जगत को सत मूरख कब जाने मृदुल कीर्ति भजन / Bhajan Jagat Ko Sat Murkh Kab Jane Mridul Kirti Bhajan

 

जगत को सत मूरख कब जाने
दर-दर फिरत कटोरा ले के, मांगत नेह के दाने
बिनु बदले उपकारी साईं, ताहि नहीं पहिचाने
आपुनि-आपुनि कहत अघायो, वे सब अब बेगाने
निज करमन की बाँध गठरिया, घर चल अब दीवाने
रैन बसेरा, जगत घनेरा, डेरा को घर जाने
जब बिनु पंख, हंस उड़ जावे, अपने साईं ठिकाने
पात-पात में लिखा संदेशा, केवल पढ़ही सयाने
आज बसन्ती, काल पतझरी, अगले पल वीराने
बहुत जनम धरि जनम अनेका, जनम-जनम भटकाने
मानुष तन धरि, ज्ञान सहारे, अपनों घर पहचाने

Laal Kavi ki Rachnaen pad

जगत को सत मूरख कब जाने मृदुल कीर्ति भजन / पद/ मिश्रित रचना आपको कैसी लगी ?

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