरो के दोहे- गीत -कविता -पहेलियाँ
अमीर मीनाई ग़ज़ल
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध कविताएँ
अरुण कमल की कविताएँ
अर्जुनदास केडिया
अर्थ सहित Rahim ke Dohe
अलबेलीअलि के पद
अली सरदार जाफ़री ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल
अवधी गीत
अवधी जाँत गीत
अवधी देवी गीत
अवधी नकटा गीत
अवधी निर्गुण गीत
अवधी फाग गीत
अवधी बारामासी गीत
अवधी बाल-गीत
अवधी बिरहा गीत
अवधी रोटी गीत
अवधी रोपनी गीत
अवधी लोकगीत
अवधी विदाई गीत
अवधी विवाह गीत
अवधी सावन गीत
अवधी सोहर गीत
अशोक अंजुम ग़ज़लें
अशोक चक्रधर
अष्टक
अष्टकम
असरार-उल-हक़ मजाज़
असरार-उल-हक़ मजाज़ ग़ज़ल
अंसार कंबरी की हिंदी ग़ज़लें
अहमद नदीम क़ासमी ग़ज़ल
अहमद फ़राज़ ग़ज़ल
अहमद मुश्ताक ग़ज़ल
आओ आओ यशोदा के लाल
आओ रामा भोग लगाओ श्यामा
आखरी कलाम
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कोट्स
आदिल मंसूरी ग़ज़ल
आनंद बख्शी
आराध्य श्रीराम
आलम शेख की कविता
आल्हा ऊदल गीत भोजपुरी
आवाज़ों के घेरे
इंद्रप्रस्थ
इंशा अल्ला खाँ 'इंशा' की ग़ज़लें
ईश्वर पर कविताएँ
ईसुरी की फाग
उत्तरा
उदयराज जती
उद्धरण
उबटन मगही
उबैदुल्लाह अलीम ग़ज़ल
उर्दू शब्दावली
उर्दू-हिन्दी शब्दकोश
एक कंठ विषपायी
एक क्षत्रिय
एकादशी व्रत कथा
एल्फ्रीडे येलिनेक के कोट्स
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ऐतबार साजिद ग़ज़ल
ऐसी भोले की रे चढ़ी है बरात
कजरी झूला उत्सव गीत
क़तील शिफ़ाई
कन्नौजी लोकगीत
कन्हैया कन्हैया तुझे आना पड़ेगा
कबीर के दोहे
कबीर के भजन
कबीर भजन
करुणा भरी पुकार सुन
कला और बूढ़ा चाँद
कवि आलोक धन्वा कविता
कवि चन्द्रकान्त देवताले कविता
कवि जमाल
कवि भूषण
कविता
कविता नेपाली
कविताएँ
कविताएं
कवित्त
कहानियाँ
कहानियां
कहानी
काका हाथरसी
कातक न्हाण के गीत
काफिया
काव्य
काव्य-नाटक
क़िता
किशन सरोज
कुंकड़ा (प्रभाती) गीत
कुछ और नज्में
कुछ भी बन बस कायर मत बन
कुंडलियाँ
कुतुबन के कड़वक
कुंदनलाल
कुमाँऊनी लोकगीत
कुंवर नारायण
कुँवर नारायण के कोट्स
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर के क़िस्से
कुंवा पूजन गीत
कुसुमाग्रज
कुसुमाग्रज मराठी कविताएँ
कृपानिवास
कृपाराम
कृपाराम बारहठ खिड़िया का सोरठा
कृष्ण चंदर
कृष्ण बलदेव वैद के कोट्स
कृष्ण बिहारी नूर
कृष्ण भक्ति कवि
कृष्ण भजन लिरिक्स
कृष्ण लौकिक गीत गढ़वाली
कृष्णदास के पद
केदारनाथ अग्रवाल
केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह के कोट्स
केशवदास के सवैया
कैफ़ी आज़मी
कैलाश गौतम
कोट्स
कोरकू खांचा ऊमून गीत
कोरकू मिमलाव गीत
कोरकू लोकगीत
कोरकू विवाह गीत
कोरकू विविध गीत
कोरकू सिडोली गीत
कौशल्या रानी अपने लला को दुलरावे
खादी के फूल
खुमान बंदीजन
ख़ुमार बाराबंकवी
ख़ुमार बाराबंकवी की ग़ज़लें
खेती-बाड़ी के गीत
गंगा स्नान गीत भोजपुरी
गंगानाथ झा के कोट्स
गजल
ग़ज़ल
ग़ज़ल ghazal
ग़ज़ल Ghazal
गजलें
ग़ज़ले
ग़ज़लें
गजानन माधव मुक्तिबोध के कोट्स
गढ़वाली काव्य रचनाएँ
गढ़वाली प्रमुख काव्य रचनाएँ
गढ़वाली लोकगीत
गणपति गणेश
गणपति बप्पा की जय बोलो
गदाधर भट्ट के पद
गरीबदास
गवरी बाई
गाइए गणपति जग वंदन
गारी गीत
गिरिधारन
गीत
गीत गढ़वाली
गीतकार- इंदीवर
गुंजन
गुजराती लोकगीत
गुरु अमरदास
गुरु आज्ञा में निश दिन रहिये
गुरु तेग़ बहादुर
गुरु नानक
गुरु नानक के सबद
गुरु नानक देव जी की रचनाएँ
गुरू अंगद देव जी
गुलज़ार
गुलज़ार ग़ज़ल
गुलज़ार परिचय
गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेस के कोट्स
गोंड गीत
गोंड लोकगीत
गोपाल भाँड़
गोपाल सिंह नेपाली
गोपालदास नीरज
गोपालशरण सिंह
गोपी गीत
गोरख पांडेय के कोट्स
गोविंद स्वामी के पद
गोस्वामी तुलसीदास
ग्यारस (एकादशी) गीत
ग्राम्या
चक्की के गीत
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी Bheem aur Hanuman Ji Katha
चतुर्भुजदास
चतुर्भुजदास के पद
चंद्रकांता उपन्यास
चाचा हितवृंदावनदास
चाणक्य के कोट्स
चालीसा
चालीसा लिरिक्स
चालीसा संग्रह
चालीसा हिंदी
चालो रे सखियाँ
चीगट गीत
चौथ चन्दा गीत भोजपुरी
चौंफला गीत गढ़वाली
चौमासा बारामासा गीत गढ़वाली
छत्तीसगढ़ी गीत
छप्पय
छीहल की रचना
छैंया-छैंया
छोटेलाल दास भजन
जन्म के गीत
जन्म गीत
ज़फ़र इक़बाल की ग़ज़लें
जब से लगन लगी प्रभु तेरी
जय जय गिरिबरराज किसोरी
जय राम रमारमनं शमनं
जय शंकर प्रसाद हिंदी कहानियां
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद के कोट्स
जयशंकर प्रसाद हिंदी कहानी
जलते हुए वन का वसन्त
जसवंत सिंह
जसुराम
जाँ निसार अख्तर
जागो बंसीवारे ललना
जान कवि
जानकी -मंगल
जामुन का पेड़
जिगर मुरादाबादी
जिगर मुरादाबादी के क़िस्से
जिगर मुरादाबादी ग़ज़लें
जीवन परिचय
जीवन सिंह
जैन कवि
जॉर्ज आरवेल के कोट्स
जोइंदु
जोश मलीहाबादी
जोश मलीहाबादी के क़िस्से
ज्ञानरंजन के कोट्स
ज्ञानेन्द्रपति
ज़्यां कॉक्त्यू के कोट्स
झामदास
डग्गा तिनताला गीत
तुम उठो सिया सिंगार करो
तुम मेरी राखो लाज हरि
तुलसीदास
तुलसीदास जी
तू प्यार का सागर है
तेनाली रमन
तेनाली रामा
तेनालीराम
तोरा मन दर्पण कहलाये
त्रिलोचन के कोट्स
त्रिवेणी
दयाबाई के
दयाराम
दरिया (बिहार वाले)
दाग़ देहलवी
दाग़ देहलवी के क़िस्से
दाता राम दिये ही जाता
दादरा गीत
दादू के भजन
दादू दयाल
दादू दयाल भजन
दामाद के गीत
दीनदयाल गिरि
दीनबन्धु दीनानाथ
दुखियों के दुख दूर करे
दुलारेलाल भार्गव
दुष्यंत कुमार
दुष्यन्त कुमार
दूधनाथ सिंह के कोट्स
दूलह राम सीय दुलही री
देवकीनन्दन खत्री उपन्यास
देवठणी के गीत
देवसेन
देवादास
देवी के गीत
देवी जगदम्बा गीत
देवी माँ के गीत
देवी-देवता गीत
देवीशंकर अवस्थी के कोट्स
देवेंद्र कुमार बंगाली
देशभक्ति कविता
देशभक्ति गीत भोजपुरी
देसी गीत
दोहा
दोहावली
दोहे
दौलत कवि
द्रौपदी स्वयंवर
धन्ना भगत
धरनीदास जी के भजन
धर्मवीर भारती कविता
धर्मवीर भारती के कोट्स
ध्रुवदास के दोहे
ध्रुवदास के पद
ध्रुवदास के सवैया
न था कुछ तो ख़ुदा था
नक़्श लायलपुरी
नज़ीर बनारसी
नज़्म
नज़्में
नणदोई के गीत
नंददास जी की रचनाएं
नंददास पद
नये सुभाषित
नरेन्द्र शर्मा
नरोत्तमदास
नरोत्तमदास कविता
नवमी गीत भोजपुरी
नवाज़ देवबंदी ग़ज़ल
नवीन सागर के कोट्स
नाई और भिखारी की कहानी
नागरीदास
नाच्यो बहुत गोपाल
नाभादास के छप्पय
नाभादास के पद
नामवर सिंह के कोट्स
नामावली
नामावली भगवान की
नारायण
नासिर काज़मी ग़ज़ल
निदा फाज़ली
निपट निरंजन
निमाड़ी गीत
निमाड़ी लोकगीत
निर्गुण गीत भोजपुरी
निर्मल वर्मा के कोट्स
नून मीम राशिद ग़ज़लें
नेपाली कविता
पंच सहेली गीत
पंचतंत्र की कहानी
पंजाबी लोकगीत
पतित पावन सुने. Hari Patit Pavan Sune
पद
पद अर्थ
पदावली संत रैदास
पद्माकर-रीतिकाल कवि
पद्मावत
पनघट के गीत
परछन गीत
परमानंद दास के पद
परवीन शाकिर की ग़ज़लें
परसत पद पावन
पराती गीत भोजपुरी
परिचय
पर्यायवाची शब्द
पर्व गीत
पल्लव
पवन करण की कविताएँ
पँवारी लोक गीत
पवारी लोकगीत
पँवारी लोकगीत
पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार
पाण्डव लौकिक गाथाएँ गढ़वाली
पात भरी सहरी
पार्वती-मंगल
पिंडदान गीत भोजपुरी
पितर नेवतौनी गीत भोजपुरी
पितु मातु सहायक स्वामी . Pitu Matu Sahayak Swami lyrics
पीटर हैंडके के कोट्स
पीरज़ादा क़ासीम ग़ज़ल
पुखराज
पुहकर कवि के कवित्त
पूछता क्यों शेष कितनी रात
पौराणिक कथाएं
प्रदीप
प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर
प्रभु को बिसार
प्रभु तेरो नाम
प्रार्थना
प्रार्थना संग्रह
प्रेमगीत
प्रेमचंद की कहानियाँ
प्रेमचंद के कोट्स
प्रेमलता
प्रेरक प्रसंग
फगुआ गीत भोजपुरी
फणीश्वर नाथ रेणु
फणीश्वरनाथ रेणु के कोट्स
फ़हमीदा रियाज़ की ग़ज़लें
फ़हमीदा रियाज़ की नज़्में
फ़हमीदा रियाज़ नज़्म
फागण के गीत
फ़िराक़ गोरखपुरी
फ़िराक़ गोरखपुरी के क़िस्से
फ़िराक़ गोरखपुरी ग़ज़ल
फिल्मी गीत
फूलीबाई
बखना
बघेली गीत
बघेली लोकगीत
बच्चों की कहानियाँ
बड़ा नटखट है रे
बधावा गीत
बनारसी दास के पद
बरवै रामायण हिंदी
बरूआ गीत
बशर नवाज़ की ग़ज़लें
बशर नवाज़ ग़ज़ल
बशीर बद्र
बहादुर शाह ज़फ़र ग़ज़लें
बांग्ला गीत
बाबाफाग दहका गीत
बारहमासा गीत भोजपुरी
बाल अली
बाल कविताएँ
बाल महाभारत
बाल-कविता
बियाह सँ द्विरागमन धरिक
गीत
बिहारी
बीत गये दिन
बुधजन
बुन्देली गारी गीत
बुन्देली दादरे गीत
बुन्देली बन्ना गीत
बुन्देली वर्षा गीत
बुन्देली सोहर गीत
बुल्ला साहब
बुल्ले शाह की काफियां
बुल्ले शाह के दोहे
बुल्ले शाह के शबद
बृज नारायण चकबस्त की ग़ज़लें
बेकल उत्साही की ग़ज़लें
बेटा -बेटी विवाह मगही
बेताल पच्चीसी
बैगा गीत
बैगा लोकगीत
बैरीसाल
भक्त रूपकला
भक्त सूरदास जी रचना
भक्तिकालीन रचनाकार
भगवत रसिक
भगवतीचरण वर्मा
भगवान मेरी नैया
भज मन मेरे राम नाम तू
भजन
भजन गीत
भजन लिरिक्स
भजन-संग्रह
भदावरी
भदावरी लोक गीत
भानुभक्त आचार्य
भारत भूषण अग्रवाल
भारतदुर्दशा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताएँ
भारतेंदु हरिश्चंद्र ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र नाटक
भीम और हनुमान
भील जनजाति गीत
भील जन्म गीत
भील झूमरली गीत
भील फाग गीत
भील भजन गीत
भील मृत्यु गीत
भील लोकगीत
भील विवाह गीत
भील सावां गीत
भुवनेश्वर के कोट्स
भूपति के दोहे
भूपि शेरचन
भेरू (भैरव) के गीत
भोजपुरी लोकगीत
भोले नाथ के भजन लिरिक्स
मंगलेश डबराल की लोकप्रिय कविताएं
मगही उबटन लोकगीत
मगही गुरहत्थी गीत
मगही जनेऊ गीत
मगही जन्मोत्सव गीत
मगही बन्ना गीत
मगही मुण्डन गीत
मगही मृत्यु गीत
मगही मेहँदी गीत
मगही लोकगीत
मगही विवाह लोकगीत
मगही शिव विवाह राम विवाह गीत
मगही सोहर लोकगीत
मजाज़ लखनवी की ग़ज़लें
मंझन के कड़वक
मतिराम
मधुज्वाल
मधुराष्टकम्
मन तड़पत हरि दरसन को आज
मनवा मेरा कब से प्यासा
मनोहर श्याम जोशी के कोट्स
मन्नू हरिया
मराठी
मराठी कविता
मराठी लोकगीत
मलयज के कोट्स
मलिक मुहम्मद जायसी
मलूकदास
मलूकदास जी के पद
महत्त्वपूर्ण दिवस
महाकवि कालिदास
महाकाव्य
महात्मा गांधी के कोट्स
महात्मा गांधी के गीत
महादेवी वर्मा
महापात्र नरहरि बंदीजन
महालक्ष्म्यष्टकम्
माखन चोर नन्द किशोर
माखनलाल चतुर्वेदी
मांगल गीत गढ़वाली
मायावी सरोवर
मारवाड़ी लोकगीत ब्याह के
मार्क ट्वेन के कोट्स
मालवी गणेश गीत
मालवी लोकगीत
मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें
मिर्ज़ा ग़ालिब के क़िस्से
मिर्ज़ा ग़ालिब ग़ज़ल
मिश्रित गीत
मीतादास
मीर तकी मीर की ग़ज़लें
मीरा के भजन
मीराबाई के पद
मीराबाई के भजन
मुकुन्द माधव गोविन्द
मुक्तक
मुंज
मुज़्तर ख़ैराबादी की ग़ज़लें
मुंडन संस्कार गीत
मुना मदन
मुबारक के दोहे सवैया कवित्त
मुल्ला नसरुद्दीन
मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद हिन्दी कहानियाँ
मृगावती
मृत्यु गीत
मृदुला गर्ग के कोट्स
मेघदूत खण्डकाव्य कालिदास
मैथिली
गीत
मैथिली आरती गीत
मैथिली उदासी गीत
मैथिली उपनयन गीत
मैथिली ऋतू आ पर्वक गीत
मैथिली कजरी गीत
मैथिली करिकन्हा बिआह
गीत
मैथिली कुसमा हरण
गीत
मैथिली कोबर गीत
मैथिली खेलौना गीत
मैथिली गीत
मैथिली गौरीक गीत
मैथिली ग्वालरि गीत
मैथिली चतुर्थी गीत
मैथिली चुहर चोरि पकरिया
गीत
मैथिली चैतावर गीत
मैथिली चौमासा गीत
मैथिली छौमासा गीत
मैथिली जट-जटिन गीत
मैथिली जन्म-संस्कारक गीत
मैथिली झरनी गीत
मैथिली झुम्मरि गीत
मैथिली डहकन गीत
मैथिली तिरहुत गीत
मैथिली देवता गीत
मैथिली परबा-पोखरि यज्ञ
गीत
मैथिली परिछन गीत
मैथिली पाबनि गीत
मैथिली पावस गीत
मैथिली फागु गीत
मैथिली फुलवाड़ि दरशन
गीत
मैथिली बटगबनी गीत
मैथिली बरिआतीक गीत
मैथिली बारहमासा गीत
मैथिली बिरहा गीत
मैथिली बुधेसर -बियाह
गीत
मैथिली मलार गीत
मैथिली महुअक गीत
मैथिली मानिकदह सलहेस दर्शन
गीत
मैथिली मिश्रित गीत
मैथिली मुंडन गीत
मैथिली मोतीराम-बियाह
गीत
मैथिली योग गीत
मैथिली रास गीत
मैथिली रुक्मिनि सम्मरि गीत
मैथिली लगनी गीत
मैथिली लोकगीत
मैथिली वर कें खयबा काल गीत
मैथिली वसन्त गीत
मैथिली विविध गीत
मैथिली समदाउन गीत
मैथिली सम्मरि गीत
मैथिली सलहेस गीत
मैथिली सांझ गीत
मैथिली सामा-चकेबा गीत
मैथिली सुमिरन एवं सलहेस द्विरागमन
गीत
मैथिली सोहर गीत
मोमिन ख़ाँ मोमिन
मोहन
मोहन राकेश के कोट्स
मोहम्मद रफ़ी सौदा की ग़ज़लें
यगाना चंगेज़ी
यश मालवीय की कविताएँ
यशोमती मैया से बोले नंदलाला
यार जुलाहे
यारी साहब
युगपथ
युगलान्यशरण
युगवाणी
युगांत
युधिष्ठिर की वेदना
यून फ़ुस्से के कोट्स
रक्षा बंधन गीत भोजपुरी
रघुबर तुमको मेरी लाज
रघुराजसिंह
रघुवीर सहाय के कोट्स
रत्नावली
रमानाथ अवस्थी के गीत
रमाशंकर यादव विद्रोही
रविदास जी
रविदास जी पद
रविन्द्र जैन
रवींद्रनाथ टैगोर के कोट्स
रसखान
रसखान की रचनाएँ
रसखान के दोहे
रसखान के सवैया अर्थ
रसखान परिचय
रसनिधि
रसलीन
रसिक अली
रसिक संप्रदाय
रहन-सहन के गीत
रहीम
रहीम की रचनाएँ
रहीम के दोहे
राग हलूर गीत
राजकमल चौधरी के कोट्स
राजस्थानी लोकगीत
राजस्थानी विवाह गीत
राजा मेंहदी अली खान
राजेन्द्र मनचंदा बानी
राजेश जोशी
रात पश्मीने की
राधा कृष्णा भजन
राधा रास बिहारी
राम करे सो होय रे मनवा
राम की शक्ति-पूजा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
राम गीत
राम दो निज चरणों में स्थान
राम प्रसाद बिस्मिल
राम बिनु तन को
राम बिराजो हृदय भवन में
राम बोलो राम
राम राम काहे ना बोले
राम सुमिर राम सुमिर
रामकुमार वर्मा
रामचरणदास
रामचरितमानस
रामचरितमानस तुलसीदास
रामदरश मिश्र
रामदेव जी के गीत
रामधारी सिंह काव्यतीर्थ
रामधारी सिंह दिनकर
रामरसरंगमणि
रामसहाय दास
रामहि राम बस रामहि राम
रामाज्ञा प्रश्न
रामावतार त्यागी की कविताएँ
राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’
रासो काव्य
रीतिकाल
रीतिकाल कवि
रीतिकाल के कवि सुंदरदास सवैया
रूपसरस
रेनर मारिया रिल्के के कोट्स
रैदास जी दोहे
रोम रोम में रमा हुआ है
लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा
लचिका रानी
ललित किशोरी भजन
ललितकिशोरी
ललितमोहिनी देव
लाख का घर
लाल कवि की रचनाएँ
लालनाथ
लिरिक्स
लिरिक्स चालीसा
लेखनाथ पौड्याल
लोक कथा
लोकगीत
लोरियाँ भोजपुरी
लौकिक गाथाएँ गढ़वाली
वली दक्कनी की ग़ज़ल
वसीम बरेलवी की ग़ज़लें
विक्रम
विक्रमोर्वशीयम् (नाटक)
विदाई गीत भोजपुरी
विदुर नीति हिंदी
विद्यापति के गीत
विद्यापति के दोहे
विद्यापति जीवन परिचय
विद्यापति ठाकुर की रचनाएं
विनय पचासा
विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं
विभिन्न विषयों पर शेर शायरी
वियोगी हरि
विराट का भ्रम
विलोम शब्द
विवाह गीत
विविध कविता
विविध गीत गढ़वाली
विविध रचनाएँ
विविध हरियाणवी गीत
वीर रस
वृंद
वैराग्यसंदीपनी हिंदी
शकील आज़मी की ग़ज़लें
शकील बदायूनी की ग़ज़ल
शकुनि का प्रवेश
शब्द संत रविदास जी
शंभुनाथ सिंह
शरण में आये हैं
शहरयार की ग़ज़लें
शाद अज़ीमाबादी की ग़ज़लें
शादी-ब्याह के गीत
शान
शायरी
शारिक़ कैफ़ी
शिव सम्पति
शिवजी का ब्याह
शिवजी भजन हिंदी लिरिक्स
शिवाष्टकम्
शुभ दिन प्रथम गणेश मनाओ
शृंगारी कवि
शेखचिल्ली
शेर
शैल चतुर्वेदी
शैल चतुर्वेदी कविता
शैलेन्द्र
शौकत थानवी
शौकत थानवी के क़िस्से
श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम.
श्यामबिहारी श्रीवास्तव
श्री कमलापत्यष्टकम्
श्री कालिकाष्टकम्
श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष
श्री गणेश वंदना
श्री गौरीशाष्टकम
श्री दीनबन्ध्वष्टकम्
श्री नारायणाष्टकम्
श्री राधा कृपा कटाक्ष
श्री राधा चालीसा
श्री लिङ्गाष्टकम्
श्री शिवरामाष्टकस्तोत्रम्
श्री हठी
श्री हनुमान चालीसा
श्री हरि शरणाष्टकम्
श्री हित चतुरासी जी
श्री हित चौरासी जी
श्रीकांत वर्मा
श्रीकृष्ण गीतावली
श्रीकृष्ण बाल-माधुरी
श्रीकृष्ण सरल
श्रीगोविन्दाष्टकम्
श्रीधर पाठक
श्रीनन्दकुमाराष्टकम्
श्रीभट्ट के पद
श्रीरामचन्द्राष्टकम्
श्रीरामप्रेमाष्टकम्
श्रीरामाष्टकम्
श्रीरुद्राष्टकम्
श्रीविश्वनाथाष्टकम्
श्रीसूर्यमण्डलाष्टकम्
श्रीहित मंगलगान
संकट मोचन हनुमानाष्टक
सखिन्ह मध्य सिय सोहति कैसे
संत और कवि वृन्द
संत गुरु रविदास
संत जूड़ीराम के भजन
संत तुकाराम
संत परशुरामदेव
संत पीपा
संत बाबालाल
संत रैदास
संत लालदास के सबद
संत शिवदयाल सिंह
संत शिवनारायण
संत सालिगराम
सत्यनारायण कविरत्न
संथाली लोकगीत
सबद
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीताBhagavad Gita Chapter
सर्व शक्तिमते परमात्मने
सलहेस वंदी आ चोरमोट पकड़ब
सलहेस हाजत गीत
सवैया
सवैये
संस्कृत लोकगीत
सहजोबाई
सहस्त्र नामावली
साक़ी फ़ारुक़ी
साग़र सिद्दीक़ी
सांझी के गीत
सावन के गीत
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी की ग़ज़लें
सिंहासन बत्तीसी
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये Sitaram Kahiye
सुख-वरण प्रभु
सुजान रसखान
सुजान-रसखान
सुंदरदास
सुंदरदास के सवैया
सुदर्शन फ़ाकिर की ग़ज़लें
सुदामा चरित
सुदामा पांडेय धूमिल
सुधाकर द्विवेदी
सुब्रह्मण्य भारती कविता
सुभद्राकुमारी चौहान
सुमित्रानंदन पंत
सुर की गति मैं
सूक्त संग्रह
सूक्तम्
सूर सुखसागर
सूरदास
सूरदास के भजन
सूरदास जी
सूर्य का स्वागत
सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" कविता
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
सूर्यमल्ल मिश्रण
सेनापति के कवित्त
सैन भगत
सैनिक गीत
सोमप्रभ सूरि
सोहर गीत
सोहर गीत भोजपुरी
सोहर मगही
सोहाग गीत
स्तोत्र/श्लोक
स्वर्णकिरण
स्वर्णधूलि
स्वामी हरिदास के पद
हनुमान बाहुक
हबीब जालिब
हबीब जालिब की ग़ज़लें
हबीब जालिब की नज़्म
हमें नन्द नन्दन मोल लियो
हर सांस में हर बोल में
हरि
हरि तुम हरो जन की भीर
हरि भजन बिना सुख शान्ति नहीं
हरिओम पंवार
हरियाणवी लोकगीत
हरिव्यास देव
हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाएँ
हरिशंकर परसाई के कोट्स
हरिहर प्रसाद
हरीराम व्यास के पद
हसरत मोहानी की ग़ज़लें
हास्य कविता
हास्य कविता संग्रह
हिंडौले गीत
हित हरिवंश जी रचना
हितहरिवंश के पद
हिंदी कविता
हिंदी कहानी बच्चों की
हिंदी के अशुद्ध शब्द
हिंदी चालीसा
हिंदी भजन लिरिक्स
हिंदी लोकगीत
हिन्दी कविता
हिन्दी कविताएँ
हिन्दी निबंध
हिमाचली गीत
हिमाचली लोकगीत
हे गोविन्द राखो शरन
हे रे कन्हैया
हे रोम रोम में
हे रोम रोम में बसने वाले राम
हेमचंद्र
No comments:
Post a Comment